गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया ( garh to chittorgarh baki sab gadhaiya) यह कहावत प्रचलित हैं। लेकिन ऐसा क्यों कहा जाता है इसके पीछे की मुख्य वजह इस किले की बनावट, यहां का इतिहास, संस्कृति और कला है।
संपूर्ण भारत का इतिहास उठा कर देखा जाए तो पूरे देश में किलों की कोई कमी नहीं है, लेकिन चित्तौड़गढ़ का किला चाहे सामरिक दृष्टि से लो या फिर सांस्कृतिक दृष्टि से सभी तरह से महत्वपूर्ण और अद्भुत है।
गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया
लगभग 700 एकड़ में फैले चित्तौड़गढ़ के किले को राजपूत शिल्प कला का अद्भुत नमूना माना जाता है। इसकी शानदार बनावट और सामरिक स्थिति को देखकर कहा जाता है कि “गढ़ तो चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढ़ैया”।
“गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया” यह कहावत किसी व्यक्ति विशेष ने नहीं कही है। या फिर कोई ऐसा इतिहासकार या व्यक्ति विशेष मौजूद नहीं है जिसने चित्तौड़गढ़ किले के लिए गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया शब्द का प्रयोग किया हो।
अपनी अद्भुत बनावट के अलावा, महाराणा प्रताप भी लगभग यहां पर दो दशक तक रहे, साथ ही यह किला मीराबाई की गाथाएं भी सुनाता है। चित्तौड़गढ़ किले में भक्ति और शक्ति का बहुत ही शानदार संगम देखने को मिलता है। प्राचीन समय में इस किले के ऊपर 84 जलाशय अथवा कुंड बने हुए थे। लेकिन अब इनकी संख्या मात्र 30 रह गई है।
चित्तौड़गढ़ के किले को सभी किलों का सिरमौर कहा जाता है।इस किले के लिए यह कहावत कि “गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया” कहने के पीछे इसके ऊपर स्थित रानी पद्मिनी का महल, कालिका माता का प्राचीन मंदिर, कीर्ति स्तंभ, विजय स्तंभ, मीराबाई का मंदिर और विश्व प्रसिद्ध जौहर कुंड मौजूद होने की वजह से इससे गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया कहकर पुकारा जाता है।
इस लेख में वर्णित तथ्यों का अध्ययन करने से पता चलता है कि किसी व्यक्ति विशेष ने इसके लिए गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया प्रयोग नहीं किया था जबकि इसकी बनावट के आधार पर सभी लोगों द्वारा इसे भारत में “गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया” कहा जाता है।
अर्थात् भारत में मौजूद सभी किलो का सिरमौर कहा जाता है।
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Very interesting history