Medini Rai/ मेदिनी राय लगभग 363 साल पूर्व झारखण्ड के पलामू (डाल्टनगंज) के राजा थे। 17 वी सदी के प्रारंभ में यहां पर चेरो राजा का प्रभाव था। भगवंत राय ने मुगलों को पराजित करके पलामू राज्य की स्थापना की। चेरो वंश से ही महाराजा मेदिनी राय (Medini Rai) का संबंध था।
महाराजा मेदिनी राय (Medini Rai) ने 1658 ईस्वी से लेकर 1674 ईसवी तक शासन किया। झारखंड के पलामू पर इन्होंने लगभग 16 वर्षों तक शासन किया था।

महाराजा मेदिनी राय का इतिहास (Maharaja Medini Rai History In Hindi)-
- पूरा नाम- पलामू नरेश महाराजा मेदिनी राय (चेरो).
- शासनकाल- 1658 से 1674 तक ( 16 वर्षों तक).
- राजधानी- पलामू (झारखण्ड).
- राजवंश- चेरा या चेरो।
- पूर्ववर्ती राजा- भूपल राय चेरो।
- इनके बाद राजा- प्रताप राय (मेदिनी राय का पुत्र).
महाराजा मेदिनी राय (Medini Rai) का साम्राज्य दक्षिण गया, हजारीबाग और सरगुजा तक फ़ैला हुआ था। चेरो वंश से संबंध रखने वाले राजाओं में मेदिनी राय का इतिहास (Medini Rai History) सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। यहां पर एक बात स्पष्ट कर लेनी चाहिए कि महाराजा मेदिनी राय और मेदिनी राय खंगार दोनों अलग-अलग राजा थे,लेकिन आज भी कई लोग इन दोनों में अंतर नहीं कर पाते हैं।
इस लेख में हम महाराजा मेदिनी राय (पलामू के राजा) की चर्चा कर रहे हैं। महाराजा मेदिनी राय (Medini Rai) ने डोइसा में रघुनाथ शाह को पराजीत किया जो कि नागवंशी राजा थे। इस जीत की खुशी में मेदिनी राय (Medini Rai) ने पलामू में एक दुर्ग का निर्माण करवाया।
रघुनाथ शाह की राजधानी को लूटा गया। मेदिनी राय (Medini Rai) यहीं पर नहीं रुके उन्होंने एक के बाद एक कई छोट और बड़े राजाओं को पराजित किया जिनमें बेलुंजा सिरिस, जुपला, कुटुंबा और शेरघाटी समेत जैसे राज्यों को अपने अधिकार में कर लिया।
महाराजा मेदिनी राय के खिलाफ़ दाऊद खान का अभियान-
सन 1660 ईस्वी में दाऊद खान ने पलामू राज्य के खिलाफ आंदोलन की शुरूआत की जिसका उद्देश्य था औरंगजेब के आदेशानुसार चेरो वंश के राजाओं को जबरन इस्लाम कबूल करवाना। इस काम में दाऊद खान के साथ दरभंगा के फ़ौजदार मिर्ज़ा खान, तहव्वुर खान, चैनपुर के जागीरदार, मुंगेर के राजा बहरोज तथा कोकरा के नागवंशी राजा शामिल थे।
एक साथ हुए इस आक्रमण को मेदिनी राय (Medini Rai) सहन नहीं कर पाए और अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए दूर जंगलों में भाग निकले ताकि मौका मिलने पर पुनः आधिपत्य स्थापित किया जा सके।
महाराजा मेदिनी राय (Medini Rai) के भाग जाने के पश्चात् पलामू के किलों पर आक्रमणकारी दाऊद खान ने कब्जा कर लिया। अधिकार होने के बाद औरंगजेब के आदेशानुसार इस राज्य से हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों को बाहर निकाला गया। हिंदु मंदिरों और धार्मिक स्थलों को तोड़ दिया गया। पलामू से पलायन करने के बाद महाराजा मेदिनी राय सरगुजा में जाकर शरण ली।
पलामू पर मेदिनी राय का पुनः अधिकार
इस तरह अपने राज्य की जनता और धार्मिक कट्टरता से भारतीय संस्कृति को पहुंचे नुकसान की भरपाई करने के लिए महाराजा मेदिनी राय को एक मौके की तलाश थी।
समय और इतिहास को बदलते समय नहीं लगता है, कुछ ही दिनों बाद मेदिनी राय ने मौका पाकर पलामू पर आक्रमण कर दिया। यह आक्रमण इतना भयानक था कि दाऊद खान वहां से जान बचाकर भाग गया। इस राज्य को पुनः खुशहाल करने के लिए मेदिनी राय ने कृषि को बढ़ावा दिया। धीरे-धीरे यह क्षेत्र पुनः खुशहाल हो गया, कृषि कार्य के साथ-साथ पशुपालन कार्य भी बढ़ा। लोगों का जीवन पुनः समृद्ध हो गया।
पलामू किले का पुनर्निर्माण

महाराजा मेदिनी राय ने जीत के पश्चात् पलामू दुर्ग का पुनर्निर्माण शुरु किया। क़िले को दुश्मनों से बचाने और स्वयं की रक्षार्थ कई बुर्जों का निर्माण करवाया।सन 1673 ईस्वी में महाराजा मेदिनी राय ने पुराने किले की पश्चिम दिशा में स्थित एक पहाड़ी पर नए दुर्ग का निर्माण प्रारंभ करवा दिया। इस दुर्ग पर एक गेट का निर्माण करवाया जिसको नागपुरी गेट के नाम से जाना गया,यह नागवंशी राजा को पराजित करने की निशानी के रुप में जाना जाता हैं।
नागपुरी गेट के दरवाज़े पर दोनों तरफ़ महाराजा मेदिनी राय के दरबारी पंडित बरनमाली मिश्र द्वारा लिखित शिलालेख लगे हुए हैं जो संस्कृत और फ़ारसी भाषा में लिखें गए है। इस शिलालेखों के अनुसार इस नागपुरी गेट के निर्माण का कार्य 1680 में शुरु हुआ था।
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