रानी पद्मावती का इतिहास और जीवन परिचय।

रानी पद्मावती, सिंहल द्वीप ( जो की प्राचीन समय में श्रीलंका में था ) की रहने वाली थी। अगर रानी पद्मावती की विशेषता की बात की जाए तो यह बहुत सुन्दर और रूपवान थी। कहते हैं की जब रानी पानी पीती थी तो गले में अंदर जाता पानी साफ़ दिखाई देता था। इनका स्वरुप अद्भुद और देवीय था।

रानी पद्मावती- Padmawati History और Biography हिंदी में –

पूरा नाम – रानी पद्मिनी या पद्मावती।

धर्म – सनातन हिन्दू धर्म।

माता का नाम – रानी चम्पावती।

पिता का नाम – राजा गंधर्व सेन।

पति का नाम – राजा रतन सिंह।

जन्म स्थान – सिंहल द्वीप ( श्रीलंका ).

मृत्यु – सन 1303 ईस्वी , चित्तौड़गढ़, मेवाड़।

महारानी की सुंदरता अद्वितीय थी। जब वह पानी पीती थी तो बाहर से उसके गले के अंदर जाता पानी साफ नजर आता था। इतना ही नहीं पद्मावती को पक्षियों से बहुत प्रेम था। रंग-बिरंगे पक्षी उनके आसपास चहकते रहते थे। बचपन में पद्मिनी अपना ज्यादातर समय प्राकृतिक परिदृश्य में गुजारती थी।

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वहां एक सतरंगी तोता भी था जो पद्मावती के दिल के बहुत करीब था ,उस तोते का नाम “हीरामणि” था।

हीरामणि मनुष्य की भाषा बोलता था। उसकी वाणी बहुत ही मधुर थी, वह पद्मावती और घर के अन्य सदस्यों से सवाल जवाब भी करता था।

Rani Padmawati / padmini का विवाह –

रानी पद्मावती का स्वयंवर हुआ था। राजा महाराजाओं के समय विवाह की इस पद्धति का ज्यादा प्रचलन था। पद्मिनी की आयु विवाह के योग्य हो गई तब इनके पिता ने दूर -दूर के राजा महाराजाओं और सामन्तों को स्वयंवर का समाचार भेजा था।

सिंहल द्वीप से चित्तौडग़ढ़ बहुत सुदूर प्रदेश था। राजा रतन सिंह और इनके साथी जंगल में शिकार करने गए। इनकी नजर पेड़ पर बैठे एक बहुत सुन्दर तोते पर पड़ी जो मनुष्यों की तरह बोल रहा था।

यह देखकर दोनों को बहुत आश्चर्य हुआ। यह वही रानी पद्मावती का प्रिय तोता था। इस तोते ने रतन सिंह के सामने पद्मावती की सुंदरता का बखान किया था। साथ ही स्वयंवर का समाचार भी सुनाया।

हीरामणि तोता की बात सुनकर रतन सिंह बहुत प्रभावित हुए और अपने साथियों के साथ स्वयंवर में शामिल होने के लिए निकल पड़े।

जब राजा रावल रतन सिंह यहाँ पहुंचे तो पहले से बहुत राजा ,महाराज और बड़े – बड़े सामंत उपस्थित थे। जिनमें राजा रतन सिंह के सबसे प्रतिस्पर्धी थे मलकान सिंह। मलकान सिंह भी एक छोटे से राज्य के राजा थे।

पदमिनी से विवाह करने के लिए दोनों के बिच में युद्ध हुआ , इस युद्ध में रावल रतन सिंह की जीत हुई। मलकान सिंह को पराजित करके , स्वयंवर में राजा रतन सिंह ने रानी पद्मावती के साथ विवाह किया था।

पद्मावती से विवाह पूर्व रतन सिंह की 13 रानियाँ थी। पद्मावती से विवाह के उपरांत दोनों चित्तौड़गढ़ आ गए।

चित्तौड़गढ़ आने पर महारानी पद्मावती का ज़ोरदार स्वागत किया गया। रावल रतन सिंह का यह 14 वां विवाह था। ऐसा कहा जाता हैं कि इसके बाद रतन सिंह ने कोई शादी नहीं की थी , पद्मावती बहुत सुन्दर थी।

रानी पद्मावती की कहानी , Rani Padmawati Story In Hindi –

तेहरवीं शताब्दी के प्रारम्भ में चित्तौडग़ढ़ ,मेवाड़ पर राजा रतन सिंह का राज था। रतन सिंह एक बहादुर और वीर योद्धा थे। इतना ही नहीं इनके दरबार में कलाकारों का जमावड़ा लगा रहता था।

रतन सिंह संगीत प्रेमी थे। इनके दरबार में एक बहुत सुरीले गायक और बांसुरी वादक “राघव चेतन ” नमक कलाकार भी थे। राघव चेतन कुछ चुनिंदा और राजा के करीबी लोगों में से एक थे।

संगीत विद्या में निपूर्णता के साथ – साथ राघव चेतन तंत्र विद्या भी जानते थे। एक बार की बात हैं ,इन्होंने अपनी प्रतिभा दिखाने और घमंड के चलते काले जादू का प्रयोग राजा पर करना चाहा।

लेकिन गुप्तचरों के चलते यह बात राजा रतन सिंह तक पहुँच गई। पहले तो राजा रतन सिंह को विश्वास नहीं हुआ लेकिन जब विश्वास पात्र मंत्री ने यह बात उनको बताई तो वह बहुत क्रोधित हुए।

दूसरे दिन सभा में राघव चेतन को बुलाया और उसको दंड दिया। राघव चेतन को गधे पर बिठाकर घुमाया ,इतना ही नहीं इनके गले में जुत्तों की माला पहनाई गई। साथ ही रातों रात राज्य छोड़ने का आदेश दिया गया।

अगर राघव चेतन राज्य छोड़कर नहीं जाते तो इनको मृत्यु दंड दिया जाता।

राघव चेतन राज्य छोड़कर चले गए लेकिन साथ ही यह भी ठान लिया था की कैसे भी करके राजा रतन सिंह को सबक सिखाना हैं।

“राघव चेतन” और अल्लाउद्दीन खिलजी की मुलाक़ात –

राघव चेतन मन में राजा के खिलाफ द्वेष की भावना लेकर चल पड़े थे। इस समय दिल्ली में अल्लाउद्दीन ख़िलजी का कब्ज़ा था।

राघव चेतन के मन में ख्याल आया की कैसे भी करके अल्लाउदीन तक पहुंचा जाए और रतन सिंह से बदला लिया जाए।

लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह था की ख़िलजी तक कैसे पहुंचा जाए।

खिलजी अपने सैनिकों और मंत्रियों के साथ शिकार के लिए जंगल में जाते थे। राघव चेतन को जब यह बात पता चली तो वह भी हमेशा वहां जाने लगा।

वह खिलजी के आने से पहले ही जंगल में पहुँच जाता और मधुर – मधुर बांसुरी बजता। एक दिन अल्लाउद्दीन का ध्यान उसकी तरफ गया।

खिलजी ने उसकी बहुत तारीफ की और अपने दरबार में चलने का न्योता दिया ,जिसे राघव चेतन ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

जब अगले दिन राघव चेतन खिलजी के दरबार में पहुंचे तो उन्होंने राजा रतन सिंह की पत्नी का जिक्र किया और बताया की वह बहुत सुन्दर हैं।

खिलजी को मोहित करने के लिए उन्होंने जिस अंदाज में रानी पद्मावती की सुंदरता का बखान किया ,खिलजी एकदम उत्तेजित हो उठा।

जैसा की राघव चेतन चाहता था वैसा ही हुआ और अल्लाउद्दीन ने अपने सेनापति को आदेश दिया की चित्तौड़गढ़ की कूच किया जाए।

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अल्लाउद्दीन ख़िलजी की चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई –

रानी पद्मावती को देखने और उसकी एक झलक पाने के लिए वह बहुत ही उत्सुक हो उठा ,वह अपनी सेना के साथ चित्तौड़गढ़ की तरफ निकल पड़ा।

चित्तौड़गढ़ पहुंचने पर खिलजी ने देखा कि चित्तौड़गढ़ का किला वीर मेवाड़ी सैनिकों द्वारा पूर्णतया सुरक्षित है, जिसको भेद पाना मुमकिन नहीं है।

खिलजी ने पहले ही मेवाड़ के वीरो की गाथाएं सुन रखी थी तो वहां एकाएक आक्रमण करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाया।

तभी उसके मन में एक ख्याल आया उसने राजा रतन सिंह को एक संदेश भिजवाया और लिखा-

“महाराज में रानी पद्मिनी के दर्शन करने आया हूं और महारानी को अपनी बहन बनाना चाहता हूं”।

यह बात सुनकर भी रावल रतन सिंह को अच्छा नहीं लगा। राजा रतन सिंह ने इसको मेवाड़ की शान के खिलाफ बताया और खिलजी को वापस लौट जाने का आदेश दिया। राजा रतनसिंह जानता था कि सभी मुस्लिम शासक कापटी होते हैं।

यह सुनकर खिलजी ने स्वयं को घोर अपमानित महसूस किया।
सुबह के समय सहमें कदमों से पीछे हट गया और धीरे-धीरे दिल्ली की तरफ प्रस्थान करने लगा।
बहुत से इतिहासकार कहते हैं कि खिलजी ने पद्मावती को काँच मैं देखा था लेकिन यह सत्य नहीं है।
उस समय का काँच का आविष्कार तक नहीं हुआ था।

ख़िलजी वापस दिल्ली लौट गया। उसके मन में अपमान का बदला लेने की आग लगी थी और उसने ठान लिया था कि किसी भी हाल में रानी पद्मावती को हासिल करना है।

कुछ समय पश्चात वह अपनी विशाल सेना के साथ चित्तौड़गढ़ की तरफ निकल पड़ा ।
राजा रतन सिंह जी को पहले से पता था कि ख़िलजी आएगा जरूर। इसलिए वह चौकस था।

ख़िलजी चित्तौड़गढ़ पहुंचा और एक बार फिर रतन सिंह को संदेश भिजवाया की “हे राजन आप मुझे पद्मावती की एक झलक दिखा दीजिए या फिर आप खुद मुझसे मिलने आइये”।

राजा रतन सिंह मेवाड़ राज्य  की शान को ध्यान में रखते हुए अपने यहां आए मेहमान से मिलने पहुंच गए।

खिलजी बहुत ही धूर्त और विश्वासघाती था उसने कपटता पूर्वक राजा रतन सिंह को बंदी बना लिया और राज दरबार में संदेश भिजवाया की ,पद्मावती के बदले में राजा रतन सिंह को छुड़ा ले जाएं जैसे ही यह संदेश राज भवन में पहुंचा सब स्तब्ध रह गए।

लेकिन मेवाड़ के वीर पीछे हटने वालों में नहीं थे। फिर मेवाड़ी सैनिकों ने ख़िलजी की सेना पर धावा बोल दिया। मेवाड़ी सैनिकों की बिजली सी चमक और बहादुरी देखकर खिलजी घबरा गया और अपनी पूरी सेना के साथ राजा रतन सिंह को बंदी बनाकर दिल्ली लौट आया।

दिल्ली पहुंचकर खिलजी ने माता पद्मावती को संदेश भेजा कि रतन सिंह को जीवित देखना है तो  स्वयं को हमारे सामने आत्मसमर्पण करना होगा।

गौरा – बादल का योगदान –

माता पद्मावती की चिंता बढ़ गई माता ने तुरंत गोरा व बादल को बुलाया और पूरी बात बताई ।
गोरा बादल दोनों ही शूरवीर थे, बिजली जैसी चमक, आग की तरह लपक थी।

गोरा बादल की वीरता को शब्दों में बयां कर पाना संभव नहीं है। दोनों ने माता पद्मावती के साथ मिलकर योजना बनाई कि कैसे रतन सिंह को कपटी खिलजी के चंगुल से मुक्त करवाया जाए।

योजना के तहत खिलजी को संदेश दिया गया कि माता पद्मिनी के साथ 16000 रानियों भी आएगी और प्रत्येक रानी पालकी में बैठकर ही आएगी। यह संदेश सुनकर खिलजी बहुत खुश हुआ और माता पद्मिनी की शर्त मान ली।

फिर क्या था योजनाबद्ध तरीके से प्रत्येक पालकी में एक एक वीर योद्धा को हथियारों के साथ औरतों के वेश में बिठाया गया और आदेश दिया कि जैसे ही वह रतन सिंह को लेकर आएंगे उन पर धावा बोलना है।

और उन  पालकियों के  अंत में कुछ वीर और घोड़े रहेंगे जो रतन सिंह को सुरक्षित चित्तौड़गढ़  पहुंचाने का कार्य करेंगे। सभी पालकिया दिल्ली पहुंच जाती है खिलजी के सामने शर्त रखी जाती है कि जैसे ही राजा रतन सिंह को मुक्त किया जाएगा उसके बाद आप पद्मनी से मिल पाओगे।

खिलजी बहुत ही प्रसन्नता के साथ रतन सिंह को छोड़ देता है रतन सिंह को पालकियों के अंत में पहुंचाया जाता है।

अलाउद्दीन के सैनिक पालकियों की तरफ बढ़ते हैं तभी वीर योद्धा गोरा और बादल और साथ ही पालकियों में बैठे वीर मेवाड़ी सैनिक बिजली की तरह ऊन पर टूट पड़ते हैं।

हर मेवाड़ी वीर दस- दस पर भारी पड़ रहे थे। संख्या में काफी कम होने के बाद भी दुश्मनों की धज्जियां उड़ा दी, यह सब देखकर खिलजी ने अपनी पूरी सेना को ,जो कि लाखों की तादाद में थी को आक्रमण का आदेश दिया।

धीरे-धीरे मेवाड़ी सैनिक वीरगति को प्राप्त होने लगे लेकिन जैसे-जैसे सैनिक कम होते गए मेवाड़ी वीरों का जोश दोगुना होता गया।

गोरा बादल की वीरता देख कर ख़िलजी की आंखें खुली रह गई। इस बीच राजा रतन सिंह को वहां से सुरक्षित निकाल लिया गया । पीछे से वार कर गोरा का सिर धड़ से अलग कर दिया गया, बिना सिर का धड़ भी अंधाधुंध तलवार चला रहा था।

सभी मेवाड़ी सेनिक वीरगति को प्राप्त हुए। जैसे ही गोरा का धड़  गिरा खिलजी ने राहत की सांस ली और गोरा की वीरता देख कर घुटनों के बल बैठ गया और गोरा को नमन किया।

अलाउद्दीन खिलजी तत्काल अपनी विशाल सेना के साथ चित्तौड़गढ़ की तरफ निकल पड़ा।

रानी पद्मावती की मृत्यु / रानी पद्मावती का जौहर – rani Padmawati death

चित्तौड़ राज दरबार में जब यह खबर आती है कि खिलजी पूरी सेना के साथ आक्रमण करने वाला है तो वहां मौजूद सभी रानियां और माता पद्मावती वीरों को युद्ध के लिए तैयार रहने को कहती हैं।

लेकिन रानियों को पता था कि खिलजी से पार पाना मुमकिन नहीं है ,तो वह सभी 16000 रानियो और रानी पद्मावती अपनी आन बान और शान की रक्षा के लिए एक साथ  जौहर करने का निश्चय करती हैं।

जोहर का मतलब होता है अपने आप को अग्नि के हवाले करना। पद्मावती जानती थी कि जौहर के पश्चात खिलजी सेना पर मेवाड़ी वीर बिजली की तरह टूट पड़ेंगे और खिलजी को राख के सिवा कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।

रानी पद्मावती का जौहर, 26 अगस्त 1303 ईस्वी की बात थी। महारानी पद्मावती ने अन्य 16000 रानियों के साथ अपने आप को आग के हवाले कर दिया।
फिर क्या था-

           ” धधक उठी ज्वाला
            अमर हो गई माता”

अंततः जब खिलजी किले पर पहुंचा तो उसे लाशों और राख के सिवा कुछ नहीं मिला।

रानी पद्मावती रियल फोटो, महल , Padmini Mahal Photos –

चित्तौडग़ढ़ किले पर आज भी रानी पदमिनी का महल देखने लाखों पर्यटक आते हैं। रानी पद्मावती की असली फोटो , महल के फोटो यह हैं –

पदमिनी महल का फोटो
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