पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी।

ऐतिहासिक प्रेम कहानियों की बात की जाए तो सबसे पहला नाम आता है, पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी का।भारतवर्ष में जिस तरह बाजीराव मस्तानी की प्रेम कहानी और सम्राट अशोक की प्रेम कहानी अमर हैं, वैसे ही पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी भी अमर हैं। साथ ही इसे प्रेम का पर्याय भी माना जाता है।

पृथ्वीराज चौहान महज 11 वर्ष की आयु में दिल्ली की राजगद्दी पर बैठे। एक ऐसे योद्धा जिन्होंने बचपन में शेर का जबड़ा चीर दिया, साथ ही शब्द बेनी शब्दभेदी बाण चलाने में माहिर पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली के राजा अनंगपाल के कोई बारिश नहीं होने की वजह से पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली की राजगद्दी का युवराज घोषित किया गया।

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी की शुरुआत

पन्नाराय नामक एक बहुत बड़े और मशहूर चित्रकार देश के नामी-गिरामी राजा महाराजाओं के चित्र लेकर कन्नौज पहुंचे। वहां पर इन्होंने चित्रों की प्रदर्शनी लगाई, इन चित्रों में पृथ्वीराज चौहान का चित्र भी शामिल था।

राज्य की स्त्रियों और पुरुषों की लाइन लगी हुई थी, सभी को पृथ्वीराज चौहान बहुत ही आकर्षक और खूबसूरत लगे। हर कोई पृथ्वीराज चौहान के चित्र की तारीफ कर रहा था। जब सहेलियों के द्वारा यह खबर कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री संयोगिता तक पहुंची, तो वह भी उस चित्र को देखने के लिए लालायित हो उठी।

संयोगिता अपनी सहेलियों के साथ उस चित्र को देखने के लिए पहुंची, जब उसने उस चित्र को देखा तो देखती ही रह गई और उसमें खो गई।संयोगिता की नजर नहीं हट रही थी, उसके दिल की धड़कन बढ़ गई। केवल चित्र देखकर संयोगिता ने अपना दिल पृथ्वीराज चौहान को दे दिया। इन्होंने मन बना लिया की वह अब शादी तो पृथ्वीराज चौहान से ही करेंगी। यही से पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी की शुरुआत हुई।

लेकिन यह कैसे संभव होगा किसी को पता नहीं था। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कन्नौज के राजा जयचंद पृथ्वीराज चौहान से नफरत करते थे। एक दूसरे के चिर प्रतिद्वंदी होने की वजह से शायद यह प्रेम पूरा ना हो पाए ऐसा विचार संयोगिता के मन में भी था।

लेकिन कहते हैं कि जब हम किसी को दिलों जान से चाहते हैं तो पूरी कायनात उसे मिलाने में लग जाती है। जल्द ही संयोगिता के मन में एक विचार आया और उन्होंने चित्रकार पन्नाराय को बुलाया और स्वयं का चित्र बनाकर पृथ्वीराज चौहान के समक्ष प्रस्तुत करने की बात कही।
सुंदर चित्रकारी के लिए प्रसिद्ध चित्रकार ने राजकुमारी संयोगिता का एक बहुत ही सुंदर चित्र बनाया और दिल्ली जाकर पृथ्वीराज चौहान को दिखाया।

पृथ्वीराज चौहान राजकुमारी संयोगिता की खूबसूरती और यौवन को देखकर मोहित हो गए। जिस तरह राजकुमारी संयोगिता ने पहली ही नजर में पृथ्वीराज चौहान को दिल दे दिया, वैसे ही पृथ्वीराज चौहान भी दिल हार बैठे।

राजकुमारी संयोगिता द्वारा चलाया गया तीर निशाने पर जा लगा, जो आग संयोगिता के दिल में थी वही आग अब पृथ्वीराज चौहान के दिल में भी लग गई। एक दूसरे को देखने के लिए तड़प उठे।

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी में बाधा

परवान चढ रहे प्रेम के बारे में जब कन्नौज के राजा जयचंद को पता चला तो वह आगबबूला हो उठे। उन्हें पृथ्वीराज चौहान कतई पसंद नहीं था और तो और वह पृथ्वीराज चौहान को अपना दुश्मन मानते थे। साथ ही पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी के दुश्मन भी।

उन्होंने राजकुमारी संयोगिता को बुलाया और कहा कि पृथ्वीराज चौहान के साथ तुम्हारी शादी नहीं हो सकती है। राजकुमारी संयोगिता ने अपने पिता से प्रार्थना की कि वह पृथ्वीराज चौहान को बहुत पसंद करती हैं और उसी से शादी करेगी।

राजा जयचंद को यह बात बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी। पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी के रंग में भंग डालने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई। इस योजना के अनुसार राजकुमारी संयोगिता के स्वयंवर की घोषणा की।

आसपास और दूरदराज के सभी राजा महाराजाओं को इस स्वयंवर के लिए आमंत्रित किया गया लेकिन पृथ्वीराज चौहान को सूचना नहीं दी।
धीरे-धीरे यह खबर पुरे देश में फैल गई। जब यह बात पृथ्वीराज चौहान के कानों में पड़ी तो वह अपने सैनिकों के साथ कन्नौज की तरफ निकल पड़े। यही वह समय था जब पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी परवान चढ़ने जा रही थी।

स्वयंवर का दिन था राजकुमारी संयोगिता ने किसी दूसरे राजकुमार की तरफ देखा तक नहीं और वहां पर लगी हुई पृथ्वीराज चौहान की तस्वीर को वरमाला पहना दी।

यह देख कर सभी राजा बहुत क्रोधित हुए, संयोगिता के पिता राजा जयचंद को बहुत गुस्सा आया लेकिन तभी वहां पर पृथ्वीराज चौहान आ पहुंचे। राजकुमारी संयोगिता ने वरमाला पृथ्वीराज चौहान के गले में डाल दी। पृथ्वीराज चौहान संयोगिता को अपने साथ लेकर दिल्ली आ गए।
दिल्ली आने के पश्चात हिंदू रिती रिवाज एवं संस्कृति के अनुसार इन्होंने विवाह किया।

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी बनी जान की दुश्मन

राजा जयचंद पहले से ही पृथ्वीराज चौहान से जलते थे और इस शादी के बाद वह पृथ्वीराज चौहान के कट्टर दुश्मन बन गए। एक कहावत है, दुश्मन के दुश्मन भाई-भाई। मोहम्मद गौरी जिन्हें पृथ्वीराज चौहान पहले ही 16 बार धूल चटा चुके थे और राजा जयचंद एक हो गए। राजा जयचंद ने अपनी पूरी सेना मोहम्मद गोरी के पास भेज दी और पृथ्वीराज चौहान से युद्ध के लिए आग्रह किया।

आज भी हमारे देश में एक कहावत प्रचलित है, जब भी कोई गद्दारी करता है या नमक हरामी करता है या फिर अपने घर परिवार का कोई व्यक्ति दुश्मनों के साथ खड़ा होता है तो उसे जयचंद कहा जाता है, इस कहावत की शुरुआत यहीं से हुई थी। बहुत भयंकर युद्ध हुआ इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और उन्हें बंधक बना लिया। मोहम्मद गोरी युद्ध में हुई हार का बदला लेने के लिए पृथ्वीराज चौहान की दोनों आंखें फोड़ दी। इतना ही नहीं कई अमानवीय यातनाएं भी दी जिनका नाम सुनने से ही रूह कांप उठे। पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी की वजह से पृथ्वीराज चौहान के दुश्मन एक हो गए।

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पृथ्वीराज चौहान के साथ उनके बचपन का दोस्त और राज कवि चंदबरदाई भी था। चंदबरदाई ने मोहम्मद गौरी को बताया कि पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने में माहिर है। पृथ्वीराज चौहान को मृत्युदंड देने से पहले मोहम्मद गोरी ने सोचा कि क्यों ना पृथ्वीराज चौहान की इस योग्यता को परखा जाए।

चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को पहले ही बता दिया था कि मैं एक श्लोक के माध्यम से मोहम्मद गोरी की लोकेशन बताऊंगा और आप उस पर तीर चला देना। फिर क्या था वह दिन आ गया मोहम्मद गोरी थोड़ा ऊपर की ओर बैठा था। उसके दरबार में पृथ्वीराज चौहान को लाया गया और उसके हाथ में तीर कमान दी गई।

चंदबरदाई ने श्लोक बोला ” चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान। इतना सुनते ही पृथ्वीराज चौहान के कमान से तीर निकला और सीधा मोहम्मद गोरी के सीने में जाकर लगा। मोहम्मद गोरी ने वहीं पर दम तोड़ दिया। चंदबरदाई और पृथ्वीराज चौहान ने दुश्मनों के हाथों मरने की बजाय एक दूसरे को मार दिया।

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी का अंत

जब यह खबर संयोगिता के कानों में पड़ी तो वह व्याकुल हो गई, रोने लगी, बिलखने लगी, पूरी तरह से टूट गई। दूसरा खतरा यह था कि कुतुबुद्दीन ऐबक जोकि मोहम्मद गोरी का सेनापति था। वह राजकुमारी संयोगिता और अन्य स्त्रियों को पाना चाहता था, इसीलिए उसने किले पर आक्रमण किए।

इससे पहले कि कुतुबुद्दीन ऐबक लाल किले के अंदर पहुंच पाता राजकुमारी संयोगिता और अन्य स्त्रियों ने कुंड में आग लगाकर स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया।

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