राणा लाखा का इतिहास ( Great Rana Lakha History In Hindi).

महाराणा लाखा का इतिहास (Rana Lakha History In Hindi) जानने से पहले आपको बता दें कि इन्होंने 1382 से लेकर 1397 तक मेवाड़ पर राज किया था। सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा राणा लाखा के पिता का नाम क्षेत्र सिंह था। राणा लाखा के पुत्र का नाम महाराणा मोकल था। राणा लाखा की पत्नी का नाम हंसाबाई था। महाराणा लाखा की धमनियों में क्षेत्रसिंह का खून बह रहा था।

महाराणा लाखा या राणा लाखा को लक्ष्यसिंह नाम से भी जाना जाता हैं। उदयपुर के प्रसिद्ध और ऐतिहासिक नगर बदनोर की स्थापना का श्रेय महाराणा लाखा को जाता है। महाराणा लाखा (Rana Lakha) के कार्यकाल में ही उदयपुर की पिछोला झील का निर्माण हुआ था। जावर में चांदी और शीशे की खानों की वजह से अच्छा आबादी क्षेत्र था, यह महाराणा लाखा के समय बसा।

Rana Lakha Photo राणा लाखा का इतिहास

राणा लाखा का इतिहास या महाराणा लाखा का चरित्र चित्रण ( rana Lakha History In Hindi)

अन्य नाम- महाराणालाखा,लक्ष्यसिंह और राणा लाखा।

पिता का नाम– क्षेत्र सिंह।

माता का नाम- अज्ञात।

पत्नि का नाम- हँसाबाई।

पुत्र का नाम– महाराणा मोकल सिंह, चुंडा सिंह, दुल्हा सिंह, अजा सिंह और राघवदेव सिंह।

कार्यकाल- 1382 से 1397 तक।

मृत्यु वर्ष- 1397.इनसे पूर्व राजा- क्षेत्र सिंह।

इनके बाद राजा (उत्तराधिकारी)- महाराणा मोकल सिंह

कई विद्वान और इतिहासकार राणा लाखा (Rana Lakha) के शासन काल को 1382 ईस्वी से लेकर 1421 ईस्वी तक मानते हैं जबकि उनके पुत्र महाराणा मोकल के कार्यकाल को 1421 से लेकर 1433 ईस्वी तक माना जाता है।

प्रसिद्ध लेखक डॉ उपेंद्र नाथ के अनुसार राणा लाखा का शासन काल 1382 ईस्वी से लेकर 1397 ईस्वी तक बताया गया है जोकि तर्कसंगत लगता है।

सन 1382 ईस्वी की बात है महाराणा लाखा सिंह (Rana Lakha) मेवाड़ के नए महाराणा बने। जब राणा लाखा ने मेवाड़ की गद्दी संभाली तब मेवाड़ आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा था। इनके ऊपर सबसे बड़ा दबाव यही था कि कैसे भी करके मेवाड़ को आर्थिक समस्याओं से बाहर निकाला जा सके।

कहते हैं कि किस्मत मेहरबान हो तो हर समस्या को आसानी के साथ हल किया जा सकता है। महाराणा लाखा सिंह के साथ भी यही हुआ और उदयपुर के समीप स्थित जावर नामक स्थान पर एक चांदी की खान निकली, संभवत यह एशिया की सबसे बड़ी चांदी की खान थी।

चांदी की खान मिलने से आसपास के क्षेत्र में अच्छी आबादी रहने लगी, जिससे लोगों को रोजगार मिल गया। धीरे-धीरे महाराणा लाखा द्वारा मेवाड़ की आर्थिक समस्याएं हल हो गई, और कहते हैं कि यहीं से महाराणा लाखा का शासनकाल तरक्की करने लगा।
महाराणा लाखा (Rana Lakha० को मेवाड़ के सफलतम शासकों में से एक माना जाता है।

महाराणा लाखा द्वारा साम्राज्य विस्तार (Rana Lakha)

हर राजा अपने क्षेत्र को बढ़ाना चाहता है, महाराणा लाखा भी उनमें से एक थे। प्रारंभ में परिस्थितियां महाराणा लाखा के पक्ष में नहीं थी लेकिन गद्दी संभालते ही जावर में मिली चांदी की खान की वजह से इन्होंने अपार धन संपदा अर्जित की।

राणा लाखा (Rana Lakha)ने बदनोर जीतकर अपने विजयी अभियान की शुरुआत की, यह क्षेत्र पहले मेरों के पास था। धीरे-धीरे राणा लाखा ने बूंदी के शासक वीरसिंह हाड़ा को पराजित कर दिया, उसके बाद इन्होंने शेखावटी, जहाजपुर आदि क्षेत्रों को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया।

धीरे-धीरे राणा लाखा (Rana Lakha) अपने क्षेत्र और प्रभाव को बढ़ाते रहे, इसी बीच उन्होंने आमेर में सांखला राजपूतों को हराया। मेवाड़ का उमराव बनाने से पहले राणा लाखा ने डोडिया राजपूतों को छोटी-छोटी जागीरें प्रदान की।

सुल्तान गियासुद्दीन को धूल चटाई

जब राणा लाखा (Rana Lakha) मेवाड़ के राजा थे, तब दिल्ली सल्तनत गियासुद्दीन के हाथ में थी। गियासुद्दीन बड़ा ही महत्वकांक्षी व्यक्ति था, वह भी अपने क्षेत्र को बढ़ाना चाहता था और अपने प्रभुत्व को बढ़ाना चाहता था इसलिए वह बदनोर आया।

बदनोर में गियासुद्दीन का सामना मेवाड़ के शासक राणा लाखा से हुआ। राणा लाखा इस समय बहुत ही मजबूत स्थिति में थे, उन्होंने सुल्तान गियासुद्दीन को बुरी तरह से पराजित कर दिया।

गियासुद्दीन को राणा लाखा (Rana Lakha) ने इस शर्त पर जिंदा छोड़ा कि वह काशीजी, गयाजी और प्रयागराज जैसे तीर्थ स्थानों पर जाने वाले हिंदुओं से कर वसूली नहीं करेगा। राणा लाखा ने भी गियासुद्दीन को स्वर्ण और घोड़े भेंट किए। हालांकि इस घटना के बारे में कोई सुधर साक्ष्य मौजूद नहीं है यह मेवाड़ के “ख्यातों” पर आधारित है।

इतना ही नहीं महाराणा लाखा (Rana Lakha) ने मालवा और गुजरात के मुस्लिम शासकों के साथ संघर्ष किया और जीत हासिल की।राणा लाखा के लिए यह बड़ी जीत थी कि उनके होते हुए मुस्लिम शासक मेवाड़ को किसी भी तरह की क्षति नहीं पहुंचा सके। सन 1396 ईस्वी में मांडलगढ़ जीत लेने के बाद भी गुजरात का जफर खां मेवाड़ में प्रवेश नहीं कर सका।

राणा लाखा का सशर्त विवाह (Rana Lakha marriage)

राणा लाखा (Rana Lakha history) ने जब बुढ़ापे में हँसाबाई से शादी की तो यह कोई सामान्य शादी नहीं थी। एक बार की बात है पास में किसी की शादी हो रही थी तब राणा लाखा ने मजाक करते हुए कहा कि अब इस उम्र में हमें कौन लड़की दे?

यह बात उनके पुत्र चुंडा सिंह ने सुन ली। चुंडा सिंह ने निश्चय किया कि वह अपने पिता राणा लाखा के लिए लड़की ढूंढेंगे। तभी चुंडा सिंह के लिए मारवाड़ की राजकुमारी तथा राव रणमल की बहन हँसाबाई से विवाह के लिए प्रस्ताव आया। चुंडा सिंह ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कहा कि पहले मेरे पिता की शादी होगी उसके बाद में करूंगा। राणा लाखा के लिए यह बड़ा संकट बन गया अगर वह इस प्रस्ताव को ठुकराते और शगुन के नारियल को वापस भेजते तो मारवाड़ के राजा रणमल की ख्याति को ठेस पहुंचता और वह नाराज हो जाते।

इसलिए राणा लाखा (Rana Lakha) ने स्वयं के लिए इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया लेकिन चुंडा सिंह के सामने शर्त रखी कि इस पत्नी से पैदा होने वाले पुत्र को ही मेवाड़ का अगला शासक बनाया जाएगा। अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए चुंडा सिंह ने यह शर्त मान ली और इसी वजह से राणा लाखा और हँसाबाई का पुत्र महाराणा मोकल मेवाड़ का शासक बना।

राणा लाखा के दरबार में धनेश्वर भट्ट और झोटिंग भट्ट नामक दो प्रसिद्ध संगीतकार रहते थे, जो मेवाड़ दरबार की शोभा बढ़ाते थे।

राणा लाखा की मृत्यु  (how Rana Lakha died)

सन 1397 ईस्वी की बात है, मेवाड़ के सफलतम राजाओं में शामिल राणा लाखा की मृत्यु सामान्य तरीके से हुई। जब इनकी मृत्यु हुई तब मेवाड़ के होने वाले शासक महाराणा मोकल मात्र 5 वर्ष के थे। इनकी मृत्यु के पश्चात महाराणा मोकल की देखरेख इनकी माता हँसाबाई द्वारा की गई।
चुंडा सिंह ने पिता राणा लाखा को दिए वचन का पालन किया और महाराणा मोकल को मेवाड़ का शासक बनाया।

दोस्तों इस लेख से आप जान पाए कि  मेवाड़ के शासक राणा लाखा का इतिहास (Rana Lakha History In Hindi) क्या हैं और महाराणा लाखा का चरित्र चित्रण कैसा था।

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