रानी कर्णावती (Rani Karnawati History In Hindi)- इतिहास और जीवन परिचय.

रानी कर्णावती का इतिहास (Rani Karnawati History In Hindi)-

रानी कर्णावती बूंदी के राव नरबद हाड़ा की बेटी थी. रानी कर्णावती का विवाह मेवाड़ के शासक महाराणा संग्राम सिंह अर्थात महाराणा सांगा के साथ हुआ था. मेवाड़ और चित्तौड़गढ़ के इतिहास में रानी कर्णावती का नाम बड़े ही गर्व के साथ लिया जाता है. मेवाड़ के सिसोदिया वंश में विवाह के पश्चात इन्होंने दो पुत्रों को जन्म दिया जिनका नाम था राणा विक्रमादित्य और राणा उदयसिंह.

इतना ही नहीं रानी कर्णावती महाराणा प्रताप की दादी भी थी. महाराणा सांगा की मृत्यु के पश्चात इन्होंने अपने पुत्र राणा विक्रमादित्य को राजगद्दी पर बिठाया और मेवाड़ का शासन सुचारू रूप से चलाने के लिए अहम योगदान दिया.

रानी कर्णावती द्वारा हुमायूं को राखी भेजने से लेकर जोहर के लिए याद किया जाता हैं जिसकी सच्चाई आप इस लेख में जानेंगे, साथी ही हम रानी कर्णावती का इतिहास (Rani Karnawati History In Hindi) और जीवन परिचय विस्तृत रुप से जानेंगे.

रानी कर्णावती का इतिहास और जीवन परिचय (Rani Karnawati History In Hindi)

नाम-महारानी कर्णावती सिसोदिया (Rani Karnawati).
अन्य नाम-रानी कर्मवती.
पिता का नाम-राव नरबद हाड़ा.
जन्म स्थान-बूंदी.
मृत्यु तिथि-8 मार्च 1535 ईस्वी.
पति का नाम-महाराणा सांगा अथवा महाराणा संग्राम सिंह.
बच्चे-राणा विक्रमादित्य सिंह और उदयसिंह द्वितीय.
पोते या नाती-वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप सिंह, जगमाल सिंह, शक्ति सिंह आदि.
कहाँ की रानी-चित्तौड़गढ़ (मेवाड़), राजस्थान, रानी कर्णावती महाराणा प्रताप की दादी थी.
Rani Karnawati

मेवाड़ की वीर धरा पर समय-समय पर ऐसी घटनाएं हुई है जो इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए. ना सिर्फ इस धरती पर जन्म लेने वाले राजा महाराजा बल्कि राजा महाराजाओं से विवाह करने वाली रानियां भी मेवाड़ की आन, बान और शान के साथ-साथ अपने स्वाभिमान के खातिर हंसते हंसते मृत्यु को गले लगा लिया.

मेवाड़ धरा की रानियों को मृत्यु मंजूर थी लेकिन दुश्मन की छाया से भी नफरत थी. 15 वीं शताब्दी में एक ऐसी महारानी थी जिसका नाम था रानी कर्णावती. Rani Karnawati का इतिहास देखा जाए तो उन्हें रानी कर्मवती के नाम से भी जाना जाता है. रानी कर्णावती का जन्म बूंदी में हुआ था. इनके पिता का नाम नरबद हाड़ा था. रानी कर्णावती (रानी कर्मवती) के जन्म वर्ष और तिथि के बारे में स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है.

जब कर्णावती या कर्मवती (Rani Karnawati) युवा अवस्था में आई, तब इनका विवाह मेवाड़ के शासक महाराणा सांगा के साथ हुआ था. विवाह के पश्चात रानी कर्णावती ने दो पुत्रों को जन्म दिया जिनका नाम था राणा विक्रमादित्य सिंह और उदयसिंह द्वितीय.

वर्ष 1531 ईस्वी में महाराणा रतन सिंह की मृत्यु हो जाने के पश्चात उनके छोटे भाई विक्रमादित्य का 14 वर्ष की आयु में राज्याभिषेक हुआ. 14 वर्षीय महाराणा विक्रमादित्य एक अयोग्य शासक थे. यहीं से शुरू हुआ था रानी कर्णावती (Rani Karnawati History In Hindi) का वास्तविक इतिहास.

महाराणा विक्रमादित्य का कमजोर नेतृत्व

मेवाड़ की रानी कर्णावती (Rani Karnawati) का पुत्र महाराणा विक्रमादित्य एक अयोग्य शासक थे. जिनमें ना तो नेतृत्व करने की क्षमता थी और ना ही युद्ध कला में निपुण थे. गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह का वर्चस्व लगातार बढ़ता जा रहा था. गुजरात के शासक सुल्तान बहादुरशाह ने मालवा के शासक महमूद खिलजी को युद्ध में पराजित कर मालवा को अपने अधिकार में कर लिया. इन सभी गतिविधियों से चित्तौड़गढ़ किले के लिए खतरा बढ़ता जा रहा था.

अपने साम्राज्य और वर्चस्व को बढ़ाने के लिए एक कदम और आगे बढ़ते हुए गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने रायसेन के किले पर धावा बोल दिया जिस पर लक्ष्मण सेन का अधिकार था. रायसेन के किले को बचाने के लिए मेवाड़ से मदद मांगी गई, महाराणा विक्रमादित्य इस समय चित्तौड़गढ़ के राजा थे. दूसरी तरफ बहादुरशाह ने मेवाड़ को जीतने का मन बनाया और अपनी सेना भेजी. जब यह खबर महाराणा विक्रमादित्य को लगी तो वह भी अपने सैन्य बल के साथ इन्हें रोकने के लिए निकले.

बहादुरशाह और विक्रमादित्य दोनों की सेनाएं युद्ध के लिए एक दूसरे की तरफ बढ़ रही थी लेकिन जब महाराणा विक्रमादित्य को यह पता चला कि बहादुर शाह की सेना संख्या में कई गुना अधिक है, तब उनके हौसले पस्त हो गए और युद्ध भूमि से हटने का मन बनाया. महाराणा विक्रमादित्य अपनी माता रानी कर्णावती (Rani Karnawati) की बात भी नहीं सुनते थे. अपने मन मुताबिक काम करते हुए उन्होंने कई सामंतों व सरदारों को हटाकर उनकी जगह पहलवान रख लिए, इससे सामंत और सरदार नाराज हो गए.

बहादुरशाह का चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण 

चित्तौड़गढ़ की खराब स्थिति से बहादुर शाह भलीभांति परिचित था. रायसेन का किला जीतने के पश्चात बहादुरशाह अपनी विशाल सेना के साथ चित्तौड़गढ़ की तरफ निकल पड़ा. मुहम्मद खां आसीरी के नेतृत्व में वर्ष 1532 ईस्वी में एक सैन्य दल भेजा. महाराणा विक्रमादित्य संधि करना चाहता था लेकिन बहादुरशाह ने साफ इंकार कर दिया.

जब लगातार चित्तौड़ किले की दीवारों पर तोपों से हमला किया जाने लगा, तब रानी कर्णावती (Rani Karnawati) ने संधि प्रस्ताव भेजा इस प्रस्ताव के अनुसार रानी कर्णावती मालवा के उन समस्त हिस्सों को पुनः बहादुर शाह को देना चाहती थी जो महाराणा सांगा ने जीते थे. इस संधि के पश्चात बहादुरशाह को मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी का मुकुट और सोने की कमर पेटी पुनः लौटाई गई इसके साथ ही नगदी और हाथी, घोड़े दिए गए. इसी संधि का नतीजा था कि 24 मार्च 1533 ईस्वी के दिन बहादुरशाह अपनी सेना के साथ पुनः लौट गया.

बहादुरशाह का चित्तौड़गढ़ पर पुनः आक्रमण

जैसा कि आपको पूर्व में बताया जा चुका है कि रानी कर्णावती (Rani Karnawati) का पुत्र महाराणा विक्रमादित्य एक अयोग्य और अनुशासनहीन राजा था. विक्रमादित्य के खराब व्यवहार के चलते मेवाड़ के कई सामंतों और सरदारों ने मेवाड़ का साथ छोड़ दिया.

इस समय हुमायूं की सेना में शामिल मुहम्मदजमां ने बगावत करते हुए बहादुरशाह के साथ मिल गए. जब हुमायूं ने बहादुर शाह से मुहम्मदजमां को उसे सौंपने की कवायद की तो बहादुर शाह ने मना करते हुए युद्ध की चेतावनी दे डाली और हुमायूं के विरुद्ध अपनी एक सैन्य टुकड़ी भेजी, जिसे हुमायुं ने बुरी तरह पराजित कर दिया. इस पराजय से बहादुरशाह को झटका लगा और उन्होंने अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए चित्तौड़गढ़ पर पुनः आक्रमण करने की योजना बनाई.

जब बहादुरशाह ने दूसरी बार चित्तौड़गढ़ किले पर आक्रमण किया, तब उसकी सेना की कमान रूमी खान के हाथ में थी.

रानी कर्णावती द्वारा हुमायूं को राखी भेजना

जब रानी कर्णावती (Rani Karnawati) को लग गया कि अब चित्तौड़गढ़ का किला खतरे में है तो उन्होंने मुगल शासक हुमायूं को भाई समझ कर राखी भेजी और मदद करने के लिए बुलाया. रानी कर्णावती की राखी और संदेश देखकर हुमायूं रानी कर्णावती की मदद करने के लिए अपनी सेना के साथ चित्तौड़गढ़ की तरफ निकल पड़ा.

दोस्तों जैसा कि आप जानते हैं हमारा इतिहासकार हमारे दुश्मनों द्वारा लिखा गया है. कई लोग हुमायूं को अच्छा मानते हैं लेकिन जब हुमायूं रानी कर्णावती (Rani Karnawati) की मदद करने के लिए ग्वालियर तक आया तब उसे बहादुरशाह का खत मिला जिसमें लिखा था “मैं जिहाद पर हूं, हिंदुओं का कत्ल करना मेरी प्राथमिकता है. तुम अगर उनकी मदद करोगे तो खुदा को क्या जवाब दोगे?”

यह खत पढ़कर जब तक चित्तौड़गढ़ का युद्ध खत्म नहीं हो गया तब तक वह ग्वालियर ही रुका रहा. रानी कर्णावती ने भाई समझ कर जो राखी हुमायूं को भेजी थी उसने उसकी लाज नहीं रखी और अपनी जेहादी मानसिकता को दर्शाया.

जब रानी कर्णावती को लग गया कि अब हुमायूं मदद के लिए नहीं आएगा तब उन्होंने रूठे हुए सामंतों और सरदारों को मनाने के लिए एक पत्र लिखा. और उन्होंने कहा कि अब तक जो भी हुआ उन सब को भुला दो, यह किला और मातृभूमि आप सबकी है या तो इसकी रक्षा करो या इसे दुश्मनों को सौंप दो.

यह खत पढ़ते ही नाराज सामंतों और सरदारों के रक्त में मातृभूमि की रक्षा का उबाल आ गया और नाराजगी को भूलकर सर पर कफ़न बांधकर चित्तौड़गढ़ की तरफ चल पड़े. जब रानी कर्णावती ने सभी नाराज सामंतों हो सरदारों को एकजुट देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुई. सामंतों ने रानी कर्णावती (Rani Karnawati) को विश्वास दिलाया कि बहादुरशाह आसानी के साथ यह किला नहीं जीत पाएगा.

चित्तौड़गढ़ का दूसरा शाका और रानी कर्णावती की मृत्यु

चित्तौड़गढ़ का दूसरा शाका 8 मार्च 1535 को हुआ था. जिहादी मानसिकता वाला हुमायूं तो रानी कर्णावती (Rani Karnawati) की मदद करने के लिए चित्तौड़ नहीं पहुंचा लेकिन दूसरी तरफ से गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़गढ़ पर धावा बोल दिया. रानी कर्णावती के सामने चित्तौड़गढ़ के किले को बचाने के साथ-साथ अपने दोनों पुत्रों की रक्षा करने की जिम्मेदारी भी थी.

रानी कर्णावती (Rani Karnawati) ने अपने दोनों पुत्रों विक्रमादित्य सिंह और कुंवर उदयसिंह को अपने पीहर बूंदी भेज दिया. बहादुरशाह से लोहा लेने और मेवाड़ की तरफ से लड़ने के लिए महारानी कर्णावती के भाई अर्जुन हाडा अपनी सेना के साथ चित्तौड़गढ़ पहुंचे. महाराणा विक्रमादित्य के बूंदी जाने के पश्चात बाघसिंह सिसोदिया को उनका प्रतिनिधि चुना गया. यह वही बाघसिंह थे जिन्होंने बयाना के युद्ध में महाराणा सांगा का साथ दिया था.

भाग सिंह के नेतृत्व में चित्तौड़गढ़ किले की जबरदस्त तरीके से घेराबंदी की गई लेकिन राशन की बड़ी समस्या थी. कुछ ही समय में बहादुरशाह ने तोपों का प्रयोग करते हुए आक्रमण कर दिया. इस भयानक आक्रमण में अपनी वीरता का परिचय देते हुए कानोड़ के रावत नरवर सारंगदेवोत, सोलंकी भैरव दास, राजराणा सज्जा झाला, सिंहा झाला, अर्जुन हाड़ा, असा झाला, सोनगरा माला बालावत, देवीदास सुजावत, डोडिया भाण और रावत नंगा चुंडावत वीरगति को प्राप्त हुए.

किसी को नहीं पता था कि चित्तौड़गढ़ का दूसरा शाका होने वाला हैं. दूसरी तरफ जब महारानी कर्णावती को लग गया कि अब इस युद्ध में हार निश्चित है, इससे पहले कि मुस्लिम आक्रांता उन तक पहुंचे उन्होंने 1200 क्षत्राणियों के साथ अपने सतीत्व की रक्षा का प्रण लेकर भभकती आग में कूद गई. यह चित्तौड़गढ़ का दूसरा जोहर या शाका था.

8 मार्च 1535 ईस्वी का दिन इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अमर हो गया. यही वह दिन था जब Rani Karnawati ने जोहर किया था. इस विध्वंसक और विनाशक युद्ध में बड़ी ही वीरता के साथ मातृभूमि की रक्षार्थ लड़ते हुए 4000 से अधिक राजपूत योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए. 3000 से अधिक छोटे बच्चों को जलाशयों में डाल दिया गया ताकि उन्हें जबरदस्ती मुसलमान ना बनाया जा सके. महारानी कर्णावती (Rani Karnawati) के साथ 7000 से अधिक राजपूत वीरांगनाओं ने जौहर कर लिया यही चित्तौड़गढ़ का दूसरा शाका कहलाया.

रानी कर्णावती/कर्मवती से सम्बन्धित प्रश्नोत्तरी (FAQ About Rani Karnawati)

[1] क्या हुमायुँ ने रानी कर्णावती की मदद की थी?

उत्तर- नहीं, बहादुरशाह का पत्र पढ़कर वह रानी कर्णावती की सहायता करने के लिए नहीं आया.

[2] रानी कर्णावती की मृत्यु कब हुई?

उत्तर- रानी कर्णावती की मृत्यु 8 मार्च 1535 ईस्वी में हुई थी.

[3] रानी कर्णावती किसकी पत्नी थी?

उत्तर- रानी कर्णावती महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) की पत्नी थी.

[4] कर्णावती ने दूत के साथ क्या भेजा?

उत्तर- रानी कर्णावती ने दूत के साथ हुमायूं को राखी भेजी लेकिन वह मदद के लिए नहीं आया.

[5] रानी कर्णावती की मृत्यु कैसे हुई?

उत्तर- रानी कर्णावती की मृत्यु जौहर करने से हुई थी.

[6] रानी कर्णावती के कितने पुत्र थे?

उत्तर- रानी कर्णावती के 2 पुत्र थे महाराणा विक्रमादित्य और कुंवर उदय सिंह द्वितीय.

[7] कर्णावती ने जौहर क्यों किया?

उत्तर- सन 1535 ईस्वी में बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था. रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजी लेकिन वह मदद के लिए नहीं आया. मुस्लिम आक्रांताओं से अपनी अस्मिता की रक्षार्थ महारानी कर्णावती ने जौहर किया था.

[8] क्या हुमायुँ ने रानी कर्णावती को धोखा दिया था?

उत्तर- जी बिल्कुल, हुमायूँ ने अपनी जिहादी मानसिकता के चलते रानी कर्णावती को धोखा दिया था.

[9] चित्तौड़गढ़ का दूसरा शाका कब हुआ था?

उत्तर- चित्तौड़गढ़ का दूसरा शाका 8 मार्च 1535 ईस्वी को हुआ था.

[10] रानी कर्णावती का जौहर कौनसा शाका था?

उत्तर- रानी कर्णावती चित्तौड़गढ़ का दूसरा शाका की मुखिया थी.

उम्मीद करते हैं रानी कर्णावती का इतिहास (Rani Karnawati History In Hindi) और जीवनी आपको अच्छी लगी होगी, धन्यवाद.

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