महाराजा छत्रसाल ने औरंगजेब को पराजित करके बुंदेलखंड पर अधिकार किया था। इस जीत के बाद इन्हें “महाराजा” की उपाधि मिली है। इन्होंने अपना जीवन मुगलों से संघर्ष करते हुए और बुंदेलखंड को बचाने हेतु न्योछावर कर दिया।
महाराजा छत्रसाल का जीवन परिचय Maharaja Chhatrasal History In Hindi-
- पूरा नाम- बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल बुंदेला।
- छत्रसाल का जन्म कब हुआ- 4 मई 1649 को हुआ।
- छत्रसाल की मृत्यु कब हुई- 20 दिसंबर 1731 को हुई।
- महाराजा छत्रसाल के पिता का नाम क्या था- चंपत राय बुंदेला।
- माता का नाम- लाल कुंवर।
- पत्नियां- देव कुंवरी और रूहानी बाई।
- पुत्री का नाम- मस्तानी।
- महाराजा छत्रसाल के घोड़े का नाम- महाराजा छत्रसाल के घोड़े का नाम “भलेभाई” था।
बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल इतिहास से लगभग गायब ही कर दिया गया है किसी भी तरह की किताबों में इनके नाम का उल्लेख नहीं है। जबकि इनका योगदान अद्वितीय था यह एक राजा होने के साथ-साथ एक अच्छे लेखक भी थे।
महाराजा छत्रसाल ने अपने 44 साल के राज्यकाल में लगभग 52 युद्ध लड़े। बुन्देल केसरी महाराजा छत्रसाल का जन्म टीकमगढ़ जिले के लिघोरा विकासखंड में कक्कर कचनाए नामक गांव के समीप स्थित विंध्य वन में हुआ था।
इस वन के समीप स्थित मोर नामक पहाड़ी पर बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल का जन्म स्थान माना जाता है। युद्ध कौशल की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इन्हें छोटी उम्र में ही इनके मामा के घर देलवारा भेज दिया गया।
जब यह अपने मामा साहिब सिंह धांधेर के यहां पहुंचे तब इनकी आयु मात्र 5 वर्ष की थी। मात्र 12 वर्ष की आयु में इन्होंने अपने माता और पिता दोनों को खो दिया। अपने ही गुप्त चोरों के विश्वासघात के चलते महाराजा छत्रसाल के पिता चंपत राय के साथ बहुत गलत हुआ।
युद्ध से संबंधित रणनीति को गुप्तचरों ने पहले ही दुश्मनों के समक्ष उजागर कर दी और इसी का फायदा उठाकर दुश्मनों ने चंपत राय को घेर लिया। चंपत राय जैसे तैसे अपनी पत्नी महारानी लाल कुंवरी के पास पहुंचे।
अपनी पत्नी के आत्मसम्मान को बचाने के लिए और दुश्मनों के हाथ नहीं मरने का संकल्प लिए चंपत राय और उनकी पत्नी महारानी लाल कुंवरी ने अपने आप को मौत के हवाले कर दिया।
बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल इस समय मात्र 12 वर्ष के थे, उन्होंने आनन-फानन में अपनी माता के गहने लिए और किसी तरह दुश्मनों से बच कर निकल गए।
माता पिता की मृत्यु-
माता-पिता की मृत्यु के पश्चात छत्रसाल अपने पिता चंपत राय के मित्र राजा जय सिंह से मिले। जयसिंह ने इनको शरण ली और इनकी युद्ध क्षमता को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण देते रहे ताकि भविष्य में दुश्मनों से लोहा लेने के योग्य बन सके।
देखते ही देखते छत्रसाल युद्ध विद्या में निपुण हो गए और इनकी युद्ध कौशलता को देखते हुए जयसिंह ने इन्हें अपनी सेना में महत्वपूर्ण पद प्रदान किया।
प्रथम युद्ध औरंगजेब के लिए लड़े-
राजा जयसिंह औरंगजेब के लिए काम करते थे। औरंगजेब ने जयसिंह को दक्षिणी क्षेत्र के विस्तार का महत्वपूर्ण कार्य सौंप रखा था। जब जयसिंह ने अपनी सेना का नेतृत्व छत्रसाल के हाथों सौंपा, उसके बाद यह पहला मौका था जब छत्रसाल को युद्ध में भेजा गया।
छत्रसाल जयसिंह की सेना का नेतृत्व कर रहे थे। छत्रसाल के लिए यह एक सुनहरा मौका था जिससे कि वह खुद को युद्ध भूमि में साबित कर सके।
सन 1665 की बात है बीजापुर में छत्रसाल ने अपनी वीरता का तांडव दिखाते हुए गोंड राजा को पराजित किया। गोंड राजा छिंदवाड़ा और देवगढ़ के शासक थे जिन्हें अपनी जान की परवाह किए बिना छत्रसाल ने पराजित कर दिया।
अनुभवहीन छत्रसाल कि इस युद्ध में उनके घोड़े ने बहुत मदद की। इस बड़ी जीत के बाद भी जीत का सेहरा महाराजा छत्रसाल के सिर पर नहीं बंधा। जीत का सारा श्रेय औरंगजेब ने ले लिया।
इसी बात से दुखी होकर छत्रसाल ने दिल्ली सल्तनत की सेना के लिए कार्य करना बंद कर दिया क्योंकि इन्हें मुगलों की नियत समझ आ चुकी थी।
छत्रपति शिवाजी महाराज से मुलाकात-
प्रथम युद्ध लड़ने के लगभग 3 साल बाद महाराज छत्रसाल की मुलाकात छत्रपति शिवाजी महाराज से सन 1668 ईस्वी में हुई। 1668 ईस्वी में छत्रसाल छत्रपति शिवाजी महाराज से मिलने के लिए उनके दरबार में पहुंचे।
जब छत्रपति शिवाजी महाराज ने उनके आने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि वह पहले मुगलों के लिए काम करते थे लेकिन अब मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ना चाहते हैं और मुगलों को भारत से खदेड़ देना चाहते हैं।
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यह बात सुनकर छत्रपति शिवाजी महाराज बहुत खुश हुए और उन्होंने महाराज छत्रसाल को आश्वासन दिया कि यदि जरूरत पड़ी तो निश्चित तौर पर मैं आपकी मदद करूंगा।
राष्ट्र के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने छत्रसाल को “भवानी तलवार” उपहार स्वरूप भेंट की थी। छत्रपति शिवाजी भी मुगलों के खिलाफ लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे थे।
ऐसी मुलाकात के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने महाराज छत्रसाल को समर्थ गुरु रामदास जी से मिलाया था। रामदास जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद राजा छत्रसाल पुनः बुंदेलखंड के लिए लौट गए।
बुंदेलखंड की स्थिति-
छत्रपति शिवाजी महाराज से मुलाकात के बाद महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड वापस आ गए। यहां पर आने के बाद इन्होंने मुगलों से लोहा लेने के लिए रणनीति तैयार की।
लेकिन यहां पर इनके परिवार के सदस्यों के साथ-साथ राज्य का कोई भी व्यक्ति मुगल सेना के खिलाफ लड़ने को तैयार नहीं था। इसकी मुख्य वजह यह थी कि मुगल सेना की स्थिति बहुत मजबूत थी जबकि बुंदेलखंड की सेना अस्त व्यस्त थी।
महाराजा छत्रसाल का बड़े भाई रतन शाह ने भी मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ने से साफ इनकार कर दिया। लेकिन इनका चचेरा भाई बल दीवान ने फैसला किया कि वह अपने भाई महाराजा छत्रसाल के साथ हैं।
महाराजा छत्रसाल को अपनी सेना तैयार करनी थी लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे। छत्रसाल ने अपनी माता के गहने बेच दिए और उनसे जो पैसे प्राप्त हुए उनसे घुड़सवार और 25 सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी तैयार की।
महाराजा छत्रसाल के घोड़े का नाम “भलेभाई” था।जैसे-जैसे समय बीतता गया महाराजा छत्रसाल की सेना में वृद्धि होती गई और कई लोग इनसे जुड़ गए।
बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल का प्रथम आक्रमण-
जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा, धंधेरो ने महाराजा छत्रसाल के पिता संपत राय के साथ विश्वासघात किया था। यह बात महाराजा छत्रसाल को खटक रही थी।
इसलिए सबसे पहले उन्होंने अपने माता-पिता के हत्यारों से बदला लेने की योजना बनाई। महाराजा छत्रसाल ने धंधेरो के साथ- साथ मुगलों पर भी कहर बरपाना शुरू कर दिया। औरंगजेब की सेना में लगभग 30000 सैनिक थे।
रण कौशल और छापामारी युद्ध प्रणाली में माहिर महाराजा छत्रपाल मुगलों की रणनीति को समझ चुके थे। उन्होंने मुगलों को उनकी ही भाषा में जवाब दिया।
महाराजा छत्रसाल के घोड़े का नाम “भलेभाई” था, इस घोड़े ने युद्ध क्षेत्र में छत्रसाल का अंगरक्षक बनकर सुरक्षा प्रदान की थी। इस दौरान बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल ने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि मुगल धोखाधड़ी और छल कपट करने में माहिर हैं।
जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ता गया छत्रपाल ने इटावा, खिमलासा,शाहगढ़, रहली, गढ़ाकोटा, रामगढ़, धमोनी, रानगिरी, कंजिया, मडीयादों और वांसा कला के साथ-साथ अन्य कई छोटे-बड़े राज्यों को अपने अंदर मिला लिया।
इतना ही नहीं कई मुगल सरदारों को छत्रसाल ने कर वसूल कर माफ कर दिया। धीरे धीरे बुंदेलखंड से मुगलों का राज्य एकदम खत्म हो गया।
छत्रसाल बुंदेला का राज्याभिषेक-
हिंदुत्व के लिए सब कुछ न्योछावर करने वाले, राष्ट्र प्रेमी और वीरता के प्रतीक महाराजा छत्रसाल लोगों के बीच में बहुत लोकप्रिय थे। छत्रसाल की सेना बहुत बड़ी हो चुकी थी इसमें 72 प्रमुख सरदार थे।
वसिया के युद्ध में विजय के बाद मुगलों ने छत्रसाल को “महाराजा” की उपाधि प्रदान की थी। इसके पश्चात बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल ने “कालिंजर का किला” भी जीत लिया और मांधता को किलेदार बनाया।
छत्रसाल ने 1678 ईस्वी में पन्ना को अपनी राजधानी बनाया। इसके बाद विक्रम संवत 1744 में छत्रसाल के गुरु योगीराज प्राणनाथ के निर्देशन में छत्रसाल का राज्य अभिषेक किया गया।
छत्रसाल के शौर्य और पराक्रम से डर कर कुछ मुगल सरदार जिनमें अनवर खां , तहवरखान,सहरुद्दिं,हामिद बुंदेलखंड आदि पुनः दिल्ली लौट चुके थे।
महाराजा छत्रसाल के गुरु प्राणनाथ-
इनके के गुरु प्राणनाथ हमेशा ही हिंदू और क्षत्रिय एकता की बात करते थे। गुरु प्राणनाथ द्वारा दिए गए उपदेश “कुलजम स्वरूप” में शामिल है।
छत्रसाल की राजधानी पन्ना में उनके प्राणनाथ की समाधि भी बनी हुई है और इन को मानने वाले अनुयायियों का यह प्रमुख तीर्थ स्थल भी है।
छत्रसाल के गुरु प्राणनाथ ने इस क्षेत्र को हमेशा सुख समृद्धि का वरदान दिया था और इसी के चलते यहां के लोग बहुत ही समृद्ध थे।
छत्रसाल बुंदेला के विशाल राज्य के विस्तार से संबंधित यह पंक्तियां लोगों के बीच में आज भी काफी लोकप्रिय हैं-
इट यमुना उत नर्मदा इट चंबल उत टोंस।
छत्रसाल सौं लरन की रही न काहूं होंस।।
प्रणामी पंथ के गुरु प्राणनाथ ने 17 साल को यह आशीर्वाद दिया था-
छत्ता तोरे राज में धक-धक धरती होय।
जित जित घोड़ा मुख करे तित तित फतेह होय।।
पेशवा बाजीराव से मदद-
1728 ईस्वी में मुगलों के आक्रमण के समय महाराजा छत्रसाल ने अपनी बेटी मस्तानी के साथ संदेश भेज कर मदद मांगी। बाजीराव पेशवा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल की मदद की।
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इस जीत की खुशी में छत्रसाल ने कई छोटे-छोटे राज्य बाजीराव पेशवा के हवाले कर दी इतना ही नहीं उन्होंने अपनी पुत्री मस्तानी की शादी भी बाजीराव पेशवा से कर दी।
बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल की मृत्यु- Hows Maharaj Chhatrasal Died
82 वर्ष की उम्र में 20 दिसंबर 1731 में महाराजा छत्रसाल की मृत्यु हो गई। प्रतिवर्ष 20 दिसंबर को इनक पुण्यतिथि जबकि प्रतिवर्ष 4 मई को छत्रसाल जयंती मनाई जाती है।
Maharaja Chhatrasal Stadium उत्तरी दिल्ली में स्थित है यह मुख्य रेसलिंग का स्टेडियम है। महाराजा छत्रसाल की समाधि ग्राम पंचायत महेबा में स्थित है।
यहीं पर महाराजा छत्रसाल का महाप्रयाण हुआ था। रियासत काल में यहां पर इनकी समाधि बनाई गई।
छत्रसाल की रूहानी बाई कोई रानी नहीं थी ।आपने कोई evidence नहीं दिया है ।मस्तानी एक ख़ूबसूरत और सम्माननीया नर्तकी थी जिसे पेशवा बाज़ीराव ने छत्रसाल के पुत्र हरदायशाह से माँगा था ।
thank you so much for your valuable comment.