रक्तबीज का अर्थ होता है, रक्त से निकले हुए बीज अर्थात रक्त से उत्पन्न होने वाला एक नया जीव। रक्तबीज (Raktbeej) एक दैत्य था. रक्तबीज और महाकाली की लड़ाई हुई थी जिसमें माता पार्वती ने महाकाली का रुप धारण कर रक्तबीज का वध किया था.
धार्मिक मान्यता के अनुसार आज से लाखों वर्ष पूर्व इस नाम का एक दानव पैदा हुआ था, जिसके शरीर से लहू की एक बूंद भी धरती पर गिरती तो उससे नया रक्तबीज (Raktbeej) जन्म ले लेता था. इस लेख से आप जान पाएंगे कि रक्तबीज कौन था ? रक्तबीज की कथा, रक्तबीज की कहानी और रक्तबीज और महाकाली की लड़ाई.

रक्तबीज कौन था और उसका जन्म कैसे हुआ? (Raktbeej kaun tha)
मां दुर्गा ने राक्षसों के संहार के लिए कई अवतार लिए। शुंभ-निशुंभ, धूम्रविलोचन,महिषासुर आदि दानों का संहार देवी दुर्गा द्वारा किया गया था.
रक्तबीज (Raktbeej) भी एक दानव था. मार्कंडेय पुराण के अनुसार दुर्गा सप्तशती के आठवें अध्याय में रक्तबीज (Raktbeej) वध का वर्णन किया गया है. यह उस समय की बात है जब शंकुशिरा नामक अत्यंत बलशाली दानव पुत्र अस्तिचर्वण का जन्म हुआ जो अस्थियों को चबाता था.
अस्तिचर्वण के इस कार्य से देवता काफी दुखी रहते थे इसलिए उन्होंने इस दानव का वध कर दिया. इस घटना से आहत होकर रक्तबीज (Raktbeej) ने देवताओं से बदला लेने के लिए ठान ली इसके लिए रक्तबीज ने ब्रह्मक्षेत्र में लगभग 5 लाख वर्षों तक तप किया. परिणाम स्वरूप ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर रक्तबीज से कहा कि मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं. कहो क्या चाहिए?
रक्तबीज (Raktbeej) ने भगवान ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा. और कहा कि हिरण्यकश्यप की तरह मुझे देवता, दानव, गंधर्व, यक्ष, पिशाच, पशु, पक्षी, मनुष्य आदि कोई भी मुझे नहीं मार सके, ऐसा वरदान दीजिए. ब्रह्मा जी ने खुश होकर उसे यह वरदान दिया और साथ ही यह भी वरदान दिया कि युद्ध में अगर रक्तबीज के शरीर से एक भी रक्त की बूंद जमीन पर गिरेगी तो उससे नया रक्तबीज जन्म लेगा.
यह वरदान पाते ही रक्तबीज (Raktbeej) ने कई युद्ध लड़े, देवताओं को भी पराजित कर दिया. धीरे-धीरे धरती पर उसका दुराचार बढ़ गया। सभी देवता इकट्ठे होकर मां दुर्गा की शरण में गए और रक्तबीज को मारने की प्रार्थना की.
देवी दुर्गा का देवताओं को वचन
देवताओं द्वारा सहायता के लिए प्रार्थना करने पर देवी दुर्गा माता ने देवताओं को आश्वस्त किया कि वह रक्तबीज (Raktbeej) का हरण करेगी.
दूसरी तरफ रक्तबीज वरदान का लगातार दुरुपयोग कर रहा था, उसने देवराज इंद्र को युद्ध में परास्त कर स्वर्ग अपने अधीन कर लिया। डर के मारे सभी देवता धरती पर विचरण करने लग गए और मनुष्यों की तरह रहने लगे.
ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास जाने पर भी जब देवताओं को इस समस्या का समाधान नहीं मिला, तो सब देवता मिलकर काली तीर्थ गए. सभी देवताओं ने मिलकर मां काली की स्तुति की। प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने देवताओं को दर्शन दिए और जिस स्थान पर देवताओं द्वारा मां काली की स्तुति की गई, उस स्थान को कालीतीर्थ के नाम से जाना गया. देवी दुर्गा ने रक्तबीज (Raktbeej) का संहार करने का वचन दिया.
नारद मुनि द्वारा रक्तबीज को उकसाना
देवताओं के कहने पर नारद मुनि रक्तबीज के पास गए और कहा कि कैलाश पर्वत के ऊपर भगवान शिव का वास है. इस दुनिया में सिर्फ भगवान शिव ही एक ऐसे है जो आपकी आज्ञा का पालन नहीं करते हैं और उन्हें आपका कोई डर नहीं है, साथ ही उन्हें कोई नहीं जीत सकता.
आगे नारद मुनि रक्तबीज (Raktbeej) को बताते हैं कि तीनों लोग के देवता भगवान शिव बहुत धैर्यवान है। वहां पर एक बहुत है सुंदर अगला भी रहती है.
रक्तबीज (Raktbeej) माता पार्वती का रूप धारण करके भोलेनाथ के पास गया लेकिन भगवान शिव तुरंत ही उसे पहचान गए और श्राप दिया कि जिस माता कालिका का तुमने देश धारण किया है, वहीं माता तुम्हारा संहार करेंगी. स्वयं को अपमानित महसूस करते हुए रक्तबीज उसके दरबार में आ गया और साथी राक्षसों से मंत्रणा की.
रक्तबीज और महाकाली की लड़ाई
जैसा कि आप जानते हैं रक्तबीज और महाकाली की लड़ाई बहुत भयंकर हुई थी. सभी साथियों से मंत्रणा करने के पश्चात रक्तबीज ने राक्षसों को आदेश दिया कि जाओ तुम पार्वती को लेकर आओ, अगर नहीं आए तो उसे जबरदस्ती लेकर आना.
रक्तबीज (Raktbeej) की आज्ञा का पालन करते हुए राक्षस कैलाश पर्वत की तरफ बढ़ते हैं. वहां पर माता पार्वती के पास जाते ही भस्म हो जाते हैं. जो राक्षस बच जाते हैं वो रक्तबीज (Raktbeej) को आकर सारी बात बताते हैं.
जिन असुरों का माता पार्वती द्वारा वध किया जाता है उनमें चंड-मुंड भी शामिल होते हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि चंड-मुंड भी रक्तबीज के शरीर से निकली रक्त की बूंदों से जन्मे थे.
धीरे-धीरे संपूर्ण धरती पर राक्षस की राक्षस हो जाते हैं क्योंकि राक्षसों की खून की बूंदे जैसे-जैसे धरती पर गिरती है, हर बूंद से एक नया रक्तबीज बन जाता है.
यह देखकर माता पार्वती चंडी का रूप धारण करती है और रक्त की जितनी भी बुंदे रक्तबीज के शरीर से निकलती है उन्हें वह उन्हें निकल जाती है. इस तरह माता पार्वती ने चंडिका का रूप धारण करके रक्तबीज का वध किया था.
चंड-मुंड रक्तबीज से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, लेकिन शुंभ-निशुंभ के बारे में कहा जाता है कि उनकी मृत्यु रक्तबीज के बाद हुई थी. शुंभ-निशुंभ का वर्णन दुर्गा सप्तशती के नौवें और दसवें अध्याय में मिलता है, इससे भी यह स्पष्ट होता है कि इनकी मृत्यु रक्तबीज (Raktbeej) के बाद हुई थी.
वर्तमान में कालीमठ जो कि रुद्रप्रयाग (उत्तराखंड) में सरस्वती नदी के निकट हैं. कहते हैं कि सरस्वती नदी में लाल रंग की एक शीला है जिसे रक्तबीज शीला के नाम से जाना जाता है.
तो दोस्तों आपको रक्तबीज की कथा कैसे लगी , कमेंट करके अपनी राय दें, साथ ही यह लेख अपने मित्रों के साथ शेयर करें,धन्यवाद.
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Agar iss kalyug mai raktabeej vapas aaya hai aisa huaa tho kya hoga
Toh use apna rakt bhakar naye asur ko janam dene ki avsayakta nahi hogi. Uska kam manushya hi kar denge. Maa kali bhakto ki suraksha ke liye ayenge.