चित्तौड़ का पहला साका या चित्तौड़ का पहला जौहर कब और क्यों हुआ?

चित्तौड़ का पहला साका (chittor ka saka ) या फिर यह कहे कि चित्तौड़ का पहला जौहर तो यह विश्व प्रसिद्ध है। यह किस लिए प्रसिद्ध है कि चित्तौड़ के प्रथम जौहर में रानी पद्मावती ने स्वयं को 16000 क्षत्राणियों के साथ अग्नि के हवाले कर दिया था।

रानियों ने अपनी पवित्रता की रक्षार्थ “जय-हर, जय-हर” का नारा लगाते हुए सामूहिक रूप से धधकती आग के हवाले हो गई।

चित्तौड़ का पहला जौहर या चित्तौड़ का पहला साका कब हुआ था?

चित्तौड़ का पहला साका या चित्तौड़ का पहला जौहर 26 अगस्त 1303 के दिन हुआ था। जब चित्तौड़ की महारानी पद्मावती ने 16000 अन्य हिंदू वीरांगनाओं के साथ अपनी आबरू बचाने और मेवाड़ की आन बान और शान के लिए स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया था।

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चित्तौड़ का पहला जौहर क्यों हुआ था?

चित्तौड़ का पहला जौहर या चित्तौड़ का पहला साका के पीछे एक बहुत ही दिलचस्प कहानी है। एक ऐसी कहानी जो महारानी पद्मिनी की वीरता और त्याग को दर्शाती हैं, वहीं दूसरी तरफ राजा रतन सिंह के साथ गोरा बादल की वीरता के गुणगान भी करती है।

चित्तौड़ का पहला जौहर या चित्तौड़ का पहला साका सामान्य परिस्थितियों में नहीं हुआ था। आइए जानते हैं वह घटना जिसके लिए चित्तौड़ का पहला जौहर या चित्तौड़ का पहला साका करने की नौबत आई। चित्तौड़ के राजा रतन सिंह के साथ रानी पद्मावती का विवाह हुआ था। चित्तौड़ का पहला जौहर या चित्तौड़ का पहला साका रानी पद्मावती की सुंदरता और राजा रतन सिंह की हार का परिणाम था।

अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी की सुंदरता के बारे में सुनावह चाहता था कि पद्मिनी उससे शादी करें। इसी बात को लेकर अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ के राजा के पास संदेश भेजा की अगर युद्ध से बचना चाहते हैं तो रानी पद्मिनी को मेरे हवाले कर दो। मेवाड़ के वीर कभी झुकते नहीं झुका देते हैं, यह कहावत वाकई में सत्य है राजा रतन सिंह ने उस प्रस्ताव को फाड़ दिया इससे अलाउद्दीन खिलजी आग बबूला हो उठा।

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अब अलाउद्दीन खिलजी ने दूसरा प्रस्ताव भेजा कि वह एक बार पद्मनी के दर्शन करना चाहता है, अगर ऐसा नहीं किया तो निश्चित रूप से युद्ध होगा। राजा रतन सिंह खून खराबा नहीं चाहते थे, इसलिए उन्होंने अलाउद्दीन की बात मान ली।

बहुत दूर से ही सही लेकिन पद्मिनी को देखते ही अलाउद्दीन पगला सा गया उसकी खूबसूरती के आगे उसे संसार फीका लगने लगा। राजा रतन सिंह ने सम्मानपूर्वक अलाउद्दीन खिलजी को किले के बाहर तक छोड़ने आए। जहां पर धोखे से अलाउद्दीन खिलजी ने राजा रतन सिंह को बंदी बना लिया और छोड़ने के बदले पद्मिनी को उसके हवाले करने की शर्त रखी।

जब यह समाचार चित्तौड़ किले पर पहुंचा तो वहां पर हाहाकार मच गया। रानी पद्मिनी ने आगे आकर जवाब दिया कि वह अकेली नहीं आएगी उसके साथ लगभग 800 स्त्रियां और होंगी जो सभी पालकी में सवार होकर आएंगी। यह खबर सुनते ही अलाउद्दीन का चेहरा खिल गया वह प्रसन्नता की रानी पद्मिनी के साथ-साथ उसे 800 और स्त्रियां मिलेगी।

फिर क्या था चित्तौड़ से पालकीयां निकली लेकिन इनमें उन चुनिंदा 800 वीर सैनिकों को स्त्रियों के भेष में बिठाया गया जो चित्तौड़ के सबसे शक्तिशाली सैनिक माने जाते थे। राजा रतन सिंह को लेकर अलाउद्दीन के सेनापति पालकीयों के समीप आए। राजा रतन सिंह को सुरक्षित पाते ही, वह 800 वीर सैनिक मुगल सैनिकों पर टूट पड़े और राजा रतन सिंह को सुरक्षित चित्तौड़गढ़ पहुंचा दिया।

उन 800 सैनिकों ने हजारों की तादाद में अलाउद्दीन के सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और सुरक्षित राजा रतन सिंह को लेकर चित्तौड़ आ गए।

अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना के साथ पूरी तैयारी करके चित्तौड़ पर हमला कर दिया, इस युद्ध में चित्तौड़ के राजा रतन सिंह मारे गए, साथ ही हजारों की तादाद में सैनिक शहीद हो गए। जब महारानी पद्मिनी के पास यह खबर पहुंची तो उसने जौहर का निर्णय लिया। इसी घटना को चित्तौड़ का पहला जौहर या चित्तौड़ का पहला साका का आधार माना जाता है।

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