कण्व वंश (Kanva Vansh) भारत के अतिप्राचीन राजवंशों में शामिल हैं। इस वंश ने मगध पर राज्य किया था। कण्व वंश की स्थापना वासुदेव ने की थी, वासुदेव को ही Kanva Vansh का संस्थापक माना जाता हैं। शुंग वंश की समाप्ति के बाद कण्व वंश (Kanva Vansh) का उदय हुआ। कण्व वंश (Kanva Vansh) के प्रथम शासक वासुदेव ने शुंग वंश के अंतिम शासक देवभूति को पराजीत करके इस वंश की नींव रखी। एक षडयंत्र के तहत शुंग वंश के अंतिम शासक देवभूति शुंग को मौत के घाट उतारा गया।
इस लेख में हम कण्व वंश का इतिहास (Kanva Vansh History In Hindi) जानेंगे।

कण्व वंश का इतिहास (Kanva Vansh History In Hindi)-
कण्व वंश की स्थापना कब हुई- 73 ईसा पूर्व.
कण्व वंश की स्थापना किसने की- वासुदेव.
कितने वर्षों तक शासन किया- 45 वर्षों तक.
कण्व वंश की शासन अवधि- 73 ईसा पूर्व से 28 ईसा पूर्व तक.
कण्व वंश के प्रथम शासक- वासुदेव.
कण्व वंश के अन्य नाम- काण्व वंश या काण्वायान वंश.
काण्व राजाओं को किस नाम से जाना जाता हैं- शुंग भृत्य.
भारत का इतिहास विश्वासघात के किस्सों से भरा हुआ हैं। लगभग 73 ईसा पूर्व तक भारत के सबसे बड़े साम्राज्य मगध पर शुंग वंश का आधिपत्य रहा। शुंग के अन्तिम शासक देवभूति के शासनकाल के दौरान वासुदेव अमात्य थे।
वासुदेव चाहते थे कि कैसे भी करके अगर देवभूति शुंग को मौत के घाट उतार दिया जाए, तो वो एक विशाल साम्राज्य के अधिपति बन जाएंगे। इसी वजह से मौका पाकर उन्होंने शुंग वंश के अंतिम शासक देवभूति को मारकर राज्य की सभी महाशक्तियों को अपने हाथ में ले लिया।
इसके साथ ही मगध में एक नए राजवंश का उदय हुआ, जिसका नाम था कण्व वंश (Kanva Vansh). कण्व वंश की स्थापना ईसा से 73 वर्ष पूर्व हुई थी। इसके साथ ही वासुदेव इस साम्राज्य के प्रथम शासक बने।
कण्व वंश के शासक (Kanva Vansh ke shasak)
कण्व वंश की स्थापना से लेकर अंत तक 4 राजाओं ने शासन किया था। इनकी शासन अवधि 45 वर्ष रही। इन 45 वर्षों (73 ईसा पूर्व से 28 ईसा पूर्व तक) में जिन चार राजाओं ने शासन किया था उनके नाम निम्नलिखित हैं-
1 वासुदेव.
2 भूमिमित्र.
3 नारायण.
4 सुशर्मा.
पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता हैं कि कण्व वंश के शासकों को “शुंग भृत्य” नाम से भी संबोधित किया जाता हैं। “शुंग भृत्य” कहने के पीछे मुख्य वजह यह रही कि राज्य की सभी शक्तियां कण्व वंश के पास थी लेकिन नाममात्र के रुप में अभी भी मुख्य राजा का पद शुंग वंश के शासकों के पास ही था।
क्योंकि वासुदेव कण्व, शुंग वंश के अंतिम शासक देवभूति का अमात्य था और कई समय तक इन्होंने यही काम किया। लेकीन जहा तक बात शक्तियों की हैं वो कण्व वंश के शासकों के अधीनस्थ ही रही। इस सम्बन्ध में प्रमाण की बात की जाए तो आपको बता दें कि कण्व वंश की समाप्ति के पश्चात् इस क्षेत्र पर अंध्रों का राज हो गया था, जो कि शुंग वंश और कण्व वंश के राजाओं का हराकर यह सिंहासन हासिल किया था।
कण्व वंश का अंत कैसे हुआ? (How did the Kanva dynasty end?)-
कण्व वंश ने कभी भी अपने आप को एक शक्तिशाली राजवंशों में शामिल नहीं कर पाया। विशाल साम्राज्य की बागडोर मिलने के बाद कण्व वंश के राजा इसको संभाल नहीं पाए थे। मगध राज्य में कई छोटे-छोटे राजा और सेनापति अपने-अपने क्षेत्रों में कण्व वंश के राजाओं से अधिक प्रभाव रखते थे।
यही वह समय था जब शक भारत की पश्चिम और उत्तर की सीमाओं को छोड़कर मगध की तरफ़ बहुत तेजी के साथ बढ़ रहें थे। शकों के इस आक्रमण के चलते मगध के दूर दराज के इलाकों पर अधिकार कर लिया, आस पास के क्षेत्रों में खलबली मच गई।
वासुदेव कण्व और उसके बाद इस वंश के उत्तराधिकारी का प्रभाव महज़ एक क्षेत्रीय राजा के सामान थी। पाटलिपुत्र पर जरूर कण्व वंश का प्रभाव था। धीरे धीरे यह वंश बहुत कमज़ोर हो गया। 28 ईसा पूर्व के करीब आंध्रों ने अपना प्रभाव बढ़ाना शुरु किया और कण्व वंश के अंतिम शासक सुशर्मा को मौत के घाट उतार दिया, सुशर्मा को मौत के घाट उतारने वाले राजा का नाम सिमुक था।
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