हरिपंत फड़के का इतिहास Haripant phadke History.

haripant phadke ( हरिपंत फड़के ) मराठा साम्राज्य से ताल्लुक रखते थे। मराठा साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था अलग-अलग भागों में बटी हुई थी।

अष्टप्रधान के अलावा भी मराठा साम्राज्य के प्रशासन में कई महत्वपूर्ण पद थे। प्रत्येक पद पर विशेष व्यक्ति की नियुक्ति की गई थी और यही वजह थी कि मराठा साम्राज्य संपूर्ण भारत में फैला और छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा देखे गए हिंदवी स्वराज्य की स्थापना हो पाई।

हरिपंत फड़के (haripant phadke) मराठा साम्राज्य के उत्तरी पेशवा का एक राज नायक थे राजनायक के साथ-साथ हरिपंत फड़के लड़ाकू भी थे। हरिपंत फड़के मराठा साम्राज्य के विशेष जनरल थे।जैसा कि आप सब जानते हैं भारतीय इतिहास को तोड़ मरोड़ दिया गया और कई वीर पुरुषों के इतिहास के पन्नों को गायब कर दिया गया।

हरिपंत फड़के (haripant phadke) के बारे में ज्यादा जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में कई युद्ध लड़े और मराठा साम्राज्य की सेवा की। भारत में हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के लिए कटिबद्ध हरिपंत पढ़कर के इतिहास को पढ़कर आपको उन पर गर्व होगा।

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हरिपंत फड़के का इतिहास (Haripant Phadke History) और मराठा साम्राज्य में योगदान –

20 मई 1786 को हरिपंत फड़के (haripant phadke) को पहली बार जनरल बनाया गया था जब मैसूर साम्राज्य केेे खिलाफ “बादामी की घेराबंदी” की गई। मराठा – मैसूर का यह एक बहुचर्चित युद्ध था। इस युद्ध में हरिपंत फड़के लगभग 50000 सैनिकों  के साथ युद्ध मैदान में थे। अपने अभूतपूर्व युद्ध कौशल और वीरता का परिचय देते हुए हरिपंत फड़के ने जीत हासिल की।

मई, 1786

हरिपंत फड़के (haripant phadke) ने हैदराबाद के निजाम के साथ एक गठबंधन किया जिसके तहत मराठों और निजाम की सेना मिलकर टीपू सुल्तान के खिलाफ युद्ध में हिस्सा लेंगे। मराठी सेना के लगभग 30,000 घुड़सवार सैनिक और हैदराबाद निजाम की सेना के लगभग 20,000 घुड़सवार सैनिक एक होकर टीपू सुल्तान का सामना करने के लिए तैयार हुए।

टीपू सुल्तान युद्ध की स्थिति को पहले ही बाप गया और उसने अदोनी की तरफ कूच कर दिया। सभी को चौंकाते हुए टीपू सुल्तान ने “अदोनी किले” (Adoni Fort) को जीत लिया।

September, 17 186
हरिपंत फड़के (haripant phadke) के नेतृत्व में मराठी सेना सावनुर ( Savanur) पहुंची। लेकिन मराठी सैनिकों के पास खाद्य सामग्री खत्म हो चुकी थी। यहां से टीपू सुल्तान की सेना महज 5 मील की दूरी पर थी। जब यह खबर टीपू सुल्तान को लगी तो उसने अचानक से मराठी सेना के ऊपर आक्रमण करने की योजना बनाई।

आधुनिक युग की तरह पहले भी हर राजा के पास जासूस रहते थे। मराठों के जासूसों ने समय रहते हरिपंत फड़के को चेता दिया कि टीपू सुल्तान अचानक किसी भी वक्त हमला कर सकता है। इस संभावित हमले का जवाब देने के लिए मराठी सेना पूरी तरह से तैयार थी।

लेकिन टीपू सुल्तान भी चतुर और चालाक था, उसने तोपों का प्रयोग नहीं किया। मराठों को लगा कि टीपू सुल्तान के पास लंबी रेंज की तोपें नहीं है, यही सोचकर मराठी सेना धीरे-धीरे किले ( Adoni Fort) के बहुत समीप पहुंच गई।

जैसे ही हरिपंत फड़के (haripant phadke) के नेतृत्व में मराठी सेना किले ( Adoni Fort) के पास पहुंची टीपू सुल्तान ने धावा बोल दिया। लगातार तोपों से गोलीबारी होती रही मराठी भी अडिग रहे लेकिन 7 घंटे टीपू सुल्तान की सेना का सामना करने के बाद हार मान ली, 15 अक्टूबर 1786 के दिन मराठी सेना पीछे हट गई और टीपू सुल्तान ने सावनुर ( Savanur) जीत लिया।

1 जनवरी 1787 का दिन था, हरिपंत फड़के (haripant phadke) के नेतृत्व में मराठी सेना गजेंद्रगढ़ और कोप्पल के पास बहादुर बेंदा में तैनात थी। एक बार फिर टीपू सुल्तान ने मराठी सेना पर आक्रमण कर दिया। मात्र 2 दिन बाद 3 जनवरी 1787 को टीपू सुल्तान ने “बहादुर बेंदा के किले” को घेर लिया। इसी किले के अंदर मराठी सेना मौजूद थी। एक बार फिर टीपू सुल्तान की जीत हुई।
हरिपंत फड़के टीपू सुल्तान को रोकना चाहते थे, लेकिन उनका प्रयास असफल रहा।

10 February 1787 के दिन मैसूर की जीत के बाद यह युद्ध समाप्त हो गया। यह युद्ध मराठों ने जीता था। 1787 में मराठा – मैसूर युद्ध की समाप्ति हुई। हार के बाद टीपू सुल्तान ने एक शांति समझौता किया और उसने अपना फोकस ब्रिटिश सैनिकों को पराजित करने में लगा दिया। साथ ही इस संधि के तहत टीपू सुल्तान ने मराठों को प्रति वर्ष 12,00000 रुपए का नगद भुगतान करने और कालोपंत (Kalopant) को रिहा करने के लिए राजी हुआ। टीपू सुल्तान भी मराठों की बजाए ब्रिटिश पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना चाहता था।

1790 में हरिपंत फड़के (haripant phadke) ने तीसरे “एंग्लो-मैसूर युद्ध” में भी भाग लिया था। इस समय मराठा साम्राज्य के पेशवा परशुरामभाऊ थे।
साहसी, निडर और युद्धकला में निपुण हरिपंत फड़के ने ना सिर्फ पेशवा परशुराम भाऊ का दिल जीता बल्कि अष्टप्रधान में से एक सैन्य अधिकारी “नाना फडणवीस” ने भी उनकी बहुत तारीफ की। परशुराम भाऊ और नाना फडणवीस के इसी विश्वास के बलबूते हरिपंत फड़के को दक्षिण अभियान के दौरान बड़ी संख्या में मराठा सैनिक की टुकड़ी दी गई और उन्हें जनरल बनाकर भेजा गया जहां पर उन्होंने मराठा साम्राज्य का पताका फहराया।

20 जून 1794 के दिन सिद्धटेक में हरिपंत फड़के (haripant phadke) का निधन हो गया। हरिपंत फड़के की मृत्यु मराठा साम्राज्य के लिए एक झटका था।

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