महाराणा कुम्भा का इतिहास मेवाड़ की राजनीती में बहुत महत्वपूर्ण हैं. महाराणा मोकल की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र महाराणा कुंभा (Maharana Kumbha) जिन्हें महाराणा कुंभकरण के नाम से भी जाना जाता है विक्रम संवत् 1490 मतलब कि 1433 ईस्वी में मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठा। राणा कुम्भा (Maharana Kumbha) ने मेवाड़ पर 1433 से लेकर 1468 तक राज किया था।
विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड और भाटों ने महाराणा कुंभा के गद्दी पर बैठने का संवत् 1475 (विक्रम संवत के अनुसार) या 1418 ईस्वी बताते हैं। लेकिन यह सत्य प्रतीत नहीं होता है। इस बात को गलत साबित करने के लिए विश्वसनीय प्रमाण उपलब्ध है। महाराणा कुम्भा की हाइट लगभग 9 फ़ीट थी।
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महाराणा कुम्भा का इतिहास और राणा कुंभा की कथा (maharana kumbha history in hindi or maharana kumbha story in hindi)-
- पूरा नाम Full Name Of Maharan Kumbha- महाराणा कुम्भा।
- अन्य नाम Other Names- महाराणा कुंभकरण।
- जन्म वर्ष maharana kumbha date of birth- 1403 ईस्वी।
- जन्म स्थान- चित्तौड़ दुर्ग।
- मृत्यु वर्ष maharana kumbha death- 1468 ईस्वी।
- पिता का नाम Fathers Name- महाराणा मोकल।
- माता का नाम Mothers Name- सौभाग्य देवी।
- दादा का नाम- राणा लाखा।
- पत्नी का नाम Wifes Name- अज्ञात।
- पुत्र/ पुत्रियाँ- उदयसिंह और राणा रायमल (पुत्र) रमाबाई (पुत्री).
- शासन अवधि- 1433 से 1468 तक।
- धर्म- हिन्दू ,सनातन।
- राज्य- मेवाड़।
जैसा की आपने ऊपर पढ़ा, महाराणा मोकल की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र महाराणा कुंभा जिन्हें महाराणा कुंभकरण के नाम से भी जाना जाता है विक्रम संवत् 1490 मतलब कि 1433 ईस्वी में मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठा। विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड और भाटों ने महाराणा कुंभा के गद्दी पर बैठने का संवत् 1475 (विक्रम संवत के अनुसार) या 1418 ईस्वी बताते हैं। लेकिन यह सत्य प्रतीत नहीं होता है।
इस बात को गलत साबित करने के लिए विश्वसनीय प्रमाण उपलब्ध है। (evidence about Maharan Kumbha)
1. चित्तौड़ की महा शक्तियों में किले की पश्चिमी दीवार पर महाराणा मोकल द्वारा बनाया हुआ समधीश्वर महादेव का मंदिर विद्यमान है, जिसकी प्रशस्ति के 74 वें श्लोक में स्पष्ट लिखा हुआ है कि 1428 ईस्वी में महाराणा मोर्कल ने अपने हाथों से इस मंदिर की प्रतिष्ठा की ( विक्रम संवत् 1485), जबकि इसके 75वें श्लोक का अध्ययन किया जाए तो इसमें लिखा हुआ है कि “इंद्र जहां तक स्वर्ग में राज्य करें और जहां तक जमीन को शेषनाग अपने सिर पर रखे, वहां तक राज्यलक्ष्मी इस महाराणा मोकल की भुजा पर विराजमान रहे। इससे यह साबित होता है कि उस समय तक महाराणा मोकल जीवित था।
2. दूसरे प्रमाण के तौर पर “तारीख-ए-फरिश्ता” में गुजरात के शासक अहमद शाह 1432 ईस्वी में वर्णन करते हैं कि इस समय महाराणा मोकल जीवित थे।
3. गुजरात के इतिहास के संबंध में ए.के. फार्वस द्वारा लिखित क़िताब “रासमाला” दीया जिक्र किया गया है कि 1432 ईस्वी में महाराणा मोकल जीवित थे।4. महाराणा समर सिंह प्रथम के समय में लिखे गए “अमरकाव्य” नामक ग्रंथ में महाराणा कुंभा (Maharana Kumbha) का 1490 (विक्रम संवत् के अनुसार) और 1433 ईस्वी में गद्दी पर बैठना लिखा गया है।
जब महाराणा मोकल मारा गया, उस समय राव रणमल मंडोवर में था। यह खबर सुनते ही राव रणमल ने अपने सिर से पगड़ी उतार ली और प्रतिज्ञा की महाराणा मोकल को मारने वाले (चाचा और मेरा) को मौत के घाट उतारने के बाद ही पगड़ी पुनः सर पर बंधेगी।
इस समय महाराणा कुंभा (Maharana Kumbha) युवावस्था में थे, राव रणमल ने संपूर्ण राज्य का प्रबंध किया। उसके बाद चाचा और मेरा को मारने के लिए 500 सवार लेकर गुजरात की तरफ निकल पड़े। राव रणमल को सूचना मिली की पई की पहाड़ियों में चाचा और मेरा छिपे हुए हैं। रणमल ने कई बार धावा बोला लेकिन दोनों पकड़ में नहीं आए। यहां पर राव रणमल ने पाल के मुखिया (गमेती भील) को मौत के घाट उतार दिया क्योंकि यह चाचा और मेरा का सहयोग कर रहे थे।
बहुत खोजबीन करने के बाद भी जब राव रणमल को चाचा और मेरा नहीं मिले तो रणमल उस गमेती भील के घर पहुंच गए। जहां पर उसकी पत्नी मौजूद थी, उसकी पत्नी ने रणमल से कहा कि तुमने बहुत बड़ा अपराध किया है, जिसकी सजा तुम्हें मिलनी चाहिए लेकिन तुम मेरे घर पर आए हो इसलिए मैं यहां पर तुम्हें कुछ नहीं कह सकती हूं, लेकिन तुम्हें दंड अवश्य मिलेगा।
उस भील के 5 पुत्र थे, जो किसी काम से बाहर गए हुए थे अचानक वह पांचों भी वहां पर आ गए। भीलनी ने अपने बेटों के आने से पहले ही राव रणमल को घर के भीतर बैठा दिया और उसके घोड़े को घर के पीछे बांध दिया। जब बेटों ने घर के अंदर प्रवेश किया, तब भीलनी ने उनसे पूछा कि यदि इस समय राव रणमल अपने घर आ जाए तो तुम उसके साथ कैसा व्यवहार करोगे?
उसके बेटों ने कहा कि यदि राव रणमल हमारे घर पर आ भी जाए तो हम उसे कुछ नहीं करेंगे। यह सुनकर वह बहुत खुश हुई। और उसने आवाज देकर राव रणमल को बाहर बुलाया।कहते हैं कि राव रणमल ने उस भीलनी को राखी बांधी और बहन बनाया, साथ ही उसके बेटों को भी भाई बनाया।
भीलनी के पांचों पुत्रों को राव रणमल ने पूरी कहानी बताई और कहा कि वह चाचा और मेरा को मारने के लिए यहां पर आया है। अगर आप मेरी मदद करेंगे तो अच्छा रहेगा। यह सुनकर उन पांचों ने राव रणमल की मदद करने का आश्वासन दिया।
भीलों की सहायता से राव रणमल पई के पहाड़ों की तरफ चल पड़ा। रास्ते में पत्थरों से निर्मित एक बहुत बड़ी दीवार नजर आई जिसे चाचा और मेरा ने अपने लिए बना रखी थी।इसके पीछे चाचा, मेरा और महपा तीनों मौजूद थे। राव रणमल ने चाचा और मेरा को आवाज लगाई। इतने में महपा स्त्री के कपड़े पहन कर बाहर आया।
जब राव रणमल ने दूसरी बार आवाज लगाई तब अंदर से आवाज आई कि ठाकुर मेरे कपड़े पहन कर बाहर चले गए हैं, मैं नंगी बैठी हूं यह सुनकर राव रणमल वापस मुड़ गए। इसी समय राजपूतों ने चाचा और मेरा को मौत के घाट उतार दिया चाचा का पुत्र एक्का और महपा पंवार दोनों बच निकले और मांडू के बादशाह महमूद के पास जाकर शरण ली।
राव रणमल मेवाड़ की उन लड़कियों को भी आजाद करवा कर ले आए जिनका चाचा और मेरा ने अपहरण कर लिया था। देलवाड़ा में राघव देव ( महाराणा लाखा का पुत्र और महाराणा कुंभा का काका) और राव रणमल की मुठभेड़ हुई। राघव देव ने उन लड़कियों को राठौड़ों के घर में डाल देने की आज्ञा दी। इस बात को लेकर राव रणमल और राघव के बीच मनमुटाव हो गया।
इस घटना के बाद राव रणमल और राघव देव दोनों चित्तौड़ आ गए। क्योंकि राव रणमल महाराणा कुंभा (Maharana Kumbha) के मामा थे इसलिए उनका प्रभाव ज्यादा था। साथ ही पूरी मेवाड़ रियासत राव रणमल के हाथ में थी। मौका पाकर राव रणमल ने राघव देव की हत्या कर दी।
महाराणा कुम्भा (Maharana Kumbha) ने राव रणमल से कहा कि हरामखोर महता पवार को उसके अपराध का दंड नहीं मिला, जिसने मेरे पिता महाराणा मोकल की हत्या की थी।
राव रणमल ने महमूद को पत्र लिखा कि महपा पंवार को उनके हवाले कर दें अन्यथा युद्ध करके हम उसे ले जाएंगे। यह बात बादशाह महमूद को बुरी लगी और उसने जवाब दिया कि हम अपनी शरण में आए किसी आदमी को तुम्हें नहीं सौंप सकते। यदि तुम युद्ध करना चाहते हो तो हम तैयार हैं। इतना सुनते ही महाराणा कुंभा (Maharana Kumbha) ने सैनिक अभियान का आदेश दिया। दोनों तरफ से सेनाएं युद्ध के लिए रवाना हुई, उस समय चुंडा (राघव देव का भाई) भी बादशाह के पास उपस्थित था। उसको बादशाह ने कहा कि तुम हमारे साथ चलो और राव रणमल से अपने भाई राघव देव का बदला लो।
तभी चुंडा ने कहा कि मैं महाराणा कुम्भा के खिलाफ नहीं जा सकता हूं क्योंकि यह मेवाड़ की सेना है। यदि यह राव रणमल की सेना होती तो निश्चित रूप से मैं तुम्हारे साथ युद्ध में चलता। इतना कहकर चुंडा बादशाहा द्वारा दी गई अपनी जागीर में चला गया।
बादशाह महमूद और महाराणा कुम्भा की लड़ाई के समय महाराणा कुंभा के साथ एक लाख घुड़सवार और 1400 हाथियों की सेना होना प्रसिद्ध है। गुजरात के बाद शाह महमूद और महाराणा कुंभा (Maharana Kumbha) की सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में बादशाह महमूद को हार का सामना करना पड़ा।
महमूद वहां से भाग गया और मांडू के किले में जाकर शरण ली। कुछ दिनों बाद बादशाह ने मेवाड़ी सेना पर पुनः आक्रमण कर दिया लेकिन इस बार राव रणमल ने बादशाह को गिरफ्तार कर लिया जबकि महपा पंवार वहां से भाग निकला।
गुजरात के बाद शाह महमूद को महाराणा कुम्भा (Maharana Kumbha) ने लगभग 6 महीनों तक कैद में रखा और दंड देकर छोड़ दिया, इस ऐतिहासिक जीत पर महाराणा कुंभा ने कीर्ति स्तंभ का निर्माण करवाया जो आज भी सीना तान कर खड़ा है। कीर्ति स्तंभ का निर्माण विक्रम संवत के अनुसार 1505 में जबकि 1448 ईस्वी में बनवाया गया। इसके संबंध में प्रशस्ति आज भी वहां पर विद्यमान है।
मंडोवर पर मेवाड़ का अधिकार
महाराणा कुम्भा (Maharana Kumbha) के समय में राव रणमल ने चाचा और मेरा को मौत के घाट उतार कर महाराणा कुंभा के पिता महाराणा मोकल की मृत्यु का बदला लिया। साथ ही बादशाह महमूद की लड़ाई में वीरता दिखाई। इससे राव रणमल ने महाराणा कुंभा का दिल जीत लिया।
महपा पंवार और एक्का (चाचा का पुत्र) गुप्त रास्ते से महाराणा कुम्भा (Maharana Kumbha) के पास पहुंचे और क्षमा याचना की। महाराणा कुंभा बड़े ही दयालु प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, इसलिए उन्होंने दोनों को माफ कर दिया। लेकिन राव रणमल यह अच्छा नहीं लगा।
महपा पंवार ने महाराणा कुम्भा से निवेदन किया कि ” मुझे राठौड़ों का दिल साफ नहीं लगता है और मेरे हिसाब से यह मेवाड़ पर अधिकार करना चाहते हैं। इसकी मुख्य वजह यह भी है कि मेवाड़ के चारों तरफ राठौड़ों का क्षेत्र है।” लेकिन महाराणा कुंभा (Maharana Kumbha) को महपा पंवार की बातों पर यकीन नहीं हुआ। महाराणा कुंभा को लगा कि यह राव रणमल का शत्रु है, इसलिए इस तरह की बनावटी बातें कर रहा है।
कुछ समय बाद एक और घटना घटित हुई, एक्का महाराणा कुंभा के पैर दबा रहा था पैर दबाते-दबाते उसकी आंखों से आंसू निकल आए। जब महाराणा कुंभा ने इसका कारण पूछा तो उसने कहा की मेवाड़ पर राठौड़ आक्रमण करने वाले हैं और इससे हड़प लेंगे। लेकिन इस बार भी महाराणा कुंभा को एक्का की बात पर विश्वास नहीं हुआ।
सौभाग्य देवी की दासी का नाम भारमली था। भारमली और राव रणमल की अच्छी दोस्ती थी। वह हमेशा राव रणमल से मिलने के लिए जाती थी 1 दिन की बात है वह राव रणमल के पास थोड़ी देरी से पहुंची इस पर राव रणमल ने पूछा कि आज तुम देरी से क्यों आई हो? तब भारमाली ने जवाब दिया कि मैं सौभाग्य देवी की सेविका हूं,जब छुट्टी मिली तब आई।
इस समय राव रणमल शराब के नशे में थे, इस स्थिति में उन्होंने भारमली से कहा कि अब तू किसी की नौकर नहीं रहेगी, बल्कि जो लोग चित्तौड़ में रहना चाहेंगे वह तुम्हारे नौकर होंगे। जब भारमली ने पूछा कि कैसे? तब राव रणमल ने बातों ही बातों में महाराणा कुंभा को मारने की पूरी योजना बता दी।
दासी भारमली स्वामी भक्त थी उसने यह बात सौभाग्य देवी को बताई और सौभाग्य देवी ने यह बात अपने पुत्र महाराणा कुंभा को बताई। सौभाग्य देवी और महाराणा कुम्भा ने राणा चुंडा को पुनः चित्तौड़ बुलाया। चित्तौड़ आने पर राव रणमल ने राणा चुंडा का विरोध किया और सौभाग्य देवी को बताया कि राणा चुंडा का यहां पर आना महाराणा कुंभा (Maharana Kumbha) के लिए भविष्य में खतरा हो सकता है।
इस पर सौभाग्य देवी ने उन्हें जवाब दिया कि कुछ लोगों के साथ राणा चुंडा हमारा क्या बिगाड़ सकता है? अगर हम उसे यहां पर नहीं रखेंगे तो लोग हमें भला बुरा कहेंगे क्योंकि उसने अपनी प्रतिज्ञा पूरा करने के लिए राज्य छोड़ दिया था और उत्तराधिकारी होने के बाद भी महाराणा कुंभा को राजा बनाया।
राव रणमल को भी संदेह हो गया कि महाराणा कुम्भा (Maharana Kumbha) कभी भी उन पर जानलेवा हमला कर सकते हैं। राव रणमल ने उनके पुत्र जोधा को किले की तलहटी में रहने के लिए कहा और यह भी आदेश दिया कि अगर मैं बुलाऊं तो भी किले के ऊपर मत आना।
1 दिन की बात है महाराणा कुंभा (Maharana Kumbha) ने राव रणमल से पूछा कि जोधा कहां पर है?तब राव रणमल ने कहा कि वह तलहटी में है लेकिन अभी यहां पर नहीं आ सकता है। महाराणा कुंभा (Maharana Kumbha) सब कुछ समझ चुके थे। भारमली ने एक रात राव रणमल को खूब शराब पिलाई, जिससे वह नशे में हो गया। उसके पश्चात उसे बांध दिया गया और महपा पंवार, एक्का और दूसरे व्यक्ति धारदार हथियार लेकर राव रणमल को मारने के लिए वहां पर पहुंचे। राव रणमल को मौत के घाट उतार दिया। कहते हैं कि इस घटना में महपा पंवार और एक्का की भी मृत्यु हो गई।
उसी समय एक डोम किले की दीवार पर चढ़कर जोर से आवाज लगाई “ज्यांका रणमल मारिया, जोधा भाग सके तो भाग।”इतना सुनते ही जोधा वहां से भागने लगा तभी महाराणा कुंभा के बड़े भाई राणा चुंडा वहां पर पहुंच गए और दोनों के बीच में भयंकर युद्ध हुआ।
इस युद्ध में जोधा का साथ देने वाले चरडा चंद्रावत, शिवराज, पूना भाटी , भीमा, वेरीशाल, वरजंग भीमावत और जोधा का चाचा भीम चुंडावत आदि को मौत हो गई।
तभी युद्ध में जोधा का भाई कांधल भी आ पहुंचा। लेकिन राणा चुंडा के सामने नहीं टिक पाए दोनों भाई मेवाड़ छोड़कर मारवाड़ की तरफ भाग गए। इस तरह राणा चुंडा का मंडोवर पर एकाधिकार हो गया।
महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित स्थल
कुंभलमेर का किला जिसे कुंभलगढ़ का किला भी कहा जाता है, इसका निर्माण महाराणा कुंभा (Maharana Kumbha) ने करवाया था। साथ ही यहां पर कुंभ श्याम जी मंदिर का निर्माण भी महाराणा कुंभा द्वारा करवाया गया। चित्तौड़ के किले पर कीर्ति स्तंभ, कुंभ श्याम जी का मंदिर, लक्ष्मी नाथ का मंदिर और रामकुंड महाराणा कुंभा ने बनवाए।कुकड़ेश्वर के कुंड का जीर्णोद्धार महाराणा कुंभा द्वारा करवाया गया था।
आबू पर अचलगढ़ के खंडहर, वसंत गढ़ का किला, गोडवाड में सादड़ी के पास राणा कपूर का जैन मंदिर, बदनौर के पास विराट का किला और एकलिंगनाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार आदि कुल मिलाकर 32 किले बनवाए। महाराणा कुंभा संगीत में बहुत अधिक रूचि रखते थे, उन्होंने दो ग्रंथों की रचना की एक संगीतराज वार्तिक और एकलिंग माहात्म्य।
महाराणा कुंभा द्वारा निर्मित स्थल/महाराणा कुम्भा की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ क्या हैं?
आप पढ़ रहे हैं, महाराणा कुम्भा का इतिहास और महाराणा कुम्भा का जीवन परिचय–
कुंभलमेर का किला जिसे कुंभलगढ़ का किला भी कहा जाता है, इसका निर्माण महाराणा कुंभा ने करवाया था। साथ ही यहां पर कुंभ श्याम जी मंदिर का निर्माण भी महाराणा कुंभा द्वारा करवाया गया।
चित्तौड़ के किले पर कीर्ति स्तंभ, कुंभ श्याम जी का मंदिर, लक्ष्मी नाथ का मंदिर और रामकुंड महाराणा कुंभा ने बनवाए।कुकड़ेश्वर के कुंड का जीर्णोद्धार महाराणा कुंभा द्वारा करवाया गया था। आबू पर अचलगढ़ के खंडहर, वसंत गढ़ का किला, गोडवाड में सादड़ी के पास राणा कपूर का जैन मंदिर, बदनौर के पास विराट का किला और एकलिंगनाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार आदि कुल मिलाकर 32 किले बनवाए। महाराणा कुंभा संगीत में बहुत अधिक रूचि रखते थे, महाराणा कुम्भा दो ग्रंथों की रचना की एक संगीतराज वार्तिक और एकलिंग माहात्म्य।
महाराणा कुम्भा की उपलब्धियाँ (Achievements of maharana kumbha)-
आप पढ़ रहे हैं, महाराणा कुम्भा का इतिहास और महाराणा कुम्भा का जीवन परिचय–
(1) गागरोन दुर्ग विजय – सबसे पहले राणा कुम्भा ने गागरोन का किला जीता था।
(2) बूंदी दुर्ग विजय – गागरोन के पश्चात् राणा कुम्भा ने बूंदी को अपने कब्जे में लेने के लिए धावा बोल दिया। सन 1436 में जहाजपुर के समीप राणा कुम्भा और राव बैरीसाल (भाण बूँदी) के बिच भयंकर युद्ध हुआ जिसमें मेवाड़ की जीत हुई। Rana Kumbha ने मांडलगढ़ ,बिजौलिया और जहाजपुर को भी अपने राज्य में मिला लिया।
(3) सिरोही पर आक्रमण – गोडवाड़ पहले से मेवाड़ के अधीन था इसलिए राणा कुम्भा के लिए आबू और बसंतगढ़ को शामिल करना जरुरी था ताकि गोडवाड़ की रक्षा की जा सके। उस समय वहाँ पर शेषमल का अधिकार था। डोडिया के मुखियाँ नरपति को सेनापति बनाकर भेजा और जीत हासिल की।
(4) वागड़ पर विजय – क्योंकि गुजरात से व्यापार का मुख्य मार्ग वागड़ से होकर निकलता था और वागड़ मेवाड़ का हिस्सा होते हुए भी परेशानी बना हुआ था। अतः राणा कुम्भा ने इसको मेवाड़ में मिला लिया।
(5) बदनोर पर आक्रमण – बदनोर में मेरो का विद्रोह दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था ,इसको ध्यान में रखते हुए राणा कुम्भा ने धावा बोल दिया और मेरो को पराजित कर दिया।
(6) रणथम्भौर और चाकसू – पहले यहाँ पर चौहानों का अधिकार था साथ ही मुस्लिम शासक भी इसको जीतना चाहते थे लेकिन राणा कुम्भा ने इसको भी अपने राज्य में मिला लिया।
महाराणा कुम्भा या कुम्भकर्ण के विश्व प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण युद्ध (Maharana Kumbha wars)
(1) सारंगपुर युद्ध (rana kumbha and khilj)-
विद्रोही महपा को सुल्तान महमूद खिलजी ने शरण दी,साथ ही सुल्तान महपा की रक्षा के लिए कटिबद्ध था। यह बात Rana Kumbha कुम्भा को अच्छी नहीं लगी और 1437 में कुम्भा ने अपनी विशाल सेना सहित सारंगपुर पर धावा बोल दिया। Rana Kumbha ने सारंगपुर के साथ साथ मंदसौर और जावरा को भी जीत लिया और अपने राज्य में मिला लिया। सुल्तान मुहमद खिलजी को बंदी बनाकर चित्तौडग़ढ़ ले आए,हालाँकि राणा कुम्भा ने सुल्तान को मारने की बजाए माफ़ कर दिया।
(2) कुम्भलगढ़ पर चढ़ाई –
सारंगपुर युद्ध में हार के बाद राणा कुम्भा (Maharana Kumbha) ने सुल्तान महमूद को ज़िंदा छोड़कर गलती की थी। बदले की भावना से महमूद खिलजी ने सबसे पहले कुम्भलगढ़ को निशाना बनाया। उस समय राणा कुम्भा बूंदी में थे। दुर्ग जीतने में तो नाकामयाब रहा लेकिन यहाँ के सेनापति दीपसिंह को मार दिया और चित्तौडग़ढ़ पर धावा बोलने की फ़िराक में था और यह बात जब महाराणा कुम्भा को मालूम हुई तो वो बूंदी से चित्तौडग़ढ़ लौट आए।
एक बार फिर राणा कुम्भा (Maharana Kumbha) ने महमूद को पराजित कर दिया और वह मांडू की ओर चला गया। 1459 में एक बार महमूद खिलजी ने आक्रमण किया लेकिन इस बार भी वह असफल ही रहा।
(3) गागरोन पर आक्रमण –
अब क्योंकि महमूद खिलजी बड़े राज्यों को नहीं जीत सका तो उसने योजना बनाई की छोटे छोटे दुर्ग और राज्य पर अपना कब्ज़ा किया जाए इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए खींची चौहानों के अधीन वाले गागरोन पर हमला कर दिया। इस युद्ध में सेनापति दाहिर मारा गया और यहाँ पर खिलजी का कब्ज़ा हो गया।
(4) मांडलगढ़ पर आक्रमण –
गागरोन कब्जे में लेने के पश्चात् महमूद खिलजी ने अगला टारगेट मांडलगढ़ के किले को बनाना चाहा लेकिन राणा कुम्भा ने इसके लिए पहले से तैयारी कर राखी थी। लगभग 3 दिनों तक चले इस युद्ध में महमूद खिलजी की हार हुई। 11 अक्टूबर 1446 में महमूद खिलजी ने फिर आक्रमण किया था लेकिन फिर उसको मुँह की खानी पड़ी।
(5) अजमेर और मांडलगढ़ पर आक्रमण –
बार बार पराजित होने के बाद भी महमूद हार नहीं मान रहा था। एक बार फिर महमूद खिलजी ने राणा कुम्भा को पराजित करने की योजना बनाई इस बार वह योजनाबद्ध तरीके से उसके पुत्र गयासुद्दीन को को रणथम्भौर भेजा और खुद जाइन तथा अजमेर की और रुका ताकि Rana Kumbha को घेरा जा सके।
हुआ भी ऐसा ही जाइन का किला महमूद खिलजी ने जीत लिया। यह 1455 की बात है राणा कुम्भा का प्रतिनिधि गजधर सिंह अजमेर में तैनात था। Rana Kumbha की अनुपस्थिति में भी महमूद को हार का सामना करना पड़ा। 2 वर्ष पश्चात् सन 1457 में महमूद ने मांडलगढ़ पर धावा बोल दिया और अपने अधीन कर लिया हालाँकि इस समय Rana Kumbha गुजरात में गए हुए थे। जैसे ही उनको इस बात का पता लगा की मांडलगढ़ किला महमूद ने जीत लिया तो वो तुरंत प्रभाव से लौट आए और पुनः अपना कब्जा जमा लिया।
(6) जावर युद्ध
महमूद खिलजी बहुत ही लज्जित महसूस कर रहा था क्योंकि लगातार उसकी हार हो रही थी जिसके चलते उसने जवार पर आक्रमण कर दिया लेकिन राणा कुम्भा बहुत ही वीर योद्धा थे ,इस बार भी महमूद को धूल चटा दी।
इस समय नागौर पर फिरोज खां का शासन था। नागौर की वजह से भी Rana Kumbha को बहुते सारे युद्ध लड़ने पड़े। फिरोज खान के दो पुत्र थे। एक का नाम मुजाहिद खान और दूसरे का नाम शम्स खान था। दोनों ही अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् नागौर के सिंहासन पर बैठना चाहते थे।
बड़े लड़के शम्स खान ने राणा कुम्भा से मदद मांगी ,मौका देखकर कुम्भा ने भी हां कर दी और शम्स खान को गद्दी पर बैठा दिया साथ ही संधि भी हुए की जब भी राणा कुम्भा को मदद की जरुरत पड़ेगी शम्स खान मदद करेगा और भी उसके बिच में कई संधियां हुई।
राज गद्दी पर बैठने के पश्चात् शम्स खान बदल गया और संधि का भी ख्याल नहीं रखा इससे महाराणा कुम्भा आहत हुए। उन्होंने नागौर को पुनः अपने कब्जे में लेने की ठान ली। Rana Kumbha ने चढ़ाई कर दी और शम्स खान जान बचाकर गुजरात भाग गया।
राणा कुम्भा ने अपने लिए एक और दुश्मन बना लिया। शम्स खान गुजरात जाने के बाद अपनी पुत्री का विवाह सुल्तान कुतुबुद्दीन से कर दिया और गुहार लगाई की कैसे भी करके राणा कुम्भा से बदला लेना हैं।
सुल्तान उसकी मदद के लिए राजी हो गया। और शम्स खान की मदद के लिए रायरामचंद्र और मलिक गिदई को सुल्तान ने शम्स खान के साथ युद्ध में भेजा। लेकिन सामने महान महाराणा कुम्भा थे जो कभी भी किसी से भी पराजित नहीं हुए थे।
फिर क्या था घमासान युद्ध हुआ और महाराणा कुम्भा की जीत हुई। यहीं से गुजरात और नागौर के बिच कई युद्ध हुए।
जिनमें मुख्य युद्ध निम्नलिखित थे –
(1) 1456 का नागौर युद्ध – गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन के द्वारा भेजे कई सेनापतियों की हार के बाद कुतुबुद्दीन ने खुद नागौर पर चढ़ाई की योजना बनाई। और सन 1456 सेना सहित आक्रमण कर दिया। लेकिन वापस उल्टे पाँव लौटना पड़ा।
(2) चांपानेर की संधि – गुजरात और मालवा के सुल्तान ने चांपानेर नामक स्थान पर एक समझौता किया की एक साथ दोनों सेनाएँ मेवाड़ पर आक्रमण करेगी। साथ ही यह भी समझौता हुआ की अगर जीत गए तो मेवाड़ का दक्षिण दिशा वाला भाग गुजरात में और बाकि सारा मालवा में मिला दिया जाएगा।
सन 1457 में गुजराती सुल्तान कुतुबुद्दीन ने आबू को जीत लिया और आगे बढ़ा ,दूसरी और से मालवा का शासक भी अपनी सेना के साथ चढ़ाई कर दी लेकिन Rana Kumbha ने इनको पराजित कर दिया।
(3) दम ख़म के साथ कुतुबुद्दीन का आक्रमण – आबू को महाराणा कुम्भा ने देवड़ा राजा से जीत था। देवड़ा राजा भी राणा कुम्भा से बदला लेना चाहता था तो वह कुतुबुद्दीन से मिल गया और शर्त रखी की अगर जीत गए तो आबू राजा देवड़ा को मिलेगा इसमें सुल्तान राजी हो गए।
सुल्तान कुतुबुद्दीन ने सबसे पहले अपने सेनापति को आबू पर आक्रमण के लिए भेजा लेकिन मेवाड़ी वीरों ने उसको पराजित कर दिया। इस हार से कुतुबुद्दीन को बड़ा झटका लगा और उसने देवड़ा राजा का सहारा लेकर मेवाड़ी सेना पर चढ़ाई कर दी। इस भीषण युद्ध में बाहर सारे सैनिको ने अपनी जान गावै लेकिन 3 दिन तक चले इस युद्ध में महाराणा कुम्भा ने फिर अपना परचम लहरा दियाऔर कुम्भलगढ़ में लाडे गए इस युद्ध में जीत हासिल की।
(4) 1458 में पुनः नागौर पर राणा कुम्भा का आक्रमण – हालाँकि 1456 में हुए युद्ध में राणा कुम्भा ने कुतुबुद्दीन के सेनापतियों को धूल चटा दी थी लेकिन राणा कुम्भा आबू और कुम्भलगढ़ में ज्यादा व्यस्त हो गए थे जिसके चलते शम्स खान हावी हो गया था साथ वह गौमाता की हत्या लगातार करवा रहा था और नागौर किले पर मरम्मत का काम शुरू कर रहा था।
यह बात कई समय से Rana Kumbha के दिमाग में थी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सन 1458 में मेवाड़ी सेना ने एक बार फिर नागौर पर आक्रमण कर दिया और इस किले पर पूर्णतया अपना अधिकार जमा लिया।
(5 ) 1458 में एक बार फिर कुतुबुद्दीन का धावा – हार का दर्द छुपाए नहीं छुप रहा था इसलिए गुजरात के सुल्तान ने फिर से कुम्भलगढ़ पर धावा बोल दिया लेकिन इस बार राणा कुम्भा पूरी शक्ति के साथ उस पर टूट पड़ा और कुतुबुद्दीन को घायल होकर रणभूमि से भागना पड़ा। इस युद्ध में जैसे तैसे उसकी जान बच गई लेकिन 25 मई 1458 को कुतुबुद्दीन का देहांत हो गया।
(6 ) महमूद बेगड़ा बनाम राणा कुम्भा – गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन की मौत के बाद महमूद बेगड़ा गुजरात का शासक बना। उसने भी राणा कुम्भा से बदला लेना था जिसके चलते सन 1459 में उसने जूनागढ़ पर आक्रमण कर दिया। जूनागढ़ के सरदार ने राणा कुम्भा से मदद मांगी। मदद के लिए राणा कुम्भा निकल पड़े क्योंकि यहाँ के सरदार राणा कुम्भा का दामाद था। राणा कुम्भा और उनके दामाद ने मिलकर महमूद बेगड़ा को पराजित कर दिया।
राणा कुम्भा विजय स्तम्भ (Maharana Kumbha Vijay Stambh)
विजय स्तम्भ को महाराणा कुम्भा (Maharana Kumbha) ने बनवाया था। यह राजस्थान के ऐतिहासिक शहर चित्तौडग़ढ़ में स्थित हैं। महाराणा कुम्भा ने सारंगपुर युद्ध में महमूद खिलजी को पराजित कर दिया था जिसके बाद Maharana Kumbha ने विजय के प्रतिक विजय स्तम्भ का निर्माण सन 1437 में करवाया था।
विजय स्तम्भ की ऊंचाई 122 फ़ीट और चौड़ाई 30 फ़ीट हैं। यह निचे से चौड़ा ,बिच में संकरा और ऊपर जाते जाते फिर से थोड़ा चौड़ा हो जाता हैं। अगर इसका आकार देखा जाए तो यह डमरू के समान हैं। यह स्थापत्यकला और कारीगरी का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
इसमें कुल 9 मंजिलें हैं और ऊपर जाने जाने के लिए 157 सीढ़ियां बनी हुए हैं। इसको विष्णु ध्वज या विष्णु स्तम्भ के नाम से भी जाना जाता हैं। इसके अंदर और बाहर हिन्दू देवी -देवताओं की सुन्दर सुन्दर मूर्तियां पत्थरों पर उत्कीर्ण हैं। रामायण और महाभारत के पात्रों की हजारों मूर्तियां अंकित हैं इसके साथ ही भगवान विष्णु के अवतार, हरिहर ,ब्रह्मा ,लक्ष्मीनारायण ,उमा-महेश्वर और अर्धनारीश्वर की मूर्तियां अंकित हैं। इसके ऊपर आम आदमी भी घूमने के लिए जा सकते हैं।
राणा कुम्भा नाटक,राणा कुम्भा की रचनाएँ ,राणा कुम्भा कृत्य गृंथ और पुस्तकें -(Rana Kumbha Books)
राणा कुम्भा बहुत बड़े साहित्य प्रेमी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में कई बड़े बड़े ग्रंथों ,पुस्तकों और साहित्यो की रचना की थी। इनके द्वारा रचित रचनाओं में एकलिंग माहात्म्य ,कामराज रतिसार ,संगीतराज ,रसिकप्रिया ,सुड प्रबंध,गीत गोविन्द , संगीत मीमांसा आदि प्रमुख हैं। संगीतराज नामक ग्रन्थ 5 उल्लास में बंटा हुआ हैं जिनमें पथ रत्नकोष ,गीत रत्नकोष ,वाद्य रत्नकोष ,नृत्य रत्नकोष और 80 परीक्षण शामिल हैं। राणा नाट्य शास्त्र में भी महारत हासिल थी।
कामराज रतिसार के बारे में कहा जाता है कि यह कामसूत्र की तरह था। इसके कुल 7 अध्याय थे जो 155 श्लोकों में बंटा हुआ था। इस ग्रन्थ की रचना 1461 -62 में की थी। ऐसा कहा जाता है की विजयादशमी के दिन मात्र एक दिन में उन्होंने इस ग्रन्थ को लिख दिया था।
महाराणा कुम्भा को मिली उपाधियाँ -इनको हिन्दू सुरताण, नंदिकेश्वर और कलसनृपति आदि नामों से भी जाना जाता हैं। इसके अलावा अगर अवतार की बात की जाए तो छापगुरु ,हालगुरु ,राजगुरु दानगुरु,नरपति और अभिनवभरताचार्य।
राणा कुम्भा की वीरता ,शौर्यता ,बलिदान और प्रजा प्रेम पर अच्छे भजन ( राणा कुम्भा भजन) मौजूद हैं जिन्हे आप सुन सकते है और उनके माध्यम से उनकी वीरता को बारीकी से जान सकते हैं।
महाराणा कुंभा की मृत्यु कैसे हुई?
विक्रम संवत के अनुसार (maharana kumbha death) 1525 जबकी 1468 ईस्वी में कुंभलमेर के एकलिंग नाथ जी मंदिर में महाराणा कुंभा दर्शन करने के लिए गए। वहां पर एक गाय जोर से हम्माई।जब महाराणा कुंभा ने एकलिंग नाथ जी के दर्शन कर लिए और अपने दरबार में चले गए तब उन्होंने एक हाथ में तलवार लेकर बोला “कामधेनु तांडव करिय”। कुछ समय पश्चात एक व्यक्ती ने काम के लिए महाराणा कुंभा से निवेदन किया तो उन्होंने पुनः यही बात दोहराई की “कामधेनु तांडव करिय”। आगामी तीन चार दिनों तक यह घटना होती रही।
महाराणा कुंभा (maharana kumbha) के छोटे पुत्र रायमल ने हिम्मत कर अपने पिता से पूछा कि यह बात आप बार-बार क्यों बोल रहे हैं? तब महाराणा कुंभा क्रोधित हो गए और उन्होंने लोगों से कहा कि रायमल को मेवाड़ से बाहर निकाल दो। यह कथन सुनकर रायमल ईडर चला गया।
मेवाड़ के लोगों और राज दरबारियों में से किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि महाराणा कुंभा (maharana kumbha) से अब कुछ सवाल पूछे।ज्योतिषियों के अनुसार महाराणा कुंभा की मृत्यु चारण के हाथों से होगी। इस जानकारी के बाद महाराणा कुंभा ने सभी चारणों को मेवाड़ से बाहर निकाल दिया, लेकिन एक चारण राजपूत बनकर वहीं पर रह गया।
उच्चारण ने महाराणा कुंभा (maharana kumbha) के सामने यह साबित किया कि चारण गलत नहीं है आपने उन्हें जबरदस्ती मेवाड़ से बाहर निकाल दिया।धीरे-धीरे महाराणा कुंभा का दिमाग काम करना बंद कर दिया 1 दिन कुंभलमेर के किले में कटारगढ़ के उत्तर की तरफ मामादेव नामक स्थान के पास कुंड पर महाराणा कुंभा बैठे थे।तभी उनका बड़ा बेटा उदय सिंह वहां पर पहुंचा और उसने तलवार निकालकर महाराणा कुंभा को मौत के घाट उतार दिया।
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महाराणा कुम्भा के पुत्र या महाराणा कुम्भा की वंशवाली
maharana kumbha family tree or maharana kumbha childrens-
- उदयसिंह।
2. रायमल।
3. नागराज।
4. गोपालसिंह।
5. आसकरण।
6. गोविन्द दास.
7. जैतसिंह।
8. महरावण।
9.क्षेत्र सिंह।
10.अचल दास.
तो दोस्तों यह लेख पढ़ने के बाद जान चुके हैं कि महाराणा कुम्भा का जीवन परिचय क्या हैं, महाराणा कुम्भा का इतिहास ,महाराणा कुम्भा महल, महाराणा कुम्भा की पत्नी का नाम, महाराणा कुम्भा की हत्या किसने की, महाराणा कुम्भा की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ क्या हैं?,महाराणा कुम्भा का जन्म कब हुआ,महाराणा कुम्भा की छतरी कहाँ पर हैं या फिर महाराणा कुम्भा की हत्या किसने की. अगर यह लेख आपको अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें, धन्यवाद।
बहुत ही अच्छी जानकारी महाराणा कुम्भा के बारे में
Meera bai rajkumar bhojraj ki patni thi na ki rana kumbha ki