Naga Sadhus vs Abdali- 1 युद्ध जिसने अब्दाली को नानी याद दिला दी.

Naga sadhus vs abdali इतिहास के सुनहरे पन्नों से गायब एक ऐसा युद्ध था, जिसने हिंदू समाज के रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति देने वाले नागा साधुओं को अमर कर दिया। लेकिन इस घटना का इतिहास में कहीं भी ज़िक्र देखने को नहीं मिलता है। Naga sadhus vs abdali युद्ध अहमद शाह अब्दाली की अफगानी सेना और 5000 नागा साधुओं के बीच लड़ा गया युद्ध था।

Naga Sadhus vs Abdali अहमद शाह अब्दाली और नागा साधुओं की लड़ाई।
Naga Sadhus vs Abdali

अहमद शाह अब्दाली का साम्राज्य विस्तार और भारत आगमन (Naga Sadhus vs Abdali)

Naga sadhus vs abdali पर आधारित इस लेख में आप पढ़ेंगे की कैसे अहमद शाह अब्दाली अफगानिस्तान का शासक बना और साम्राज्य विस्तार और अपने जिहादी मंसूबे को अंजाम देने के लिए भारत आया।

सन 1748 ईस्वी में मात्र 26 वर्ष की आयु में अहमद शाह अब्दाली अफगानिस्तान का शासक बना और आक्रांता अब्दाली साम्राज्य विस्तार के लिए भारत की तरफ बढ़ा।

पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों का सामना अहमद शाह अब्दाली से हुआ था। यह एक बहुत ही भीषण युद्ध था, जिसमें आपसी फूट की वजह से मराठों को पराजय का सामना करना पड़ा।

क्या आप जानते हैं- बाजीराव पेशवा का इतिहास।

Naga Sadhus vs Abdali की ऐतिहासिक लड़ाई-

पानीपत के तीसरे युद्ध में विजय से गदगद अहमद शाह अब्दाली अपने जिहादी मंसूबे को पूरा करने के लिए सेना सहित मथुरा की तरफ आगे बढ़ रहा था।
इस दौरान रास्ते में आने वाले गैर मुस्लिमों को वह गाजर-मूली की तरह काटता, मारता, लूटपाट, डकैती और ब लात्कार करते हुए आगे बढ़ रहा था। मथुरा के पश्चात अहमद शाह अब्दाली गोकुल पहुंचा। जब अहमद शाह अब्दाली गोकुल पहुंचा (Naga sadhus vs abdali) तो वहां पर उसका सामना नागा साधुओं से हुआ, जो हाथ में चिमटा लिए क्रूर अफगानी सेना के सामने खड़े थे।

यह नजारा देखकर अहमद शाह अब्दाली ने उनका उपहास किया और साधुओं को बहुत हल्के में लिया। नागा साधु अहमद शाह अब्दाली की करतूतें जानते थे, इसलिए अहमद शाह अब्दाली को सबक सिखाने के लिए सीना तान कर खड़े हो गए।

कुछ क्षण बाद वहां पर माहौल शांत हो गया और शायद यह अंदेशा दे रहा था कि कोई बड़ा तूफान आने वाला है। तभी अचानक हर हर महादेव का जयकारा एक साथ बुलंद आवाज में गूंज उठा। नागा साधुओं ने हाथ में त्रिशूल और चिमटा लिए अफगानी सेना को धूल चटाने का संकल्प लेकर अफगानी सेना पर टूट पड़े।
ऐसा लग रहा था जैसे नागा साधुओं ने महाकाल का रूप धारण कर लिया हो। इस युद्ध में उन्होंने ऐसा तांडव मचाया जिसके बारे में अब्दाली ने कभी सोचा भी नहीं था।

बड़ी-बड़ी तोपों और तलवारों के सामने चिमटे और त्रिशूल इतने भारी पड़े कि अफगानी सेना तितर-बितर हो गई और युद्ध स्थल से कोसों पीछे हट गई।
हालांकि इस भीषण युद्ध में 2000 नागा साधु वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन क्रूर अब्दाली को युद्ध मैदान छोड़कर भागना पड़ा। चारों तरफ अब्दाली के सैनिकों की लाशें बिछी हुई थी। यह नजारा देखकर अब्दाली के पैरों तले जमीन खिसक गई जैसे-तैसे वह जान बचाकर भाग निकला।

नागा साधुओं का प्रकोप देखकर अहमद शाह अब्दाली इतना खौफ खा गया कि जहां-जहां भी उसे नागा साधु नजर आते वह वहां से भाग निकलता। (Naga Sadhus vs Abdali) या फिर ऐसा कहें कि किसी भी विदेशी जेहादी आक्रांता को यह पता चलता है कि युद्ध में नागा साधु भाग ले रहे हैं, तो वह लड़ने की बजाय मैदान छोड़कर भाग निकलते।

इतिहासकारों ने सिर्फ तैमूर, अकबर और बाबर जैसे क्रूर और लुटेरों का गुणगान किया है जबकि वास्तविक रूप में देश की आन बान और शान की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले रणबांकुरे को इतिहास के पन्नों से गायब कर दिया। यह हमारे भारतवर्ष का दुर्भाग्य है।

साथ ही हमारा भी यह दुर्भाग्य है कि जिन्होंने हमारे देश को लूटा, हमारी संस्कृति को नुकसान पहुंचाया, हमारे पूर्वजों को क्रूरता के साथ मारा उन्हीं के इतिहास को बढ़ा चढ़ाकर पढ़ाया जाता है।

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