चित्तौड़गढ़ के राजा की कहानी और चित्तौड़गढ़ के राजा का नाम क्या था?

चित्तौड़गढ़ के राजा की कहानी और चित्तौड़गढ़ के राजा का नाम जानने से पहले बता दें कि चित्तौड़गढ़ राजस्थान राज्य का एक ज़िला हैं जिसे शौर्य, पराक्रम, भक्ति और शक्ति के साथ ही ऐतिहासिक शहर के रुप में याद किया जाता हैं। चित्तौड़गढ़ का प्राचीन नाम चित्रकूट था।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भीम भी चित्तौड़ आए थे लेकिन हम चित्तौड़गढ़ के राजा की बात करें तो जब मौर्य शासक चित्रांगद मौर्य ने चित्तौड़ किले का निर्माण किया तब से लेकर जो महत्वपूर्ण और पराक्रमी राजा महाराजा हुए हैं उनके इतिहास की चर्चा करेंगे।

चित्तौड़गढ़ के राजा की कहानी और इतिहास

साक्ष्यों के अभाव में यह कह पाना तो मुश्किल है कि चित्तौड़गढ़ के प्रथम राजा कौन थे लेकिन चित्रांगद मौर्य ऐसे राजा हुए हैं जिनके नाम पर पहले इस शहर का नाम “चित्रकूट” था लेकिन समय के साथ इस में परिवर्तन कर दिया गया। सातवीं शताब्दी में मौर्य वंश के शासक चित्रांगद मौर्य ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया था। भारत के सबसे विशालकाय किलो में शामिल चित्तौड़गढ़ का किला 700 एकड़ में फैला हुआ है तथा इसकी ऊंचाई 180 मीटर है।

शानदार मौर्यकालीन स्थापत्य कला का उदाहरण इस किले में देखने को मिलता है। समय के साथ साथ चित्तौड़गढ़ के राजाओं ने किले के ऊपर अपने कार्यकाल में तरह-तरह के स्मारकों का निर्माण किया जो आज भी सीना तान कर खड़े हैं। विजय स्तंभ और कीर्ति स्तंभ आदि इसके मुख्य उदाहरण हैं।

चित्रांगद मौर्य के पश्चात मौर्य वंश के ही राजा मान मोरी चित्तौड़गढ़ के राजा बने। चित्तौड़गढ़ के राजा की कहानी यहीं पर थमने वाली नहीं थी। इन्होंने कई वर्षों तक यहां पर राज्य किया इनके शासनकाल को भी चित्तौड़गढ़ के इतिहास में अच्छा माना जाता है। यह मौर्य वंश के अंतिम शासक थे जिन्होंने चित्तौड़गढ़ पर शासन किया था।

राजा मान मोरी के राज्य दौरान गुहिल वंश के संस्थापक बप्पा रावल ने राजा मान मोरी की हत्या कर दी और चित्तौड़गढ़ के राजा बन गए। बप्पा रावल को हिंदू हृदय सम्राट के नाम से जाना जाता है। चित्तौड़गढ़ के राजा की कहानी की असली शुरुआत यहीं से हुई क्योंकि इन्होंने गुहिल वंश की स्थापना की और इस वंश ने लगभग भारत की आजादी तक चित्तौड़गढ़ पर शासन किया था।

बाद में इस वंश को सिसोदिया वंश के नाम से जाना जाने लगा जिसमें उदय सिंह, राणा मोकल, राणा सांगा, राणा रतन सिंह और महाराणा प्रताप सिंह जैसे पराक्रमी योद्धाओं ने शासन किया था। चित्तौड़गढ़ के राजा की कहानी किसी एक राजा पर केंद्रित नहीं हो सकती है, इस भूमि में जन्म लेने वाले प्रत्येक राजा ने स्वाभिमान के साथ राज किया, सिर कटाने को तैयार हो गए लेकिन कभी सिर झुकाया नहीं।

संपूर्ण भारत के इतिहास को उठाकर देखा जाए तो चित्तौड़गढ़ का इतिहास सबसे अलग है। यहां के राजाओं ने कभी भी अधीनता स्वीकार नहीं की और तो और यहां की रानियों ने भी किसी के सामने सर नहीं झुकाया। जोहर करने के लिए तैयार थी लेकिन चित्तौड़गढ़ की आन बान और शान में कोई कमी नहीं आने दी। ऐसा अद्भुत इतिहास संपूर्ण भारत में नहीं मिलता है।

आपको बता दें कि मेवाड़ की राजधानी था चित्तौड़गढ़। चित्तौड़गढ़ पर राज करने वाले सभी राजा अपने आप में अद्भुत थे। चित्तौड़गढ़ के राजा की कहानी इसलिए भी दिलचस्प है कि चाहे कितने ही शक्तिशाली विरोधी ने आक्रमण क्यों न किया हो या फिर इनकी सेना की संख्या बहुत कम क्यों ना हो, यह हमेशा लड़े। चित्तौड़गढ़ के राजाओं की कहानी पढ़ने के पश्चात और इसका इतिहास जानने के बाद समस्त भारतवासी गर्व महसूस करते हैं।

यह भी पढ़ें- समाधिश्वर महादेव / त्रिभुवन नारायण मंदिर चित्तौड़गढ़ का निर्माण और इतिहास।

चित्तौड़गढ़ के राजा का नाम क्या था?

चित्तौड़गढ़ में कई पराक्रमी राजाओं ने जन्म लिया और शासन किया इसलिए किसी एक का नाम नहीं लिया जा सकता है। चित्तौड़गढ़ के राजा का नाम क्या था, इसकी बजाय यह जाना जाए कि चित्तौड़गढ़ पर किन किन राजाओं ने राज किया तो ज्यादा बेहतर होगा।

चित्तौड़गढ़ के राजाओं के नाम की लिस्ट लंबी है लेकिन इस लेख के माध्यम से हम कोशिश करेंगे कि सभी का नाम आप जान सके। मौर्य वंश, गुहील वंश और बाद में सिसोदिया वंश के जो प्रतापी राजा हुए हैं और जिन्होंने चित्तौड़गढ़ पर राज किया है उनके नाम आप जान सकेंगे।

चित्तौड़गढ़ के राजा का नाम की जगह अगर हम मेवाड़ शासकों की वंशावली की बात करें तो निम्नलिखित राजा महाराजाओं के नाम सामने आते हैं –

यह भी पढ़ें- गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया किसने कहा था?

1. चित्रांगद मौर्य– इन्हीं के नाम पर चित्तौड़गढ़ (इनके नाम पर पहले इसका नाम चित्रकूट था) का नाम पड़ा, इन्होंने चित्तौड़गढ़ के किले का निर्माण करवाया था। हम इन्हें चित्तौड़गढ़ के प्रथम राजा मान सकते हैं।

2. राजा मान मोरी – राजा मान मोरी चित्तौड़गढ़ के मौर्यवंशीय शासक थे। जिन्हें पराजित कर काल भोज अर्थात् बप्पा रावल राजा बनें और गूहिल वंश की स्थापना की। गुहिल वंश ही आगे चलकर सिसौदिया वंश बन गया।

3. बप्पा रावल (734 ईस्वी) –  बप्पा रावल परम शिव भक्त थे। बप्पा रावल को बप्पा की उपाधि भीलों द्वारा दी गई थी।

4. सुमेर सिंह ने 753 ईस्वी से लेकर 773 ईस्वी तक मेवाड़ अर्थात चित्तौड़गढ़ के राजा के रूप में शासन किया था।

5. रतन सिंह ने 773 ईस्वी से लेकर 793 ईस्वी तक मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ पर शासन किया।

6. चेतन सिंह ने 793 ईस्वी से लेकर 813 ईस्वी तक शासन किया था।

7. रावल सिंह ने 813 ईस्वी से लेकर 828 ईस्वी तक शासन किया।

8. खुमान सिंह द्वितीय ने 828 ईस्वी से लेकर 853 ईस्वी तक शासन किया।

9. महाभोज ने 853 ईस्वी से लेकर 878 ईस्वी तक शासन किया।

10. खुमान सिंह तृतीय ने 878 ईस्वी से लेकर 903 ईस्वी तक शासन किया इन्हें चित्तौड़गढ़ के दसवे राजा के रूप में जाना जाता है।

11. भर्तभट्ट द्वितीय ने 903 ईस्वी से लेकर 951 ईस्वी तक शासन किया।

12. अल्लत सिंह 951 ईस्वी से लेकर 971 ईस्वी तक इन्होंने शासन किया साथ ही इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने हूण राजकुमारी हरिया देवी से शादी की थी और मेवाड़ में पहली बार नौकरशाही को लागू किया था।

13. नरवाहन जी ने 971 ईस्वी से लेकर 973 ईस्वी तक शासन किया था।

14. शालीवाहन ने 973 ईस्वी से लेकर 977 ईस्वी तक शासन किया।

15. शक्ति कुमार ने 977 ईस्वी से  993 ईस्वी तक शासन किया।

16. अंबा प्रसाद ने 993 ईस्वी से लेकर 1007 ईस्वी तक शासन किया था।

17. शुची वरमा ने 1007 ईस्वी से लेकर 1021 ईस्वी तक शासन किया।

18. नर वर्मा ने 1021 से लेकर 1035 ईस्वी तक शासन किया था।

19. कीर्ति वर्मा ने 1035 ईस्वी से लेकर 1051 ईस्वी तक शासन किया।

20. योगराज ने 1051 ईस्वी से लेकर 1068 ईस्वी तक शासन किया।

21. वैरठ सिंह ने 1068 ईस्वी से लेकर 1088 ईस्वी तक शासन किया था।

22. हंसपाल ने 1088 ईस्वी से लेकर 1103 ईस्वी तक शासन किया।

23. वैरी सिंह ने 1103 ईस्वी से लेकर 1107 ईस्वी तक शासन किया।

24. विजय सिंह ने 1107 ईस्वी से लेकर 1127 ईस्वी तक शासन किया था।

25. अरी सिंह ने 1127 ईस्वी से लेकर 1138 ईस्वी तक शासन किया।

26. चौड़ सिंह ने 1138 ईस्वी से लेकर 1148 ईस्वी तक चित्तौड़गढ़ के राजा के रूप में शासन किया था।

27. विक्रम सिंह ने 1148 ईस्वी से लेकर 1158 ईस्वी तक चित्तौड़गढ़ के राजा के रूप में शासन किया था।

28. रण सिंह या कर्ण सिंह ने 1158 ईस्वी से लेकर 1168 ईस्वी तक शासन किया था।

29. क्षेम सिंह ने 1168 ईस्वी से लेकर 1172 ईस्वी तक शासन किया।

30. सामंत सिंह, क्षेम सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। सन 1172 ईस्वी से लेकर 1179 ईस्वी तक इन्होंने शासन किया। इनका कार्यकाल लगभग 7 वर्षों तक रहा।

31. कुमार सिंह भी क्षेम सिंह के छोटे पुत्र थे, जिन्होंने 1179 ईस्वी से लेकर 1191 ईस्वी तक शासन किया था।

32. मंथन सिंह ने 1191 ईस्वी से लेकर 1211 ईस्वी तक शासन किया।

33. पद्म सिंह ने 1211 ईस्वी से लेकर 1213 ईस्वी तक चित्तौड़गढ़ के राजा के रूप में आसीन रहे।

34. जैत्र सिंह ने सन 1213 ईस्वी से लेकर 1250 ईस्वी तक शासन किया। इन्होंने भूताला का युद्ध जीता और चित्तौरगढ़ को मेवाड़ की राजधानी बनाया।

35. तेज सिंह ने चित्तौरगढ़ के राजा के रुप में 1261 ईस्वी से लेकर 1273 ईस्वी तक शासन किया था।

36. समर सिंह ने चित्तौड़गढ़ के राजा के रूप में 1273 से लेकर 1301 ईस्वी तक शासन किया। इनके 2 पुत्र थे पहला रत्नसेन जो मेवाड़ का उत्तराधिकारी था और दूसरा पुत्र कुम्भकरण जो नेपाल चला गया। नेपाल राजवंश के शासक इनके ही वंशज हैं।

37. रत्नसेन इनका कार्यकाल सन 1302 ईस्वी से लेकर 1303 ईस्वी तक का रहा जो कि बहुत संक्षिप्त था। इनके कार्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था और रानी पद्मावती ने जोहर किया। गोरा-बादल ने अपना पराक्रम इनके समय ही दिखाया था।

38.अजय सिंह सन 1303 ईस्वी से लेकर 1326 ईस्वी तक चित्तौड़गढ़ के राजा थे।

39. महाराणा हमीर सिंह ने 1326 ईस्वी से लेकर 1364 ईस्वी तक शासन किया। खिलजी द्वारा नियुक्त बनवीर सोनगरा को पराजित करके इन्होंने चित्तौड़गढ़ को पुनः अपने कब्जे में लिया और मेवाड़ की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित किया।इसके बाद ही इन्हें महाराणा की उपाधि प्रदान की गई और यहीं से यह रिवाज भी बन गया कि जो भी मेवाड़ का राजा बनेगा उसे महाराणा नाम से पुकारा जाएगा।

40. महाराणा क्षेत्र सिंह ने चित्तौड़गढ़ के राजा के रूप में 1364 ईस्वी से लेकर 1384 ईस्वी तक शासन किया था।

41. महाराणा लाखा सिंह ने 1384 ईस्वी से लेकर 1421 ईस्वी तक शासन किया। इन्होंने राज्य विस्तार पर विशेष ध्यान दिया था।

42. महाराणा मोकल 1421 ईस्वी से लेकर 1433 ईस्वी तक शासन किया। समाधिश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।

43. महाराणा कुम्भा 1433 ईस्वी से लेकर 1468 ईस्वी तक शासन किया। इन्होंने कुंभलगढ़ किले का निर्माण करवाया और साथ ही कई मंदिरों का भी निर्माण करवाया और राज्य विस्तार पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया। इनके पुत्र उदयसिंह ने ही इन्हें मौत के घाट उतार दिया।

44. महाराणा उदा या महाराणा उदय सिंह ने 1468 ईस्वी से लेकर 1473 ईस्वी तक चित्तौड़गढ़ पर शासन किया। मेवाड़ का विनाश करने में इन्होंने कोई कमी नहीं रखी। महाराणा कुंभा के द्वितीय पुत्र रायमल ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया।

45. महाराणा रायमल 1473 ईस्वी से लेकर 1509 ईस्वी तक चित्तौड़गढ़ के राजा अर्थात् मेवाड़ के राजा के रूप में काम किया।

46. महाराणा सांगा ( महाराणा संग्राम सिंह) ने 1509 ईस्वी से लेकर 1527 ईस्वी तक मेवाड़ के राजा के रूप में कार्य किया था।

47. महाराणा रतन सिंह ने 1527 ईस्वी से लेकर 1531 ईस्वी तक शासन किया।

48. महाराणा विक्रमादित्य 1531 ईस्वी से लेकर 1536 ईस्वी तक शासन किया। यह कमजोर शासक थे, गुजरात के बहादुर शाह ने मेवाड़ को इनके कार्यकाल में दो बार नुकसान पहुंचाया। रानी कर्मावती ने जोहर किया था।

49. महाराणा उदय सिंह ने 1537 ईस्वी से लेकर 1572 ईस्वी तक शासन किया। इन्होंने मेवाड़ की राजधानी बदलकर चित्तौड़गढ़ से उदयपुर कर दी।

50. महाराणा प्रताप ने 1572 ईस्वी से लेकर 1597 ईस्वी तक मेवाड़ पर राज्य किया था।

51. महाराणा अमर सिंह ने सन 1597 से लेकर 1620 ईस्वी तक मेवाड़ पर शासन किया था, इन्हें मेवाड़ के अंतिम स्वतंत्र राजा के रूप में याद किया जाता है।

52. महाराणा कर्ण सिंह ने 1620 ईस्वी से लेकर 1628 ईस्वी तक शासन किया।

53. महाराणा जगत सिंह ने मेवाड़ के राजा के रूप में 1628 ईस्वी से लेकर 1652 ईस्वी तक शासन किया।

54. महाराणा राजसिंह ने कई बार औरंगजेब को पराजित किया था। इन्होंने 1652 ईस्वी से लेकर 1680 ईस्वी तक शासन किया। राजसमंद झील और राजनगर इन्होंने ही बसाया था।

55. महाराणा जयसिंह ने 1680 ईस्वी से लेकर 1698 ईस्वी तक शासन किया था। जय समंद झील का निर्माण करवाया।

56. महाराणा अमर सिंह द्वितीय ने 1698 ईस्वी से लेकर 1710 ईस्वी तक शासन किया था। किसानों पर इन्होंने विशेष ध्यान दिया।

57. महाराणा संग्राम सिंह ने 1710 ईस्वी से लेकर 1734 ईस्वी तक शासन किया और मेवाड़ के लिए 18 युद्ध लड़े।

58. महाराणा जगत सिंह द्वितीय ने 1734 ईस्वी से लेकर 1751 ईस्वी तक शासन किया। जलमहल का निर्माण इन्होंने करवाया था।

59. महाराणा प्रताप सिंह द्वितीय 1751 ईस्वी से लेकर 1754 ईस्वी तक शासन किया था।

60. महाराणा राजसिंह द्वितीय 1754 ईस्वी से लेकर 1761 ईस्वी तक चित्तौड़गढ़ के राजा के रूप में शासन किया था।

61. महाराणा अरिसिंह द्वितीय 1761 ईस्वी से लेकर 1773 ईस्वी तक शासन किया।

62. महाराणा हमीर सिंह द्वितीय ने 1773 ईस्वी से लेकर 1778 ईस्वी तक शासन किया।

63.महाराणा भीम सिंह 1778 ईस्वी से लेकर 1828 ईस्वी तक शासन किया।

64. महाराणा जवानसिंह 1828 ईस्वी से लेकर 1838 ईस्वी तक शासन किया। इनके कोई संतान नहीं थी।

65.महाराणा सरदार सिंह ( महाराणा जवानसिंह के गोद लिए हुए पुत्र) ने 1838 ईस्वी से लेकर 1842 ईस्वी तक शासन किया। इनका भी कोई पुत्र नहीं था।

66. महाराणा स्वरूप सिंह ने 1842 ईस्वी से लेकर 1861 ईस्वी तक शासन किया। 1857 की क्रांति इनके समय हुई थी।

67.महाराणा शंभू सिंह ने  1861 ईस्वी से लेकर 1874 ईस्वी तक शासन किया था।

68.महाराणा सज्जनसिंह 1874 ईस्वी से लेकर 1884 ईस्वी तक मेवाड़ के राजा के रूप में शासन किया था।

69. महाराणा फतेहसिंह 1884 ईस्वी से लेकर 1930 ईस्वी तक शासन किया था।

70. महाराणा भूपालसिंह ने 1930 ईस्वी से लेकर 1955 ईस्वी तक।

71. महाराणा भगवत सिंह ने 1955 ईस्वी से लेकर 1984 तक।

72. श्री अरविंद सिंह जी और श्री महेंद्र सिंह जी 1984 से लेकर निरंतर..

यह भी पढ़ें- चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) का इतिहास और ऐतिहासिक स्थल।

1 thought on “चित्तौड़गढ़ के राजा की कहानी और चित्तौड़गढ़ के राजा का नाम क्या था?”

Leave a Comment