दौलतराव शिंदे ( Daulat Rao Scindia)- ग्वालियर के 7वें मराठा शासक या महाराजा।

दौलत राव सिंधिया/दौलतराव शिंदे (Daulat Rao Scindia) ग्वालियर रियासत के सातवें महाराजा बने।इनकी शासन अवधि 12 फरवरी 1794 से लेकर 21 मार्च 1827 तक रही। दौलत राव सिंधिया के पास कई उपाधियां थी जिनमें ग्वालियर के महाराजा, नैब -वकील -आई -मुल्ताक ( डिप्टी रिजेंट ऑफ़ दी एम्पायर) और अमीर -अल -उमरा ( हेड ऑफ़ द अमीर्स ) मुख्य थी।

दौलत राव सिंधिया (Daulat Rao Scindia) का शासनकाल मराठा साम्राज्य के भीतर वर्चस्व के संघर्ष के साथ शुरू हुआ था। ईस्ट इंडिया कंपनी के बढ़ते विस्तार को लेकर कई युद्ध हुए। दौलतराव सिंधिया ने द्वितीय और तृतीय एंग्लो-मराठा युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

दौलत राव सिंधिया का इतिहास ( Daulat Rao Scindia History in Hindi)-

  • पूरा नाम Full name – श्रीमंत दौलत राव सिंधिया (शिंदे).
  • जन्म वर्ष Birth year– 1779.
  • मृत्यु वर्ष Death year – 21 मार्च 1827.
  • मृत्यु के समय आयु Age at the time of death – 48 वर्ष.
  • पिता का नाम Father’s name – आनंद राव सिंधिया.
  • पत्नी का नाम Wife’s name – बैजाबाई.
  • शासन अवधि Government period – 12 फरवरी 1794 से 21 मार्च 1827 तक.
  • सम्राज्य Empire – मराठा साम्राज्य.
  • धर्म Religion – हिंदू, सनातन.

दौलत राव शिंदे (Daulat Rao Scindia), सिंधिया राजवंश के सदस्य थे। महज 15 वर्ष की आयु में 12 फरवरी 1794 के दिन ग्वालियर रियासत के सिंहासन पर बैठे। महादजी शिंदे का कोई वारिस नहीं था। दौलतराव सिंधिया /दौलतराव शिंदे (Daulat Rao Scindia) तुकोजी राव सिंधिया के पोते थे। तुकोजी राव सिंधिया की 7 जनवरी  1761 के दिन पानीपत के तीसरे युद्ध में मृत्यु हो गई थी।

3 मार्च 1794 के दिन सतारा के छत्रपति और पेशवा ने औपचारिक रूप से ग्वालियर रियासत के महाराज के रूप में मान्यता दी। इसके अलावा शाह आलम द्वितीय द्वारा 10 मई 1794 के दिन इन्हें अमीर उल उमरा ( अमीरों का मुखिया) और नायब वकील ए मुतलाक की उपाधी प्रदान की गई।

जैसा कि आप जानते हैं ग्वालियर राज्य मराठा साम्राज्य का हिस्सा था, जिसकी स्थापना 17वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने की थी। साम्राज्य का वास्तविक नियंत्रण छत्रपति शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी से लेकर साम्राज्य के वंशानुगत पेशवा और मुख्यमंत्रियों तक सीमित रहा।

18 वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य को मात देते हुए मराठा साम्राज्य का विस्तार हुआ। मराठा साम्राज्य का विस्तार करने के लिए मराठा सेनाओं के मुख्य कमांडरों को पेशवा की ओर से जीते हुए प्रदेशों में चौथ अर्थात् कर एकत्रित करने की ज़िम्मेदारी दी गई।

दौलतराव सिंधिया / दौलतराव शिंदे (Daulat Rao Scindia) से पहले उनके पूर्वज रानोजी सिंधिया ने मुगलों से मालवा और गिर क्षेत्र पर आक्रमण कर विजय हासिल की थी। दौलत राव सिंधिया की पत्नी बैजाबाई अपने समय की एक बहुत ही शक्तिशाली और बुद्धिमान महिला थी, जिन्होंने ग्वालियर रियासत के मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों की हार के साथ मराठा साम्राज्य कई छोटे-छोटे लेकिन शक्तिशाली राजवंशों में विभक्त हो गया। जिनमें पुणे के पेशवा, इंदौर के होल्कर, धार और देवास के पवार, नागपुर के भोंसले और बड़ौदा के गायकवाड शामिल है। दौलत राव सिंधिया /दौलतराव शिंदे (Daulat Rao Scindia) से पहले महाराजा रहे महादजी शिंदे ने ग्वालियर रियासत को एक मुख्य सैन्य शक्ति के रूप में बदल दिया था, जिसे दौलतराव सिंधिया ने आगे बढ़ाया।

इसी वजह से दौलतराव सिंधिया / दौलतराव शिंदे (Daulat Rao Scindia) ने खुद को मराठा साम्राज्य के सदस्य के रूप में कम और भारत के इतिहास में मुख्य संप्रभु के रूप में देखना प्रारंभ कर दिया। इस समय मराठा साम्राज्य के युवा पेशवा माधवराव द्वितीय (1795) की मृत्यु हो गई, तुकोजी राव होलकर का निधन हो गया, नाराज़ चल रहे यशवंत राव होलकर का उदय हुआ और साथ ही साथ नाना फडणवीस भी साजिश करने लगे।

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जबकि सिंधिया राजवंश लगातार उपलब्धियां हासिल कर रहा था। किसी भी कीमत पर दौलतराव सिंधिया / दौलतराव शिंदे (Daulat Rao Scindia) ने अपने प्रभुत्व को बढ़ाने के लिए धार और देवास के पवारों  के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। इंदौर के यशवंत राव होलकर की बढ़ती हुई शक्ति से वह बहुत चिंतित थे।

1801 ईस्वी में यशवंत राव होल्कर ने सिंधिया राजवंश के अधीन ग्वालियर रियासत की राजधानी उज्जैन पर आक्रमण कर दिया और आसपास के क्षेत्रों को अपने कब्जे में ले लिया। 1802 ईस्वी में दीपावली त्यौहार पर यशवंत राव होल्कर ने संयुक्त रुप से सिंधिया और पेशवा बाजीराव द्वितीय की सेनाओं को संयुक्त रूप से पराजित कर दिया। यह युद्ध हड़पसर (पुणे) के समीप लड़ा गया था।

यह युद्ध मुख्य रूप से घोरपड़ी, बनवाड़ी और हड़पसर पुणे में लड़े गए। सिंधिया और होलकर वंश की सेनाओं के बीच जो युद्ध चल रहा था, इस समय को “अशांति का काल” के नाम से भी जाना जाता है। आपसी लड़ाई हो का यह नतीजा रहा कि 30 दिसंबर 1803 को पेशवा ने “बसीन की संधि” पर हस्ताक्षर किए जिसके द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में सर्व शक्तिमान शक्ति के रूप में मान्यता दी गई।

दौलत राव सिंधिया /दौलतराव शिंदे (Daulat Rao Scindia) लगातार उनसे बातचीत करने का प्रयास कर रहे थे, जिनमें वह असफल रहे और यही वजह थी कि अंग्रेजों के साथ संघर्ष शुरू हो गया। 1811 ईस्वी में दौलतराव सिंधिया / दौलतराव शिंदे (Daulat Rao Scindia) ने चंदेरी के पड़ोसी राज्य पर विजय प्राप्त की। 1816 ईसवी में दौलतराव सिंधिया को पिंडारियों के साथ अत्याचारों का बदला लेने के लिए बुलाया गया।

दौलत राव सिंधिया की मृत्यु Death of Daulat Rao Scindia –

21 मार्च 1827 के दिन दौलतराव सिंधिया की मृत्यु हो गई। इनकी मृत्यु के पश्चात जानकोजी राव सिंधिया द्वितीय को ग्वालियर रियासत के नए महाराजा के रूप में नवाजा गया।

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