पाबूजी राठौड़ ( ऊंटों के देवता ) का इतिहास।

पाबूजी राठौड़  राजस्थान के लोक देवता है। इन्हें ऊंटों का देवता भी कहा जाता है। पाबूजी महाराज को प्लेग नामक बीमारी से रक्षा करना वाले भी माना जाता है।

इस पोस्ट में हम यह जानेंगे कि पाबूजी महाराज कौन हैं? इन्होंने कब लड़ाई लड़ी? इनकी माता का नाम क्या हैं? और पाबूजी महाराज का मेला कब और कहां लगता है? साथ ही पाबूजी पड़ क्या है।

पाबूजी राठौड़ का इतिहास हिंदी में –

पाबूजी महाराज के पिता का नाम-

पाबूजी राठौड़ के पिता का नाम धांधल जी राठौड़ था। अगर पाबूजी राठौड़ के दो वीर और प्रसिद्ध साथियों की बात की जाए तो उनका नाम “चांदा और डामा” था।

पाबूजी राठौड़ महाराज का मेला कब लगता हैं( Pabuji Ka Mela)-

हर वर्ष चैत्र मास की अमावस्या को पाबूजी महाराज का मेला लगता है। यह मेला पाबूजी राठौड़ के मुख्य मंदिर जो कि जोधपुर के कोलूमंड में स्थित है, लगता है।

पाबूजी महाराज को याद करते हुए लोग इनका यश गान और तारीफ में पावड़े और पवाडे गाते हैं। यह इनके यशगान में गाए जाने वाले गीत हैं। जोधपुर की फलोदी तहसील पाबूजी राठौड़ महाराज की वजह से ही विश्व प्रसिद्ध है।

पाबूजी राठौड़ पड़/ फड़ क्या हैं(Pabuji Ki Pad)-

यह फड़ वस्त्र पर बनाई जाती है। यह बहुत ही सुंदर कलाकृति होती है। यह कलाकारी राजस्थानी संस्कृति को प्रकट करती है और संपूर्ण राजस्थान की संस्कृति की झलक इसमें देखने को मिलती है, साथ ही यह राजस्थान में बहुत ही लोकप्रिय है।

pabuji ki fad

पाबूजी की फड़ 30 फीट लंबी और 5 फीट चौड़ी होती। छोरी समाज के लोगों द्वारा यह पढ़ी जाती है।

पाबूजी राठौड़ की प्रसिद्ध लड़ाई –

पाबूजी महाराज के बारे में कहा जाता है कि इन्होंने अपनी शादी के समय जो 7 फेरे होते हैं, उनमें से आधे फेरे धरती पर लिए थे जबकि आधे फेरे स्वर्ग में लिए। इसके पीछे एक बहुत ही दिलचस्प कहानी है।

जहां पर पाबूजी महाराज रहते थे, वहां पर एक बहुत ही निर्बल और अबला स्त्री थी जो गौ पालन करके अपना जीवन चलाती थी। उस स्त्री का नाम देवल देवी था। एक बार दस्यु नामक व्यक्ति आए और इनकी गाय को चुराकर ले जाने लगे।

पाबूजी राठौड़ को बचपन से ही पशुओं से बहुत प्रेम था। उस गाय को बचाने के लिए उन्होंने दस्यु से लड़ाई की लेकिन इस युद्ध में पाबूजी राठौड़ वीरगति को प्राप्त हुए। इसीलिए कहा जाता है कि उन्होंने आधे फेरे धरती पर और आधे फेरे स्वर्ग में लिए। पूरी कहानी आप आगे पढ़ेंगे।

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पाबूजी महाराज की कथा का अगर विस्तार से बात की जाए तो एक समय की बात है पाबूजी महाराज कहीं जा रहे थे। वहां पर रास्ते में बहुत सारी गायों का झुंड था।

उस झुंड में एक बहुत ही सुंदर घोड़ी भी चर (चारा खाना) रही थी। जैसे ही पाबूजी राठौड़ की नजर इस घोड़ी पर पड़ी उनका चेहरा खिलखिला उठा और उनकी मंशा हुए की इस घड़ी को मैं अपने साथ लेकर जाऊं।

लेकिन उन्होंने देखा कि यह गायों का झुंड और घोड़ी एक वृद्ध महिला “देवल देवी” की थी ,जो इन्हें चराने के लिए यहां पर लेकर आई थी। पाबूजी राठौड़ उस महिला के पास गए और उनसे आग्रह किया कि यह घोड़ी उनको दे दे। महिला ने पहले तो आनाकानी की लेकिन पाबूजी की जिद देखकर उन्होंने सशर्त इसे देने पर राजी हो गई।

उस महिला ने पाबूजी राठौड़ के सामने शर्त रखी कि आप इस घोड़ी को लेकर जाओ लेकिन जब भी मेरे ऊपर या मेरे पशुधन के ऊपर कोई संकट आएगा तो आपको हमारी रक्षा करने के लिए आना ही पड़ेगा। यह बात सुनकर पाबूजी महाराज ने कहा मुझे आपकी शर्त मंजूर है लेकिन मुझे कैसे पता लगेगा कि आपके ऊपर संकट आया है।

यह बात सुनकर उस महिला ने जवाब दिया कि जब भी मेरे और मेरी गांयों के ऊपर संकट आएगा यह घोड़ी एक विचित्र आवाज निकालेगी और जैसे ही यह आवाज निकालेगी आपको हमारी रक्षार्थ आना ही पड़ेगा। यह घोड़ी सिर्फ हमारे ऊपर संकट आने पर ही यह विशेष आवाज करती है। इस घोड़ी का नाम “केसर कालवी” था।

पाबूजी राठौड़ का ब्याह ( Pabuji Rathore Ki Shadi)-

अमरकोट के सोढा राणा सूरजमल के यहां एक दिन पाबूजी राठौड़ का जाना हुआ। सूरजमल की एक पुत्री थी। उसको पाबूजी राठौड़ बहुत पसंद आए। उस राजकुमारी ने मन ही मन में यह निश्चय कर लिया कि अगर मैं शादी करूंगी तो पाबूजी राठौड़ से ही लेकिन शादी का प्रस्ताव पाबूजी राठौड़ तक कैसे पहुंचाए। इस प्रश्न ने राजकुमारी को संकट में डाल दिया।  तभी राजकुमारी ने अपनी माता के समक्ष यह बात रखी कि वह पाबूजी राठौड़ से विवाह करना चाहती है।

जैसे तैसे यह बात पाबूजी राठौड़ तक पहुंची। यह बात सुनकर पाबूजी ने बड़ी ही विनम्रता के साथ जवाब दिया कि “मैं आपका अपमान नहीं करना चाहता हूं लेकिन मेरा सर पहले से बिका हुआ है मुझे किसी की रक्षा करने हेतु अपने सर की चिंता नहीं करनी है।”

 यह सुनकर वह राजकुमारी बहुत ही प्रसन्न हुई और उसने कहा कि यदि मैं आपसे विवाह करूंगी तो मैं कभी भी विधवा नहीं हो सकती क्योंकि जिनका सर नहीं होता है वह कभी नहीं मरते हैं।

यह बात सुनकर पाबूजी राठौड़ ने राजकुमारी से विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। विवाह के दिन की बात है।पाबूजी महाराज जैसे ही तीसरा फेरा लेने लगे केसर कालवी नामक घोड़ी हिनहिनाने लगी।

घोड़ी की आवाज सुनते ही पाबूजी महाराज तलवार निकालकर वहां से निकल पड़े क्योंकि वह समझ गए थे कि उस वृद्ध महिला पर कोई ना कोई संकट आ गया है।

एक बार किसी व्यक्ति ने उस वृद्ध महिला से केसर कालवी घोड़ी को मांगा था , मगर उस महिला ने मना कर दिया था। उस व्यक्ति ने मौका पाते ही उस वृद्ध महिला की सभी गायों को चारों तरफ से घेर लिया।

पाबूजी राठौड़ अपने वचन का पालन करने के लिए तुरंत ही वहां पर पहुंच गए। वहां पर पहुंचने के बाद वहां बहुत ही भीषण युद्ध हुआ इस युद्ध में उन्होंने उन सभी गायों को मुक्त करवा दिया और अपने वचन का पालन किया, लेकिन वह बुरी तरह से घायल हो गए थे।

 घायल होने की वजह से उन्होंने दम तोड़ दिया और वीरगति को प्राप्त हुए।

कुछ समय पश्चात यह बात राजकुमारी तक पहुंची। राजकुमारी ने अपने हाथ में नारियल लिया यह नारियल पाबूजी राठौड़ का प्रतीक था और बचे हुए फेरे उन्होंने अग्नि को साक्षी मानते हुए लिए और वह भी स्वर्ग में चली गई। इसीलिए पाबूजी राठौड़ के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने आधे फेरे धरती पर और आधे फेरे स्वर्ग में लिए थे।

राजस्थान में आज भी यह मान्यता है और शाश्वत सत्य है कि जब भी पशुओं पर कोई संकट आता है पाबूजी राठौड़ महाराज को याद किया जाता है और पाबूजी राठौड़ महाराज संकट की घड़ी में पशुधन की रक्षा करते हैं।

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पाबूजी राठौड़ ( ऊंटों के देवता ) का इतिहास।

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