Gopikabai peshwa गोपिकाबाई पेशवे का इतिहास।

gopikabai peshwa पेशवा बालाजी बाजीराव (नाना साहब पेशवा) की पत्नी थी। राधाबाई ने इनको अपने बड़े बेटे बालाजी बाजीराव की पत्नि के रुप में चुना।

Gopikabai peshwa History और जीवन परिचय-

  • पूरा नाम full name of gopikabai– गोपिकाबाई रास्ते।
  • जन्म दिनांक gopikabai date of birth– 20 दिसम्बर 1724.
  • जन्म स्थान gopikabai birth place– सुपा पारनेर महाराष्ट्र,भारत।
  • मृत्यु gopikabai death– 11 अगस्त 1778.
  • मृत्यु स्थान- नासिक।
  • पिता का नाम gopikabai fathers name– भिकाजी नायक रास्ते।
  • माता का नाम– NA
  • मृत्यु के समय आयु gopikabai age– 53 वर्ष।
  • धर्म– हिंदू सनातन।
  • जाति– ब्राह्मण (भट्ट).
  • गोपीकाबाई के भाई का नाम gopikabai brother name– सरदार रास्ते।

राधाबाई को रास्ते (ब्राह्मण) परिवार में किसी समारोह में को सम्मिलित होने का सौभाग्य मिला। राधाबाई ने देखा कि एक लड़की जो भगवान में बहुत विश्वास करती हैं, धार्मिक कार्यों में बढ़-चढ़कर रुचि लेती हैं और रूढ़िवादी परंपरा की है वहां पर मौजूद थी।

उस लड़की का नाम गोपीकाबाई था। राधाबाई बाई इस लड़की से बहुत प्रभावित हुई और गोपीकाबाई के पिता “भीकाजी नायक रास्तेे” सेे अपने बेटे बालाजी बाजीराव के लिए हाथ मांग लेती है।

गोपीकाबाई की शादी पेशवा बालाजी बाजीराव अर्थात नानासाहेब के साथ हो गई। शादी के बाद भी इनको बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ा।

प्रशासनिक और सैन्य कार्यों की इन्हें जानकारी नहीं थी। ब्राह्मण परिवार में पैदा होने की वजह से शुरू से ही धार्मिक कार्यों में इनकी रूचि होने से इन्हें थोड़ा घृणा की नजर से देखा जाता था। राज परिवार में इन सब चीजों के लिए समय नहीं होता है।

gopikabai peshwa के साथ हमेशा ही संकीर्णतावादी व्यवहार किया जाता रहा। धार्मिक प्रवृत्ति की वजह से वह राज कार्यों और प्रशासनिक कार्यों को समझ नहीं पाई।

Gopikabai peshwa में ईर्ष्या और अहंकार की भावना-

जब नानासाहेब को मराठा साम्राज्य का पेशवा बनाया गया तब गोपीकाबाई gopikabai peshwa के अंदर अहंकार की भावना पैदा हो गई। वह परिवार की अन्य औरतों से ईर्ष्या करने लगी।

गोपीकाबाई और विश्वास राव की पत्नी पार्वतीबाई को हमेशा ही एक दूसरे का चिर प्रतिद्वंदी माना जाता रहा है।

पार्वतीबाई (सदाशिव भाऊ की पत्नी) और gopikabai peshwa के बीच भी सब कुछ ठीक नहीं था।
पानीपत का तीसरा युद्ध जोकि मराठा और अब्दुलशाह अब्दाली की सेना के बीच लड़ा गया था, में सदाशिव राव भाऊ के साथ गोपीकाबाई उनके पुत्र विश्वास राव को भेजने पर जोर दे रही थी।

गोपीकाबाई का यह मानना था कि अगर पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठी सेना विजय होती हैं तो जीत का सेहरा सिर्फ सदाशिवराव भाऊ के सर पर बंधेगा और उनके बेटे विश्वास राव को पेशवा नहीं बनाया जाएगा।

इतना ही नहीं gopikabai peshwa को संदेह था कि सदाशिवराव भाऊ उनके बड़े बेटे विश्वासराव को अगला पेशवा नहीं बनाएंगे।

विश्वासराव की मृत्यु और पानीपत का तीसरा युद्ध-

बड़े ही विश्वास के साथ गोपीकाबाई ने उनके बड़े बेटे विश्वासराव को पानीपत के तीसरे युद्ध में, सदाशिव राव भाऊ के साथ भेजा था।

ताकि इस जीत के साथ ही उनका पेशवा बनने का रास्ता साफ हो जाए लेकिन यह उल्टा पड़ गया। पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठी सेना की बुरी तरह हार हुई और गोपीकाबाई के पुत्र विश्वास राव इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।

gopikabai peshwa ने इस युद्ध में हार का ठीकरा राधाबाई के सर पर फोड़ दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अपने पति बालाजी बाजीराव अर्थात नाना साहेब पर भी आरोप लगाए कि उनके बेटे की हत्या की वजह उनके पिता भी है।

पार्वती नामक स्थान पर चिंता के चलते पेशवा नाना साहेब की मृत्यु हो।

पेशवा पद को लेकर उपजा विवाद और gopikabai peshwa-

पेशवा नानासाहेब अर्थात बालाजी बाजीराव की मृत्यु के पश्चात मराठा साम्राज्य में पेशवा पद को लेकर बड़े ही असामंजस्य की स्थिति पैदा हो गई। नाना साहेब के वास्तविक उत्तराधिकारी उनके बड़े बेटे विश्वास राव की मृत्यु पानीपत के तीसरे युद्ध में हो गई थी।

सबसे बड़ी समस्या यह थी कि नानासाहेब के दूसरे पुत्र माधवराव प्रथम को पेशवा बनाया जाए या नाना साहेब के छोटे भाई रघुनाथराव को पेशवा पद की उपाधि प्रदान की जाए।

इस तरह के असामंजस्य की स्थिति से पेशवा परिवार का जो सौहार्दपूर्ण वातावरण था, वह बिगड़ गया। “सरदार रास्ते” जोकि gopikabai peshwa का भाई था इस विवाद में शामिल हो गया और उसने अपनी बहन गोपीकाबाई को सलाह दी कि उनके बेटे माधवराव प्रथम को पेशवा पद दिया जाना चाहिए।

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उधर रघुनाथराव पेशवा बनना चाहता था इसी के चलते रघुनाथराव की पत्नी पार्वतीबाई और गोपीकाबाई के बीच जो सौहार्दपर्ण मित्रता थी वह खत्म हो गई और दुश्मनी में बदल गई।

सभी मराठी सरदारों जिसने नाना फडणवीस महादजी शिंदे का नाम शामिल है ने निर्णय लिया कि पेशवा पद पर माधवराव प्रथम बैठेंगे लेकिन वह रघुनाथ राव के मार्गदर्शन में कार्य करेंगे।

यह बात गोपीकाबाई को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी क्योंकि गोपीकाबाई नहीं चाहती थी कि उनका पुत्र किसी के मार्गदर्शन में काम करें जो आगे चलकर उनके लिए खतरा पैदा हो जाए।

धीरे-धीरे माधवराव प्रथम प्रशासनिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगे और अपने सटीक निर्णय से सभी को चौंकाया। gopikabai peshwa ने माधवराव को सलाह दी कि रघुनाथराव के नियंत्रण में जो फैसले हैं उनसे स्वतंत्रता मिले और वह खुद अपने दम पर निर्णय लें

माधव राव के निर्णय और gopikabai-

माधवराव प्रथम ने रघुनाथ राव को बिल्कुल ही प्रशासनिक कार्यों से अलग कर दिया और खुद सभी निर्णय लेने लगा।

सबसे पहले पेशवा माधवराव प्रथम ने उन सभी लोगों को दंड दिया जो निजाम की सेना के साथ थे और मराठों के खिलाफ लड़ रहे थे।

सरदार रास्ते जोकि पेशवा माधवराव प्रथम का मामा था और गोपीकाबाई का भाई को भी पेशवा दंडित करना चाहते थे लेकिन गोपीकाबाई इसके खिलाफ थी।

gopikabai peshwa का भाई सरदार रास्ते के लिए पेशवा से क्षमा याचना करती रही लेकिन पेशवा माधवराव प्रथम ने गोपीकाबाई को कड़ी चेतावनी दी कि वह प्रशासनिक कार्यों में किसी भी प्रकार का दखल नहीं करें वरना इसके अंजाम बुरे होंगे।

सन 1773 ईस्वी में तपेदिक अर्थात क्षय रोग से पेशवा Madhav Rao Pratham की मृत्यु हो गई।पेशवा की मृत्यु के पश्चात मराठा साम्राज्य में फिर से पेशवा पद को लेकर और असामंजस्य की स्थिति पैदा हो गई, पार्वतीबाई के प्रभाव से और उसकी बातों में आकर रघुनाथराव फिर से पेशवा बनने के प्रयास करने लगा।

गोपीकाबाई के पुत्र नारायण राव बने-

जैसे-तैसे करके नारायण राव को मराठा साम्राज्य का अगला पेशवा बनाया गया और gopikabai peshwa ने फिर से प्रशासन के कार्यों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया और कुछ हद तक अपने नियंत्रण में कर लिया था।

नारायण राव के ऊपर प्रशासनिक ऋण बढ़ने लगे साथ ही वह रघुनाथराव के विद्रोह से परेशान हो गया अंत में रघुनाथराव ने उनकी पत्नी पार्वतीबाई के साथ मिलकर “सुमेर सिंह गर्दी” की सहायता से नारायण राव की हत्या करवा दी।

यह गोपीकाबाई के लिए एक बहुत बड़ा झटका था. फिर से उसके हाथ से मराठा साम्राज्य का नियंत्रण खत्म हो गया। राजमहल को छोड़कर gopikabai peshwa को नासिक लौटना पड़ा।

गोपी का भाई का सन्यासी जीवन और how gopikabai peshwa died (मृत्यु)- 

नासिक चले जाने के बाद gopikabai peshwa ने निर्णय लिया कि वह अपना शेष जीवन बड़े लोगों से भीख मांग कर गुजारा करेगी।

इसी श्रेणी में वह नारियल की कटोरी बनाई और भीख मांगना प्रारंभ कर दिया।

एक बार की बात है कुंभ के मेले में गोपीकाबाई के पहले पुत्र विश्वासराय की पत्नी रानी लक्ष्मीबाई भी आई हुई थी. अनजाने में gopikabai peshwa और रानी लक्ष्मीबाई की आपस में भेट हो गई।

रानी लक्ष्मीबाई से ली गई दान दक्षिणा से गोपीकाबाई नाराज हो गई और उन्होंने इसे अपने लिए सबसे बड़ा अपशकुन माना इसी के चलते उन्होंने आजीवन उपवास करने का निर्णय लिया।

11 अगस्त 1778 ( gopikabai death ) के दिन पानी की कमी के चलते गोपीकाबाई ने दम तोड़ दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने ही उनका अंतिम संस्कार किया और उनके नाम का दीपक जलाया। और उनकी याद में यहां पर एक “प्रकाश स्तंभ” का निर्माण करवाया।

सन 1961 में आई तबाही मचाने वाली बाढ़ की वजह से यह प्रकाश स्तंभ धराशाई हो गया।

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