महारानी बैजाबाई सिंधिया ( Great Baiza Bai Scindia )- ग्वालियर की महारानी।

महारानी बैजाबाई सिंधिया ( Baiza Bai Scindia) जिन्हें बाजा बाई या बायजा बाई के नाम से भी जाना है ग्वालियर रियासत की महारानी और बैंकर थी। महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) दौलतराव सिंधिया की तीसरी पत्नी थी, दौलतराव सिंधिया की मृत्यु के पश्चात उन्होंने ग्वालियर प्रशासन में प्रवेश किया।

ईस्ट इंडिया कंपनी के मुख्य प्रतिद्वंदी के रूप में उभरी और जब महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) को सत्ता से बेदखल कर दिया गया, उसके पश्चात उनके गोद लिए हुए बेटे “जानकोजी राव सिंधिया द्वितीय” को ग्वालियर रियासत का महाराजा बनाया गया। आइये जानते हैं महारानी बैजाबाई सिंधिया कौन थी?

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महारानी बैजाबाई का इतिहास (Maharani Baiza Bai Scindia history in hindi)-

  • अन्य नाम Other name – बाजाबाई या बायजाबाई.
  • जन्म वर्ष Birth year – 1784.
  • जन्म स्थान birth Place– कागल, कोल्हापुर (महाराष्ट्र).
  • मृत्यू वर्ष Death year – 1863.
  • मृत्यू स्थान Death place– ग्वालियर (मध्य प्रदेश).
  • पिता का नाम Father’s name – सखाराम घाटगे.
  • माता का नाम Mother’s name – सुन्दर बाई.
  • धर्म Religion – हिंदू सनातन.
  • शासन अवधि Governance period – 12 फरवरी 1798 से 1833 तक.

फरवरी 1798 में 14 वर्ष की आयु में उनका विवाह ग्वालियर के महाराजा दौलतराव सिंधिया के साथ हुआ। महाराज दौलत राव सिंधिया की यह तीसरी पत्नी थी लेकिन साथ ही सबसे प्रिय भी।
इतिहासकारों का मानना है कि महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) और महाराजा दौलतराव सिंधिया के कई बच्चे थे जिनमें एक बेटा भी था जो महारानी बैजाबाई सिंधिया (Maharani Baijabai Scindia) को कष्ट देता था।

महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) एक बहुत अच्छी घुड़सवार थी उन्हें तलवार और वाले से लड़ने के लिए उनके माता-पिता द्वारा बहुत अच्छी तरह से प्रशिक्षित किया गया था। आंग्ल मराठा युद्ध में भी उन्होंने अपने पति दौलतराव सिंधिया के साथ युद्ध में भाग लिया था। सिंधिया राजवंश ने प्रशासनिक कार्यों के साथ-साथ राज्य के मामलों में भी महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) की मदद ली।

महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) ने सिंधिया अदालत में उनके रिश्तेदारों को उच्च पदों पर आसीन किया, जिनमें उनके पिता सखाराम को ग्वालियर का दीवान बनाया गया। द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध में सिंधिया और मराठों की संयुक्त रूप से हार हुई और ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ हुई एक संधि ने उन्हें ग्वालियर के प्रशासन से मुक्त कर दिया। इससे पहले भी उनके खिलाफ ब्रिटिश विरोधी भावनाएं रखने की सूचना मिली थी, जिस वजह से उनके (Maharani Baijabai Scindia) और राजा के बीच में अनबन हो गई।

इस संधि के बाद महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia)को ₹200000 प्रति वर्ष की जागीर प्रदान की गई। हालांकि उनकेेे पति नेे यह सब राशि पुनः लौटा दी। 1813 ईस्वी में उनके भाई हिंदूराव को ग्वालियर का दीवान बनाया गया, बाद में 1816 में यह पद उनके चाचा बाबाजी पाटनकर को सौंपा गया।

महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) ने अपने पिता की तरह ही प्रारंभिक दिनों में ब्रिटिश विरोधी रुख को अपनाया। पिंडारियों के खिलाफ ब्रिटिशों ने एक अभियान चलाया था जिसमें मराठा साम्राज्य के पेशवा बाजीराव द्वितीय भी साथ थे। महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) ने भी उनके पति दौलतराव सिंधिया को पेशवा का साथ देने के लिए आग्रह किया।

जब दौलत राव सिंधिया द्वारा पिंडारियों के समक्ष ब्रिटिश मांगों को पेश किया गया तब महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) ने उन पर कायर होने का आरोप लगाया।
महारानी बैजाबाई सिंधिया (Maharani Baijabai Scindia) ने ग्वालियर रियासत और सिंधिया राजवंश के बैंकर के रूप में भी कार्य किया था।

21 मार्च 1827 के दिन दौलतराव सिंधिया की मृत्यु हो गई। दौलतराव सिंधिया की मृत्यु के पश्चात उनके उत्तराधिकारी के रूप में कोई व्यक्ति नहीं था, इसलिए उन्होंने ब्रिटिश दरबार के मेजर जोशिया स्टीवर्ट को सलाह दी कि उनके पश्चात महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) शासन करेगी।

कुछ समय पश्चात ही महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) के भाई हिंदू राव ने एक फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत किया जिसमें लिखा था कि दौलतराव सिंधिया की इच्छानुसार एक पुत्र को गोद लिया जाए और उन्हें उत्तराधिकारी घोषित किया जाए। लेकिन हिंदूराव (गोद लिया हुआ पुत्र ) द्वारा प्रस्तुत इस दस्तावेज पर सबको संदेह था।

सब के विपरीत 17 जून 1827 को सिंधिया परिवार से मुकुट राव नामक एक 11 वर्षीय लड़के को सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में घोषित किया गया। यह नाम उन्हें जानकोजी राव सिंधिया द्वारा दिया गया था। इसके बाद भी महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) प्रयास करती रही कि उनकी तरफ से ही किसी को शासन व्यवस्था सौंपी जाएगी लेकिन वह कामयाब नहीं हुई।

1830 ईस्वी में महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) ने ब्रिटिश रेजिडेंट को सूचित किया कि जानकोजी राव के समर्थक उसे उखाड़ फेंकने की योजना बना रहे हैं। निरंतर प्रयास करने के बाद भी महारानी बैजाबाई सिंधिया (Maharani Baijabai Scindia) को ग्वालियर रियासत में वह स्थान फिर कभी नहीं मिल पाया जिस की लालसा बाहर कई वर्षों से रख रही थी।

साम्राज्य के कई गुट उनके खिलाफ हो गए और वहां से वह मथुरा और फतेहगढ़ चली गई। अंग्रेजों ने भी उनसे आग्रह किया कि वह बनारस चली जाए ,लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया और कुछ समय के लिए इलाहाबाद में रही।

1841 में वह नासिक चली गई जहां पर उन्होंने अंग्रेजी सरकार से ₹400000 की वार्षिक पेंशन प्राप्त की। 1847 और 1856 के बीच महारानी बैजाबाई (Baiza Bai Scindia) उज्जैन में थी और 1856 में पुनः ग्वालियर लौट आई।इतना ही नहीं 1857 के विद्रोह के दौरान महारानी बैजाबाई ने तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया।

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महारानी बैजाबाई सिंधिया की मृत्यु, maharani Baijabai Scindia died –

अपने ही अंदाज में जीवन जीने वाली महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) की मृत्यु 1863 ईस्वी में ग्वालियर में हुई। महारानी बैजाबाई के परोपकार, कला और धर्म के संबंध में उनके द्वारा किए गए अद्वितीय कार्यों के कई मूर्त अवशेष आज भी हैं।

इतिहासकारों का मानना है कि बनारस में महारानी बैजाबाई सिंधिया (Baiza Bai Scindia) ने 1828 में ज्ञानवापी कुए के चारों तरफ एक कॉलोनी का निर्माण किया था। 18 सो 30 ईस्वी में उन्होंनेे सिंधिया घाट के दक्षिणी बुर्ज के पास एक मंदिर का निर्माण करवाया था जो नदी के किनारे स्थित भव्य घाटों में से एक हैं।

1848 इसवी में महारानी बैजाबाई सिंधिया (Maharani Baijabai Scindia) ने उज्जैन में गोपाल कृष्ण मंदिर का निर्माण करवाया था। 1850 ईस्वी में उनके नाम पर गाजियाबाद में मोती महल के भीतर बैजाताल नामक एक जलाशय का निर्माण करवाया गया था।

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महारानी बैजाबाई सिंधिया ( Great Baiza Bai Scindia )- ग्वालियर की महारानी।

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