तानाजी मालुसरे का इतिहास जीवन परिचय और निबंध

तानाजी मालुसरे का इतिहास (Tanaji Malusare History In Hindi)-

तानाजी मालुसरे का सम्बन्ध मराठा साम्राज्य से हैं. तानाजी मालुसरे छत्रपति शिवाजी महाराज के बचपन से ही घनिष्ठ मित्र थे. तानाजी मालुसरे का इतिहास बताता हैं कि वह मराठा साम्राज्य के लिए बहुत समर्पित वीर योद्धा थे. तानाजी मालुसरे का जीवन परिचय पढ़ने से मालूम होता हैं कि किस तरह उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ अपने पुत्र के विवाह समारोह को छोड़कर युद्ध भूमि में गए और वीरगति को प्राप्त हुए.

तानाजी को छत्रपति शिवाजी महाराज का शेर भी कहा जाता हैं. इन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई के प्रण को पूरा करने के लिए अपने पुत्र के विवाह को छोड़कर युद्ध भूमि में जाना उचित समझा और दुश्मनों को पराजित करते हुए भगवा फहरा दिया।

ऐसे वीर, और देश प्रेमी महान मराठा सूबेदार तानाजी मालुसरे का इतिहास, तानाजी मालुसरे निबंध और तानाजी मालुसरे का जीवन परिचय इस लेख में आप पढ़ेंगे ताकि आपको मराठा साम्राज्य में तानाजी का योगदान मालूम हो सके.

तानाजी मालुसरे का इतिहास जीवन परिचय और निबंध (Tanaji Malusare History & Biography In Hindi)

सबसे पहले हम जानते हैं तानाजी मालुसरे का जीवन परिचय

परिचय बिन्दुपरिचय
पूरा नाम (Full Name Of Tanaji Malusare)तानाजी मालुसरे
अन्य नाम ( Other Name Of Tanaji Malusare)तानाजी और सरदार कलौजी
तानाजी मालुसरे का जन्म (Birth)1600 ईस्वी
जन्म स्थानगोडोली,जवाली तालुका, सातारा जिले (महाराष्ट्र)
तानाजी मालुसरे की मृत्यु4 फ़रवरी 1670
मृत्यू स्थानसिंहगढ़ (कोंढाणा), पुणे
माता का नामपार्वती बाई
पिता का नामसरदार देशमुख साहेब कोलाजी
भाई का नामसरदार सूर्याजी
पेशाछत्रपति शिवाजी के सूबेदार
संतानेंरायबा मालुसरे (पुत्र) और उमाबाई (पुत्री)

तानाजी माळुसरे छत्रपति शिवाजी महाराज के बचपन के दोस्त थे। इन्हें छत्रपति शिवाजी का शेर भी कहा जाता हैं।

छत्रपति शिवाजी की माता जीजाबाई के प्रण को पूरा करने के लिए अपने पुत्र का विवाह छोड़कर रणभूमि में भगवा लहराने के लिए निकल पड़े।

तानाजी मालुसरे का प्रारंभिक जीवन

जब-जब देश और काल में अधर्म बढ़ता हैं तब-तब किसी वीर योद्धा का जन्म होता है. ऐसे ही एक वीर योद्धा का जन्म 1600 ईस्वी में गोडोली,जवाली तालुका, सातारा जिले (महाराष्ट्र) नामक स्थान पर हुआ जो आगे चलकर तानाजी मालुसरे नाम से प्रसिद्ध हुए. जैसा कि अपने ऊपर पढ़ा इनकी माता का नाम पार्वती बाई और पिता का नाम सरदार देशमुख साहेब कोलाजी था जो कि एक कोली परिवार से थे. तानाजी मालुसरे के एक भाई भी था जिसका नाम सूर्याजी था.

बचपन से ही इनमें तलवारबाजी का जूनून था, जहाँ इनकी उम्र के बच्चे खेलने में व्यस्त रहते थे वहीँ तानाजी तलवार चलना सिख रहे थे. जब तानाजी छोटे थे तभी इनकी मित्रता जीजाबाई के पुत्र शिवाजी से हो गई. धीरे-धीरे तानाजी की वीरता के किस्से बढ़ने लगे.

बचपन में शिवाजी से हुई मित्रता आजीवन रही. इतिहासकार बताते हैं कि खाना खाने से लेकर युद्ध करने तक का काम शिवाजी और तानाजी साथ में करते थे. इतना ही नहीं चाहे कोई भी काम हो तानाजी और शिवाजी साथ में करते थे. यह इनकी मित्रता की बड़ी मिशाल देखने को मिलती हैं. इनकी वीरता के चलते ही इन्हें मराठा साम्राज्य का सूबेदार नियुक्त किया गया.

तानाजी का परिवार

तानाजी मालुसरे का इतिहास और जीवन परिचय पढ़ने से ज्ञात होता हैं कि इनका विवाह सावित्री बाई के साथ हुआ था. तानाजी के परिवार में इनके पिता सरदार देशमुख साहेब कोलाजी, माता पार्वती बाई और पत्नी सावित्री बाई के अलावा एक पुत्र और पुत्री भी थी. इनके पुत्र का नाम रायबा मालुसरे और पुत्री का नाम उमाबाई मालुसरे था.

तानाजी के एक भाई भी था जिसका नाम सूर्याजी था. इनका छोटा सा परिवार था लेकिन मराठा साम्राज्य के लिए पूर्ण रूप से समर्पित थे. एक छोटे से परिवार में पले बढे तानाजी मालुसरे का इतिहास में नाम हमेशा के लिए अमर हो गया.

मराठा साम्राज्य में तानाजी मालुसरे का योगदान

पूर्ण हिन्दू स्वराज की स्थापना करने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाने और मराठा साम्राज्य के लिए सर्वस्व त्याग देने वाले तानाजी के योगदान को शब्दों में बयां करना मुश्किल हैं. छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ मिलकर स्वराज की स्थापना करने वाले तानाजी का मराठा साम्राज्य में अतुलनीय योगदान रहा.

इनके द्वारा लड़े गए मुख्य युद्ध में सिंहगढ़ (कोंढाणा) की लड़ाई मुख्य हैं, यह वह युद्ध था जिसके जीतने के बाद भी तानाजी मातृभूमि के लिए शहीद हो गए थे. इतना नहीं जब दुश्मनों से धावा बोला तब इनके पुत्र रायबा मालुसरे का विवाह था फिर भी ये युद्ध भूमि में गए और सिंहगढ़ (कोंढाणा) पर भगवा फहरा कर अपने प्राण न्योछावर कर दिए. तानाजी मालुसरे का इतिहास हमारे लिए गर्व का विषय हैं.

यही वजह हैं थी कि हमनें ऊपर लिखा तानाजी मालुसरे के मराठा साम्राज्य में योगदान को शब्दों में बताना आसान नहीं हैं.

कोंढाणा पर औरंगजेब की जीत

26 अप्रैल 1645 के दिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदू स्वराज की स्थापना का प्रण किया था. इसी दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए उन्होंने अपने आसपास के वीर योद्धाओं को एकत्रित करना शुरू किया. उनकी इस लिस्ट में Tanaji Malusare का नाम सबसे ऊपर था.

छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्य और शक्ति निरंतर बढ़ती जा रही थी. इससे चिंतित होकर मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने सूबेदार को आदेश दिया कि कैसे भी करके छत्रपति शिवाजी को रोका जाए. जैसे-जैसे समय बीतता गया छत्रपति शिवाजी के अधीनस्थ से 23 किले अपने राज्य में मिला लिया.

इससे चिंतित होकर छत्रपति शिवाजी महाराज ने 22 जून 1965 ईस्वी में महाराजा जयसिंह से पुरंदर की संधि की. इस संधि के तहत शिवाजी महाराज को कोंढाणा नामक किला मुगलों के अधिनस्थ करना पड़ा.

इस संधि के बाद यह किला मुगलों के राजपूत शासक जय सिंह के हाथ में आ गया. छत्रपति  शिवाजी महाराज इस किले को पुनः प्राप्त करना चाहते थे.

जीजाबाई की प्रतिज्ञा और रायबा का विवाह

छत्रपति शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई ने प्रण किया था कि “चाहे कुछ भी हो जाए जब तक कोंढाणा किला जीतकर मराठा साम्राज्य में नहीं मिला लिया जाता तब तक मैं अन्न और जल ग्रहण नहीं करुँगी”. यह बात जब तानाजी मालुसरे को पता चली तो उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि चाहे प्राणों की बाजी लगानी पड़े लेकिन माता जीजाबाई के प्रण को साकार करना ही होगा.

सन 1670 ईसवी की बात है, तानाजी के एकमात्र पुत्र रायबा मालुसरे की शादी की तैयारियां जोरों पर चल रही थी. घर और क्षेत्र के सभी लोग जश्न में डूबे हुए थे. तभी तानाजी को शिवाजी महाराज का संदेश मिलता है कि किसी भी हालत में कोंढाणा का किला जीतना है.

यह माता जीजाबाई का आदेश भी है. माता जीजाबाई ने यह प्रण लिया है कि जब तक कोंढाणा के किले से हरे रंग का झंडा उतार कर भगवा रंग का झंडा नहीं फहरा दिया जाता तब तक वह अन्न और जल ग्रहण नहीं करेगी. यह बात सुनते ही तानाजी जी ने प्रण किया की युद्ध भूमि में जाएंगे और कोंढाणा किले को जीत कर ही वापस लौटेंगे.

अगर वापस नहीं लौटे तो छत्रपति शिवाजी महाराज मेरे पुत्र का विवाह करवाएंगे. यह प्रण लेकर तानाजी अपने मामा शेलार के साथ कोंढाणा दुर्ग की ओर निकल पड़े. इस युद्ध ने तानाजी मालुसरे का इतिहास में नाम अमर कर दिया।

कोंढाणा का युद्ध और तानाजी मालुसरे

तानाजी माता जीजाबाई के प्रण को पूरा करने के लिए 342 सैनिकों के साथ निकल पड़े. जबकि कोंढाणा दुर्ग पर मुगल सेना के 5000 सैनिक दुर्ग की रक्षा में तैनात थे, राह आसान नहीं थी लेकिन हौंसले बुलंद थे.

उस समय मुगल सेना का सेनापति जय सिंह था. जय सिंह के आदेशानुसार इस किले का दुर्गपाल उदय भान सिंह राठौड़ को बनाया गया. उदय भान अपनी सेना के साथ पूरी तरह मुस्तैद इस किले की रक्षा के लिए खड़ा था. लेकिन उदय भान सिंह को यह अंदेशा नहीं था कि काल बनकर तानाजी मालुसरे किले की तरफ बढ़ रहे हैं.

अगर कोंढाणा किले की बात की जाए तो यह 4304 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. Tanaji Malusare के साथ उनके भाई सूर्याजी भी 500 सैनिकों के साथ इस किले पर लगभग 2300 फीट की ऊंचाई पर तानाजी का इंतजार कर रहे थे. इस किले की निगरानी बड़ी मुस्तैदी के साथ की जा रही की थी. दिन के उजाले में इसके ऊपर चढ़ाई करना बहुत ही मुश्किल था, ऐसे में तानाजी और उनके सैनिकों ने रात के समय इस किले पर चढ़ाई करने का प्लान बनाया.

जैसे ही तानाजी मालुसरे इस किले के ऊपर पहुंचे मुगल सैनिकों और मराठा सैनिकों के बीच में युद्ध शुरू हो गया.  युद्ध के प्रारंभ में मुगल सैनिक भारी पड़ रहे थे. ऐसे में अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाने के लिए तानाजी जोर-जोर से वीरता के गाने गाने लगे, इस वजह से सभी मराठा सैनिकों में जोश और उत्साह की लहर दौड़ गई और उन्होंने 5000 मुगल सैनिकों को मार गिराया.

इतना ही नहीं युद्ध के दौरान तानाजी की ढाल टूट गई ऐसे समय में उन्होंने अपने सिर पर रखी पगड़ी को हाथ पर बांधा और इसे ही ढाल बना लिया. इस भीषण युद्ध में किलेदार उदयभान सिंह राठौड़ भी मारा गया.

तानाजी मालुसरे मृत्यू

अंततः तानाजी मालुसरे ने यह युद्ध जीत लिया और कोंढाणा के किले पर भगवा फहरा दिया. लेकिन इस युद्ध में तानाजी महाराज वीरगति को प्राप्त हुए. यह 4 फ़रवरी 1670 को तानाजी मालुसरे की मृत्यू हो गई. यह मराठा साम्राज्य के लिए बहुत बड़ी क्षति थी. जहाँ छत्रपति शिवाजी ने एक शेर को खो दिया वही मराठा साम्राज्य ने एक जांबाज को.

जब यह समाचार छत्रपति शिवाजी महाराज को मिला तो छत्रपति शिवाजी महाराज उनकी बहादुरी पर बहुत ही प्रसन्न हुए और दुखी भी हुए क्योंकि तानाजी अपने प्राण नहीं बचा सके. तानाजी मालुसरे की मृत्यू के बाद शिवाजी ने उनके परिवार को सहारा दिया.

कोंढाणा किले का नाम सिंहगढ़ हो गया

तानाजी की मृत्यु का समाचार सुनकर छत्रपति शिवाजी महाराज के मुख से निकला “गढ़ आला पण सिंह गेला” इसका अर्थ था कि किला तो हमने जीत लिया लेकिन एक शेर को खो दिया. कोंढाणा किले का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी महाराज ने सिंहगढ़ रख लिया. यह नाम तानाजी मालुसरे महाराज को दिए गए उपनाम “सिंह” के आधार पर रखा गया.

 छत्रपति शिवाजी महाराज को और अधिक दुख तब हुआ जब उनको यह जानकारी प्राप्त हुई कि जब तानाजी युद्ध करने गए उस समय उनके पुत्र का विवाह चल रहा था. तानाजी की इच्छा अनुसार छत्रपति शिवाजी महाराज ने उनके पुत्र रायबा का विवाह संपन्न करवाया.

तानाजी मालुसरे रियल फोटो

tanaji malusare photo

तानाजी पर फिल्म (Film Tanhaji The Unsung Worrior)

तानाजी मालुसरे का इतिहास और वीरता से प्रभावित होकर हाल ही में अजय देवगन ने इनके ऊपर एक फ़िल्म का निर्माण किया था। इस फिल्म का नाम “तन्हाजी: द अनसंग वॉरियर” था.

FAQ (तानाजी मालुसरे से सम्बंधित बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्न-उत्तर)

[1] तानाजी मालुसरे की मृत्यू कैसे हुई?

उत्तर- कोंढाणा किले को पुनः प्राप्त करने के लिए तानाजी मालुसरे और औरंगजेब के किलेदार उदय भान सिंह के बिच युद्ध हुआ, इस युद्ध में मराठा सैनिकों की जीत हुई लेकिन उदय भान सिंह के साथ-साथ 4 फ़रवरी 1670 के दिन तानाजी मालुसरे भी वीरगति को प्राप्त हुए.

[2] शिवाजी के तानाजी कौन थे?

उत्तर- शिवाजी के तानाजी बचपन के मित्र थे साथ ही मराठा साम्राज्य के सूबेदार भी थे.

[3] तानाजी कौन सी समाज के थे?

उत्तर- तानाजी मालुसरे हिन्दू कोली समाज से थे.

[4] तानाजी कौन सा किला जीता?

उत्तर- तानाजी ने कोंढाणा का किला जीता

[5] तानाजी मालुसरे गांव का क्या नाम है?

उत्तर- तानाजी मालुसरे के गांव का नाम गोडोली था.

[6] तानाजी का जन्म कब हुआ था?

उत्तर- तानाजी का जन्म 1600 ईस्वी को हुआ था.

[7] तानाजी की लड़ाई कब हुई थी?

उत्तर- 4 फ़रवरी 1670 के दिन तानाजी और उदय भान सिंह के बिच लड़ाई हुई थी.

[8] कोंडाना किले का सूबेदार कौन था?

उत्तर- कोंढाणा किले का सूबेदार उदय भान सिंह था जिसको औरंगजेब ने नियुक्त किया था.

[9] तानाजी कौन थे उन्होंने अपनी पत्नी से अपने बेटे की शादी स्थगित करने के लिए क्यों कहा?

उत्तर- तानाजी मराठा साम्राज्य के सूबेदार और शिवाजी के परम मित्र थे. छत्रपति शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई ने प्रण लिया कि जब तक कोंढाणा किला पुनः प्राप्त नहीं कर लेती मैं अन्न और जल ग्रहण नहीं करुँगी। इसी प्रण को पूरा करने के लिए तानाजी ने अपने बेटे की शादी स्थगित करने के लिए कहा.

[10] पुरंदर की लड़ाई के बाद क्या हुआ?

उत्तर- पुरंदर के युद्ध के बाद औरंगजेब ने कई किले जीत लिए जिसके बाद शिवाजी को पुरंदर की संधि करनी पड़ी.

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दोस्तों उम्मीद करते हैं तानाजी मालुसरे का इतिहास जीवन परिचय और निबंध पर आधारित यह लेख आपको अच्छा लगा होगा,धन्यवाद।