वीर कल्लाजी राठौड़ का इतिहास और कथा Hindi में।

कल्लाजी राठौड़ को लोकदेवता के रूप में पूजा जाता हैं। ये महाराणा उदय सिंह की सेना में शामिल होकर लड़े थे। अकबर की सेना का सामना करते हुए इनका सर धड़ से अलग हो गया लेकिन बिना सर के लड़ते रहे और वीरगति को प्राप्त हुए।

आइए जानते हैं इनका जन्म कहां हुआ, इनके माता पिता कौन थे और इनका इतिहास क्या रहा।

कल्लाजी राठौड़ (Kallaji Rathor History in hindi)

पूरा नाम-कल्लाजी राठौड़.
जन्म-शुक्ल 8, विक्रम संवत् 1601.
जन्म स्थान-मेड़ता (नागौर) के समीप सामियाना गांव में.
मृत्यु-24 फरवरी 1568.
पिता का नाम-अचल सिंह जी.
माता का नाम-श्वेत कुंवर.
भुआ का नाम-मीराबाई.
Kallaji Rathor History In Hindi

कल्लाजी राठौड़ का जन्म राजस्थान के मेड़ता (नागौर) के समीप सामियाना गांव में शुक्ल 8, विक्रम संवत् 1601 को दुर्गा अष्टमी के दिन हुआ था। ये राजपरिवार से ताल्लुक़ रखते हैं। इनके पिता का नाम अचल सिंह जो कि मेड़ता के राजा जयमल के छोटे भाई थे। माता का नाम श्वेत कुंवर था।

साथ ही विख्यात कृष्ण भक्त मीरा बाई भी इनके परिवार से ही थी। अचलसिंह और मीरा बाई सगे भाई बहिन थे। इनकी शिक्षा और दीक्षा गुरु भैरवनाथ के सानिध्य में हुई थी।

अकबर ने मेड़ता राज्य पर आक्रमण कर दिया। राव रायमल की सेना बहुत कम थी साथ ही आधुनिक हथियार भी नहीं थे। जब राव रायमल को ऐसा प्रतीत होने लगा कि अब युद्ध में जीत हासिल करना मुश्किल है तो अपने परिवार को साथ लेकर चित्तौड़ आ गए।

चित्तौड़ के महाराजा उदय सिंह ने इनको आश्रय दिया।गुजरात की सीमा पर स्थित रणढालपुर  नामक रियासत कल्लाजी राठौड़ को प्रदान की और यहां का शासक नियुक्त किया गया।

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 kallaji Rathore की कथा

कल्लाजी राठौड़ की कथा की शुरुआत उनके विवाह से शुरू होती हैं. कल्लाजी राठौड़ का विवाह शिवगढ़ के कृष्णदास की बेटी के साथ हुआ था। इनकी पत्नी का नाम राजकुमारी कृष्णा कंवर था।

शादी के दिन चित्तौड़गढ़ के महाराजा उदय सिंह ने संदेश भेजा कि अकबर ने धावा बोल दिया है और आपको सेना सहित मेवाड़ की रक्षा के लिए आगे आना पड़ेगा। यह समाचार सुनकर कल्लाजी राठौड़ ने विवाह की रस्म अदायगी जल्दबाजी में की और साथ ही पत्नी को वचन दिया कि वह लौटकर जरूर आएंगे।

कल्लाजी राठौड़ अपनी सेना समेत चित्तौड़ के लिए निकल पड़े। महाराणा उदयसिंह ने मेड़ता के राजा राव जयमल को सेनापति बनाया।

अकबर की विशाल सेना ने चित्तौड़गढ़ के किले को चारों तरफ से घेर लिया था। सेनापति राव जयमल के नेतृत्व में सेना की कुछ टुकड़िया किले से निकल कर जाती और अकबर की सेना पर धावा बोल देती और कई दुश्मनों को खत्म करके पुनः किल्ले में लौट आते थे।

मगर धीरे-धीरे उदयसिंह की सेना खत्म हो रही थी।

इस युद्ध में राव रायमल घायल हो गए और अपने पैरों पर खड़े होने के लायक नहीं थे। इस स्थिति में कल्लाजी राठौड़ ने उन्हें अपने कंधों पर बिठाया और अकबर सेना का सामना किया। ऐसा कहा जाता है कि जब कल्लाजी राठौड़ लड़ाई लड़ रहे थे तो उनके दो की जगह चार हाथ थे।

दो उनके और दो राव रायमल के। इन्होंने अकबर सेना में तबाही मचा दी, कई सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया मगर इस भीषण युद्ध में कल्ला जी राठौड़ का सर धड़ से अलग हो गया।

फिर भी यह लड़ते रहे और बिजली की तरह दुश्मनों की सेना पर टूट पड़े, साथ ही इन्होंने अपनी पत्नी से किया हुआ वादा भी निभाया और बिना सर के 180 मील दूर अपनी पत्नी के पास जा पहुंचे और जैसे ही वहां पहुंचे उन्होंने अपनी पत्नी के समक्ष प्राण त्याग दिए और वीरगति को प्राप्त हुए।

24 फरवरी 1568 को वीर लोक देवता कल्लाजी राठौड़ को वीरगति प्राप्त हुई। 24 फरवरी कल्ला जी राठौड़ के बलिदान दिवस के रूप में मनाई जाती है।

कल्लाजी का मंदिर ( kallaji rathore temple)

चित्तौड़गढ़ के किले पर भैरोंपोल के समीप कल्लाजी राठौड़ का मंदिर बना हुआ है। यहां पर रात्रि के समय काफी लोग और भक्त आते हैं। भैरव पोल के ऊपर कल्लाजी राठौड़ की छतरी भी बनी हुई हैं।

कल्लाजी राठौड़ का मेला कब लगता हैं

आश्विन शुक्ल नवमी के दिन कल्लाजी राठौड़ का मेला लगता हैं।

कल्लाजी राठौड़ से संबंधित रोचक बाते

कल्लाजी राठौड़ लोकदेवता के रूप में प्रसिद्ध है,इनको शेषनाग का अवतार माना जाता हैं।

2 कल्लाजी राठौड़ की कूलदेवी नागणेची माता हैं।

3 कल्लाजी राठौड़ औषधि विज्ञान और योगा में विशेष ज्ञान प्राप्त था।

4 कल्लाजी राठौड़ की चितौड़गढ़ में रनेला में सिद्ध पीठ हैं।

5 भूत- प्रेत और विषेले जंतुओं से दंशित व्यक्ति को संताप से कल्लाजी राठौड़ छुटकारा दिलाते हैं।

गमेेती पेमला दस्यु और कल्लाजी राठौड़ का युद्ध

एक समय की बात है गमेती पेमला डाकू के साथ रनिला क्षेत्र में आता है और वहां से लोगों की गाय और भैंस चुराकर ले जाता है। जब दुखी जनता कल्ला जी राठौड़ के पास पहुंचती है तो कल्लाजी राठौड़ बहुत दुखी होते हैं और दूत के जरिए गमेती को संदेश देते हैं कि वह गाय और भैंस को वापस मुक्त कर दे।

लेकिन वह नहीं करता है, इस बात पर गुस्सा होकर कल्ला जी राठौड़ स्वयं गमेती से युद्ध करने के लिए जाते हैं और उसका सिर धड़ से अलग कर देते हैं।

FAQ-

[1] कल्लाजी राठौड़ की कुलदेवी का नाम क्या हैं?

उत्तर- कल्लाजी राठौड़ की कुलदेवी का नाम माँ नागणेश्वरी गातरोड़जी (नागणेची माता) हैं.

[2] कल्लाजी राठौड़ के समकालीन मेवाड़ का शासक कौन था?

उत्तर- कल्लाजी राठौड़ के समकालीन मेवाड़ का शासक राणा उदयसिंह जी था.

[3] कल्लाजी राठौड़ का मंदिर कहाँ हैं?

उत्तर- कल्लाजी राठौड़ का मंदिर भैरों पोल (चित्तौडग़ढ़) के पास हैं.

[4] कल्लाजी राठौड़ का जन्म कहाँ हुआ?

उत्तर- कल्लाजी राठौड़ का जन्म मेड़ता (नागौर) के समीप सामियाना गांव में शुक्ल 8, विक्रम संवत् 1601 को दुर्गा अष्टमी के दिन हुआ था.

[5] कल्लाजी राठौड़ का गुरु कौन थे?

उत्तर- कल्लाजी राठौड़ के गुरु का नाम भैरवनाथ था.

[6] कल्लाजी राठौड़ के घोड़े का नाम क्या था?

उत्तर- कल्लाजी राठौड़ के घोडा नीले रंग का था, नाम अज्ञात हैं.

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5 thoughts on “वीर कल्लाजी राठौड़ का इतिहास और कथा Hindi में।”

  1. Kalla ji Ki histri Ki book kha milegi sir
    Kalla Ji Ka pura इतिहास ङुंडो चितौड़गढ़ मेे ही है sir

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