हिन्दू नववर्ष 2023 (Hindu New Year)
प्रस्तावना:-
हिन्दू धर्म में नए साल की शुरुआत चैत्र महीने से होती हैं. विक्रम संवत के अनुसार हिंदू नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है। यह हिन्दू नववर्ष का पहला दिन होने के साथ-साथ, हिंदू धर्म के अनुयायी इसे अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं।
यह पर्व भारत के अलग-अलग हिस्सों या राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। उत्तर भारत में इसे ‘वैशाखी‘ के नाम से जाना जाता है जबकि दक्षिण भारत में इसे ‘उगादी‘ के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, पश्चिम बंगाल में इसे ‘पोहेला बोईशाख‘ और महाराष्ट्र में इसे ‘गुढी पाडवा‘ के नाम से जाना जाता है.
हिंदू नववर्ष (Hindu New Year) के दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं और घर को सजाते हैं। उत्सव की शुरुआत पूजा विधि से होती है, जिसमें लोग अपने घरों में देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा करते हैं और एक दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं।
हिन्दू नववर्ष को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाएँ जाने के वैसे तो कई कारण हैं लेकिन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान ब्रह्माजी द्वारा इस दिन सृष्टि की रचना की वजह से यह दिन हिन्दू धर्मावली त्योंहार के रूप में मानते हैं.
नववर्ष से आशय नए साल से हैं. उदाहरण के लिए पश्चिमी सभ्यता के लोग 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत मानते हैं और करीब-करीब पुरे विश्व में इस दिन को नववर्ष के रूप में मनाया जाता हैं. वहीं भारत में नववर्ष की शुरुआत चैत्र माह से मानी जाती हैं. विक्रम संवत के अनुसार प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन से हिन्दू नववर्ष प्रारम्भ होता हैं.
1 जनवरी को सिर्फ तारीख के अलावा कुछ भी परिवर्तन नहीं होता हैं जबकि हिन्दू नववर्ष के समय पेड़ों पर नए पत्ते आ जाते हैं, किसानों की फसल कट जाती हैं और नया धन घर में आता हैं और साथ शीतऋतु समाप्त हो जाती हैं और ग्रीष्मऋतु का आगमन होता हैं.
अतः यह कहा जा सकता हैं कि वास्तविक रूप से नववर्ष की शुरुआत हिन्दू नववर्ष से ही होती हैं. हिन्दू नववर्ष (Hindu New Year) को भारतीय नववर्ष के नाम से भी जाना जाता हैं.
क्या आप जानते हैं हिन्दू नववर्ष क्यों मनाया जाता हैं? यह जानने के लिए आपको हिन्दू नववर्ष का इतिहास पढ़ना होगा.
हिन्दू नववर्ष का इतिहास सृष्टि की रचना के साथ प्रारम्भ होता हैं, जब भगवान् ब्रह्मा जी ने इस दुनियाँ की रचना की थी या फिर यह कहें कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही भगवान ब्रह्माजी ने सृष्टि रचना प्रारम्भ की थी, इसलिए इस दिन को हिन्दू धर्म में नववर्ष के रूप में मनाया जाता हैं.
दूसरी और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह भी कहा जाता हैं कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही देवी- देवताओं के कार्यों का विभाजन किया गया था. कार्य विभाजन के पश्चात् सभी देवी-देवताओं ने शक्ति (महामाया जगदम्बा) से सृष्टि को चलाने के लिए आशीर्वाद माँगा था. यहीं वजह हैं कि हिन्दू धर्म में इस दिन का बड़ा महत्त्व हैं.
हिन्दू नववर्ष के इतिहास की बात की जाए तो उज्जैन के राजा विक्रमादित्य से इसकी शुरुआत होती हैं. 57 ईसा पूर्व में राजा विक्रमादित्य जी ने सभी भारतीय राज्यों को एकता के सूत्र में बांधकर अरबी आक्रांताओं शकों को पराजित किया। विक्रमादित्य ने इस ऐतिहासिक जीत की ख़ुशी में “विक्रम संवत” प्रारम्भ किया।
इतिहास उठाकर देखा जाए तो विक्रम संवत सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल तक चलता रहा लेकिन बाद में मुग़लों और अंग्रेजों के समय में इसको दरकिनार कर दिया गया. हालाँकि वर्तमान समय में धीरे-धीरे इसकी महत्ता बढ़ रही हैं.
जब भारत आजाद हुआ तब तत्कालीन सरकार ने भी विक्रम संवत की अवहेलना की और शक संवत को भारत का राष्ट्रिय संवत घोषित कर दिया। लेकिन कहते हैं कि इतिहास को बदलने से बदला नहीं जा सकता हैं आज भी विक्रम संवत के जैसा सटीक और वैज्ञानिक संवत और कोई नहीं हैं. हमारा इतिहास, भारतीय जन-मानस और परम्परा विक्रम संवत के साथ जुड़ी हैं, यह था हिन्दू नववर्ष का इतिहास.
हिन्दू नववर्ष के महत्त्व अर्थात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के महत्त्व को हम तीन भागों में बाँटकर अध्ययन करेंगे ताकि आसानी के साथ समझा जा सकें कि वास्तव में हिन्दू नववर्ष का क्या महत्त्व हैं. साथ ही इस प्रश्न का जवाब भी मिल जाएगा कि हिन्दू नववर्ष क्यों मनाया जाता हैं?
हिन्दू नववर्ष (Hindu New Year) ऐतिहासिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं. इसके लिए आपको निन्मलिखित पॉइंट्स पढ़ने होंगे-
(1). चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही सृष्टि के रचियता भगवान् ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया था.
(2). उज्जैन के राजा विक्रमादित्य जी ने इस दिन राज्य की स्थापना की थी, जिसके चलते उनके द्वारा जारी किए गए संवत को विक्रम संवत के नाम से जाना जाता हैं और विक्रम संवत के पहले दिन को ही हिन्दू नववर्ष के रूप में मनाया जाता हैं।
(3). चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था, इसलिए भी यह दिन ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व रखता हैं.
(4). इस दिन से ही चैत्र नवरात्री प्रारंभ होती हैं जिसे बड़ी नवरात्री के नाम से भी जाना जाता हैं.
(5). कृण्वन्तो विश्वमार्यम का संदेश देने वाले दयानन्द सरस्वती जी ने इस दिन ही आर्य समाज की स्थापना की थी.
(6). चैत्र शुक्ल प्रतिपदा भगवान झूलेलाल जी का प्रकट दिवस भी हैं.
(7). युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था.
(8). महर्षि गौतम की जयंती भी इस दिन हैं.
भारतीय नववर्ष या हिन्दू नव वर्ष (Hindu New Year)/चैत्र शुक्ल प्रतिपदा प्राकृतिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि-
(1). चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही बसंत ऋतु प्रारंभ होती हैं. पेड़ों पर नए पत्ते और सुगन्धित पुष्प सम्पूर्ण वातावरण को हर्ष और उल्लास से भर देते हैं।
(2). चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के समय तक किसानों की फसलें पककर तैयार हो जाती है. घर में नया अनाज आने से भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन से हिन्दू नववर्ष मनाया जाता हैं.
(3). चैत्र शुक्ल प्रतिपदा बहुत शुभ मुहूर्त माना जाता हैं, अतः प्राकृतिक रूप से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (हिन्दू नववर्ष) बहुत महत्वपूर्ण हैं.
विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति और सभ्यता सनातन हैं. हिन्दू नववर्ष इसका अंग मात्र हैं. यह नववर्ष सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता हैं लेकिन खास तौर पर भारत और हिन्दू बाहुल्य क्षेत्रों में यह विशेष महत्त्व रखता हैं.
आइए जानते हैं हम हिन्दू नववर्ष को कैसे मना सकते हैं-
Hindu New Year पर सभी लोग एकदूसरे को नए साल की बधाई देते हैं और मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं. जगह-जगह पर आतिशबाजी कर नए साल का स्वागत किया जाता हैं. साथ ही शहर के मुख्य मार्गों पर होर्डिंग्स लगाकर सामूहिक रूप से लोगों को बधाई दी जाती हैं.
वाहन रैली निकाली जाती हैं और चारों तरफ़ खुशनुमा माहौल में लोग एक-दूसरे से मिलते हैं. पिछले कुछ वर्षों में हिन्दू नववर्ष का महत्त्व बढ़ा हैं। लोग इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे हैं.
घरों में भी कई तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं, देवी-देवताओं को भोग लगाया जाता हैं. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता हैं कि हिन्दू नववर्ष (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) सम्पूर्ण भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं. हाँ यह बात भी हैं कि भारत एक बहुत विशाल देश हैं इसलिए अलग-अलग क्षेत्रों में इसको अलग-अलग नामों से जाना जाता हैं और मनाने का तरीका भी अलग-अलग हैं.
हिन्दू नववर्ष 2023 अर्थात विक्रम संवत 2080, 22 मार्च 2023 से प्रारंभ हो रहा हैं. हिन्दू नव वर्ष 2023 बुधवार 22 मार्च को है, इसी दिन से प्रारंभ होने वाली चैत्र नवरात्रि 31 मार्च तक हैं, जिसे बड़ी नवरात्री के नाम से भी जाना जाता हैं.
[1] 2023 में हिन्दू नववर्ष कब हैं?
उत्तर- 22 मार्च 2023 को हिन्दू नववर्ष प्रारंभ होगा।
[2] हिन्दू नववर्ष कब शुरू होता हैं?
उत्तर- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष शुरू होता हैं.
[3] हिन्दू नववर्ष कब और क्यों मनाया जाता हैं?
उत्तर- हिन्दू नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाया जाता हैं क्योंकि यह हमारी पौराणिक मान्यताओं और इतिहास पर आधारित हैं.
[4] क्या गुड़ी पड़वा एक हिन्दू नववर्ष हैं?
उत्तर- गुड़ी पड़वा बसंत ऋतु में आने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार हैं जो मराठी और कोंकणी हिन्दुओं के लिए एक पारम्परिक त्यौहार हैं.
[5] गुड़ी पड़वा का दूसरा नाम क्या हैं?
उत्तर- गुड़ी पड़वा को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा या उगादी या युगादी नाम से भी जाना जाता हैं.
[6] गुड़ी पड़वा पर क्या खाते हैं?
उत्तर- नीम का दातुन या नीम की पत्तियाँ।
Hindu New Year भारत में बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार हैं. सभी भारतियों को Hindu New Year को धूमधाम से मानना चाहिए, यह हमारी एकता और अखंडता का प्रतिक हैं. दोस्तों उम्मीद करते हैं यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी, धन्यवाद.
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