झाला मन्ना – वैसे तो राजस्थान का इतिहास बड़े-बड़े योद्धाओं से भरा पड़ा है लेकिन झाला मानसिंह का त्याग और बलिदान वास्तव में अदभुद था। उनकी स्वामिभक्ति और वीरता ने उनको इतिहास में अमर कर दिया।
झाला मन्ना का इतिहास ,Jhala Manna History –
झाला मन्ना बड़ी सादड़ी ( चितौड़गढ़) के राजपूत परिवार से थे। झाला मन्ना का पूरा नाम झाला मानसिंह था।
श्री अज्जा और श्री सज्जा जो कि झाला मानसिंह के पूर्वज थे, उनको बड़ी सादड़ी जागीर विरासत में मिली थी जो कि मेवाड़ के महाराणा रायमल ने उनको तोहफ़े के रूप में प्रदान की थी।
हल्दीघाटी युद्ध में इनका योगदान–
हल्दीघाटी युद्ध से कुछ समय पहले ही झाला मानसिंह महाराणा प्रताप की सेना में शामिल हुए थे। मुग़ल सेना और महाराणा प्रताप की सेना के बीच हल्दी घाटी में भयंकर युद्ध छिड़ गया था।
इस युद्ध में झाला मन्ना ज्यादातर समय महाराणा प्रताप के आस पास ही लड़ाई लड़ रहे थे। जब प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा चेतक घायल हो गया तो मुगल सेना ने उनको चारो तरफ से घेर लिया।
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जब झाला मन्ना की नज़र महाराणा प्रताप की तरफ़ पड़ी तो वो युद्ध करते हुए उनके पास पहुंच गए। महाराणा प्रताप को संकट में देखकर उन्होंने एक युक्ति अपनाई, उन्होंने राज तिलक और महाराणा प्रताप का मुकुट धारण कर लिया और पूर्व दिशा में चल पड़े।
जिस बहादुरी के साथ झाला मानसिंह दुश्मनों पर प्रहार कर रहे थे चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था। प्रताप का मुकुट धारण कर वो मुगल सेना पर काल की तरह टूट पड़े , मुगलों ने उनको महाराणा प्रताप समझ लिया और पूरी सेना उनके पीछे लग गई।
बहुत ही वीरता और शौर्य के साथ लड़ाई करते हुए झाला मानसिंह वीरगति को प्राप्त हुए।
तब तक महाराणा प्रताप युद्ध स्थल से काफ़ी दूर निकल चुके थे। झाला मन्ना ने मेवाड़ के भविष्य के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए और हमेशा के लिए अमर हो गए।
झाला मानसिंह की स्वामिभक्ति, बलिदान और सूझबूझ की वजह से महाराणा प्रताप ने मेवाड़ को आजाद कराने में सफ़लता प्राप्त की।
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Jai ho veer Rajput Jhala Manna Ji ki
धन्यवाद जी.