हीरामन तोता की कहानी (Hiraman Tota Ki Kahani)- रानी पदमनी का सतरंगी तोता।

हीरामन तोता की कहानी (Hiraman Tota) बहुत ऐतिहासिक हैं। एक तोता जिसने राजकुमारी पद्मिनी और चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह को शादी के बंधन में बांधने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हीरामन तोता की कहानी का प्रारंभ (Hiraman Tota ki kahani)

12वीं शताब्दी का अंत हो रहा था, यह आज से लगभग 721 साल पहले की बात हैं। सिंहल द्वीप जो कि वर्तमान में श्रीलंका में स्थित हैं। उस समय वहां पर राजा गंधर्वसेन का राज्य था। राजा गंधर्वसेन की एक पुत्री थी जिसका नाम था राजकुमारी पद्मिनी (पदमिनी).

रानी पद्मिनी दिखने में बहुत सुंदर और सुशील थी। पद्मिनी के बारे में कहा जाता हैं कि वह जब पानी पीती तो गले में जाता पानी साफ दिखाई देता था। खूबसूरती की अद्वितीय मूर्ति राजकुमारी की चर्चा आस पास के क्षेत्रों में थी।

राजकुमारी पद्मिनी के पास एक पालतू तोता था जिसका नाम हीरामन तोता (Hiraman Tota) था। यह तोता मनुष्यों की भाषा बोलता था। हीरामन तोता राजकुमारी के सामने ही उनकी सुंदरता के कसीदे पढ़ता रहता।

रावल रतन सिंह के सामने पद्मिनी की सुंदरता का बखान

एक दिन की बात है हीरामन तोता (Hiraman Tota) सिंहल द्वीप से उड़कर दूर सुदूर की यात्रा करने निकल गया। जंगल में पेड़ पर एक जाकर बैठ गया। तभी वहां पर शिकार के लिए राजा रतन सिंह का जाना हुआ।

राजा की नज़र इस सुंदर और रंगबिरंगी तोते जिसे हम सतरंगी तोता कह सकते हैं पर पड़ी तो वो नजर हटा नहीं पाए। हीरामन तोता (Hiraman Tota) की तारीफ करते हुए राजा रतन सिंह बोले इतना खूबसूरत और सतरंगी तोता मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा।

तोता डाली पर बैठा सब कुछ सुन रहा था। खुद की प्रसंशा सुनकर हीरामन तोता (Hiraman Tota) बोल पड़ा “सुंदर मैं नहीं हुं, सुंदर तो सिंहल द्वीप की राजकुमारी हैं।” राजकुमारी की सुंदरता की तारीफ करते तोता थक नहीं रहा था, राजा रतन सिंह के मन में रानी पद्मिनी को देखने की लालसा जागी।

राजा रतन सिंह ने तोते से रानी के बारे में पूछा तो तोते ने बताया कि वह सिंहल देश के ही राजा गंधर्वसेन की पुत्री है, उसका नाम पद्मनी है। तब राजा रतन सिंह सन्यासी का वेश धारण करके रानी की खोज में निकल पड़े।

सतरंगी तोता हीरामन उनके साथ था, जब राजा सिंहल द्वीप पहुंचे तब हीरामन रानी पद्मिनी के पास गया और बोला की सुदूर देश चित्तौड़ का राजा आप की झलक देखना चाहता है।

जब राजा रतन सिंह ने पद्मनी को देखा तो उन्होंने निश्चय कर लिया कि मैं विवाह पद्मनी से ही करूंगा। पद्मिनी ने कहा कि मेरे पिता द्वारा स्वयंवर का आयोजन किया जाएगा, जो भी राजा गुप्त रास्ते से होकर दुर्ग में प्रवेश करेगा मैं उसी से विवाह करूंगी। इतना कहकर राजकुमारी वापस चली गई।

राजा रतन सिंह को हीरामन तोता (Hiraman Tota) ने वह गुप्त रास्ता बताया जिसके द्वारा दुर्ग में प्रवेश किया जा सके। हीरामन तोता (Hiraman Tota) की मदद से राजा रतन सिंह ने उस दुर्ग में प्रवेश किया जहां पर राजकुमारी पद्मावती का स्वयंवर था।

राजा रतन सिंह से पहले ही देवालय में मिल चुकी रानी पद्मावती ने जब चित्तौड़ के राजा रतन सिंह को देखा तो उनके गले में वरमाला डाल दी और उनका विवाह संपन्न हुआ।
राजा रतन सिंह का द्वितीय विवाह था, इससे पहले उन्होंने नागमति नाम की लड़की से शादी की थी। राजा रतन सिंह महारानी पद्मिनी को लेकर चित्तौड़ आ गए। इस तरह मनुष्यों की तरह बोलने वाले सतरंगी हीरामन तोता (Hiraman Tota) की वजह से या विवाह संपन्न हुआ।

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