वीर दुर्गादास राठौड़ ने बहुत ही बहादुरी के साथ मारवाड़ को मुग़लों से मुक्त करवाया था। दुर्गादास न तो राजा थे ना कोई सेनापति और ना ही कोई सामंत लेकिन उन्होंने अपने युद्ध कौशल और राजनैतिक चातुर्यता से औरंगजेब से मारवाड़ को मुक्त करवा दिया था।
इनका पालन पोषण इनकी माता ने किया था। वीर दुर्गादास राठौड़ बहुत वीर ,देश भक्त और संस्कारी थे। राजा जसवंत सिंह ने दुर्गादास को “मारवाड़ का भावी रक्षक” की उपाधि प्रदान की थी।
दुर्गादास की तारीफ में मारवाड़ में एक कहावत हैं जो हमेशा उनकी प्रशंसा में गाई जाती हैं-
“माई एहड़ो पूत जण ,जेहड़ो दुर्गादास।
मार गंडासे थामियो ,बिन थाम्बा आकाश।।
एक मारवाड़ी कहावत।
वीर दुर्गादास राठौड़ की कथा (Durgadas Rathore Ka Itihas ) वीर दुर्गादास राठौड़ का चरित्र चित्रण /वीर दुर्गादास राठौड़ का इतिहास –
दुर्गादास का जन्म –13 अगस्त 1638
जन्म स्थान –सालवा कलां जोधपुर और पालन पोषण लूणवा नामक गाँव में हुआ था।
माता -पिता – पिता का नाम आसकरण तथा माता का नाम नेतकँवर था।
दुर्गादास की मृत्यु – 22 नवंबर 1718 उज्जैन। (80 वर्ष 3 माह और 28 दिन की आयु में )
वीर दुर्गादास राठौड़ का जन्म सालवा गाँव में 13 अगस्त 1638 को हुआ था। इनके पिता का नाम आसकरण तथा माता का नाम नेतकँवर था।
लेकिन वीर दुर्गादास राठौड़ का पालन पोषण लुणवा नामक गाँव में हुआ था क्योंकि जोधपुर के दीवान और उनके पिता आसकरण की अन्य पत्नियां नेतकँवर के साथ रहने को राजी नहीं थी, इस वजह से नेतकँवर ने सालवा कलां गाँव छोड़ दिया।
लूणवा नामक गाँव में ही इन्होने राष्ट्र भक्ति और युद्ध कौशलता में निपुणता हासिल की।
इस समय मारवाड़ राज्य में राजा जसवंत सिंह का शासन था। साथ ही जसवंत सिंह मुग़ल बादशाह औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति भी थे।
राजा जसवंत सिंह का करीबी एक दरबारी था उसका नाम राईके था। राईके का स्वाभाव रुखा था। एक गलती पर दुर्गादास ने राईके को कठोर दंड दिया था इसी से प्रसन्न होकर राजा जसवंत सिंह ने दुर्गादास को खुद का सेवक चुन लिया और वीर दुर्गादास भी उनकी उम्मीदों पर खरा उतरा।
यह भी कह सकते है की वीर दुर्गादास राठौड़ इनका मुख्य अंगरक्षक था।
उत्तर भारत में उस समय औरंगजेब का राज था। अपने राज्य में वृद्धि करने हेतु औरंगजेब की नजर मारवाड़ पर थी। एक षड़यंत्र के तहत औरंगजेब ने महाराजा जसवंत सिंह को मुग़लों की से लड़ने के लिए अफगानिस्तान भेज दिया,क्योंकि ये औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति थे।
जसवंत सिंह के एक पुत्र था जिसका नाम पृथ्वी सिंह था। जब राजा अफगानिस्तान चले गए तब मौका पाकर औरंगजेब ने उनके पुत्र पृथ्वीसिंह को जहरीली पौषक पहनाकर मौत के घाट उतर दिया।
इस दौरान उनकी एक रानी महामाया गर्भवती थी जिन्होंने अजीतसिंह नामक पुत्र को जन्म दिया। औरंगजेब इनको भी मरना चाहता था लेकिन वीर दुर्गादास राठौड़ ने सूझबूझ और वीरता के सहारे इनको बचा लिया था।
उधर औरंगजेब की तरफ से लड़ने गए महाराजा जसवंत सिंह की 1678 में जमरूद में मौत हो गई। फिर औरंगजेब ने एक चाल चली और अजीतसिंह को मारवाड़ का राजा बनाने का लालच देकर दिल्ली आने का न्यौता दिया।
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औरंगजेब का यह इरादा था की या तो अजीतसिंह को मार दिया जाएगा या फिर मुसलमान बना दिया जाएगा।
वीर दुर्गादास राठौड़ को पहले से शक था इसलिए वो भी अजीतसिंह के साथ दिल्ली गए। मौका पाकर मुग़ल सेना ने अजीतसिंह के आवास को घेर लिया।
धाय गोरा टांक ने बड़ा दिल दिखाया, अपने पुत्र को वहीँ छोड़ दिया और अजीतसिंह को लेकर गुप्त रास्ते से बाहर निकल गई।
इसी समय वीर वीर दुर्गादास राठौड़ ने वीरता का परिचय दिया और दुश्मनों को युद्ध में हराकर जोधपुर की और निकल गए।
कुछ समय पश्चात् जब औरंगजेब को यह बात पता लगी तो उन्होंने तुरंत धाय गोरा के पुत्र को मार दिया। जोधपुर जाते समय सिरोही के समीप कालिंदी गांव में अजीतसिंह को दुर्गादास ने जयदेव नामक पुरोहित के घर रखा और साथ ही मुकुंददास खींची को उनकी रक्षा हेतु तैनात किया।
मारवाड़ की आजादी और अजित सिंह को राजा बनाना –
जोधपुर आने के पश्चात् वीर दुर्गादास राठौड़ ने मारवाड़ को मुग़ल शासन से मुक्ति दिलाने के लिए अपने प्रयास तेज कर दिए।
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साथ ही उन्होंने प्रतिज्ञा कर राखी थी की कैसे भी करके अजीतसिंह को राजगद्दी पर बैठाना हैं। औरंगजेब ने घोषणा की कि जो भी अजीतसिंह और दुर्गादास को ज़िंदा या मुर्दा पकड़ लेगा उसको इनाम के रूप में बड़ी रकम और पद दिया जाएगा।
मुग़ल सेना पुरे दमखम के साथ उनको ढूंढने लगी और मारवाड़ राज्य के हर क्षेत्र को छान मारा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
वीर दुर्गादास राठौड़ लगातार राजपूत राजाओं और सामंतो को एक करने के लिए प्रयासरत रहे। मेवाड़ के राजा महाराणा राज सिंह को भी इन्होने मनाने की कोशिस की लेकिन सफलता नहीं मिली।
वीर दुर्गादास राठौड़ ने भी मुग़लो के साथ एक चाल चली की कैसे भी करके इनको कमजोर किया जाए। इस रणनीति के तहत इन्होंने मुग़ल सेना के अधीन सामंतो पर आक्रमण करने लगे।
इन्होंने औरंगजेब के छोटे पुत्र अकबर को राजा बनाने का लालच दिया लेकिन किसी कारणवश यह प्लान फ़ैल हो गया।
लगातार 20 सालों तक वीर दुर्गादास राठौड़ यह काम करते रहे। हालाँकि दुर्गादास ना तो राजा थे और ना ही कोई सामंत लेकिन इनका प्रण था की मारवाड़ को आजाद करवाना हैं।
जब औरंगजेब की मृत्यु हो गई तो ज्यादातर सामंत इनकी तरफ मिल गए और मारवाड़ आजाद हो गया।
20 मार्च 1707 का दिन था जब महाराजा अजीतसिंह मारवाड़ के राजा बने। खुश होकर अजीतसिंह ने दुर्गादास को प्रधान का पद देना चाहा लेकिन दुर्गादास ने इंकार कर दिया क्योंकि इस समय तक उनकी आयु ज्यादा हो चुकी थी।
दुर्गादास राठौड़ की छतरी (Durgadas ki chhatri ujjain)-
वीर दुर्गादास की छतरी उज्जैन में बानी हुई हैं। इसका निर्माण मारवाड़ के शासकों ने दुर्गादास की स्मृति में किया था। यह छतरी चमकीली हैं। साथ ही इसके आस पास भरपूर प्राकृतिक सौंदर्य हैं।
दुर्गादास को मारवाड़ से निकाले जाने का सच -durgadas ka sach
अजीतसिंह को राजा बने कुछ ही समय हुआ था की सामंतों की बातों में आकर वीर दुर्गादास राठौड़ को राज्य से बाहर कर दिया, ऐसा जैन यति जयचंद की रचना कहती हैं।
मगर यह बात सत्य नहीं हैं। क्योंकि अजीतसिंह को बचाने और राजा बनाने में इन्होंने अपना जीवन लगा दिया था।
साथ ही राजा अजीतसिंह इतने सामर्थ्यवान भी नहीं थे की वीर दुर्गादास राठौड़ जैसे पुरुष को राज्य से बाहर निकल दे क्योंकि राजपूतों में इनकी बहुत अच्छी पकड़ होने के साथ साथ भारत के भिन्न- भिन्न राज्यों के राजाओ के साथ दिल्ली के राजा भी इनका बहुत सम्मान करते थे।
और ये बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। साथ इस समय इनकी आयु 78 वर्ष के करीब थी तो सभी लोग इनका बहुत सम्मान और आदर करते थे।
वीर दुर्गादास राठौड़ के सबसे नजदीकी और मारवाड़ के महामंत्री मुकुंददास चम्पावत और उनके भाई रघुनाथ सिंह चम्पावत की की हत्या कर दी गई। इस घटना से वीर दुर्गादास राठौड़ टूट गए। साथ ही जोधपुर राज महल में उनका सम्मान कम होने लगा तो वो खुद ही मारवाड़ से दूर हो गए।
वीर दुर्गादास राठौड़ उज्जैन चले गए। 80 वर्ष 3 माह और 28 दिन की उम्र में 22 नवंबर 1718 को इनकी मृत्यु हो गई। इनकी अंतिम इच्छानुसार शिप्रा नदी के तट पर ही इनका अंतिम संस्कार किया गया।
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