अहिल्याबाई होल्कर जीवन परिचय, इतिहास, निबंध,जयंती जीवनी 2023

अहिल्याबाई होल्कर जीवन परिचय (Ahilyabai Holkar Biography & History)- अहिल्याबाई होल्कर एक ऐसी शसक्त महिला और रानी थी जिसका जीवन बहुत प्रेरणादायक रहा. महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव में जन्म लेने वाली अहिल्याबाई ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया. अहिल्याबाई होल्कर मालवा की रानी थी.

एक महान योद्धा और कुशल तीरंदाज होने के साथ-साथ अहिल्याबाई दूरदर्शी और धार्मिक भी थी. उनके कार्यकाल में भारतीय संस्कृति को नया आयाम मिला. प्रतिवर्ष 31 मई को अहिल्याबाई होल्कर जयंती मनाई जाती हैं. इस लेख में हम अहिल्याबाई होल्कर जीवन परिचय और अहिल्याबाई होल्कर का इतिहास पढ़ेंगे.

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अहिल्याबाई होल्कर जीवन परिचय-इतिहास

अहिल्याबाई होल्कर जीवन परिचय, इतिहास और कहानी (Ahilyabai Holkar Biography & History In Hindi) जानने से पहले उनके जीवन के मुख्य पहलुओं को संक्षिप्त में जानेंगे.

परिचयपरिचय बिंदु
पूरा नामअहिल्याबाई खांडेराव होल्कर.
जन्म स्थानगाँव चौढ़ी, अहमदनगर (महाराष्ट्र).
जन्म तिथि31 मई 1725 ईस्वी.
पिता का नाममान्कोजी शिंदे.
माता का नामसुशीला शिंदे.
धर्महिन्दू सनातन.
साम्राज्यमराठा साम्राज्य.
(Ahilyabai Holkar Biography & History In Hindi)

अहिल्याबाई होल्कर जीवन परिचय में सबसे पहले हम उनके बाल्यकाल के बारे में जानेंगे। 31 मई 1725 ईस्वी में जन्म लेने वाली अहिल्याबाई होल्कर ने मराठा साम्राज्य में अभूतपूर्व योगदान दिया. इनके पिता मान्कोजी शिंदे बहुत साधारण व्यक्तित्व के थे. पिता हमेशा अपनी पुत्री को आगे बढ़ने की शिक्षा देते थे , जिसका उनके जीवन पर गहरा प्रभाव भी रहा. इस काल में महिलाओं का पढ़ना-लिखना नहीं आता था और ना ही शिक्षा दी जाती थी लेकिन फिर भी मान्कोजी राव ने अपनी बेटी अहिल्याबाई को उचित शिक्षा दी.

मात्र 8 वर्ष की आयु में इनका विवाह खांडेराव होल्कर के साथ हुआ था. खांडेराव इंदौर के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के पुत्र थे. सन 1745 ईस्वी में 20 वर्ष की आयु में इन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम मालेराव था. 3 वर्ष पश्चात् सन 1748 में अहिल्याबाई होल्कर ने मुक्ताबाई नामक लड़की को जन्म दिया.

अहिल्याबाई होल्कर ने अपने पति खांडेराव का मान-सम्मान कई गुना बढ़ा दिया था. क्योंकि अहिल्याबाई के पति खांडेराव के पिता मल्हारराव एक महान शासक थे तो उनके सानिध्य में धीरे-धीरे खांडेराव भी एक मजबूत सिपाही बनकर उभरे. इसमें उनकी पत्नी का अहम् योगदान था.

मल्हारराव ने ना सिर्फ अपने पुत्र को बल्कि पुत्रवधु को भी काजकाज सीखना शुरू कर दिया था. यह सब देखकर मल्हारराव बहुत प्रसन्न भी होते थे.

अहिल्याबाई का विवाह

परिचयपरिचय बिंदु
विवाह कब हुआ1733 ईस्वी
पति का नामखांडेराव होल्कर
पुत्र का नाममालेराव
पुत्री का नाममुक्ताबाई
साम्राज्यमराठा
परिचयपरिचय बिंदु
विवाह कब हुआ1733 ईस्वी
(Ahilyabai Holkar Biography & History In Hindi)

अहिल्याबाई होल्कर के पति का नाम खांडेराव होल्कर था. अहिल्याबाई बहुत चंचल और चुलबुले स्वाभाव की थी. खांडेराव होल्कर और अहिल्याबाई के विवाह की कहानी बड़ी रोचक हैं.

एक बार की बात हैं खांडेराव राजकार्य से पुणे जा रहे थे तभी उनकी नजर गरीबों की मदद करती अहिल्याबाई पर पड़ी और उन्होंने पता लगाकर मान्कोजी राव के घर रिश्ता भेज दिया.

जिसे स्वीकार करने के बाद अहिल्याबाई होल्कर का विवाह महज 8 साल की आयु में खांडेराव होल्कर के साथ कर दिया गया. अहिल्याबाई का विवाह 1733 में हुआ था. विवाह के 12 वर्ष पश्चात् सन 1745 में अहिल्याबाई होल्कर ने मालेराव नामक पुत्र को जन्म दिया.

इनकी एक पुत्री भी थी जिसका नाम मुक्ताबाई था. मुक्ताबाई का जन्म वर्ष 1748 में हुआ था. शादी के बाद अहिल्याबाई हर काम में अपने पति का सहयोग करती थी, उनके सहयोग के चलते ही खांडेराव होल्कर एक अच्छे सैनिक बन पाए. अहिल्याबाई होल्कर जीवन परिचय में उनका विवाह एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं.

अहिल्याबाई का संघर्ष और कठिनाईयाँ

खासतौर पर विवाह उपरांत अहिल्याबाई को जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा. सुखद वैवाहिक जीवन चल रहा था लेकिन वर्ष 1754 में उन पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा जब उनके पति खांडेराव होल्कर का निधन हो गया. पति की मौत से अहिल्याबाई को गहरा धक्का लगा, उनका दुनियाँ से मन उठ गया.

पति की मृत्यु के चलते अहिल्याबाई ने सन्यास लेने का मन बना लिया. जब यह बात उनके ससुर और खांडेराव होल्कर के पिता मल्हारराव होल्कर तक पहुँची तो उन्होंने उसे ढाढ़स बंधाया.

मल्हारराव होल्कर ने पूरा राजकाज अपनी पुत्र वधु अहिल्याबाई को सौंप दिया. पति की मौत से उभरकर अहिल्याबाई ने राजकाज में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया. लेकिन अहिल्याबाई के दुःख कम होने की जगह बढ़ते ही जा रहे थे.

वर्ष 1766 ईस्वी में अहिल्याबाई होल्कर के ससुर मल्हारराव होल्कर का निधन हो गया और लगभग एक वर्ष पश्चात् सन 1767 में उनके पुत्र मालेराव होल्कर का भी निधन हो गया यह अहिल्याबाई को तोड़ने वाला दिन था.

अपनों की मृत्यु का शोक तो था ही इसके अलावा भी प्रशासनिक कामों में रानी अहिल्याबाई को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा था. लेकिन इन समस्याओं से वह टूटने की बजाए और अपने कौशल को निखारा। यही एक अच्छे शासक की निशानी भी होती हैं.

राजमाता अहिल्याबाई होल्कर का जीवन परिचय पढ़ने से ज्ञात होता हैं कि प्रारंभ से लेकर अंत तक जिस तरह से उन्होंने कठिनाइयों का सामना किया उन्हीं की वजह से वह इतिहास के पन्नों में चमक छोड़ने में कामयाब रही.

अहिल्याबाई होल्कर का योगदान

हिन्दू संस्कृति के उत्थान और मंदिरों के पुर्निर्माण का कार्य भारत में सबसे ज्यादा किसी ने किया तो वह राजमाता अहिल्याबाई होल्कर थी. आज भी हिन्दू समाज उनके एहसानों तले दबा हैं. अपने जीवनकल में अहिल्याबाई ने मंदिर, धर्मशाला, सड़कें कुआँ, बावड़ियाँ,प्याऊ आदि का वृहद् स्तर पर निर्माण करवाया था. कोई भूखा ना सोए इसके लिए उन्होंने जगह-जगह अन्नक्षेत्रों का निर्माण भी करवाया.

कोलकत्ता से लेकर बनारस तक सड़क का निर्माण भी अहिल्याबाई ने करवाया था. इसके अलावा बनारस में अन्नपूर्णा माता का मंदिर, गयाजी में भगवान विष्णु जी का मंदिर बनवाया था. काशी, मथुरा, गया जी, अयोध्या, हरिद्वार, द्वारिका, जगन्नाथ, बद्रीनारायण और रामेश्वरम जैसे विश्वविख्यात और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थानों पर कई मंदिरों का निर्माण रानी अहिल्याबाई द्वारा करवाया गया.

जगह-जगह मंदिरों में उन्होंने ऐसे संतो को बिठाया ताकि धर्म का प्रचार-प्रसार हो और लोगों को प्रवचन सुनने को मिल सके. राजमाता अहिल्याबाई द्वारा बनारस में घाट का निर्माण भी करवाया गया. इसके अलावा भी भारत भर के कई मंदिरों के पुर्ननिर्माण का श्रेय इनको जाता हैं.

अहिल्याबाई द्वारा किए गए कामों का कई संकीर्ण मानसिकता के लोगों द्वारा विरोध भी किया जाता रहा हैं. आरोपकर्ता यह तर्क देते हैं की उन्होंने अन्धविश्वास के चलते मंदिरों पर अंधाधुंध खर्चा किया जबकि राजकार्य में नहीं. लेकिन ऐसे लोगों को ध्यान होना चाहिए की बिना धर्म के कुछ भी नहीं हैं. जो लोग खुद कुछ नहीं कर पते हैं वो दूसरों पर आरोप-प्रत्यारोप का काम करते हैं.

प्राचीन भारत के उत्थान में राजमाता अहिल्याबाई का योगदान अभूतपूर्व माना जाता हैं.

अहिल्याबाई होल्कर की विचारधारा

अहिल्याबाई होल्कर पूर्ण रूप से धर्म के समर्पित महिला था. उन्होंने ना सिर्फ धर्म बल्कि महिला सशक्तिकरण के लिए भी बहुत काम किया था. अहिल्याबाई ने अपना पूरा जीवन राज्य और प्रजा के लिए समर्पित कर दिया था. पहले पति और बाद में पुत्र और ससुर की मृत्यु के बाद भी अहिल्याबाई जनता की सेवा करती रही.

यह अहिल्याबाई की विचारधारा का ही फल हैं की आज हमारे अधिकतर धार्मिक स्थल सही अवस्था में मौजूद हैं. अगर अहिल्याबाई उनका पुनर्निर्माण नहीं करवाती तो हो सकता हैं यह अभी जर्जर हो चुके होते.

शिव भक्त के रूप में अहिल्याबाई होलकर

अहिल्याबाई बहुत बड़ी भगवान शिवजी की भक्त थी. एकबार शिवजी ने उनको स्वप्न में दर्शन भी दिए थे. इतिहास के जानकर बताते हैं कि वर्ष 1777 में अहिल्याबाई होल्कर ने ही बनारस में स्थित भगवान “बाबा विश्वनाथ मंदिर” का निर्माण करवाया था. राजमाता अहिल्याबाई ने अपना पूरा जीवन भक्तिभाव और कर्तव्य पालन में बिताया.

अहिल्याबाई जब तक भगवान शिव जी की पूजा-अर्चना नहीं कर लेती तब तक पानी भी नहीं पीती थी. शिवजी के प्रति उनका यह समर्पण अद्वितीय था.

अहिल्याबाई खुद को शिवजी का सेवक मानती और राज्य का शासक भगवान को. रामायण कालीन भगवान श्रीराम जी के भाई भरत जी ने जिस तरह अपना सारा राज्य भगवान को समर्पित कर रखा था और खुद को एक सेवक मात्र मानते थे ठीक वैसे ही राजमाता अहिल्याबाई का उदाहरण देखने को मिलता हैं.

राजमाता अहिल्याबाई किसी भी काम जगह खुद का नाम नहीं लिखकर भगवान शिव का नाम लिखती थी जिसमें सभी राजकार्य भी शामिल थे. उनके समय में जारी किए गए रुपयों पर शिवलिंग और बिल्वपत्र का चित्र अंकित था जबकि सिक्कों पर नंदीजी का चित्र हुआ करता था.

अहिल्याबाई द्वारा चलाया गया यह प्रचलन उनके बाद भी कई वर्षों तक चलता रहा जिसमें राजा अपनी आज्ञा पत्रों पर स्वयं के हस्ताक्षर ना करके श्रीशंकर लिखते थे.

राजकार्य के अलावा अहिल्याबाई का समय भगवान की पूजा-अर्चना में निकलता था.

शांति और सुरक्षा के क्षेत्र में अहिल्याबाई होल्कर का योगदान

मल्हारराव होल्कर की मृत्यु के पश्चात् अहिल्याबाई होल्कर ने राज्य की बागडोर संभाली, इस समय चारों ओर अशांति और अराजकता का माहौल था. ऐसे में राज्य में शांति की स्थापना करना अहिल्याबाई के लिए एक बहुत बड़ा कार्य था. राज्य में शांति की स्थापना के लिए अहिल्याबाई ने राज्य में यह संदेश भिजवाया की जो इन उपद्रवियों को काबू में करेगा में अपनी बेटी मुक्ताबाई का विवाह उसके साथ कर दूंगी.

यह बात सुनकर यशवंत फणसे नामक व्यक्ति राजमाता के पास आकर बोला मैं यह काम कर सकता हूँ. रानी ने कहा ठीक हैं, धीरे-धीरे समय के साथ राज्य में उपद्रव कम होने लगा और देखते ही देखते पुरे राज्य में सभी लोग शालीनता से रहने लगे.

यशवंत फणसे के काम से खुश होकर राजमाता अहिल्याबाई ने उनकी बेटी मुक्ताबाई का विवाह यशवंत के साथ कर दिया. जैसे-जैसे राज्य में शांति स्थापित होती गई व्यापार, कला और संस्कृति के क्षेत्र में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला.

नर्मदा नदी के किनारें माहेश्वरी नामक स्थान उनकी राजधानी थी, राजधानी में शांति और अच्छा माहौल देखकर वहाँ वस्त्र बनाने वाले निपूर्ण कारीगर बसते गए. कुछ ही समय में माहेश्वरी वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध हो गया.

जैसे-जैसे आवश्यकता महसूस होती गई अहिल्याबाई ने अपने राज्य को जिलों और तहसीलों में बाँटना शुरू कर दिया ताकि प्रशासनिक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाया जा सके.

न्यायालय बनाकर लोगों के मुकदमें सुने जाने लगे. जब किसी मामले में कोई भी पक्ष फैसले से खुश नहीं होता और न्याय नहीं मिलता तो अंत में राजमाता अहिल्याबाई के पास जा जाकर न्याय की गुहार लगाते थे. इस तरह रानी के पुरे राज्य में शांति स्थापित हो गई.

अहिल्याबाई के सेनापति

मल्हारराव होल्कर की मौत के बाद राज्य को एक योग्य सेनापति की जरुरत थी इसके लिए रानी को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. मल्हारराव होल्कर के परिवार में एक वीर योद्धा था जिनका नाम था तुकोजीराव होल्कर, यह एक बहुत ही विश्वसनीय व्यक्ति थे. मल्हारराव के साथ रहकर यह भी विभिन्न कामों में निपूर्ण हो गए.

यही वजह थी की अहिल्याबाई ने तुकोजीराव को सेनापति नियुक्त कर दिया। सेनापति होने के साथ-साथ तुकोजी चौथ वसूली का काम भी करते थे.

आयु में अहिल्याबाई से बड़े होने के बाद भी तुकोजीराव उनको अपनी माता मानते थे और राजमाता भी पुत्र की तरह व्यवहार करती थी. राज्य में सभी उनको “खंडोजी सूत तुकोजी होल्कर” के नाम से जानते थे इतना ही राज्य में जारी मुहर पर भी यही नाम अंकित रहता था.

महिला सशक्तिकरण में अहिल्याबाई का योगदान

17वीं शताब्दी में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी, पुरुष प्रधान व्यवस्था थी लेकिन अहिल्याबाई ने महिलाओं की उन्नति और समाज में उनको मजबूत बनाने के लिए अथक प्रयास किया. अहिल्याबाई खुद रणक्षेत्र में लड़ने जाती थी. जब राज्य की बागडोर अहिल्याबाई के हाथ में आई तब राज्य में यह नियम था कि किसी महिला के निःसंतान होने पर यदि उसका पति मर जाता तो उनकी पूरी सम्पति राजकोष में जमा हो जाती थी.

लेकिन राजमाता अहिल्याबाई होल्कर ने राज्य की बागडोर संभालते ही इस कानून में बदलाव कर दिया. अब महिला के पति की मौत के बाद उसकी सम्पति पर अधिकार विधवा का ही रहेगा और वह अपनी इच्छानुसार इसका भोग कर सकेगी.

महिलाओं के मान-सम्मान को ध्यान में रखते हुए नदी के किनारों पर शौचालय और स्नानघरों का निर्माण करवाया था. शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने बहुत अच्छा काम किया और लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया.

अहिल्याबाई की मृत्यु

राजमाता अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु मालवा (मराठा साम्राज्य के अधीन) के लिए बहुत बड़ी क्षति थी. 70 वर्ष की आयु में 13 अगस्त 1795 में अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु हो गई.

अहिल्याबाई होल्कर की जीवनी पर आधारित सीरियल और फिल्में

4 जनवरी 2021 से अहिल्याबाई होल्कर के जीवन पर आधारित एक सीरियल सोनी टीवी पर दिखाया गया जिसका नाम “पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होल्कर” था. इस सीरियल को जैक्सन सेठी ने डायरेक्ट किया और इसमें अदितिजलतारे, राजेश श्रृंगारपुरे, कृश चौहान, स्नेहलता वसईकर आदि स्टारकास्ट हैं.

अहिल्याबाई होल्कर जयंती

अहिल्याबाई होल्कर की जयंती प्रतिवर्ष 31 मई को मनाई जाती हैं. पुरे देश में अहिल्याबाई होल्कर की जयंती बहुत धूमधाम से मनाई जाती हैं.

अहिल्याबाई होल्कर को भारत सरकार द्वारा सम्मान

अहिल्याबाई होल्कर के कामों से प्रभावित होकर भारत सरकार ने 25 अगस्त 1996 को उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया. देश में कई जगह उनकी प्रतिमाएँ बनाई गई. विभिन्न पाठ्यक्रमों में अहिल्याबाई होल्कर की जीवनी पढ़ाई जाती हैं.

उत्तराखंड सरकार द्वारा “अहिल्याबाई भेड़-बकरी विकास योजना” नामक एक योजना चलाई हैं. यह अहिल्याबाई के लिए एक बहुत बड़ा सम्मान हैं.

अहिल्याबाई होल्कर के जीवन से सम्बंधित बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्न-उत्तर (FAQ)

1 अहिल्याबाई होल्कर की शादी कब हुई थी?

उत्तर- 8 वर्ष की आयु में 1733 ईस्वी में उनका विवाह हुआ था.

2 अहिल्याबाई होलकर अपने बेटे को क्यों मारना चाहती थी?

उत्तर- अहिल्याबाई होलकर के बेटे मालेराव ने एक बार गाय के बछड़े को मार दिया था जिसको न्याय देने के लिए अहिल्याबाई अपने बेटे को मृत्यु दंड देना चाहती थी.

3 अहिल्याबाई होल्कर के कितने बच्चे थे?

उत्तर- 2 बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी.

4 अहिल्याबाई की मृत्यु कैसे हुई?

उत्तर- अचानक तबियत ख़राब होने से वर्ष 1795 में अहिल्याबाई की मृत्यु हो गई.

5 अहिल्याबाई किस राज्य की महारानी थी?

उत्तर- मालवा.

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सेंगोल का इतिहास.

दोस्तों उम्मीद करते हैं अहिल्याबाई होल्कर जीवन परिचय, इतिहास, जयंती, निबंध (Ahilyabai Holkar Biography & History) पर आधारित यह लेख आपको अच्छा लगा होगा,धन्यवाद.