आल्हा ऊदल कौन थे? जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर दिया

Last updated on April 19th, 2024 at 09:41 am

आल्हा ऊदल दोनों सगे भाई थे। आल्हा ऊदल का जन्म दस्सराज और देवकी के घर में हुआ था। इनके पिता का नाम दस्सराज तथा माता का नाम देवकी था।

आल्हा एक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने कभी पराजय नहीं झेली साथ ही पृथ्वीराज चौहान जैसे महान और वीर को भी पराजित कर दिया और प्राणदान देकर उनकी जान बख्स दी। आल्हा ऊदल का इतिहास में बहुत बड़ा नाम हैं.

आल्हा ऊदल ने जीवनकाल में कुल 52 लड़ाईया लड़ी थी।

आल्हा और ऊदल कौन थे

आल्हा बुंदेलखंड के राजा परमाल के सेनापति थे। बचपन में इनके माता पिता का देहांत हो गया। परमाल और उनकी पत्नी मलिनहा दोनों को आल्हा बहुत प्रिय थे।

मलिनहा इनको अपने बच्चों के सामान प्रेम करती थी। आल्हा जैसे जैसे बड़े हुए इनकी शिक्षा और दीक्षा भी शुरू हो गई।

इन्होने अश्त्र और शस्त्र की भी शिक्षा प्राप्त की। जब ये वापस महोबा लौटे तो इनको परमाल ने सेनापति बना दिया। इस बात से मलिनहा के भाई को बहुत दुःख हुआ।

आल्हा ने अपना पूरा जीवन राजा परमाल के लिए समर्पित कर दिया था।

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास

आल्हा की शादी (aalha udal ka vivah)

आल्हा के लिए कहा जाता है कि इन्होंने तलवार की नोंक पर शादी की थी।

आल्हा के विवाह की कहानी भी वीरता का बखान करती है। पुराने समय में राजा महाराजाओं की शादियों का ढंग भी अनूठा होता था।

जिन राजाओं के घर में पुत्री होती थी वह आसपास के राजकुमारों को युद्ध के लिए ललकारता था। जो युद्ध में राजा को पराजित कर देता,उसी के साथ राजकुमारी का विवाह तय कर दिया जाता था।

नैनागढ़ के राजा के एक पुत्री थी उसका नाम था सुमना। सुमना बहुत सुन्दर थी साथ ही वह आल्हा की वीरता से परिचित थी और आल्हा भी उसी से विवाह करना चाहते थे लेकिन नैनागढ़ के राजा यह नहीं चाहते थे।

जब आल्हा को इस बात का पता चला तो उन्होंने नैनागढ़ पर आक्रमण कर दिया।

जब सुमना के पिता को यह बात पता चली की उनकी पुत्री भी आल्हा से शादी करना चाहती है तो उन्होंने युद्ध को विराम दिया और संधि कर ली साथ ही सुमना का विवाह भी आल्हा के साथ कर दिया।

महोबा से निकल दिए गए आल्हा

जैसा की आपको ऊपर बताया की राजा परमाल की पत्नी का भाई माहिल आल्हा से जलता था। साथ ही वह चाहता था की राजा इनको सेनापति के पद से हटा दे लेकिन यह असंभव था।

इसकी मुख्य वजह परमाल का आल्हा से प्रेम के साथ साथ इनकी वफ़ादारी और वीरता भी थी।

माहिल ने एक चाल चली ,माहिल जानता था की आल्हा को उसके घोड़े से बहुत प्रेम हैं। उसने राजा परमाल को बताया की आल्हा वफादार नहीं हैं वह राज्य आपसे हड़पना चाहता हैं।

अगर आपको यकीं न हो तो उसका घोड़ा मांगकर देखो। पहले तो राजा परमाल को विश्वास नहीं हुआ लेकिन उन्होंने आल्हा को बुलाया और कहा कि उसका प्रिय घोड़ा उनको सुपुर्द कर दे।

आल्हा ने कहा कि घोड़ा और शस्त्र किसी को नहीं देने चाहिए।

इतना सुनकर राजा को विस्वास हो गया की यह वास्तव में सही आदमी नहीं हैं।

उन्होंने आल्हा को राज्य छोड़ने का आदेश दिया जिसे आल्हा ने बड़ी ही विनम्रता के साथ मान लियाऔर महोबा छोड़कर कन्नौज चले गए।

आल्हा ऊदल पृथ्वीराज चौहान की लड़ाई  महोबा की (aalha udal ladai)

आल्हा के कन्नौज जाते ही पृथ्वीराज ने महोबा पर आक्रमण कर दिया। इस संकट की घड़ी में राजा परमाल ने उनको वापस बुलाया।

आल्हा वापस महोबा आ गए उनके साथ उनके भाई उदल भी था जो की बहुत वीर था। उदल की वीरता से पृथ्वीराज भलीभांति परिचित थे।

लड़ाई में युद्ध करता हुआ उदल पृथ्वीराज के पास जा पहुंचा। लेकिन पीछे से पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चामुंडा राय ने पीछे से वार कर दिया और उदल वीरगति को प्राप्त हुए।

यह सुनकर उनका भाई आल्हा क्रोध से भर गया और बिजली की तरह पृथ्वीराज की सेना पर टूट पड़ा। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई। इन्होने पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दे दिया। इतिहास में जब-जब पृथ्वीराज चौहान को याद किया जाएगा, तब-तब आल्हा ऊदल को भी याद किया जाएगा।

आल्हा ऊदल के इतिहास को हमेशा याद रखा जाएगा।

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