झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को जानने वाले ज्यादातर लोग यह नहीं जानते कि झलकारी बाई कौन थी? (Jhalkari Bai history in hindi) हालांकि यह हमारे इतिहासकरों की गलती रही हैं कि झलकारी बाई का इतिहास (Jhalkari Bai history in hindi) आम जन तक नहीं पहुंचा पाए. झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई के साथ अंग्रेजों से लोहा लिया था. 1857 की इस क्रांति ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को तो विश्व विख्यात कर दिया लेकीन झलकारी बाई को इतिहास के पन्नों में वह जगह नहीं दिला पाई जिसकी वो हकदार थी.
महज़ 27 वर्ष की आयु में इन्होंने अपने देश के लिए जान न्यौछावर कर दी. ये रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा (दुर्गा दल) की सेनापति थी. इस लेख में हम विस्तृत रूप से जानेंगे कि झलकारी बाई कौन थी? झलकारी बाई का इतिहास क्या हैं? (Jhalkari Bai history in hindi) झलकारी बाई की कविता और झलकारी बाई का जन्म, मृत्यु और समाधि के बारे में चर्चा करेंगे.
झलकारी बाई का इतिहास (Jhalkari Bai History In Hindi).
नाम- वीरांगना झलकारी बाई कोली.
झलकारी बाई जन्म तिथि - 22 नवम्बर 1830.
झलकारी बाई जन्म स्थान- भोजला गाँव (झांसी).
झलकारी बाई मृत्यु तिथि- 4 अप्रैल 1857.
झलकारी बाई पिता का नाम- सदोवर सिंह जी.
झलकारी बाई माता का नाम- जमुना देवी जी.
पति का नाम- पूरण कोरी.
आन्दोलन- 1857 की क्रांति (अंग्रेज़ों के खिलाफ़).
झलकारी बाई का इतिहास (Jhalkari Bai history in hindi) जानने से पहले आपको बताते हैं कि राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने उनके लिए कुछ पंक्तियां लिखी जो निम्नलिखित हैं –
"जा कर रण में ललकारी थी,वह तो झांसी की झलकारी थी। गोरों से लड़ना सीखा गई, हैं इतिहास में झलक रही, वह भारत की ही नारी थी"।।
आज से लगभग 192 वर्ष पूर्व झांसी के एक छोटे से गांव भोजला में झलकारी बाई का एक निर्धन परिवार में जन्म हुआ. इनकी अल्पायु में ही इनकी माता जमुना देवी का निधन हो गया. माँ का साया सर से उठ जाने के बाद इनका पालन पोषण इनके पिता सदोवर सिंह जी ने किया. पिता ने हमेशा बेटा मानकर ही इन्हें पाला. बचपन से ही युद्ध कला, हाथी की सवारी और हथियारों के दम पर लड़ाई के नियम सिखाए.
सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियों के चलते झलकारी बाई विद्यालय में जाकर प्रारंभिक शिक्षा तो प्राप्त नहीं कर सकी लेकिन स्वयं को एक बहादुर लड़की के रूप में तैयार कर लिया. बचपन से ही झलकारी बाई साहसी, निडर, निर्भीक और दूरदर्शी प्रवृत्ति की लड़की थी. जिस काम को करने के लिए यह ठान लेती उसे करके ही दम लेती थी. इन्हीं खूबियों की वजह से आगे चलकर सन 1857 की क्रांति में अंग्रेजो के खिलाफ लोहा लेने के लिए ख़ुद को तैयार कर लिया.
बचपन में पिता के काम में हाथ भी बढ़ाया करती थी जिसमें पालतू पशुओं का रखरखाव करना, जंगल में जाकर लकड़ियां और घास फूस लेकर आना आदि काम शामिल थे. बचपन में इनके साथ घटित घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि झलकारी बाई बहादुर और निर्भीक थी.
एक बार की बात है झलकारी बाई (Jhalkari Bai history in hindi) पालतू पशुओं के लिए घास फूस और लकड़ी लेने के लिए जंगल में गई. इस समय इनके साथ कोई नहीं था. हाथ में कुल्हाड़ी लिए वह जंगल में जा रही थी तभी अचानक उनके सामने एक तेंदुआ आ गया. पहली बार अपने सामने किसी जंगली जानवर को देखकर वह डरी नहीं और उसका मुकाबला करना उचित समझा. झलकारी बाई ने कुल्हाड़ी से तेंदुए पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया और उसको मौत के घाट उतार दिया.
वहीं दूसरी घटना झलकारी बाई (Jhalkari Bai history in hindi) के गांव की हैं, एक दिन भोजला गांव के एक व्यवसायी पर डकैतों ने हमला कर दिया, तभी वहां पर झलकारी बाई पहुंच गई और उन्होंने डकैतों से लोहा लिया. झलकारी बाई की बहादुरी के चलते ही उस व्यवसायी की जान बच सकी.
झलकारी बाई की शादी
उपरोक्त दोनों घटनाओं को देख कर गांव वाले झलकारी बाई (Jhalkari Bai history in hindi) की बहादुरी से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना एक प्रतिष्ठित सेनापति के साथ उसका विवाह तय कर दिया. उस सेनापति का नाम था पूरण कोरी. पूरण कोरी भी बहादुर और सेनाध्यक्ष थे.
विवाह के पश्चात् झलकारी बाई भी झांसी में रहने लगी. गौरी पूजा के अवसर पर जब झांसी की सभी महिलाएं रानी लक्ष्मीबाई का सम्मान करने के लिए उनके महल में गई. यह झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और झलकारी बाई की पहली मुलाकात थी.
रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारी बाई (Jhalkari Bai history in hindi) की बहादुरी के किस्से सुन रखे थे.जब उनकी मुलाकात हुई तो उनके चेहरे पर तेज और हाव भाव देखकर रानी लक्ष्मीबाई ने सेना की महिला शाखा दुर्गा का प्रमुख उन्हें बनाया. यह झलकारी बाई की योग्यता और बहादुरी का ईनाम था. सेना में शामिल होने के बाद झलकारी बाई ने कुछ समय तक अन्य साथी महीला सैनिकों के साथ युद्ध का अभ्यास किया जिसमें तलवार, तोप और बंदूक चलाने का प्रशिक्षण दिया गया.
1857 की क्रांति में झलकारी बाई का योगदान (Jhalkari Bai history in hindi)
लार्ड डलहौजी इस समय अंग्रेजी सेना के मुखियां थे, जो राज्य हड़पने की नीति के तहत कार्य कर रहे थे. रानी लक्ष्मीबाई के कोई संतान नहीं थी साथ ही लार्ड डलहौजी भी नहीं चाहते थे कि रानी लक्ष्मीबाई किसी को गोद ले. अगर वह किसी को गोद लेती तो झांसी को जीतने का सपना कभी पूरा नहीं होता. ब्रिटिश सरकार को इस नीति को रानी लक्ष्मीबाई ने खुले तौर पर चुनौती दी जिसका असर पूरी झांसी में देखने को मिला.
झांसी की महिलाएं और पुरुषों ने हथियार उठा लिए. जैसे ही रानी लक्ष्मीबाई ने हथियार उठाए अंग्रेजी सेना और उनका साथ देने वाले स्थानीय लोगों ने झांसी की रानी के खिलाफ मोर्चा बोल दिया. झांसी की रानी के खिलाफ जिन जिन लोगों ने विद्रोह किया उन्हें रानी लक्ष्मीबाई और झलकारी बाई (Jhalkari Bai history in hindi) ने मिलकर परास्त कर दिया. यहीं से स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजो के खिलाफ सन 1857 की क्रांति का आगाज हुआ.
आपने एक कहावत सुनी होगी “घर का भेदी लंका ढाए” रानी लक्ष्मी बाई के साथ भी ऐसा ही हुआ झांसी के किले के द्वार पर संरक्षक के रूप में तैनात दूल्हे राव ने अंग्रेजों से हाथ मिला लिया और उस दरवाजे को अंग्रेजों के लिए छोड़ दिया ताकि वह किल्ले के अंदर प्रवेश कर सके. इसी दरवाजे से होती हुई ब्रिटिश सेना ने झांसी के किले में प्रवेश कर लिया और किले को चारों तरफ से घेर लिया.
रानी लक्ष्मीबाई पीछे हटने को तैयार नहीं थी, उनके साथ झलकारी बाई (Jhalkari Bai history in hindi) भी हाथ में तलवार लिए सीना तान कर खड़ी थी. अपने को चारों तरफ से गिरे हुए देखकर झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई से कहा कि आप किले से बाहर निकल कर झांसी से दूर चली जाओ. झलकारी बाई द्वारा बार-बार निवेदन करने पर रानी लक्ष्मीबाई अपने कुछ विश्वसनीय सैनिकों के साथ घोड़े पर बैठकर झांसी से दूर निकल गई.
अंग्रेजों का सामना करने के लिए झलकारी बाई और उनके पति पूरन कोरी वहीं पर रुके, देखते ही देखते अंग्रेजों ने पूरन कोरी को घेर लिया और पूरन कोरी वीरगति को प्राप्त हुए. आंखों के सामने अपने पति की मौत देखकर भी झलकारी बाई (Jhalkari Bai history in hindi) विचलित नहीं हुई और अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई जारी रखी. झलकारी बाई ने आह्वान किया कि चूहे की तरह बिल में घुसे रहने से अच्छा है कि हम शेर की तरह शत्रुओं पर टूट पड़े.
तभी झलकारी बाई (Jhalkari Bai history in hindi) ने अंग्रेजों को धोखा देने का प्लान बनाया. आपने ऊपर पढ़ा कि झलकारी बाई की शक्ल रानी लक्ष्मीबाई से काफी हद तक मिलती थी, इसी का फायदा उठाकर झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई का भेष धारण कर सेना को कमान संभाली. रानी लक्ष्मीबाई के भेष में वह किले से निकलकर अंग्रेजी जनरल ह्यूग रोज से मिलने के लिए उनके शिविर में जा पहुंची.
झलकारी बाई को अकेली अपने शिविर में देखकर जनरल आश्चर्यचकित रह गया क्योंकी उन्हें लगा कि वह झांसी की रानी हैं.जनरल ह्यूग रोज को लगा कि झांसी के साथ साथ रानी लक्ष्मीबाई भी उनके कब्जे में आ गई. जनरल ह्यूग रोज ने कड़क होकर तेज़ आवाज़ में पूछा कि तुम्हारे साथ क्या किया जाए? तभी बड़ी ही निडरता के साथ झलकारी बाई (Jhalkari Bai history in hindi) ने कहा कि फांसी!
झलकारी बाई के मुंह से यह बात सुनकर जनरल ह्यूग रोज हक्का बक्का रह गया. इतना साहस उसने इससे पहले कभी किसी भी महीला में नहीं देखा था. झलकारी बाई का साहस और हिम्मत देख कर जनरल ह्यूग रोज ने उन्हें रिहा करने का आदेश दिया. जनरल ह्यूग रोज के अन्तिम शब्द थे कि यदि इनके जैसी वीरता और साहस भारत की मात्र 1% महिलाओं में भी आ जाए तो अंग्रेजों को जल्द ही भारत से जाना पड़ेगा.
झलकारी बाई की मृत्यु कैसे हुई? (Jhalkari Bai death )
झलकारी बाई की मृत्यु को लेकर इतिहासकरों में 2 तरह की धारणाएं हैं. कई इतिहासकार बताते हैं कि 1857 की क्रांति के दौरान ही झलकारी बाई की मृत्यु हो गई थी. जब रानी लक्ष्मीबाई झांसी के किले से सुरक्षित बाहर निकल गई, उसके बाद झलकारी बाई ने जिम्मा संभाला और कई अंग्रेजी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. अंग्रेजो के खिलाफ साहस के साथ लड़ रही झलकारी बाई (Jhalkari Bai history in hindi) के सीने में गोली लग गई, जिससे वह जमीन पर आ गिरी. जमीन पर गिरते ही अंग्रेजी सैनिकों ने उन्हें गोलियों से भून दिया इस तरह 4 अप्रैल 1857 को झलकारी बाई की मृत्यु हो गई.
झलकारी बाई को सम्मान
मरणोपरांत झलकारी बाई (Jhalkari Bai history in hindi) को सम्मानित करने के लिए सरकार ने 22 जुलाई 2001 को उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया था. राजस्थान के अजमेर में उनकी प्रतिमा का निर्माण किया गया. वहीं उत्तर प्रदेश के आगरा में भी झलकारी बाई की प्रतिमा लगाई गई, साथ ही उनके नाम पर एक चिकित्सालय का निर्माण भी किया गया. हाल ही में कंगना रनौत ने ऐलान किया है कि वह झलकारी बाई के जीवन पर फिल्म बनाने जा रही है, जिसमें वह स्वयं झलकारी बाई का रोल करेंगी.
झलकारी बाई की समाधि कहां पर है?
अंग्रेजों के साथ बहादुरी के साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होने वाली जलपरी बाई की समाधि ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में स्थित है. कोली समाज से संबंध रखने वाली झलकारी बाई की समाधि पर आज भी लाखों लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचते हैं. आपकी जानकारी के लिए बता देगी रानी लक्ष्मी बाई की समाधि भी ग्वालियर में ही है और झलकारी बाई (Jhalkari Bai history in hindi) की समाधि भी ग्वालियर में.
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इस लेख में आपने पढ़ा कि झलकारी बाई कौन थी? झलकारी बाई का इतिहास क्या हैं? (Jhalkari Bai history in hindi) झलकारी बाई की कविता और झलकारी बाई का जन्म, मृत्यु और समाधि. उम्मीद करते हैं यह लेख आपको पसंद आया होगा इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें, धन्यवाद.
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