पन्नाधाय की कहानी- उदय सिंह की रक्षा हेतु अपने पुत्र का बलिदान।

पन्नाधाय का किसी राज परिवार से कोई संबंध नहीं था फिर भी त्याग और बलिदान की वजह से पन्ना धाय विश्व भर में प्रसिद्ध है। एक ऐसी माता जिसने अपने पुत्र को मरने के लिए दुश्मनों के पास छोड़ दिया, मगर स्वामी भक्ति को आंच नहीं आने दी। मां पन्नाधाय की पुत्र बलिदान की कहानी पढ़कर आपकी आंखे नम हो जाएगी।

पन्नाधाय के बलिदान से पूर्व का घटनाक्रम-(panna dhay ka balidan)

सोहलवी शताब्दी में मेवाड़ में महाराणा सांगा के रूप में एक महान शासक का जन्म हुआ। महाराणा सांगा के बड़े पुत्र का नाम भोजराज था. भक्तमती मीराबाई का विवाह भोजराज के साथ ही हुआ था। अगर हिंदू शासकों की बात की जाए तो उत्तर भारत में महाराणा सांगा के रूप में सबसे बड़ा और हिन्दू सम्राट राजा मौजूद था।

महाराणा सांगा का एकमात्र उद्देश्य यह था कि मुस्लिम शासित राज्यों को जीतकर उन्हें अपने राज्य में मिलाना। महाराणा सांगा के 28 रानियां थी। महाराणा सांगा की पहली पत्नी का नाम धनकंवर जोधा था। 1528 ईसवी में बाबर ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। इस युद्ध में महाराणा सांगा घायल हो गए और वीरगति को प्राप्त हुए। ऐसे में इन के सबसे बड़े पुत्र रतन सिंह को मेवाड़ का राजा बनाया गया।

 महारानी कर्मावती महाराणा सांगा की दूसरी पत्नी थी। इनके दो पुत्र थे एक का नाम विक्रमादित्य तथा दूसरे का नाम उदय सिंह था। पति की मृत्यु के पश्चात कर्मावती अपने दोनों पुत्रों को  रणथंभोर चली गई। 1531 ईस्वी में राणा रतन सिंह की मृत्यु हो जाने के बाद चित्तौड़ की राजगद्दी खाली हो गई। ऐसे समय में कर्मावती अपने दोनों पुत्रों को लेकर चित्तौड़गढ़ आ गई।

ऐसे समय में विक्रमादित्य को चित्तौड़गढ़ का महाराणा बनाया गया। राणा सांगा से मिली हार का बदला लेने के लिए गुजरात के शासक बहादुर शाह ने पुनः चित्तौड़गढ़ किले को जीतने का प्लान बनाया। महारानी कर्मावती भी भली-भति जानती थी कि उनके दोनों पुत्र विक्रमादित्य और उदय सिंह इतने सक्षम नहीं है कि बहादुर शाह जैसे बड़ी सेना वाले शासक से लड़ाई लड़ सके, ऐसे में इन्होंने अपने दोनों पुत्रों को पुनः रणथंभोर किले में भेज दिया।

महाराणा सांगा के बड़े भाई का नाम पृथ्वीराज था। महाराणा कुंभा की मृत्यु के पश्चात पृथ्वीराज को ही मेवाड़ का महाराणा बनाना था लेकिन सिरोही के राजा जगमाल ने षड्यंत्र रचा और विष पिलाकर पृथ्वीराज की हत्या कर दी इसी वजह से पृथ्वीराज की जगह उनके छोटे भाई महाराणा सांगा को मेवाड़ का राजा बनाया गया।

यह भी पढ़ें :- कल्लाजी राठौड़ का इतिहास।

पन्नाधाय के त्याग की कहानी और इतिहास/पन्ना धाय का त्याग Panna dhay ka tyag

इस लेख को पूरा पढ़ने के बाद आप जान जायेंगे कि पन्नाधाय का इतिहास क्या रहा हैं और पन्नाधाय का चरित्र चित्रण भी आपको देखने को मिलेगा।

पन्नाधाय का जन्म कब (panna dhay ka janm)- पन्ना धाय का जन्म “माताजी की पांडोली” नामक गांव में हुआ था। इनका पूरा नाम पन्ना गुजरी था लेकिन उदय सिंह को पालने के लिए इन्हें धाय की उपाधि दी गई।

पन्नाधाय के पिता (panna dhay ke pita)- पन्ना धाय के पिता का नाम हरचंद हांकला था। जबकि इनके पति का नाम सूरजमल चौहान था। सूरजमल चौहान कमेरी गांव का रहने वाला था।

पन्नाधाय के पुत्र का नाम (panna dhay ke putra ka naam) – पन्नाधाय के पुत्र का नाम चंदन था।

जैसा की आप पढ़ते आ रहे हैं, पृथ्वीराज के 1 पुत्र हुआ उसका नाम बनवीर था।  बनवीर दासी पुत्र था और बहुत महत्वकांक्षी था। 1536 ईसवी में बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी। अब बनवीर का अगला लक्ष्य उदय सिंह की हत्या करना था। इस समय उदयसिंह की आयु मात्र 14 वर्ष थी। उदय सिंह पन्नाधाय की संरक्षण में था। पन्नाधाय ने माता कर्णावती को वचन दिया था कि वह हर परिस्थिति में उदय सिंह की रक्षा करेगी।

रात्रि का समय था उदय सिंह सो रहे थे, तभी पन्नाधाय को अंदेशा हुआ कि किसी भी समय बनवीर यहां आ सकता है और उदय सिंह की हत्या कर सकता है। ऐसे में पन्नाधाय ने उदय सिंह के पलंग पर अपने पुत्र चंदन को सुला दिया और उदय सिंह को लेकर बाहर आ गई। कुछ ही समय में वहां पर क्रोध से भरा हुआ बनवीर पहुंचा उसके हाथ में तलवार थी। उसने आकर पन्नाधाय से पूछा कि उदयसिंह कहां है?

तो पन्नाधाय ने पलंग की तरफ हाथ से इशारा किया और बोला कि वह सो रहे हैं। विक्रमादित्य ने पलंग के पास जाते ही सो रहे चंदन के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और बाहर आकर जश्न मनाने लगा और स्वयं को मेवाड़ का महाराणा घोषित कर दिया। यह देखकर पन्नाधाय की आंखें भर आई लेकिन वह रो भी नहीं सकी क्योंकि अगर वह रोती तो बनवीर समझ जाता कि उसने पन्नाधाई के बेटे की हत्या की है ना कि उदयसिंह की। सुबह का सूरज उगते ही पन्नाधाय उदय सिंह को लेकर महिलाओं से बाहर निकल गई।

यहां से निकलने के बाद पन्नाधाय सीधी देवलिया नामक स्थान पर पहुंची। उस समय देवलिया पर “रावत रायसिंह” का शासन था। पन्नाधाय और उदय सिंह को देखकर देवलिया नरेश बहुत प्रसन्न हुए और बड़े ही आदर पूर्वक उनका स्वागत किया। लेकिन रावत रायसिंह ने पन्नाधाय को बताया कि वह उदय सिंह की रक्षा करने में सक्षम नहीं है। उदय सिंह के भविष्य को देखते हुए रायसिंह ने दोनों को डूंगरपुर भेज दिया। डूंगरपुर के राजा रावल आसकरण ने भी बनवीर के डर से पन्नाधाय को रहने के लिए मना कर दिया।

लेकिन त्याग और बलिदान की मूर्ति पन्नाधाय ने हार नहीं मानी और उदय सिंह को लेकर वह कुंभलगढ़ पहुंची। कुंभलगढ़ किले के रक्षक आशा देपुरा ने उदय सिंह को रखने के लिए मना कर दिया। लेकिन जब यह बात आशा देपुरा के की माता को पता लगी तो उन्होंने आशा देपुरा को समझाया कि यह मेवाड़ के पूर्व महाराणा सांगा का पुत्र है और महाराणा सांगा के हमारे ऊपर बहुत बड़े-बड़े एहसान हैं।  हमें निश्चित ही उदयसिंह हैं की रक्षा करनी चाहिए और हमारे घर में इनको जगह देनी चाहिए।

यह बात सुनकर आशा देपुरा ने उदय सिंह को अपने महल में जगह दी। साथ ही यह कसम भी खाई कि चाहे मेरी जान क्यों ना चली जाए मैं मरते दम तक उदयसिंह की रक्षा करूँगा। आशा देपुरा ने सर पर कफन बांध लिया था कि चाहे जो भी हो जाए उदयसिंह को मेवाड़ का महाराणा घोषित किया जाए और उन्हें पुनः राजगद्दी पर बिठाया जाए।

ऐसे में उन्होंने मेवाड़ क्षेत्र के सभी सामंतों और शासकों के साथ-साथ पुराने सेनापतियों को एकत्रित किया और सभी को कुंभलगढ़ आने का न्योता दिया। जैसे ही सभी सामंत और शासक कुंभलगढ़ पहुंचे उन्होंने बताया कि महाराणा सांगा के पुत्र उदय सिंह अभी जिंदा है और हमारे घर में सुरक्षित हैं। हम सभी का यह कर्तव्य है कि इन्हें पुनः मेवाड़ की राजगद्दी पर बिठाया जाए।

यह बात सुनकर पहले सभी आश्चर्यचकित हुए लेकिन उदयसिंह को देखकर पहचान गए कि हां वास्तव में यही महाराणा सांगा के पुत्र हैं। इन्होंने मिलकर उदय सिंह को महाराणा घोषित कर दिया और चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई कर दी। चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर इन्होंने जल्द ही बनवीर को मौत के घाट उतार दिया और उदय सिंह को महाराणा उदयसिंह बनाकर राज गद्दी पर बिठाया।

ऐसी थी माता पन्नाधय जिन्होंने अपने पुत्र का बलिदान देकर, स्वामी भक्ति दिखाते हुए महाराणा उदय सिंह की जीवन की रक्षा की। पन्ना धाय का योगदान मेवाड़ राजवंश के लिए वरदान साबित हुआ। नहीं तो यह राजवंश हमेशा के लिए खत्म हो सकता था आगे चलकर इसी मेवाड़ राजघराने में महाराणा प्रताप जैसे सूर्यवीर राजा का जन्म हुआ ,जिन्होंने ताउम्र मुगलों को धूल चटाई और कभी भी अकबर को मेवाड़ पर अधिकार करने का मौका नहीं दिया।

क्या पन्नाधाय ने अपने ही पुत्र को उदय सिंह घोषित कर दिया था-

कुछ इतिहासकारों और लोगों का मानना है कि पन्नाधाय ने अपने ही पुत्र चंदन को उदय सिंह घोषित कर दिया था जबकि असली उदय सिंह को बनवीर ने मार डाला था।

अपने पुत्र को राजा बनाने के लिए उन्होंने उदय सिंह को ही मरवा डाला था लेकिन यह सत्य नहीं है क्योंकि अगर यह सत्य होता तो पन्नाधाय कभी भी इतनी प्रसिद्ध नहीं होती। और इस बात को सत्य मानकर माता पन्नाधाय की स्वामी भक्ति और बलिदान पर संदेह करने के समान होगाऔर यह माता पन्नाधाय का तिरस्कार भी होगा।

पन्नाधाय ने उदयसिंह हैं को बचाया ही नहीं बल्कि मेवाड़ की राजगद्दी पर भी बिठाया था, ऐसी माता को बार-बार नमन।

यह भी पढ़ें :- चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास और ऐतिहासिक स्थलों की पूरी जानकारी।

बनवीर का इतिहास।

महाराणा विक्रमादित्य का इतिहास और कहानी।

महाराणा सांगा की कहानी।

5 thoughts on “पन्नाधाय की कहानी- उदय सिंह की रक्षा हेतु अपने पुत्र का बलिदान।”

  1. कृपया आधी अधुरी भ्रामक जानकारी व सुनी सुनाई बातों के आधार पर जो कि बिल्कुल ही असत्य अतार्कीक व अनगढ़ बातें हैं उन्ही को लिखना ओर ऐसा अप्रमाणीत असत्य फैलाकर इतिहास को तोड़ना-मरोड़ना पाठकों को दिग्भ्रमित करना व क्षत्रिय राजवंश व उनकी स्वामि भक्त खिंची चौहान अग्नि शाखा सुर्यवंशी क्षत्रिय धायमा- क्षत्राणी विरागंना पन्ना धाय को अन्य जाती का बताना-लिखना दण्डनिय अपराध हैं महोदय कृपया इस प्रकार का घ्रणित कर्म व इसका पुनरावृत्ति आगे दुबारा ना करें हुकूम,,इससे दिवंगत धायमाता के साथ ही वास्तविक इतिहास परम्पराओं का भी अवमुल्यन होता है हुकूम ।।
    यदि पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं हैं तो कृपया नये सिरे से वास्तविक सत्य शुद्ध प्रासंगिक इतिहास का पुनः अध्ययन-अध्यापन करें ओर संभव हो तो हमसे भी सम्पर्क किया जा सकता है हुकूम यथासंभव यथायोग्य सहयोग प्रदान किया जावें गा महोदय किन्तु असत्य नहीं लिखियेगा ।।
    जय माँ भवानी जय श्री एकलिंगनाथाय नमः
    @ शिशोदा ‘मेवाड़’
    कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया शिशोदा ‘मेवाड़’
    9680759268
    लेखक/समीक्षक/विश्लेषक/शोधार्थी ‘संघठनात्मक विशेषज्ञ’
    सह सम्पादक- “आस्था राजपुत्र” हिन्दी/मासिक पत्रिका
    अखण्ड राजपुताना टीम
    प्रमुख सूत्रधार-
    अखण्ड भारतवर्ष महासंघ आर्यावर्त प्रखण्ड

  2. क्षत्राणी राजपुत्र विरागंना धायमाता खिंची चौहान पन्ना धाय के बारे में विस्तृत प्रमाणित परिचय जानकारी कुल गौत्र वंश शाखा पीहर ससुराल ननिहाल व इनसे जुड़े हुए सत्य शुद्ध प्रासंगिक वास्तविक इतिहास का सकारात्मक रुपेण अध्ययन-अध्यापन करने हेतु सहायतार्थ स्थल
    1- गुलाब बाग लाइब्रेरी
    2- देवस्थान विभाग लाइब्रेरी
    3- पुरातत्व विभाग लाइब्रेरी
    4- क्षत्रिय गोरव सेवा संस्थान दिल्ली
    5- अखण्ड राजपुताना सेवा संघ जयपुर दिल्ली महाराष्ट्र

Leave a Comment