बनवीर का इतिहास (Banveer History in hindi) और बनवीर का चरित्र चित्रण।

बनवीर सिंह (Banveer) का सम्बन्ध मेवाड़ से हैं, जिन्हें वनवीर नाम से भी जाना जाता हैं। बनवीर सिंह मेवाड़ के महान शासक महाराणा सांगा के बड़े भाई पृथ्वीराज सिंह सिसोदिया के पुत्र थे, जिन्होंने एक दासी के गर्भ से जन्म लिया था।

दासी पुत्र बनवीर सिंह सन 1536 ईस्वी से लेकर 1540 ईस्वी तक मेवाड़ के शासक के रुप में चित्तौड़ पर शासन किया था। चित्तौड़ फोर्ट पर स्थित माता तुलजा भवानी मंदिर और नवलखा महल (नो कोठा) का निर्माण बनवीर सिंह (वनवीर सिंह) द्धारा करवाया गया था। इस लेख में हम बनवीर का चरित्र चित्रण और बनवीर का इतिहास के साथ साथ यह भी जानेंगे कि बनवीर कौन था? (Banveer kon tha)

बनवीर का इतिहास (Banveer history in hindi)-

पूरा नाम- बनवीर सिंह।
जन्म वर्ष- 1504 ईस्वी.
मृत्यु वर्ष- 1540ईस्वी.
पिता का नाम- पृथ्वीराज सिंह सिसोदिया।
माता का नाम- अज्ञात.
पत्नी का नाम- हीराबाई (नागौर).
पुत्र का नाम- वनराज सिंह.
शासन अवधि- 1536 से 1540 ईस्वी तक.
बनवीर से पूर्व मेवाड़ का शासक- महाराणा विक्रमादित्य.
बनवीर के बाद मेवाड़ का शासक- उदयसिंह द्वितीय.

सबसे पहले हम बात करते हैं कि बनवीर कौन था? आपको बता दें कि बनवीर महाराणा सांगा के बड़े भाई कुंवर पृथ्वीराज सिंह का पुत्र था। शुरू से ही स्वयं को उपेक्षित महसूस करता था, मेवाड़ के महाराणाओं को लेकर Banveer के मन में घृणा भाव था। बनवीर के चरित्र चित्रण कि बात जाए तो वह दासी पुत्र होने की वजह से यह सोचता था कि मेरा मेवाड़ राज्य पर अधिकार होने के बावजूद भी मुझे इस अधिकार से वंचित रखा गया इसलिए वह गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर के पास रह रहा था। बदले में सुल्तान ने उसे वागड़ का प्रदेश जागीर में दिया।

मेवाड़ के शासकों के प्रति बलवीर (Banveer) के विचार और भावनाएं विरोधी थी। इसी बात में बनवीर का चरित्र चित्रण झलकता है कि उसे मौके की तलाश थी कि कैसे भी करके मेवाड़ के महाराणा को मौत के घाट उतारना हैं और ताकि स्वयं मेवाड़ का राजा बन सके। बनवीर का इतिहास इस बात का गवाह है कि वह महत्वकांक्षी व्यक्ति था।

बनवीर द्वारा विक्रमादित्य सिंह की हत्या-

मेवाड़ के इतिहास में महाराणा विक्रमादित्य सिंह को सबसे कमजोर शासक माना गया है। विक्रमादित्य पर बुरी संगत का असर था और मेवाड़ के सामंतों और सरदारों के प्रति उसका व्यवहार ठीक नहीं था और यही वजह रही कि ज्यादातर ठिकानों के सामंत विक्रमादित्य का साथ छोड़कर अपने अपने ठिकानों पर चले गए।

चाटुकारिता और स्वार्थी प्रवृत्ति के लोग ही मेवाड़ के शासक विक्रमादित्य के पक्ष में खड़े थे। महाराणा सांगा के बड़े भाई कुंवर पृथ्वीराज सिंह के दासी पुत्र बनवीर के पास यह एक सुनहरा मौका था कि वह मेवाड़ के कमजोर शासक महाराणा विक्रमादित्य सिंह को मार कर वर्षों से मन में मेवाड़ की गद्दी हासिल करने का सपना साकार कर सकें।

सन 1536 ईसवी में पासवानिया पुत्र बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी। महाराणा विक्रमादित्य की हत्या की मुख्य वजह बदले की भावना थी, जो बनवीर ने वर्षों से पाल रखी थी।

बनवीर द्धारा उदय सिंह की हत्या का षड्यंत्र (Banveer dwara udaisingh ii ki hatya)-

महाराणा विक्रमादित्य की हत्या के पश्चात बनवीर विक्रमादित्य के छोटे भाई उदयसिंह द्वितीय की भी हत्या करना चाहता था ताकि Banveer मेवाड़ का सर्वेसर्वा बन जाए और उसकी राह में कोई रोड़ा नहीं बचे। बनवीर (Banveer) मेवाड़ का राजा बनने के सपने को पूरा करने के लिए तलवार लेकर उदयसिंह द्वितीय के कक्ष में पहुंचा इस समय उदयसिंह द्वितीय की आयु महज 14 वर्ष थी।

इस घटना की जानकारी पहले ही पन्नाधाय को हो गई। पन्नाधाय को पूरा विश्वास था कि बनवीर विक्रमादित्य सिंह की हत्या करने के पश्चात उदयसिंह द्वितीय की हत्या का प्रयास जरूर करेगा इसलिए वह सतर्क थी।

पन्नाधाय के 1 पुत्र था जिसका नाम था चंदन। चंदन की आयु उदयसिंह की आयु के समान ही थी। पन्नाधाय में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी। साथ ही वह मेवाड़ राजवंश के साथ भावनाओं से जुड़ी हुई थी। पन्नाधाय के दिमाग में एक ख्याल आया कि यदि उदयसिंह द्वितीय भी मर गया तो मेवाड़ राज्य को संभालने वाला कोई राजा नहीं बचेगा इसलिए उसने अपने पुत्र चंदन का बलिदान देना उचित समझा।

पन्नाधाय ने उदय सिंह के शयनकक्ष में चारपाई पर अपने पुत्र चंदन को सुला दिया और उदय सिंह को लेकर किले से बाहर चली गई। क्रोध की ज्वाला में जलता हुआ बनवीर (Banveer) जब उदयसिंह द्वितीय के शयनकक्ष में पहुंचा तो वहां पर सो रहे चंदन की हत्या कर दी। इस तरह वीरमाता पन्नाधाय ने अपने पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ के भावी राजा की रक्षा की।

बनवीर का राज्याभिषेक –

सन 1536 ईसवी में बनवीर ने कुछ स्वार्थी सामंतों के साथ मिलकर स्वयं को मेवाड़ का राजा घोषित कर दिया। मेवाड़ राज्य मिलने के बाद बनवीर का घमंड सातवें आसमान पर था, वह सामंतों के साथ ज्यादती करने लगा। बड़े ठिकानों के जो सामंत और सरदार बनवीर को अकुलीन समझते थे, वह उनसे घृणा करता।

बनवीर की मृत्यु कैसे हुई? (how did Banveer Died)-

बनवीर (Banveer) से नफरत करने वाले सरदारों और सामंतों की संख्या बढ़ गई। जब इन सामंतों को पता चला कि उदयसिंह द्वितीय जीवित है तो मेवाड़ में एक उत्सव सा माहौल हो गया। सभी सामंत और सरदार मिलकर उदयसिंह द्वितीय को पुनः चित्तौड़ लाकर राजा बनाने के लिए प्रयास करने लगे। सन 1540 ईस्वी में उदय सिंह कई सामंतों जिनमें अखेराज, सोनगरा जैसे मुख्य सामंत शामिल थे के साथ सेना लेकर चित्तौड़ की तरफ बढ़ने लगे।

जब यह बात बनवीर को पता चली तो वह अचंभित हो गया और उसने कुंवरसी तंवर के नेतृत्व में एक सेना गठित की और उदय सिंह द्वितीय से लोहा लेने के लिए भेजा। महाराणा उदयसिंह द्वितीय और कुंवरसी तंवर के मध्य मावली के पास स्थित महोली नामक गांव में एक भयंकर युद्ध हुआ इस युद्ध में बनवीर का सेनापति कुंवरसी तंवर वीरगति को प्राप्त हुआ।

कुछ दिनों तक बालवीर और उदयसिंह के बीच संघर्ष चला लेकिन अंत में उदयसिंह द्वितीय ने बनवीर को मौत के घाट उतार दिया और मेवाड़ के पैतृक राजा बन गए।

बनवीर की मृत्यु को लेकर इतिहासकार एकमत नहीं है. इतिहासकारों का एक तबका यह मानता है कि बनवीर (Banveer) मेवाड़ छोड़कर दूर चला गया, लेकिन इतिहासकारों के एक तबके का यह मानना है कि वह मृत्यु को प्राप्त हुआ।

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