पौरव वंश का इतिहास (Paurava Vansh History In Hindi).

पौरव वंश का इतिहास (Paurava Vansh History In Hindi) या पर्वताकार वंश उत्तराखंड का राजवंश है. पौरव वंश के प्रथम शासक विष्णुवर्मन प्रथम थे. इस वंश की स्थापन छठी शताब्दी से लेकर आठवी शताब्दी के मध्य हुई थी. पौरव वंश का इतिहास (Paurava Vansh History In Hindi) बताने वाले इतिहासकार लिखते हैं कि यह वंश राजा हर्ष के बाद का हैं और पौरववंश में जन्में ज्यादातर राजाओं ने हर्ष की प्रशासनिक व्यवस्था को अपनाया था.

पौरव वंश के इतिहास (Paurava Vansh History In Hindi) की जानकारी का मुख्य स्त्रोत हैं अल्मोड़ा के तालेश्वर से प्राप्त अष्टधातु और ताम्र पत्र के अभिलेख. हालांकि इस वंश के बारे में जानकारी देने वाले ज्यादा प्रमाण नहीं है लेकिन जो भी मौजुद हैं उनसे इस वंश की ऐतिहासिकता (Paurava Vansh History In Hindi) का पता लगाया जा सकता हैं.

झेलम नदी किनारे बसा पौरव राज्य को पौरवराष्ट्र के नाम से भी जाना जाता हैं. इस वंश में कई नामी गिरामी राजाओं ने जन्म लिया जिसमें राजा पुरु, राजा बमनी, राजा पोरस, राजा भारत, राजा मालायकेतु और भद्रकेतु आदि का नाम मुख्य हैं. पौरव वंश में जन्म लेने वाले राजा-महाराजाओं के परिवार को पौरव राजपरिवार के नाम से जाना जाता था.

पौरव वंश का इतिहास (Paurava Vansh History In Hindi).

पौरव वंश के प्रथम शासक- विष्णुवर्मन प्रथम.
पौरव वंश की स्थापना- छठी शताब्दी से लेकर आठवी शताब्दी के मध्य.
पौरव वंश ऐतिहासिक स्त्रोत- तालेश्वर से प्राप्त अष्टधातु और ताम्र पत्र के अभिलेख.
पौरव राज्य का अन्य नाम- पौरवराष्ट्र.
पौरव राजवंश की राजधानी - ब्रह्मपुर.

पौरव वंश के इतिहास (Paurava Vansh History In Hindi) के संबंध में सन 1915 ईस्वी में पौरव वंशी राजा धूतिवर्मन और विष्णुवर्मन से सम्बन्धित अभिलेख तालेश्वर (अल्मोड़ा) से प्राप्त हुए हैं. ये अष्टधातु और ताम्र पत्र के हैं जो पौरव वंश के शासकों और उनकी प्रशासनिक व्यवस्था के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं.

प्राचीन पौरव वंश की राजधानी ब्रह्मपुर थी, मार्कंडेय पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है. साथ ही प्रसिद्ध चीनी यात्री हेनसांग ने भी इसका वर्णन किया है. पौरव या पर्वताकार राजवंश का राज्य 667 मील से भी अधिक परिधि में फैला हुआ था, जिसके चारों और पर्वत है और इन्हीं पर्वतों की वजह से इस राज्य को पर्वताकार राज्य के नाम से जाना जाता है.

इतिहासकारों के मतानुसार पौरव वंश का शासन काल छठी शताब्दी से आठवीं शताब्दी के मध्य रहा है. ऐतिहासिक साक्ष्यों के अभाव में निश्चित तौर पर तो यह नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इतिहासकारों के एक वर्ग ने पौरव वंश का उद्भव राजा हर्ष के बाद तथा यशोवर्मा (कन्नौज या कत्यूरी शासक) से पूर्व का बताया है.

पौरव एक बहुत ही सुंदर राज्य था, इसका मुख्य रंग नीला था. इसी रंग के चलते इस राज्य को नीला सदन के नाम से भी जाना जाता है. यहां के घर भी नीले रंग के थे और जो सैनिक थे वह भी नीले रंग की वर्दी पहनते थे, इस राज्य के बारे में कहा जाता है कि यहां पर हर व्यक्ति नीले रंग के कपड़े पहनता था.

जैसा कि आप सब जानते हैं कि राजा हर्ष ने 600 ईस्वी से लेकर 647 ईस्वी तक राज किया था, जबकि कन्नौज के राजा यशो वर्मा का शासनकाल 725 ईस्वी हैं. पौरव वंश के इतिहास के संबंध में पूर्व शासक विष्णू वर्मन द्वितीय के एक अभिलेख से प्राप्त जानकारी के अनुसार पौरव वंश राजा हर्ष का परवर्ती राजवंश था.

पौरव वंश की शासन प्रबंध व्यवस्था

पौरव वंश का इतिहास (Paurava Vansh History In Hindi) बताता है कि इसकी स्थापना राजा हर्ष तथा गुप्त काल के बाद की मानी जाती है, इस वजह से इसकी शासन प्रबंध व्यवस्था में राजा हर्ष और गुप्त वंश के शासकों की समानता देखने को मिलती है. राजा हर्ष का परवर्ती राजवंश होने की वजह से पौरव वंश ने हर्ष की नीतियों और शासन व्यवस्था का अनुसरण किया था.

पौरव वंश के प्रारंभिक शासकों ने किसी भी तरह की उपाधि धारण नहीं करने का निर्णय लिया था, लेकिन बाद के राजाओं ने “महाधीराज परम भट्टारक” की उपाधि धारण की तथा इस वंश के सर्वोच्च शासक को राजा के नाम से जाना जाता था.

पौरव वंश का इतिहास (Paurava Vansh History In Hindi) इस बात का गवाह है कि इस राज्य वंश में जन्म लेने वाले राजा प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे तथा ब्राह्मणों को विशेष महत्व दिया जाता था. गाय को माता का दर्जा प्राप्त था तथा उनकी सेवा करने में भी इस वंश के राजा पीछे नहीं थे. पौरव वंश के शासक निरंकुश नहीं थे, इन्हें दानदाता भी कहा जाता था जिसका उल्लेख इनके अभिलेखों में मिलता है.

शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए मंत्री परिषद का गठन किया जाता था. यही मंत्री परिषद राजा को विभिन्न कार्यों के संबंध में सलाह मशवरा और परामर्श देने का कार्य करती थी.

पौरव वंश के शासक अपने परिवार के साथ जिस स्थान पर रहते थे उसे “कोट” के नाम से जाना जाता था. पौरव वंश के मंत्री परिषद में अमात्य, बला अध्यक्ष संधी विशाहक, राजदौवारिक, कोटाधीकरण, कुमारमात्य, सर्व विषय प्रधान देव, कारगिक तथा द्रोणाधिकृत जैसे अधिकारियों को शामिल किया गया था. कोटाधीकरण नामक अधिकारी राजा के निवास स्थान की सुरक्षा करता था.

पौरव राजवंशी सेना

पौरव वंश का इतिहास (Paurava Vansh History In Hindi) बताता हैं कि पौरव वंश की सेना को भी तीन भागों में बांटा गया था हाथी पर सवार सैनिक, घोड़े पर सवार सैनिक एवं पैदल सैनिक यह सभी सेना अध्यक्ष के अधीन थे. इन सेना नायकों को जयनपति, अश्वपति तथा गजपति के नाम से जाना जाता था. पौरव वंश की आय का मुख्य साधन भूमि पर लगने वाला कर था, जिसे भाग के नाम से भी जाना जाता है. भागी कृषि उपज क्या छठा भाग एकत्रित करता था.

पौरव वंश (Paurava Vansh History In Hindi) से संबंधित बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्न

पौरव वंश का संस्थापक कौन था?
उत्तर- पौरव वंश का संस्थापक विष्णुवर्मन प्रथम था.
पौरव वंश की राजधानी क्या थी?
उत्तर- पौरव वंश की राजधानी ब्रह्मपुर थी.
मलयकेतु किसका पुत्र था?
उत्तर- महारानी लाची और पोरस का.

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