अकबर और तानसेन का किस्सा:- झूठे प्रशंसको को मिली मौत.

Last updated on October 11th, 2022 at 03:10 am

अकबर और तानसेन का एक किस्सा बहुत प्रचलित है. जब संगीत के सम्राट तानसेन अकबर के दरबार में आलाप भरते तो पूरे दरबार का माहौल बदल जाता था. अकबर के नौ रत्नों में शामिल तानसेन जब अपने संगीत का जादू बिखेरते थे, तब मुगल बादशाह अकबर के साथ-साथ उनकी चापलूसी करने वाले दरबारी भी वाह-वाह करने लग जाते.

अकबर को संदेह था कि वास्तव में इन दरबारियों को तानसेन का संगीत समझ में भी आता है या चापलूसी के चलते वाहवाही करते हैं. जब भी अकबर के मन में कोई सवाल आता तो वह बीरबल के साथ चर्चा करता. इस झूठी वाहवाही को पकड़ने के लिए भी अकबर ने बीरबल का सहारा लिया.

बीरबल ने निकाला समाधान, अकबर था हैरान

अकबर ने बीरबल से कहा कि इस दरबार में संगीत सम्राट तानसेन के संगीत पर पूरा दरबार मेरे साथ वाहवाही करता है. मुझे लगता है यह सब ढोंग कर रहे हैं. मुझे खुश करने के लिए वाहवाही कर रहे हैं. अकबर ने बीरबल को आदेश दिया कि कैसे भी करके इसकी सच्चाई का पता लगाया जाए.

बीरबल ने अकबर को आश्वासन दिया कि बहुत जल्द इस मर्ज की दवा ढूंढ ली जाएगी. दूसरे ही दिन बीरबल ने अकबर की आज्ञा लेकर दरबार में संगीत का आयोजन करवाया. अकबर के जितने भी दरबारी थे उन्हें भी बुलाया गया, पूरा दरबार खचाखच भर गया. जैसे ही अकबर दरबार में पहुंचे सभी दरबारियों की आंखें फटी रह गई क्योंकि उन्होंने देखा कि अकबर के साथ-साथ बहुत सारे मुगल सैनिकों ने भी दरबार में प्रवेश किया. सभी दरबारियों के पीछे एक-एक सैनिक खड़ा हो गया.

प्रत्येक सैनिक के हाथ में नंगी तलवार थी. पूरे दरबार का माहौल एकदम शांत हो गया. जैसे ही अकबर अपने सिंहासन पर बैठे, बीरबल ने अकबर की घोषणा पढ़कर सभी को सुनाई. बीरबल ने सभी मुगल सैनिकों को यह फरमान सुनाया की जो भी तानसेन के गाने के बीच में वाह-वाह करेगा उसका सिर धड़ से जुदा कर देना. यह मेरा नहीं बादशाह अकबर का आदेश है.

इस आदेश के बाद संगीत सम्राट तानसेन ने तानपुरा उठाया, तार छेड़े और अलाप भरा तो पूरा दरबार संगीतमय हो गया. इतना मधुर संगीत होने के बाद भी किसी भी दरबारी ने अपने मुंह से आवाज नहीं निकाली. यह देखकर बादशाह अकबर समझ गए थे कि सभी दरबारी अकबर को खुश करने के लिए जानबूझकर वाहवाही कर रहे थे, संगीत किसी को समझ में नहीं आ रहा था.

तभी वहां पर मौजूद एक दरबारी के मुंह से अचानक वाह-वाह निकल गया. जैसे ही उसके मुंह से वाह निकला उसके पीछे खड़े मुगल सैनिक ने तलवार उठाई और उसका सिर धड़ से अलग करना चाहा, तभी अकबर ने उसे रोक लिया.

अकबर अपने स्थान से खड़ा हो गया और ताली बजाने लगा. भरी सभा में अकबर ने कहा कि यह है सच्चा प्रशंसक जो मौत से भी नहीं डरा. इतना कहकर उन्होंने तारीफ करने वाले दरबारी को पुरस्कार स्वरूप कई उपहार भेंट किए. यह नजारा देखकर वहां पर मौजूद दूसरे दरबारी शर्म के मारे सिर झुका कर खड़े हो गए. इस तरह बीरबल ने अपने बादशाह अकबर की समस्या का समाधान किया. इस दिन के बाद से किसी भी दरबारी ने अकबर को खुश करने के लिए झूठी वाहवाही नहीं की.

दोस्तों उम्मीद करते हैं अकबर और तानसेन का यह किस्सा आपको पसंद आया होगा, धन्यवाद.

यह भी पढ़ें-

गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति.

पुष्पक विमान का इतिहास