धनानंद की मृत्यु के पश्चात उनके साथी “अमात्य राक्षस” का क्या हुआ?

अमात्य राक्षस

मौर्य वंश और नन्द वंश के अधिकत्तर जानकार यह भी जानना चाहते हैं कि आखिर धनानंद की मृत्यु के पश्चात् उनके प्रधानमंत्री अर्थात अमात्य राक्षस कहाँ चले गए या उनके साथ क्या हुआ. यह लेख पूरा पढ़ें ताकि आप जान पाए कि वास्तव में धनानंद की मृत्यु के पश्चात् अमात्य राक्षस का क्या हुआ?

धनानंद नंद वंश के अंतिम शासक थे, इनके अमात्य अर्थात प्रधानमंत्री थे राक्षस (amatya rakshas). अमात्य राक्षस बहुत प्रतिभावान राजनीतिक गुणों से परिपूर्ण कुशल और बुद्धिमता में आचार्य चाणक्य से एक कदम आगे थे।

धनानंद के शासनकाल में क्रूरता और प्रजा पर अत्याचार बढ़ने लगे साथ ही आचार्य चाणक्य का अपमान किया गया इसी का बदला लेने के लिए आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त के साथ मिलकर 321 ईसा पूर्व धनानंद की हत्या करवा दी। नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद की मृत्यु के पश्चात उनके दरबार में जीवित बचे ज्यादातर सैनिक और दरबारी जान बचाकर भाग गए, उनमें से एक थे अमात्य राक्षस।

सुरक्षित जगह पर पहुंचकर अमात्य राक्षस (amatya rakshas) ने अपने स्वामी के हत्यारे चंद्रगुप्त मौर्य के खिलाफ षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया। अमात्य राक्षस और आचार्य चाणक्य एक ही गुरुकुल में पढ़े लिखे, लेकिन चाणक्य से वरिष्ठ थे। चंद्रगुप्त मौर्य ने चारों दिशाओं में अपने सैनिकों को अमात्य राक्षस की खोज में भेजा लेकिन वह नहीं मिले। चंद्रगुप्त मौर्य की सेना उन्हें ढूंढने में विफल रही। उसके बाद चंद्रगुप्त ने आदेश दिया कि इस राज्य में ऐसे लोगों को ढूंढा जाए जो अमात्य राक्षस के बारे में जानते हो।

उसी नगर में “चंदन दास” नामक एक व्यक्ति रहता था जो अमात्य राक्षस को निर्दोष मानता था। जब इस व्यक्ति के बारे में छानबीन की गई तो पता चला कि यह अमात्य राक्षस (amatya rakshas) का प्रिय मित्र हैं। इतना ही नहीं नगर छोड़ने से पहले अमात्य राक्षस ने अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए चंदन दास को बड़ी जिम्मेदारी दी।
लेकिन चंदन दास को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि इस समय अमात्य राक्षस कहां पर है। और अगर चंदन दास को इसकी जानकारी थी भी तो वह अपने प्रिय मित्र का पता किसी भी शर्त पर बताने को तैयार नहीं था।

आचार्य चाणक्य ने एक दूत के साथ चंदन दास को बुलावा भेजा। जैसे ही दूत चंदन दास के घर पहुंचा चंदन दास सतर्क हो गया और उन्होंने अमात्य राक्षस के परिवार को गुप्त रास्ते से सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया ताकि उन्हें कोई भी क्षति नहीं पहुंचा सके। दूसरे दिन चंदन दास आचार्य चाणक्य के सामने उपस्थित हुए लेकिन अमात्य राक्षस के बारे में कुछ भी बताने से साफ इनकार कर दिया। चंदन दास के इस कृत्य से क्रोधित मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने चंदन दास को मृत्युदंड की सजा सुनाई।

यह खबर मगध राज्य में आग की तरह फैल गई. जब इस बात की जानकारी अमात्य राक्षस को हुई तो वह बहुत अधिक बेचैन और व्याकुल हो गए क्योंकि चंदन दास उनका प्रिय मित्र था। इसी दौरान अमात्य राक्षस ने अपने मित्र चंदन दास की रक्षा करने की योजना बनाने लग गए।

अमात्य राक्षस को जब लग गया कि अब चंद्रगुप्त मौर्य के सामने आत्मसमर्पण करने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं है तो वह अपने मित्र चंदन दास की जान बचाने के लिए एक दिन सुबह के समय चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में जा पहुंचे। इस तरह उन्हें अकेले दरबार में आते देखकर चंद्रगुप्त मौर्य के सभी मंत्री गण अचंभित रह गए।
अमात्य राक्षस की उम्मीद के विपरीत चंद्रगुप्त मौर्य ने उनका स्वागत किया और उन्हें बताया की वह उनके मित्र चंदन दास की मृत्यु का ढोंग रच रहा था ताकि किसी भी कीमत पर अमात्य राक्षस का पता लगाया जा सके।

प्रथम मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने आदर पूर्वक अमात्य राक्षस से कहा की आप बहुत बुद्धिमान और प्रजा हितैषी हैं। आपने नंद वंश के अंतिम सम्राट धनानंद के साथ मिलकर मगध राज्य की प्रजा के लिए बहुत कल्याणकारी कार्य किए हैं। हम चाहते हैं कि आप हमारे साथ मिलकर मगध की प्रजा के लिए कल्याणकारी कार्य करते रहें क्योंकि आप एक कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ बुद्धिमान व्यक्ति है, जो इस राज्य के कल्याण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

आचार्य चाणक्य लेवी अमात्य राक्षस को समझाया कि आप मगध साम्राज्य के और चंद्रगुप्त मौर्य के खिलाफ षड्यंत्र करना बंद कीजिए। आपने जो काम धनानंद के साथ मिलकर मगध के उत्थान हेतु किया वह हम सब मिलकर करते हैं। प्रारंभ में तो अमात्य राक्षस को थोड़ा संशय हुआ लेकिन अपने मित्र चंदन दास के प्राणों की रक्षा को ध्यान में रखते हुए वह चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार हो गए।

धनानंद की मृत्यु के पश्चात अमात्य राक्षस (amatya rakshas), आचार्या चाणक्य की नीति और चन्द्रगुप्त मौर्य के अच्छे बर्ताव से शत्रु भी मित्र बन गया।

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