चेतक घोड़ा इतिहास (Chetak Ghoda Hitory In Hindi)- चेतक महारणा प्रताप का घोडा था जो स्वामिभक्त और बहुत बलशाली था. जिसे महाराणा प्रताप ने गुजरात के एक व्यापारी से ख़रीदा था. चेतक घोड़ा बुद्धिमान और फुर्तीला था. इतिहास में जब तक महाराणा प्रताप का नाम अमर रहेगा तब तक चेतक को भी याद किया जाएगा. चेतक घोड़ा प्रताप के प्राणों का रक्षक तो था ही साथ ही बहुत खूबसूरत और बलशाली भी था.
इस लेख में हम चेतक घोड़ा का इतिहास और चेतक घोड़ा कविता के साथ युद्ध में पराक्रम की चर्चा करेंगे साथ ही यह भी जानेंगे कि महाराणा प्रताप का घोड़ा किस नस्ल का था.
चेतक घोड़ा इतिहास (Chetak Ghoda Hitory In Hindi)
स्वामी भक्ति और प्रताप के प्राणों के रक्षक “चेतक घोड़ा” को दुनिया का सबसे अच्छा घोड़ा माना जाता है. चेतक बहुत ही बुद्धिमान और फुर्तीला था. हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक की वजह से ही महाराणा प्रताप रणभूमि से सुरक्षित बाहर निकलने में सफल हुए थे. महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच में हुए हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक ने शौर्य का परिचय दिया था.
चेतक घोड़ा ईरानी मुल का घोड़ा था, साथ ही महाराणा प्रताप की आंख का तारा था, जिसे प्रताप बहुत प्यार करते थे. चेतक घोड़े के दो भाई थे एक का नाम अटक और दूसरे का नाम त्राटक था.
काठियावाड़ी नस्ल के यह घोड़े गुजरात का एक व्यापारी लेकर मेवाड़ आया था. देखने में बहुत ही ताकतवर, सुंदर और बुद्धिमान लगते थे इसी विशेषता के चलते महाराणा प्रताप ने इन तीनों घोड़ों खरीद लिया.
त्राटक महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह को सौंप दिया गया जबकि चेतक घोड़े को महाराणा प्रताप ने स्वयं रखा और अटक युद्ध परिक्षण में काम आता था. हालांकि यह तीनों घोड़े बहुत तेज थे मगर इन सब में महाराणा प्रताप का चेतक घोड़ा बुद्धिमान और फुर्तीला था.
1576 की बात महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हल्दीघाटी के मैदान में युद्ध लड़ा गया. इसी युद्ध में चेतक ने अपना पराक्रम दिखाया था और ऐसी स्वामी भक्ति दिखाई कि आज भी वह विश्व में प्रसिद्ध है. हल्दीघाटी युद्ध की वजह से ही चेतक घोड़ा इतिहास में अमर हैं.
अपने फुर्तीले स्वाभाव के कारण चेतक घोड़ा के आगे हाथी की सूंड लगाई जाती थी जिससे दुश्मन भी भ्रमित हो जाते थे कि कोई हाथी कैसे इतना फुर्तीला और तेज हो सकता हैं. साथ ही बड़े-बड़े हाथी भी चेतक के पास आने से डरते थे, यही वजह थी कि इनके आगे हाथी की सूंड लगाई जाती थी.
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हल्दीघाटी युद्ध में चेतक का पराक्रम
वर्ष 1576 ईस्वी में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बिच हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा गया था. इस युद्ध में चेतक ने अपने दोनों पैर हाथी की सूंड पर रख दिए जिससे हाथी के ऊपर सवार अकबर का सेनापति मानसिंह पर महाराणा प्रताप ने प्राणघातक हमला किया। मानसिंह तो बच गया, लेकिन हाथी की सूंड में जो तलवार थी वह चेतक के पैर पर लग गई.
चेतक घोड़ा लड़खड़ाते हुए चलने लगा. मगर इस समय चेतक की रफ्तार और बढ़ गई और महाराणा प्रताप ने इस युद्ध में बहुत मार काट मचाई.
बिजली की रफ्तार से दौड़ने वाला यह घोड़ा युद्ध भूमि में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था. इस दौरान महाराणा प्रताप भी युद्ध में घायल हो गए और जब वह घायल हो गए तो चेतक ने ही उनको रणभूमि से सुरक्षित बाहर निकाला था.
महाराणा प्रताप युद्ध भूमि से बाहर जा रहे थे, मुगल सेना उनका पीछा कर रही थी. अपनी तीन टांगों के दम पर दौड़ते हुए चेतक ने एक बरसाती नाले जो कि 26 फीट चौड़ा था, को एक ही झटके में पार कर लिया और महाराणा प्रताप को सुरक्षित अपने महल तक पहुंचा दिया.
इसी त्याग बलिदान और स्वामी भक्ति की वजह से चेतक घोड़ा इतिहास में अमर हो गया. जब चेतक की मृत्यु हुई तब स्वयं महाराणा प्रताप भी अपनी आँखों से आँशु नहीं रोक सके. चेतक की मृत्यु के बाद इसे दफनाया गया, वहां इसकी समाधी आज भी बनी हुई हैं.

(युद्ध में दुश्मन सेना और हाथियों को भ्रमित करने के लिए चेतक घोड़ा के मुँह पर हाथी की सूंड लगाई जाती थी)
महाराणा प्रताप के पास कितने घोड़े थे?
चेतक घोड़ा, महाराणा प्रताप पर कविता (Chetak Ghoda, Maharana Pratap Par Kavita)-
दोस्तों 90 के दशक में जब हम स्कूल में पढ़ते थे तो चेतक घोड़े पर बनी श्याम नारायण पांडे की कविता पाठ्यक्रम में शामिल थी. लेकिन इतिहास को दबाने के लिए इसे पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है, इस पूरी कविता का श्रेय श्याम नारायण पांडे जी को जाता है, चेतक घोड़ा क्या था यह आप “चेतक घोड़े पर कविता” के मध्यम से समझ सकते हैं-
रण बीच चौकड़ी भर-भरकर चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से,
हवा का पड़ गया पाला था।
गिरता ना कभी चेतक तन पर,
राणा प्रताप का कोड़ा था।
वह दौड़ रहा अरि मस्तक पर,
या आसमान पर घोड़ा था।
जो तनिक हवा से बाग हीली,
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं,
तब तक चेतक मुड़ जाता था।।
बकरों से बाघ लड़े,
भीड़ गए सिंह मृग छौनों ।
घोड़े गिर पड़े, गिरे हाथी,
पैदल बिछ गए बीछानों से।।1।।
हाथी से हाथी जुझ पड़े,
भीड़ गए सवार सवारों से।।
घोड़ों पर घोड़े टूट पड़े,
तलवार लड़ी तलवारों से।।2।।
हय रूंड गिरे, गज मुंड गिरे,
कट कट अवनी पर शुंड गिरे।
लड़ते लड़ते आरी झुण्ड गिरे
भु पर हय विकल बितुंड गिरे।।3।।
क्षण महाप्रलय की बिजली सी,
तलवार हाथ की तड़प तड़प।
हय गज रथ पैदल भगा भगा ,
लेती थी बैरी वीर हड़प।।4।।
शरण पेट फट गया घोड़े का,
हो गया पतन कर कोड़े का।
भू पर सातक सवार गिरा,
क्षण पता न था हय जोड़े का।।5।
चिंघाड़ भगा भय से हाथी,
लेकर अंकुश पिलवान गिरा।
झटका लग गया फटी झालर,
हौड़ा गिर गया, निशान गिरा।।6।।
कोई नत मुख बेजान गिरा,
करवट कोई उत्तान गिरा।
रण बीच अमित विषमता से,
लड़ते-लड़ते बलवान गिरा।।7।।
होती थी भीषण मारकाट,
अतिशय से छाया था भय।
था हार जीत का पता नहीं,
क्षण इधर विजय क्षण उधर विजय।।8।।
धड़ कहीं पड़ा,सिर कहीं पड़ा,
कुछ भी उनकी पहचान नहीं।
शोणित का ऐसा वेग बढ़ा,
मुर्दे बह गए निशान नहीं।।9।।
मेवाड़ केसरी देख रहा,
केवल रण का न तमाशा था।
वह दौड़ दौड़ करता था रण,
वह मान रक्त का प्यासा था।।10।।
चढ़कर चेतक पर घूम घूम,
करता मेना रखवाली था,
ले महामृत्यु को साथ-साथ,
मानो प्रत्यक्ष कपाली था।।11।।
रण बीच चौकड़ी भर भरकर,
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से,
पड़ गया हवा का पाला था।।12।।
रण बीच चौकड़ी भर -भरकर,
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से,
हवा का पड़ गया पाला था।।13।।
गिरता ना कभी चेतक तन पर,
राणा प्रताप का कोड़ा था।
वह दौड़ रहा अरि मस्तक पर,
या आसमान पर घोड़ा था।।14।।
जो तनिक हवा से बाग हीली,
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं,
तब तक चेतक मुड़ जाता था।।15।।
कौशल दिखलाया चालों में,
उड़ गया भयानक भालों में।
निर्भीक गया वह ढालों में,
सरपट दौड़ा करवालों में।16।।
है यही रहा, अब यहां नहीं,
वह वही रहा है वहां नहीं।
थी जगह न कोई जहां नहीं,
किस अरि मस्तक पर कहां नहीं।।17।।
बढ़ते नद सा वह लहर गया,
वह गया गया फिर ठहर गया।
विकराल बज्र मय बादल सा,
अरि की सेना पर घहर गया।।18।।
भाला गिर गया , गिरा निसंग,
हय टापों सेखन गया अंग।
वैरी समाज रह गया दंग,
घोड़े का ऐसा देख रंग।।19।।
चढ़ चेतक पर तलवार उठा,
रखता था भूतल पानी को।
राणा प्रताप सिर काट काट,
करता था सफल जवानी को।।20।।
कलकल बहती थी रण गंगा,
अरि दल को डूब नहाने को।
तलवार वीर की नाव बनी,
चटपट उस पार लगाने को।।21।।
वैरी दल को ललकार गिरी,
वह नागिन सी फुफकार गिरी।
था शौर मौत से बचो बचो,
तलवार गिरी, तलवार गिरी।।22।।
पैदल से हय, दल गज़ दल में,
छिप छप करती वह निकल गई।
क्षण कहां गई कुछ पता न फिर,
देखो चमचम वह निकल गई।।23।।
क्षण इधर गई क्षण उधर गई,
चरण चढ़ी बाढ़ सी, उतर गई।
था प्रलय चमकती जिधर गई,
क्षण शोर हो गया किधर गई।।24।।
क्या अजब विषैली नागिन थी,
जिसके डसने में लहर नही।
उतरी तन से मिट गए वीर,
फैला शरीर में जहर नहीं।।25।।
की छुरी कहीं, तलवार कहीं,
वह बरछी असि खरधार कहीं।
वह आग कहीं, अंगार कहीं,
बिजली थी कहीं, कटार कहीं।।26।।
लहराती थी सिर काट काट,
बल खाती थी भू पाट पाट।
बिखराती अवयव बाट बाट,
तनती थी लोहू चाट चाट।।27।।
सेना नायक राणा के भी,
रण देख देख कर चाह भरे।
मेवाड़ सिपाही लड़ते थे,
दुने तिगुने उत्साह भरे।।28।।
क्षण मार दिया कर कोड़े से,
रण किया उतरकर घोड़े से।
राणा रण कौशल दिखा दिया,
चढ गया उतरकर घोड़े से।।29।।
क्षण भीषण हलचल मचा मचा,
राणा कर की तलवार बढ़ी।
था शोर रक्त पीने को यह,
रणचंडी जीभ पसार बढ़ी।।30।।
वह हाथी दल पर टूट पड़ा,
मानो उस पर पवी छूट पड़ा।
कट गई वेग सेे भू ऐसा,
शोणित का नाला फूट पड़ा।।31।।
जो साहस कर बढ़ता उसको,
केवल कटाक्ष से टोक दिया।
जो वीर बना नभ बीच फेंक,
बरछे पर उसको रोक दिया।।32।।
क्षण उछल गया अरी घोड़े पर,
क्षण लड़ा सो गया घोड़े पर।
वैरी दल से लड़ते-लड़ते,
क्षण खड़ा हो गया घोड़े पर।।33।।
क्षणभर में गिरते रूंडों से,
मदमस्त गजों के झूडों से।
घोड़ों से वितुल वितुंडों से,
पट गई भूमि नर मुंडो से।।34।।
ऐसा रण राणा करता था,
पर उसको था संतोष नहीं।
क्षण क्षण आगे बढ़ता था वह,
पर कम होता था रोष नहीं।।35।।
कहता था लड़ता मान कहां,
मैं कर लूं रक्त स्नान कहां।
जिस पर तय विजय हमारी है,
वह मुगलों का अभिमान कहां।।36।।
भाला कहता था मान कहा,
घोड़ा कहता था मान कहां?
राणा की लोहित आंखों से,
रव निकल रहा था मान कहां?।।37।।
लड़ता अकबर सुल्तान कहां,
वह कुल कलंक हैं मान कहां?
राणा कहता था बार-बार,
नहीं करूं शत्रु बलिदान कहां?।।38।।
तब तक प्रताप ने देख लिया,
लड़ रहा मान था हाथी पर।
अकबर का चंचल स्वाभिमान,
उड़ता निशान था हाथी पर।।39।।
वह विजय मंत्र था पढ़ा रहा,
अपने दल को था बढ़ा रहा।
वह भीषण समर भवानी को,
पग पग पर बलि था चढ़ा रह।।40।।
फिर रक्त देह का उबल उठा,
जल उठा क्रोध की ज्वाला से।
घोड़ा से कहा बढ़ो आगे,
बर्ड चलो कहा निज भाला से।।41।।
हय नस-नस में बिजली दौड़ी,
राणा का घोड़ा लहर उठा।
शत-शत बिजली की आग लिए,
वह प्रलय मेघ सा घहर उठा।।42।।
शय अमिट रोग, वह राजरोग,
ज्वर सान्नपत लकवा था वह।
था शोर घोड़ा बचो रण से,
कहता हय कौन, हवा था वह।।43।।
तनकर भला भी बोल उठा,
राणा मुझको विश्राम ना दे।
बैरी का मुझसे हृदय गोभ,
तू मुझे तनिक आराम न दे।।44।।
खाकर अरि मस्तक जीने दे,
बैरी उर माला सीने दे।
मुझको शोणित की प्यास लगी,
बढ़ने दे शोणित पीने दे।।45।।
मुर्दों का ढेर लगा दूं मैं,
अरि सिंहासन थहरा दूं मैं।
राणा मुझको आज्ञा दे दे,
शोणित सागर लहरा दूं मैं।।46।।
रंचक राणा ने देर न की,
घोड़ा बढ़ आया हाथी पर।
वैरी दल का सिर काट काट,
राणा चढ़ आया हाथी पर।।47।।
गिरी की चोटी पर चढ़कर,
किरणों निहारती लाशें।
जिनमें कुछ तो मुर्दे थे,
कुछ की चलती सांसे।।48।।
वे देख देख कर उनको,
मुरझाती जाती पल पल।
होता था स्वर्णिम नभ पर,
पक्षी क्रंदन का कल कल।।49।।
मुंह छुपा लिया सूरज ने,
जब रोक न सका रुलाई।
सावन की अंधी रजनी।।
चेतक घोड़े की यह कविता पुरे हल्दीघाटी युद्ध में उसके पराक्रम को दर्शाती हैं.
चेतक घोड़ा से सम्बंधित बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्न-उत्तर
[1] चेतक के मुंह पर हाथी का मुखौटा का क्यों लगाया जाता था?
उत्तर- दुश्मन की सेना के हाथियों को भ्रमित करने और दुश्मन सैनिक और सेनापति इस भ्रम में रहे कि भला कोई हाथी इतना तेज और फुर्तीला कैसे हो सकता है इसलिए चेतक के मुंह पर हाथी का मुखौटा लगाया जाता था
[2] चेतक घोड़ा किससे संबंधित है?
उत्तर- चेतक घोड़ा महाराणा प्रताप से संबंधित है.18 जून 1576 में हल्दीघाटी युद्ध में इस घोड़े ने अपनी फुर्ती, बुद्धिमता और स्वामी भक्ति दिखाई थी और साथ ही महाराणा प्रताप की जान बचाई थी.
[3] महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की समाधि कहां पर स्थित है?
उत्तर- महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की समाधि हल्दीघाटी (बालची) में स्थित है. यहाँ पर चेतक को दफनाया गया था. महाराणा प्रताप के साथ-साथ चेतक घोड़ा इतिहास में अमर हो गया.
[4] महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक किस युद्ध में मारा गया?
उत्तर- 18 जून 1576 में अकबर की मुगल सेना और मेवाड़ की सेना के बीच हुए हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक घोड़ा घायल हो गया था लेकिन इस युद्ध में उसकी मौत नहीं हुई थी वह महाराणा प्रताप को सुरक्षित अपने घर तक ले गया उसके कुछ दिनों के बाद चेतक ने दम तोड़ दिया था. अतः यह कहना गलत होगा कि चेतक की मृत्यु किस युद्ध में हुई थी.
[5] चेतक को निराला क्यों कहा गया हैं?
उत्तर- चेतक को निराला कहने के पीछे कई वजह थी वह निर्भीक, हवा से बातें करने वाला, युद्ध भूमि में कभी यहाँ तो कभी वह पल भर में पहुँच जाता था. ना तो चेतक को पकड़ना किसी के बस की बात थी और ना ही उसके मुकाबले कोई शक्तिशाली था. इतना ही नहीं चेतक दिखने में बहुत सुन्दर था इस सभी विषेशताओं के कारण चेतक को निराला कहा गया हैं.
[6] महाराणा प्रताप के घोड़े का रंग कैसा था?
उत्तर- महाराणा प्रताप के घोड़े का रंग नीला था. ग्रूलो रंग का स्टालिन या ग्रे रंग जिसे आम भाषा में रोजो भी कहते हैं. महाराणा प्रताप पर लिखी गई कविता से भी चेतक के रंग का पता चलता हैं जिसमें प्रताप को नीले घोड़े का अस्वार अर्थात नीले घोड़े पर सवारी करने वाला बताया गया हैं.
[7] महाराणा प्रताप के घोड़े की हाइट कितनी थी?
उत्तर- महाराणा प्रताप के घोड़े की हाइट कितनी थी यह तो स्पष्ट ज्ञात नहीं हैं लेकिन यह कहा जाता हैं कि चेतक कद-काठी में बहुत लम्बा-चौड़ा था.
[8] चेतक की मृत्यु कहां हुई थी?
उत्तर- चेतक की मृत्यु प्रताप के महल में हुई थी जिसे बाद में हल्दीघाटी में दफनाया गया था.

दोस्तों उम्मीद करते हैं चेतक घोड़ा इतिहास (Chetak Ghoda Hitory In Hindi) और कविता पर आधारित यह लेख आपको अच्छा लगा होगा, धन्यवाद.
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