बप्पा रावल का इतिहास और जीवन परिचय |History Of Bappa Rawal

Last updated on April 19th, 2024 at 09:41 am

बप्पा रावल (Bappa Rawal) का मुस्लिम शासकों में और अरबी आक्रमणकारियों में इतना खौफ था कि वह लगभग 400 वर्षों तक भारत की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देख सके।

इतना ही नहीं इन्होंने रावलपिंडी नामक शहर को भी बसाया और संपूर्ण भारत में हिंदुत्व का परचम लहराया था। केसरिया झंडा फहराने वाले यह प्रथम राजा थे।

महाराणा सांगा, महाराणा कुंभा और महाराणा प्रताप जैसे प्रतापी राजा उनके ही वंशज थे।

बप्पा रावल परिचय और इतिहास (Bappa Rawal History In Hindi)

बप्पा रावल का जन्म कब हुआ था- बप्पा रावल का जन्म 713 ईस्वी में एकलिंग नाथ (ईडर, उदयपुर) में हुआ था। इनका बचपन का नाम “कालभोज”(कालभोजादित्य) था।

बप्पा रावल की मृत्यु कब हुई-  बप्पा रावल की मृत्यु 810 ईस्वी में हुई थी इस समय इनकी आयु लगभग 97 वर्ष थी। साथ ही इनकी मृत्यु नागदा नामक स्थान पर हुई जहां पर इनकी समाधि बनी हुई हैं।

बप्पा रावल की जाति- बप्पा रावल ने गुहिल वंश की स्थापना की थी और ये राजपूत थे।

बप्पा रावल के पिता का नाम- इनके पिता का नाम महेंद्र सिंह (द्वितीय)।

बप्पा रावल की माता का नाम- इनकी माता का पुष्पवती था।

बप्पा की उपाधि

बप्पा या बापा वास्तव में व्यक्ति सूचक शब्द नहीं होते हुए यह सम्मान सूचक शब्द है। प्रजा की रक्षा करने, अपने देश की रक्षा करने और हिंदू साम्राज्य का विस्तार करने की वजह से इनको वहां की जनता द्वारा बप्पा की उपाधि दी गई थी।

सन 711- 712 के लगभग अरबी मुस्लिम आक्रमणों को गुरु गोरखनाथ जी और हरित ऋषि ने अपनी आंखों से देखा था। तभी गुरु गोरखनाथ ने हरित ऋषि से कहा था कि एक ऐसा योद्धा आएगा जो इन अरबी मुस्लिम आक्रमणकारियों को खदेड़ देगा।

नागदा में ही हरित ऋषि की मुलाकात बप्पा रावल से हुई थी और इन्हीं की देखरेख में Bappa Rawal ने शिक्षा दीक्षा प्राप्त की और महर्षि हरित ऋषि ने इनको युद्ध ,अस्त्र और शस्त्र की शिक्षा प्रदान की थी।

बप्पा रावल से पहले चित्तौड़ पर मौर्य वंश के मान मोरी नामक राजा का शासन था।

जन्म के 20 वर्ष पश्चात 733-734 ईस्वी में इन्होंने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया और मात्र 20 वर्ष की आयु में मौर्य वंश के शासक मान मोरी को पराजित कर चित्तौड़ के राजा बने।

बप्पा रावल की हाइट लगभग 9 फीट थी। इन्होंने पहली बार मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ को बनाया। यह विजय प्राप्त करने में हरित ऋषि ने Bappa Rawal का साथ दिया था और उन्हीं के सहयोग से बप्पा रावल ने मान मोरी जैसे शक्तिशाली राजा को पराजित किया।

Bappa Rawal ने मेवाड़ में गुहिल राजपूत राजवंश की स्थापना की थी। हालांकि इस राजवंश की स्थापना का श्रेय गोहिलादित्य को भी जाता है लेकिन वास्तविक स्थापना का श्रेय बप्पा रावल को जाता है।

Bappa Rawal जब मात्र 3 वर्ष के थे तब वह और उनकी माता कुछ असहाय महसूस कर रहे थे जिसकी वजह से उन्होंने भील समुदाय के बीच में रहना स्वीकार किया। हालांकि भील समुदाय शुरू से ही राजाओं की सेना में शामिल रहता था।

ऐसे में भील समुदाय ने इनकी माता और इनका पालन पोषण किया। साथ ही भील समुदाय ने अरबी मुसलमानों से लड़ाई में Bappa Rawal का भरपूर साथ भी दिया था।

 यह वह समय था जब भारतवर्ष में अरब आक्रमणकारियों ने सभी को परेशान कर रखा था।अरबी आक्रमणकारी न सिर्फ धन, दौलत लूट के ले जाते बल्कि नरसंहार भी करते थे।

लगातार हिंदुत्व को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा था ऐसे समय में कालभोज अर्थात Bappa Rawal ने जिम्मा संभाला।

इन्होंने सबसे पहले हिंदू राजाओं और सैनिकों को मिलाकर एक संघ बनाया ताकि अरबी आक्रमणकारियों से निपटा जा सके और उनका सामना किया जा सके। जब इन का संगठन मजबूत हो गया तो उन्होंने ना सिर्फ बाहरी आक्रमणकारियों को खदेड़ा बल्कि उनके घर में घुसकर भी उन को पराजित कर दिया।

इस समय अरब इस्लामिक खलीफा का साम्राज्य बहुत बड़ा था और चारों दिशाओं में फैला हुआ था। Bappa Rawal ने इस अरब इस्लामिक खलीफा को कई खंडों में विभाजित कर दिया और इतना ही नहीं सभी खंडों को कमजोर भी कर दिया था। गजनी नामक स्थान जो कि अफगानिस्तान में स्थित है इनकी दूसरी राजधानी बना।

राणा पूंजा भील महाराणा प्रताप के मुंह बोले भाई

मोहम्मद बिन कासिम ( bappa rawal and muhammad bin quasim) को पराजित कर  Bappa Rawal ने सिंधु को जीता था और ऐसा माना जाता है कि अरबी आक्रमणकारियों को पराजित करने के बाद ही इनको प्रसिद्धि मिली थी।

मोहम्मद बिन कासिम की मृत्यु के पश्चात अरबी बोखला गए और बप्पा रावल के राज्य के इर्द-गिर्द चारों तरफ हमला करने लगे। अरबों ने चावड़, मौर्य,सैंधव,कच्छेल्लोंश् और हुणों को पराजित कर दिया।

इतना ही नहीं मेवाड़, मारवाड़, मालवा और गुजरात सभी जगह अरबों की सेनाएं बड़ी मात्रा में तबाही मचाने लगी। मौर्य वंश के बड़े-बड़े राजा जो काम नहीं कर सके वह Bappa Rawal ने कर दिखाया और मेवाड़ सेक्टर के आसपास से अरबों को खदेड़ दिया।

गुर्जर प्रतिहार सम्राट नागभट्ट प्रथम और बप्पा रावल जैसे महान व्यक्तियों के युद्ध कौशल से मेवाड़, मारवाड़, मालवा और गुजरात अरबी आक्रांताओं से मुक्त हुए।

Bappa Rawal ने अफगानिस्तान तक अपने साम्राज्य और हिंदू साम्राज्य को विस्तारित किया। इतना ही नहीं इन्होंने जिन जिन राजाओं को पराजित किया उनकी कन्याओं से शादी भी की।

ऐसा कहा जाता है कि Bappa Rawal के लगभग 100 पत्नियां थी जिनमें से 35 मुस्लिम शासकों की बेटियां भी शामिल थी। यह मुस्लिम शासक बप्पा रावल से हार गए या उनके डर से अपनी बेटियों का विवाह बप्पा रावल के साथ कर दिया और संधि कर ली ताकि जान बच सके।

Bappa Rawal एक ऐसे सम्राट थे जो कभी किसी से भी पराजित नहीं हुए। यह बहुत ही चक्रवर्ती सम्राट थे। जब इन्होंने संपूर्ण क्षेत्र में शांति की स्थापना कर दी तो तो इन्होंने सन्यास लेना उचित समझा और मात्र 58 वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया और अपने पुत्र को मेवाड़ का राजा बनाया।

महर्षि हरित ऋषि के नियमों के अनुसार यह वानप्रस्थ बन गए और सन्यास ले लिया । बाकी की उम्र इन्होंने हरित ऋषि के आश्रम और एकलिंग नाथ के मंदिर में गूजारी यह लगातार शिव भक्ति करते रहे।

आदी वराह मंदिर और एकलिंग नाथ मंदिर

कैलाशपुरी उदयपुर में एकलिंग नाथ मंदिर का निर्माण बप्पा रावल ने करवाया था। Bappa Rawal बहुत बड़े शिव भक्त थे और भगवान शिव की आराधना करने के लिए उन्होंने एकलिंग नाथ की स्थापना की थी, साथ ही आदि वराह मंदिर का निर्माण भी Bappa Rawal ने ही किया था। यह मंदिर एकलिंग नाथ मंदिर के पीछे बना हुआ है।

रावलपिंडी का इतिहास

गजनी नामक प्रदेश इनका मुख्य सैन्य ठिकाना था और यहां पर Bappa Rawal की सेना ने कब्जा कर रखा था।इसी क्षेत्र का नाम बाद में बदलकर बप्पा रावल के नाम पर रावलपिंडी कर दिया गया। सिंध तक इन्होंने अरब आक्रमणकारियों को खदेड़ दिया था। कई इतिहासकारों का मानना है कि पाकिस्तान का मुख्य शहर रावलपिंडी मेवाड़ के महान और संस्थापक शासक बप्पा रावल के नाम पर बना हुआ है।

बप्पा रावल के सिक्के

बप्पा रावल ने सोने के सिक्के जारी किए थे जिनका वज़न115 ग्रेन (65 रत्ती) था। इस सिक्के की विशेषता के बारे में बात की जाए तो इस सिक्के में ऊपर की तरफ बोप लेख जो की माला के नीचे बना हुआ है।

बाएं ओर त्रिशूल जबकि दाएं ओर नंदी जी महाराज शिवलिंग की तरफ मुंह करके बैठे हैं। शिवलिंग और नंदी के नीचे की तरफ एक व्यक्ति दंडवत बैठा हुआ है। सिक्के के नीचे की तरफ चरम , सूर्य छत्र के चिह्न बने हुए हैं।

इन सब के नीचे दाएं तरफ एक गाय खड़ी है और एक बछड़ा उसका दूध पी रहा है। इस सिक्के का अवलोकन करके साफ तौर पर समझा जा सकता है कि शिव भक्ति की तरफ Bappa Rawal का कितना झुकाव था।

बप्पा रावल के बारे में रोचक तथ्य (Facts About Bappa Rawal )

(1) Bappa Rawal को “कालभोज” के नाम से भी जाना जाता है।

(2) 734 ईस्वी में बप्पा रावल ने मान मोरी को पराजित कर चित्तौड़ पर अपना अधिकार स्थापित किया था।

(3) जब इन्होंने चित्तौड़ को अपने अधिकार में लिया तब इनकी आयु मात्र 20 वर्ष थी।

(4) बप्पा रावल के बारे में कहा जाता है कि इनको भगवान शिव ने साक्षात दर्शन दिए थे।

(5) 734 ईस्वी में बप्पा रावल ने कैलाशपुरी उदयपुर में एकलिंग नाथ का मंदिर बनवाया था।

(6) बप्पा रावल के गुरु का नाम महर्षि हरित ऋषि था।

(7) आदी वराह मंदिर मंदिर का निर्माण भी इन्होंने करवाया था।

(8) इन्होंने गुहिल राजवंश की स्थापना की थी।

(9) महाराणा प्रताप, महाराणा सांगा और महाराणा कुंभा इनके ही वंशज है।

(10) बप्पा रावल का देहांत नागदा में हुआ था। नागदा इनकी राजधानी भी थी और नागदा में ही इनकी समाधि भी बनी हुई है।

(11) बप्पा रावल का वजन और बप्पा रावल की तलवार का वजन बेहद ज्यादा (लगभग 1300 किलो) था।

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