दादू दयाल हिंदी के भक्तिकाल में ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख संत और कवी थे. निर्गुणवादी संप्रदाय “दादू दयाल पंथ” की स्थापना इन्होंने ही की थी. दादू दयाल का नाम पहले बाहुबली था लेकिन इनकी पत्नी का निधन हो जाने के बाद इन्होंने सन्यासी जीवन अपना लिया. पत्नी के निधन के बाद इनका ज्यादातर जीवन जयपुर (राजस्थान) के सांभर और आमेर में बिता.
जब इनकी मुलाकात फतेहपुर सीकरी में अकबर से हुई उसके बाद ये नरैना नामक गाँव में रहने लगे. इस लेख में हम आपको दादूदयाल के जीवन के बारें में संक्षिप्त जानकारी दे रहे हैं.
दादू दयाल का जीवन परिचय और इतिहास
परिचय का आधार | परिचय |
नाम | दादू दयाल (बाहुबली के नाम से भी जाना जाता था) |
जन्म | 1544 ईस्वी, अहमदाबाद (गुजरात) |
देवलोक गमन | 1603 ईस्वी (नरैना,राजस्थान) |
संस्थापक | दादू दयाल संप्रदाय |
गुरु का नाम | बुड्डन बाबा |
अन्य नाम | राजस्थान के कबीर |
[1] संत दादू दयाल जी हिंदी के भक्ति काल में ज्ञानाश्री शाखा के प्रमुख संत कवि थे, संत दादूदयाल जी के 52 पट शिष्य थे, जिनमें लालदास जी, गरीबदास, सुंदरदास, रज्जब और बखना मुख्य हैं.
[2] दादू के नाम से “दादू पंत” चल पड़ा.
[3] दादू दयाल जी के अत्यंत दयालु स्वाभाव के होने के कारण इनका नाम दादूदयाल पड़ गया, जबकि पहले इनका नाम बाहुबली हुआ करता था.
[4] दादू दयाल हिंदी, गुजराती, राजस्थानी आदि कई भाषाओं के ज्ञाता थे.
[5] इन्होंने शबद और साकी लिखी.
[6] इनकी रचना प्रेमभाव पूर्ण है.
[7] जातपात के निराकरण, हिंदू मुसलमानों की एकता आदि विषयों पर इनके पद तर्कप्रेरित न होकर ह्रदय प्रेरित है.
[8] दादू दयाल जी का जन्म 1544 में अहमदाबाद, गुजरात में हुआ.
[9] दादू दयाल जी की मृत्यु 1603 में नरेना नामक स्थान पर श्री दादू पालकांजी भैराणाधाम राजस्थान में हुई.
[10] दादू दयाल जी के गुरु परब्रह्म परमात्मा.
[11] दादू दयाल का मानना था या उपदेश था कि भगवान की भक्ति धार्मिक या सांप्रदायिक संबद्धता से परे होनी चाहिए ,और भक्तो को गैर सांप्रदायिक या “निपाख “बनना चाहिए.
[12] दादू दयाल ने दादू पंत चलाया जिसकी प्रमुख पीठ वर्तमान में नरैना, भैराणाधाम (जयपुर) में स्थित है.
[13] दादूपंथी साधु विवाह नहीं करते और बच्चों को गोद लेकर अपना पंथ चलाते हैं.
[14] दादूपंत के सत्संग को “अलख दरीबा” कहा जाता हैं.
[15] संत दादूदयाल जी को राजस्थान का कबीर कहा जाता हैं.
[16] दादू दयाल का मेला प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ल अष्ठमी पर नरैना धाम में लगता हैं.
[17] संत दादू दयाल जी के गुरु का नाम “बुड्डन बाबा” माना जाता हैं लेकिन एक कवि के रूप में इनके द्वारा रचित रचनाओं में इन्होंने अपने गुरु के बारे में कहीं पर भी जिक्र नहीं किया हैं.
[18] दादू पंथ का प्रमुख केंद्र “नरैना” हैं.
[19] संत दादू दयाल की कविताओं पर “कवि कबीरदास” का विशेष प्रभाव देखने को मिलता हैं.
[20] दादू दयाल का समयकाल साल 1544 से लेकर 1603 तक था.
[21] श्री दादू दयाल जी महाराज को ही दादू संप्रदाय का संस्थापक माना जाता हैं.
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