चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) सबसे प्राचीन किलों में से एक हैं। चित्तौड़गढ़ का नाम मौर्य वंश के शासक चित्रांगद मौर्य के नाम पर इसका नाम चित्तौड़गढ़ रखा। इसको बलिदान और भक्ति की नगरी के रूप में भी जाना जाता हैं।
यह सिसोदिया राजवंश की गाथाओं के लिए जग विख्यात हैं। चित्तौडग़ढ़ दोनों ओर से नदियों से गिरा हुआ हैं। इनके नाम बेड़च नदी और गंभीरी नदी हैं। भारत की राजधानी नई दिल्ली से यह लगभग 600 किलोमीटर दूर है, जबकि राजस्थान की राजधानी जयपुर से 300 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हैं।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग की हिंदी में (Chittorgarh Fort History In Hindi) –
स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि चित्तौड़गढ़ दुर्ग कितने वर्ष पुराना हैं (Chittorgarh Fort History In Hindi) लेकिन कई जगह इसके संकेत मिलते हैं कि यह महाभारत के समय का बसा हुआ हैं। सबसे पहले मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ ही था लेकिन सन 1568 ईस्वी में मेवाड़ की राजधानी बदलकर उदयपुर को मेवाड़ की राजधानी घोषित कर दिया गया।
ऐसा कहते हैं कि जब बाहुबली भीम अमृतत्व के रहस्य की खोज में निकले तो वो इस स्थान पर पहुँच गए। यहाँ पर उन्होंने एक गुरु भी बनाया था। वो अपने काम में सफल नहीं हुए। चित्तौड़गढ़ दुर्ग के पीछे पूर्व दिशा में स्थित एक पहाड़ है, जो भीम के आकर का है और ऐसी मान्यता हैं की बाहुबली भीम ने यहाँ विश्राम किया था। हालाँकि इस पहाड़ को लेकर भी मतभेद है क्योंकि कुछ लोग इसको ‘सोए हुए भगवान बुद्ध’ ( sleeping Buddha) की भी संज्ञा देते हैं। सबसे पहले यहाँ मौर्य वंश का राज था।
8 वीं शताब्दी से इसका इतिहास देखा जाए तो बाप्पा रावल से इसकी शुरुआत होती है। बाप्पा रावल यहाँ के वंशज नहीं थे ,इन्होने यहाँ की राजकुमारी (सोलंकी वंश ) से शादी की थी और चित्रकूट के राजा बने थे। चित्तौडग़ढ़ में महाराणा प्रताप ,गोरा -बादल ,महाराणा कुम्भा ,महाराणा सांगा जैसे वीर योद्धाओं ने जन्म लिया था। भगवान श्री कृष्णा की सबसे बड़ी भक्त मीरा बाई का ससुराल भी चित्तौडग़ढ़ ही हैं।
चित्तौडग़ढ़ का किला (Chittorgarh Fort) कब बना-
पांचवी सदी में मौर्यवंश के शासक चित्रांगद मौर्या ने इसको बसाया था।
चित्तौडग़ढ़ किले के द्वार-
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के ऊपर जाने के लिए कुल 7 दरवाजे बने हुए हैं। पहले दरवाजे का नाम पाडन पोल ,दूसरे दरवाजे का नाम भैरव पोल ,तीसरे दरवाजे का नाम हनुमान पोल ,चौथे दरवाजे का नाम गणेश पोल ,पांचवें दरवाजे का नाम जोरला पोल, छठे दरवाजे का नाम लक्ष्मण पोल और सातवें दरवाजे का नाम राम पोल हैं। इस किले की पूर्व दिशा में सूरज पोल भी है जो किले का मुख्य द्वार हैं।
भारत का सबसे बड़ा किला कोनसा हैं ( क्षेत्रफल ) –
क्षेत्रफल की दृष्टि से चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) एशिया का सबसे बड़ा किला हैं। इसके लिए एक कहावत हैं “गढ़ तो चित्तौडग़ढ़ बाकि सब गढ़ैया”। इसकी बनावट,बड़ा आकार और सामरिक स्थिति देखकर इसको सभी गढ़ो का सिरमौर कहा जाता हैं। यह किला 691.9 एकड़ (280 हेक्टेयर ) में फैला हुआ हैं। जमीन से इसकी ऊंचाई लगभग 180 मीटर (590.6 फ़ीट) हैं। इस किले पर पहले 80 कुंड ( जलाशय ) थे जिनमे से अब सिर्फ 30 कुंड बचे हैं।
चित्तौडग़ढ़ का ज़ोहर क्यों प्रसिद्ध हैं और दूसरा साका कब हुआ
चित्तौडग़ढ़ (Chittorgarh Fort) को त्याग और बलिदान की भूमि माना जाता है। सबसे पहले आपको बताते है जौहर क्या होता है। प्राचीन समय में जब राजा और महाराजा युद्ध के लिए जाते थे और यदि वीरभूमि को प्राप्त हो जाते तो उनकी पत्नियाँ जौहर स्थल पर आग लगाकर उसमे कूद जाती थी और जान दे देती थी, जिससे की उनकी इज्जत के साथ कोई खिलवाड़ नहीं कर सके। मुस्लिम शासक बहुत क्रूर होते थे। राजा की मौत के बाद उनकी पत्नियों को रखैल बना लेते थे,इसी डर की वजह से औरतें अपनी जान दे देती थी। इसी को जौहर कहा जाता है।
चित्तौडग़ढ़ में पहला जौहर (महारानी पद्मिनी )-
सन 1303 में हुआ था। जब अल्लाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया तो राजा रतन सिंह ने 2 बार हरा दिया। लेकिन तीसरी बार धोखे से रतन सिंह वीर गति को प्राप्त हुआ। यह खबर सुनकर महानी पद्मावती ने अपनी साथी 1600 रानियों के साथ जौहर कर लिया। चित्तौडग़ढ़ इतिहास का यह पहला जौहर माना जाता हैं।
चित्तौडग़ढ़ का दूसरा साका या जौहर ( राजमाता कर्णावती ) –
महारानी कर्णावती महाराणा सांगा की रानी थी। सन 1535 में गुजरात के शासक बहादुर शाह जफ़र ने चित्तौडग़ढ़ पर आक्रमण किया था। इस युद्ध में महाराणा सांगा की हार की खबर सुनकर कर्णावती ने जौहर कर अपने प्राण त्याग दिए थे।
चित्तौडग़ढ़ का तीसरा जौहर ( रानी फुलकंवर मेड़तणी ) –
तीसरा जौहर सन 1568 में हुआ था। मुग़ल आक्रमणकारी अकबर ने चित्तौडग़ढ़ के राज परिवार की अनुपस्थिति में धावा बोल दिया था जिसके चलते रानी फूलकंवर ने हजारों औरतों के साथ जौहर किया था।
चित्तौडग़ढ़ पर आक्रमण कब -कब हुआ-
सन 1303 ( अल्लाउद्दीन खिलजी )
अल्लाउद्दीन खिलजी ने 28 जनवरी 1303 को चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) की घेराबंदी कर ली। लम्बे समय तक बहार नहीं निकल पाने की वजह से राजपूती सेना की राशन सामग्री ख़त्म होने लगी थी।
नहीं चाहकर भी राजपूतों को राजा रतन सिंह के नेतृत्व में मुगलों पर हमला करना पड़ा। रतन सिंह लड़ाई करते हुए खिलजी के बेहद करीब पहुँच गए लेकिन निहत्था देख कर छोड़ दिया था। बाद में खिलजी ने रतन सिंह को पराजित करके 16 अगस्त 1303 को चित्तौडग़ढ़ किले (Chittorgarh Fort) को अपने कब्जे में ले लिया था।
खिलजी ने उसके बेटे खिज्रखां के नाम पर चित्तौड़गढ़ का नाम बदलकर ख़िज्राबाद कर दिया। गंभीरी नदी पर बनी पुलिया का निर्माण इसने ही करवाया था। ऐसा कहा जाता हैं की इस लड़ाई में एक ही दिन में क्रूर मुग़लों ने 30000 निर्दोष लोगों को भी मौत के घाट उतार दिया था।
सन 1533 ( बहादुर शाह )-
इस युद्ध में महाराणा सांगा (संग्रााम सिंंह) ने बहादुर शाह जफर को पराजित किया था।
सन 1568 ( अकबर )-
18 जून 1576 का दिन था, महाराणा प्रताप और मुग़ल सेना के बिच हल्दीघाटी के मैदान पर घमासान युद्ध हुआ था। महाराणा प्रताप की सेना बहुत छोटी थी। मुग़ल सेना का नेतृत्व मान सिंह कर रहे थे।
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि महाराणा प्रताप की सेना की संख्या लगभग 22000 थी और मुग़ल सेना लगभग 80000 थी। लेकिन फिर भी मेवाड़ी सेना ने मुगलों को हरा दिया था।
लेकिन महाराणा प्रताप का भाई शक्ति सिंह मुग़ल सेना में शामिल हो गया और प्रताप की सभी रणनीतियां उनको बात दी जिसके चलते मान सिंह जीत गया।
इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए पीछे हट गए। अगर भाई ने धोखा नहीं किया होता और मान सिंह ने मुगलों का साथ नहीं दिया होता तो शायद वो कभी नहीं जीत सकते थे।
चित्तौडग़ढ़ का राजा कौन हैं-
चित्तौडग़ढ़ पर बहुत राजाओं ने राज किया था। जिनमें महाराणा सांगा ,महाराणा प्रताप ,चित्रांगद मौर्य ,राणा रतन सिंह, राजा हमीर सिंह का नाम शामिल हैं।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर रमणीय/पर्यटनीय स्थल Tourist Places on Chittorgarh Fort-
वैसे तो चित्तौड़गढ़ दुर्ग की हर दीवार ,हर पत्थर, प्रत्येक स्थान और कण -कण वीर गाथाओं से भरा पड़ा हैं। यहाँ पर एक भी पत्थर ऐसा नहीं होगा जो खून से रंगा हुआ नहीं हैं। अलग-अलग राजा और रानियों ने अपने अपने समय यहाँ पर कई निर्माण करवाए जिनमें मुख्य यह हैं –
1 कालिका माता मंदिर ( kalika mata mandir )–
यह चित्तौडग़ढ़ का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 8 वीं सदी में राजा बप्पा रावल ने करवाया था।
इसका निर्माण सूर्य मंदिर के रूप में हुआ था लेकिन 14 वीं शताब्दी में राजा हमीर सिंह में इस मंदिर में कालिका माता की मूर्ति की स्थापना की थी।
यह विजय और शौर्य का प्रतिक माना जाता हैं। कोई भी राजा जब भी युद्ध के लिए जाते या फिर कोई शुभ कार्य प्रारम्भ करते तो सबसे पहले कालिका माता के ही दर्शन करते थे और पूजा करते थे।
ऐसा माना जाता हैं की महाराणा प्रताप को काली माता ने साक्षात दर्शन दिए थे। अभी भी चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर यह हिन्दू धर्म को मानने वालों का मुख्य दर्शनीय स्थल हैं। यहाँ नवरात्री के समय लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं।
2 विजय स्तम्भ ( vijay stambh)–
वास्तुकार राव जैता के नेतृत्व में विजय स्तम्भ को महाराणा कुम्भा ने बनवाया था। यह राजस्थान के ऐतिहासिक शहर चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर स्थित हैं। महाराणा कुम्भा ने सारंगपुर युद्ध में महमूद खिलजी को पराजित कर दिया था जिसके बाद कुम्भा ने विजय के प्रतिक विजय स्तम्भ का निर्माण सन 1437 में करवाया था।
विजय स्तम्भ की ऊंचाई 122 फ़ीट और चौड़ाई 30 फ़ीट हैं। यह निचे से चौड़ा ,बिच में संकरा और ऊपर जाते जाते फिर से थोड़ा चौड़ा हो जाता हैं।
अगर इसका आकार देखा जाए तो यह डमरू के समान हैं। यह स्थापत्यकला और कारीगरी का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इसमें कुल 9 मंजिलें हैं और ऊपर जाने जाने के लिए 157 सीढ़ियां बनी हुए हैं।
यह भी पढ़ें – विजय स्तंभ के बारें में 21 रौचक तथ्य।
इसको विष्णु ध्वज या विष्णु स्तम्भ के नाम से भी जाना जाता हैं। इसके अंदर और बाहर हिन्दू देवी -देवताओं की सुन्दर सुन्दर मूर्तियां पत्थरों पर उत्कीर्ण हैं।
रामायण और महाभारत के पात्रों की हजारों मूर्तियां अंकित हैं इसके साथ ही भगवान विष्णु के अवतार, हरिहर ,ब्रह्मा ,लक्ष्मीनारायण ,उमा -महेश्वर और अर्धनारीश्वर की मूर्तियां अंकित हैं। इसके ऊपर आम आदमी भी घूमने के लिए जा सकते हैं।
3 कीर्ति स्तम्भ ( kirti stambh)–
कीर्ति स्तम्भ का इतिहास विजय स्तम्भ से भी पुराना हैं। इसका निर्माण जीजाजी कथोड़ ने 12 वीं शताब्दी में करवाया था। यह 22 मीटर ऊँचा, 54 सीढ़ियां और 7 मंजिला हैं। यह किले की पूर्वी छोर पर बना हुआ हैं। इसके अंदर जाने और घूमने की परमिशन नहीं हैं।
यह भी पढ़ें :– कीर्ति स्तंभ से सम्बंधित रौचक तथ्य।
4 मोहर मंगरी- (mohar mangry)
मोहर मंगरी को चित्तौड़ी बुर्ज के नाम से भी जाना जाता हैं यह किले की चार दीवारी से बहार दक्षिण दिशा में स्थित हैं। इसका इतिहास भी बहुत दिलचस्प हैं। जब अकबर की सेना ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया था तब किले पर आसानी के साथ चढ़ाई करने के उद्देश्य से इसका निर्माण किया गया था।
प्रत्येक मजदुर को एक एक सोने की मोहर का लालच दिया गया। एक मजदुर एक बार मिट्टी लेकर जिस रास्ते से जाता उसको वापस उस रास्ते से नहीं आने दिया जाता। और सोने की मोहर भी छीन ली जाती थी।
5 मृग वन-( mrig van)
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के दक्षिणी छोर पर एक बहुत बड़े भाग पर मृग वन बना हुआ हैं। हिरणों के संरक्षण के लिए इसको बनाया गया था। हिरणों के खाने और पिने की पूरी व्यवस्था हैं। साथ ही इसके अंदर भ्रमण की अनुमति भी है.अब यहाँ पर ज्यादा हिरन नहीं है। हिरणों से ज्यादा यहाँ पर बंदर देखने को मिलते हैं।
6 भीम कुंड-( bhim kund)
महाभारत के पात्र राजकुमार भीम ने इस कुंड को बनाया था इसलिए इसका नाम आज भी भीम कुंड हैं। भीम कुंड में वर्ष पर्यन्त पानी रहता हैं ,इसमें बनी सुरंग में आने वाला पानी आज भी रहस्य का विषय हैं। चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर स्थित हैं।
7 पदमिनी महल-( padmini mahal)
सबसे अधिक प्रसिद्ध और दर्शनीय महल हैं। महाराजा रतन सिंह ने इसका निर्माण महारानी पद्मिनी के लिए करवाया था। यह पानी के बीचों बिच बना हुआ हैं। इसको जनाना महल के नाम से भी जाना जाता हैं।
इसके समीप तालाब के किनारे पर बने हुए महल को “मर्दाना महल” के नाम से जाना जाता हैं। जब भी महारानी पद्मिनी इस महल की सीढ़ियों पर आती तो उनका प्रतिबिम्ब सामने वाले महल में लगे काँच में दिखाई देता था।
खिलजी ने भी यहीं खड़े होकर पद्मिनी का प्रतिबिम्ब देखा था। केवल पानी में महारानी का प्रतिबिम्ब देखकर वह उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया और उसको पाने की लालसा में राजा रतन सिंह के साथ युद्ध किया था।
युद्ध में रतन सिंह को धोखे से हराकर जब खिलजी महल में पहुंचा ,तब तक महारानी ने साथी रानियों के साथ जौहर कर लिया। खिलजी का सपना अधूरा रह गया था।
8 मीरा मंदिर-( meera mandir)
मीरा मंदिर का निर्माण महाराण कुम्भा के समय हुआ था। भगवान कृष्ण की परम भक्त मीरा ने राज महल त्याग कर कृष्णा की भक्ति की थी। इस मंदिर के प्रांगण में 4 मंडप बने हुए हैं। यह मंदिर कुम्भाश्याम मंदिर के पास चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर स्थित हैं।
9 जोहर स्थल-( johar sthal)
चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) पर महारानी पद्मिनी ,महारानी कर्णावती और महारानी फूलकुंवर ने स्वयं को आग के हवाले किया था उसी पावन क्षेत्र को जौहर स्थल कहा जाता हैं। यह स्थान विजय स्तम्भ और समिधेश्वर महादेव मंदिर के मध्य भाग में स्थित हैं। इस स्थान पर खुदाई में मिली राख इसकी सत्यता को प्रमाणित करती हैं।
10 सूरज पोल-(suraj pole)
इसको चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) का मुख्य द्वार भी कहा जाता हैं। यह किले की पूर्वी दिशा में मौजूद हैं। यहाँ खड़े होकर देखने पर किले के पीछे का बहुत ही मनोरम और प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलता हैं। इसके दरवाजे पर नुकीले और मोटे -मोटे कील लगे हुए हैं जिसकी वजह से हाथियों के प्रहार से भी इन दरवाजों को तोड़ना मुश्किल होता था।
11 नीलकण्ठेश्वर महादेव-(neekantheshwar mahadev)
नीलकंठ महादेव का मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर स्थित हैं। यह सूरजपोल से दक्षिण दिशा में लगभग 100 मीटर की दुरी पर स्थित हैं। यह बहुत प्राचीन हैं। यहाँ पर शिवलिंग का आकार बहुत बड़ा हैं। श्रावण मास में यहाँ पर बहुत भीड़ देखने को मिलती है साथ ही हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करने जरूर आते हैं।
12 फतह प्रकाश महल (संग्रहालय)-( fateh prakash mahal)
इसका निर्माण महाराणा फतेहसिंह ने करवाया था। इसके अंदर भगवान श्री गणेश की मूर्ति लगी हुई हैं। इसका निर्माण पूणतः आधुनिक रूप से किया गया हैं। इसको संग्रहालय भी कहा जाता है हालाँकि यहाँ पर रखे सभी प्राचीन अस्त्र और शस्त्र को उदयपुर ले गए है फिर भी प्राचीन समय की मनोरम तस्वीरें और मूर्तियां यहाँ देखने को मिलती हैं। इसके चारों कोनों पर बुर्ज बने हुए हैं।
13 समिद्धेश्वर महादेव चित्तौडग़ढ़ -( samiddheshwar mahadev)
विजय स्तम्भ और जौहर स्थल के समीप स्थित हैं ,यह बहुत प्राचीन मंदिर हैं। इसकी खासियत यह कि शिवलिंग तीन मुख वाला हैं जो की ब्रह्मा ,विष्णु और महेश के प्रतीक हैं। पुरे विश्व में ऐसे सिर्फ 2 मंदिर हैं। इसका निर्माण भोपाल के परमार वंश के राजा भोज ने 11वीं शताब्दी में बनाया था। इस मंदिर के बाहर परिसर में कई मूर्तियां टूटी हुई है जिनको खिलजी के पुत्र खिज्रखान ने तोड़ी थी।
14 गौमुख कुंड -( gaumukh kund)
जैसा कि नाम से ही ज्ञात होता यह कुंड गाय के मुँह के समान बना हुआ हैं। यहाँ से लगातार पानी बहता रहता हैं। यह बहता हुआ झरना शिवलिंग पर गिरता है। इस कुंड में लोग नहाने हैं और तैरने का पूरा आनंद लेते है। साथ ही इस कुंड में बहुत सारी मछलिया भी मौजूद है। चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर यह स्थित हैं।
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