गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति छठी शताब्दी में हुई थी. नागभट्ट प्रथम को गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक माना जाता है. वहीं दूसरी तरफ गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति दक्षिण पश्चिम राजस्थान और गुजरात में हुई थी. गुर्जर प्रतिहार वंश गुर्जरों की ही एक शाखा हुआ करते थे.
प्रतिहार वंश के अभिलेखों में इस वंश को रामायण कालीन लक्ष्मण जी का वंशज होना लिखा गया है जो द्वारपाल का काम करते थे. इस वंश में नागभट्ट प्रथम, मिहिरभोज, महेंद्रपाल और महिपाल जैसे शासक हुए हैं. इस लेख में हम गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति के सम्बंध में चर्चा करेंगे.
गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति की कहानी
“गुर्जर” कभी एक जगह का नाम हुआ करता था जिसे आज गुजरात (गुर्जरात) के नाम से जाना जाता हैं. गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति को लेकर आज भी इतिहासकार एकमत नहीं है. इस राजवंश के लोग अपने कबीले को प्रतिहार नाम से बुलाते थे. एक प्रतिहार शासक बाकुका के शिलालेख में साफ़ तौर पर लिखा गया है कि भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण जी ने द्वारपाल (प्रतिहार) का ज़िम्मा उठाया था इसलिए आज वंश को गुर्जर प्रतिहार वंश के नाम से जाना जाता हैं.
वहीं दूसरा शिलालेख राजा मिहिरभोज का हैं जो सागर, ताल (ग्वालियर) में मिला है. इस अभिलेख के अनुसार सौमित्री अर्थात् सुमित्रा का पुत्र (लक्ष्मण जी) ने द्वारपाल के रूप में काम किया था.
अग्निवंश के अनुसार पृथ्वीराज रासो में गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति माउन्ट आबू में एक अग्निकुण्ड में होना लिखा है. गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति आज भी विवादास्पद है. कई इतिहासकार इनको हूणों के साथ भारत आई “खजर” नामक जाति की सन्तान मानते हैं. विदेशी इतिहासकार कैंपबेल और जैक्सन और भारतीय इतिहासकार भंडारकर तथा त्रिपाठी ने इसकी पुष्टि की है. बिना किसी साक्ष्य के इनका यह दावा आधारहीन लगता हैं.
भारतीय इतिहासकार जिनमें G.S. ओझा, C.V. वैद्य और डी. शर्मा का नाम शामिल हैं इनको गुर्जर देश का शासक मानता है. के.एस. मुंशी ने यह साबित किया है कि गुर्जर एक स्थान वाचक शब्द हैं ना कि जातिवाचक. कई इतिहासकार इन्हें विदेशी साबित करने में लगे हुए हैं जबकि इनका संबंध भारत से ही है. प्राप्त साक्ष्यों और प्रमाणों के आधार पर यह क्षत्रिय भी है और ब्राह्मण धर्म का पालन भी करने वाले हैं.
गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति को लेकर ग्वालियर अभिलेख यह बताता है कि गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण जी के वंशज हैं. प्रसिद्ध चीनी यात्री हेनसांग के अनुसार गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति राजस्थान में माउंट आबू पर्वत के उत्तर-पश्चिम में स्थित भीनमाल में हुई थी. जबकि बाद में यह उज्जयिनी (अवंती) में जाकर बस गए.
गुर्जर प्रतिहार वंश के संबंध में उपलब्ध साक्ष्य
(1) पुलकेशिन द्वितीय के लेख ऐहोल में सबसे पहले इस वंश के बारे में जानकारी मिलती है.
(2) बाणभट्ट रचित हर्षचरित में.
(3) चीनी यात्री हेनसांग के लेख में कु-चे-लो अर्थात् गुर्जर देश का उल्लेख किया गया है.
(4) मिहिरभोज का ग्वालियर अभिलेख (ताल, सागर).
(5) पाल वंश तथा राष्ट्रकूट वंश के अभिलेखों में इनके बारें में जानकारी मिलती हैं.
(6) काव्यमीमांसा और बाल रामायण जैसे ग्रंथों के रचियता राजशेखर इस सम्बंध में लिखते हैं.
(7) “पृथ्वीराजविजय” (जयानक द्धारा रचित) से पता चलता है कि दुर्लभराज वत्सराज का सामंत था.
(8) जैन लेखक चंद्रप्रभसूरी के द्वारा लिखित ग्रंथ “प्रभावकप्रशस्ति” में नागभट्ट द्वितीय के बारे में जानकारी मिलती हैं.
(9) कवि कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी में भी राजा मिहिरभोज की उपलब्धियों का गुणगान किया गया है.
(10). अरबी लेखक सुलेमान लिखता है कि मिहिरभोज एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य वाला था.
यह थे गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति के विषय में विवरण और उनके सम्बंध में विद्यमान ऐतिहासिक साक्ष्य.
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दोस्तों उम्मीद करते हैं “गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति” पर आधारित यह लेख आपको अच्छा लगा होगा, धन्यवाद.
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