चित्तौड़ का तीसरा साका या चित्तौड़ का तीसरा जौहर कब और क्यों हुआ?

चित्तौड़ का तीसरा साका या चित्तौड़ का तीसरा जौहर अकबर के आक्रमण के समय हुआ। इस समय चित्तौड़ के राजा महाराणा उदयसिंह थे।

चित्तौड़ का तीसरा साका या चित्तौड़ का तीसरा जौहर कब हुआ था?

चित्तौड़ का तीसरा साका या चित्तौड़ का तीसरा जौहर 1567 ईस्वी के अक्टूबर माह में हुआ। इस समय चित्तौड़ किले की रक्षा का भार जयमल मेड़तिया पर था। जिन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगाते हुए अंतिम समय तक इस किले को बचाने के लिए प्रयास किया था।

चित्तौड़ का तीसरा साका या चित्तौड़ का तीसरा जौहर क्यों हुआ?

अक्टूबर 1567 की बात है अकबर ने अपनी विशाल सेना के साथ चित्तौड़गढ़ दुर्ग को चारों तरफ से घेर लिया। शक्ति सिंह को इस हमले की पहले ही सूचना मिल गई और उन्होंने यह बात महाराणा उदयसिंह को बताई। अकबर से लोहा लेने के लिए युद्ध परिषद एवं अन्य सामंतों से विचार विमर्श हुआ, इसमें यह निष्कर्ष निकाला कि महाराणा उदय सिंह अपने परिवार के साथ यह किला छोड़कर दूरस्थ और सुरक्षित स्थान पर चले जाएंगे।

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साथ ही वीर शिरोमणि जयमल मेड़तिया को इस किले की रक्षा का भार सौंपा जाएगा। बहुत समय तक यह युद्ध चलता रहा दोनों तरफ से गोलीबारी होती रही।

धीरे धीरे अन्न और बारूद की कमी हो गई। 1 दिन की बात है रात का समय था किले की मुख्य दीवार की मरम्मत का कार्य चल रहा था, उस समय जयमल मेड़तिया के पैर पर गोली आकर लगी और वह घायल हो गए। अब राजपूत राजाओं को अंदेशा हो गया था कि कुछ भी अनिष्ट हो सकता है जिसे देखते हुए चित्तौड़ का तीसरा साका या चित्तौड़ का तीसरा जौहर की योजना बनाई गई।

चित्तौड़ का तीसरा साका या चित्तौड़ का तीसरा जौहर की बात करें तो इस समय दुर्ग पर 4 जगहों पर जौहर हुआ था। चित्तौड़ का तीसरा साका या चित्तौड़ का तीसरा जौहर में भी हजारों की तादाद में वीरांगनाओं ने देह अग्नि के हवाले कर दी।

चित्तौड़ का तीसरा साका या चित्तौड़ का तीसरा जौहर संपन्न होने के बाद वीर सैनिकों ने गौमुख कुंड में स्नान किया, मंदिरों में दर्शन किए और केसरिया वस्त्र धारण करके युद्ध के लिए किले से नीचे आए। बहुत भयंकर युद्ध हुआ, इस युद्ध में कई अकबर के सैनिक मौत के घाट उतार दिए गए। लेकिन अंततः 15 फरवरी 1568 के दिन अकबर की जीत हुई।

चित्तौड़ का तीसरा साका या चित्तौड़ का तीसरा जौहर बहुत ही ऐतिहासिक रहा।

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1 thought on “चित्तौड़ का तीसरा साका या चित्तौड़ का तीसरा जौहर कब और क्यों हुआ?”

  1. धन्यवाद। मुझे यकीन होने लगा है की मेरे पूर्वज 1568 से 1569 के बीच में ही लगभग यहां नर्मदा किनारे पश्चिम निमाड़ में अपने प्राण बचा कर ,भागकर आए और बस गए। मैं अभी 7 वीं पीढ़ी पर हूं। मुझे गर्व है मैं हिन्दू हूं,क्षत्रिय हूं।

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