कौन थी रानी ताराबाई मोहिते, पढ़ें इतिहास और जीवन परिचय

Last updated on April 19th, 2024 at 09:43 am

रानी ताराबाई मोहिते का इतिहास (Rani Tarabai History In Hindi )

Maharani Tarabai राजाराम जोकि छत्रपति शिवाजी महाराज के द्वितीय पुत्र थे की पत्नी थी। रानी ताराबाई मोहिते नीति कुशल और वीरांगना महिला थी।

इनमें काफी उत्साह भरा हुआ था। अपने पति राजाराम महाराज के जीवन काल में ही इन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता, चतुराई, के साथ साथ दीवानी और फौजदारी मामलों की अच्छी जानकारी की वजह से बहुत ख्याति प्राप्त कर चुकी थी।

ताराबाई का पूरा नाम- महारानी ताराबाई भोंसले।

ताराबाई का जन्म- 14 अप्रैल 1675 को सतारा में हुआ था।

ताराबाई की मृत्यु- 9 दिसंबर 1761 को सतारा में हुआ।

ताराबाई के पिता का नाम- हंबीरराव मोहिते।

ताराबाई की माता का नाम– अज्ञात।

ताराबाई के पति का नाम- राजाराम महाराज (छत्रपति शिवाजी महाराज के द्वितीय पुत्र)।

ताराबाई की वंशावली –शिवाजी तृतीय (पुत्र) ।

रानी ताराबाई मोहिते का बचपन और विवाह (Tarabai Kaun thi)

मराठी सेना के सबसे प्रसिद्ध और वीर सेनापति हंबीरराव मोहिते की बेटी Tarabai Mohite बचपन से ही वीर और साहसी तो थी ही, इसके साथ साथ हीअपने पिता से इन्होंने युद्ध कला की सभी बारीकियां भी सीखी थी।

ताराबाई से प्रभावित होकर छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने दूसरे पुत्र राजाराम से इन के विवाह के लिए आग्रह किया। सेनापति हंबीरराव मोहिते के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती थी कि छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र के साथ उनकी बेटी का विवाह संपन्न हो।

जब ताराबाई मात्र 8 वर्ष की थी तब इनका विवाह राजाराम के साथ कर दिया गया।

रानी ताराबाई मोहिते के पुत्र शिवाजी तृतीय का राज्याभिषेक

जब इनके पुत्र शिवाजी तृतीय की आयु मात्र 4 वर्ष थी तब इनके पति राजाराम महाराज का देहांत हो गया। मराठा साम्राज्य के सरंक्षण का जिम्मा इन्होंने उठाया और अपने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी का राज्याभिषेक किया। एक बार फिर कमजोर पड़ चुकी मराठा सेना में महारानी ताराबाई ने ही प्रेरणा और नीति कुशलता से शक्ति में वृद्धि की।

इन्होंने अपने पुत्र शिवाजी तृतीय को राज्याभिषेक के बाद अनवरत रूप से राजा बनाना चाहती थी लेकिन इन की राह में शंभूजी के पुत्र साहूजी थे। जैसे जैसे समय आगे बढ़ता गया शंभू जी ने अपने पुत्र साहू जी के लिए राजगद्दी मांग ली। ऐसे समय में महारानी ताराबाई संकट में पड़ गई,क्योंकि ताराबाई अपने पुत्र शिवाजी तृतीय को ही राजा के रूप में देखना चाहती थी।

औरंगजेब ताराबाई युद्ध

सन 1700 से लेकर 1707 ईस्वी तक महारानी ताराबाई मराठा साम्राज्य की संरक्षिका रही। इस दौरान इन्हें औरंगजेब के साथ कई बार युद्ध करना पड़ा और इतना ही नहीं हर बार इन्होंने औरंगजेब से बराबर की लड़ाई की या फिर कई बार औरंगजेब को धूल चटाई।

इस दौरान मुगल सेना अर्थात औरंगजेब ने सन 1700 ईस्वी में पन्हाला पर अधिकार कर लिया। अचानक हुए इस युद्ध में मराठी सैनिक संभल नहीं पाए क्योंकि उन्हें इस बात का कोई अंदेशा नहीं था कि मुगल अचानक आक्रमण कर सकते हैं। इस समय महारानी ताराबाई ने बागडोर संभाली ही थी।

इतना ही नहीं मुगलों ने सन 1702 ईस्वी और 1703 ईस्वी में क्रमशः विशालगढ़ एवं सिंहगढ़ पर आक्रमण कर दिया और इन दोनों किलों को अपने अधीन कर लिया। यह मराठा साम्राज्य की प्रतिष्ठा पर चोट थी। महारानी ताराबाई ने हार नहीं मानी और मुगल सेना को खदेड़ने का प्रण लिया।

महारानी ताराबाई मोहिते ने मराठा सरदारों को एकत्रित किया, उन्हें प्रेरित किया ,जोश और जुनून से भर दिया। इतना ही नहीं उनका नेतृत्व करते हुए उन्हें शपथ दिलाई कि हम किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानेंगे और अपने चुने हुए राज्यों को मुगलों से पुनः प्राप्त करेंगे।

लगातार औरंगजेब से चल रहे युद्ध की वजह से मराठों के पास धन दौलत की कमी होने लगी थी। युद्ध में विजय के साथ साथ धन की भी जरूरत थी।

महारानी ताराबाई के समर्थकों की बात की जाए तो उनके साथ परशुराम ,त्रियंबक, शंकर जी नारायण और धनाजी जाधव आदि शामिल थे।

सन 1703 ईस्वी की बात है मराठा सैनिकों ने महारानी के नेतृत्व में बरार पर आक्रमण कर दिया और उसे अपने अधीन कर लिया। इतने में महारानी कहां रुकने वाली थी उन्होंने मराठा सैनिकों और सरदारों में एकजुटता बनाए रखी।

आगे चलकर सन 1704 ईस्वी और 1706 ईस्वी में क्रमशः सातारा और गुजरात के कुछ क्षेत्रोंं पर इन्होंने आक्रमण कर दिया। आक्रमण  एक सुनियोजित युद्ध नीति, कुशलता और बुद्धिमत्ता के प्रयोग के साथ किया गया कि दुश्मनों को संभलने तक का मौका नहीं मिला।

इन आक्रमणों ने औरंगजेब की नींव कमजोर कर दी। इस समय औरंगजेब को भी लगने लगा कि अब मराठों का सामना करना उसके बस का रोग नहीं है।

भीमसेन और मुनची ने महारानी ताराबाई और मराठा साम्राज्य के लिए क्या लिखा

भीमसेन एक लेखक था जो महारानी ताराबाई की वीरता का प्रत्यक्षदर्शी था।

भीमसेन ने महारानी ताराबाई के साथ-साथ मराठों के लिए लिखा की “मराठी सैनिकों ने पूरी तरह से उस राज्य पर अपना कब्जा कर लिया और लूटपाट के द्वारा धनवान भी बन गए साथ ही साथ उनका एकछत्र राज्य स्थापित हो गया”।

1704 ईस्वी में मुनची ने लिखा कि “आजकल मराठा सरदार और इनके सैनिक बहुत ही आत्मविश्वास और वीरता के साथ चलते हैं। इन के डर से मुगल सेना हर समय भयभीत रहती है। मराठी सेना के पास सभी तरह के आधुनिक हथियार जिनमें तलवारे, धनुष बाण, बरछी, बंदूके और तोपें मौजूद है।

इतना ही नहीं सामान को ढोने के लिए और युद्ध में साथ देने के लिए मराठी सेना के पास पर्याप्त मात्रा में ऊंट, घोड़े और हाथी मौजूद है। मुगल सेना डर के साए में रहती है। बड़े ही आत्मविश्वास के साथ मराठी सेना आसपास के क्षेत्रों में लूटपाट मचाती है।इतना आत्मविश्वास इससे पहले मराठी सेना में कभी नहीं देखा गया था।

जब रानी ताराबाई मोहिते को राज्य छोड़ विकट परिस्थिति का सामना करना पड़ा

मराठों की बढ़ती ताकत और सामर्थ्य ने मुगल सेना को कुचल कर रख दिया था इसी डर और चिंता के साए में जी रहे औरंगजेब ने 3 मार्च 17 से 7 को अहमदनगर के निकट दम तोड़ दिया। मुगलों के लिए यह एक बहुत बड़ी क्षति थी।

जैसे ही औरंगजेब की मृत्यु हुई मुगलों ने महारानी ताराबाई के पति के बड़े भाई शंभू जी के पुत्र को (शाहू अर्थात शिवाजी द्वितीय) बंदीग्रह से छोड़ दिया। साहू जी महाराज अर्थात शिवाजी द्वितीय ही वास्तविक रूप में उत्तराधिकारी थे।

छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रेरक कथन और अनमोल विचार

लेकिन इनको मुगलों ने बंदी बना लिया था इसलिए मराठा साम्राज्य के उत्थान के लिए महारानी ताराबाई ने जिम्मा संभाला और अपने पुत्र शिवाजी तृतीय का राज्याभिषेक कर मुख्य संरक्षिका बनी।

साहू जी महाराज ने रानी ताराबाई मोहिते से पैतृक संपत्ति में हिस्सा मांगा और नियमानुसार वहां के राजा बनना चाहा। यह महारानी ताराबाई के लिए बहुत ही विकट समय था। साहू जी महाराज को पेशवा बालाजी विश्वनाथ के रूप में बहुत बड़े समर्थक मिल गए।

महारानी ताराबाई का पक्ष कमजोर पड़ गया और इसी वजह से महारानी ने साहू जी महाराज की अधीनता स्वीकार की और उन्हें छत्रपति शाहूजी महाराज के रूप में स्वीकार किया।

साहू जी महाराज द्वारा शिवाजी तृतीय को गोद लेना

कई समय तक छत्रपती ताराबाई और उनका पुत्र शिवाजी तृतीय सतारा में रहे और वहां पर इनका ही राज था। जैसे-जैसे समय बीतता गया साहू जी महाराज ने शिवाजी तृतीय को गोद ले लिया और पुनः मराठा साम्राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

रानी ताराबाई मोहिते की मृत्यु और समाधि (Tarabai samadhi)

राजा राम की मृत्यु के पश्चात मराठा साम्राज्य की संरक्षिका बनकर अगर महारानी ताराबाई ने मुगलों से इस साम्राज्य को नहीं बचाया होता तो आज इतिहास कुछ और ही होता।

9 दिसंबर 1761 का दिन था, 86 वर्ष की उम्र में महारानी ताराबाई ने देह त्याग दी।

महारानी ताराबाई जयंती (maharani tarabai jaynti)

14 अप्रैल को प्रतिवर्ष बहुत ही धूमधाम के साथ मनाई जाती है और इस वीरांगना को याद किया जाता है।