काशीबाई का इतिहास और जीवन परिचय

काशीबाई बाजीराव पेशवा की पहली पत्नी थी। मराठा साम्राज्य के चौथे छत्रपति शाहूजी महाराज के समय बाजीराव पेशवा बने थे। काशीबाई और बाजीराव के 4 पुत्र थे जिनमें बालाजी बाजीराव और रघुनाथराव का नाम शामिल है।

काशीबाई का इतिहास (Kashibai History In Hindi)

  • जन्म- 1703 ईस्वी में पुणे में हुआ था।
  • पिता का नाम- महादजी कृष्ण जोशी।
  • माता का नाम- शिऊ बाई।
  • भाई- कृष्ण राव छासकर।
  • मृत्यु- 27 नवंबर 1758 ईस्वी में सातारा नामक स्थान पर हुई।
  • संताने- बालाजी बाजीराव,रामचंद्र, रघुनाथ राव, और जनार्दन।
  • पौत्र- माधवराव प्रथम, विश्वास राव, अमृतराव, नारायण राव और बाजीराव द्वितीय।

बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल की पुत्री मस्तानी काशीबाई की सौतन थी। काशीबाई ने मस्तानी को पेशवा बाजीराव की पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था।

कुछ इतिहासकार बताते हैं कि काशीबाई को “गठिया” नामक रोग हो गया था जिसकी वजह से उनके जोड़ों में बहुत दर्द रहता था। काशीबाई के पिता बहुत धनवान थे। इनके एक भाई भी था जिसका नाम कृष्ण राव छासकर था।

एक सामाजिक समारोह में इन्होंने बाजीराव के साथ विवाह किया था। सासवाड़ नामक स्थान पर 11 मार्च 1720 के दिन काशीबाई और बाजीराव पेशवा की शादी हुई थी। काशीबाई के दूसरे पुत्र रामचंद्र और चौथे पुत्र जनार्दन की मृत्यु जवानी में ही हो गई थी।

सन 1721 में बालाजी बाजीराव का जन्म हुआ, इन्हें 1740 में छत्रपति शाहूजी महाराज द्वारा पेशवा बनाया गया। काशीबाई के तीसरे पुत्र रघुनाथ राव भी 1773-1774 के बीच पेशवा पद पर रहे।

बाजीराव ने दूसरी शादी बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल की पुत्री मस्तानी से की थी। मस्तानी की मां मूलतः फारसी मुस्लिम थी। इसी वजह से मराठा साम्राज्य में कभी भी मस्तानी को स्वीकार नहीं किया गया।

बाजीराव की माता राधाबाई और छोटे भाई चिमाजी अप्पा ने मस्तानी को अस्वीकार कर दिया लेकिन उनकी पहली पत्नी काशीबाई ने कभी भी मस्तानी के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई और ना ही मस्तानी से उन्हें कोई दिक्कत थी।

बाजीराव मस्तानी की प्रेम कहानी

एक बड़े इतिहासकार “पांडुरंग बालकावडे” ने भी यही बात बताई है। बाजीराव मस्तानी की वजह से मराठा साम्राज्य में घरेलू युद्ध का आरंभ हो चुका था। बाजीराव किसी भी कीमत पर मस्तानी को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे जबकि इनका परिवार किसी भी कीमत पर मस्तानी को नहीं अपनाना चाहता था।

पुणे के ब्राह्मणों ने भी पेशवा परिवार से दूरियां बनाना शुरु कर दी। चिमाजी अप्पा जोकि बाजीराव के छोटे भाई थे और बालाजी बाजीराव (नाना साहेब) जोकी बाजीराव के सबसे बड़े पुत्र थे, ने बाजीराव को मस्तानी से अलग करने के लिए बल प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया।

पुणे के एक अभियान को पूरा करने के लिए बाजीराव पेशवा जब बाहर चले गए, तब चिमाजी अप्पा और नाना साहेब ने मिलकर मस्तानी को नजरबंद कर दिया। लेकिन प्रवास के दौरान बाजीराव पेशवा की तबीयत दिन-ब-दिन बिगड़ने लगी जिसके चलते चिमाजी अप्पा ने नानासाहेब से प्रार्थना की कि मस्तानी को बाजीराव पेशवा तक पहुंचाया जाए।

मगर नानासाहेब ने इसके लिए बिल्कुल इंकार कर दिया और उन्होंने अपनी मां काशीबाई को उनकी सेवा के लिए वहां पर भेज दिया। काशीबाई ने तन मन के साथ पेशवा बाजीराव की सेवा की और मरने तक एक कर्तव्यपरायण और धर्मपत्नी का दायित्व निर्वाह करते हुए निरंतर उनकी सेवा करती रही।

जब 1740 ईस्वी में बाजीराव पेशवा ने देह त्याग दी तब काशीबाई के ही पुत्र जनार्दन ने उनका अंतिम संस्कार किया था।

बाजीराव पेशवा की मृत्यु की खबर सुनकर मस्तानी सुध बुध खो बैठी और उनकी तबीयत बिगड़ गई। जिसके चलते 1740 में ही मस्तानी ने भी देह त्याग दी।

बाजीराव और मस्तानी से एक पुत्र हुआ था जिसका नाम शमशेर बहादुर था। शमशेर बहादुर को काशीबाई ने अपने पुत्र की तरह पाला और बड़ा किया। इतना ही नहीं काशीबाई ने शमशेर बहादुर को शस्त्र और अस्त्र विद्या में निपुण किया और युद्ध कला की कई बारीकियां भी सिखाई।

पति बाजीराव पेशवा की मृत्यु के पश्चात काशीबाई धार्मिक कार्यों में बढ़-चढ़कर रुचि लेने लगी और कई हिंदू तीर्थ स्थलों का भ्रमण भी किया। इस दौरान उन्होंने बनारस में काशी विश्वनाथ के दर्शन किए और गंगा किनारे लगभग 4 वर्ष का समय बिताया।

काशीबाई की मृत्यु कैसे हुई?

कई वर्षों तक अपने कर्तव्य का पालन करने के पश्चात 1758 में वीरमाता काशीबाई ने भी प्राण त्याग दिए। प्रतिवर्ष 27 नवंबर को काशीबाई पुण्यतिथि मनाई जाती है।

काशीबाई का जीवन अपने पति के लिए समर्पित था उन्होंने ना सिर्फ राजनीतिक और पारिवारिक कार्यों में मदद की बल्कि धार्मिक प्रवृत्ति की होने के कारण सोमेश्वर मंदिर का निर्माण भी करवाया जो आज भी मौजूद है।