रथ यात्रा के पीछे की कहानी क्या है? (Rath Yatra ke Piche ki Kahani)-2023.

(Rath Yatra ke Piche ki Kahani) पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा विश्व भर में प्रसिद्ध है लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि रथ यात्रा के पीछे की कहानी क्या है? (Rath Yatra ke Piche ki Kahani). भारत में दो जगह रथ यात्रा निकाली जाती हैं एक उड़ीसा के जगन्नाथपुरी जिसे पूरी के नाम से भी जाना जाता है और दूसरी गुजरात के अहमदाबाद में लेकिन जगन्नाथपुरी की रथयात्रा ही भारत के साथ-साथ विश्व विख्यात है.

इतना ही नहीं जगन्नाथ पुरी भारत में होने वाली चार धाम यात्रा में शामिल है. रथ यात्रा में ना सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं.

10 दिनों तक मनाया जाने वाला यह पर्व भारत में मनाए जाने वाले अन्य त्योहारों से थोड़ा अलग है. हिंदू धर्म को मानने वाले लोग ज्यादातर त्योहारों को अपने घर पर ही मनाते हैं लेकिन यह एकमात्र ऐसा त्योहार हैं जिसे लोग एक साथ समूह में इकट्ठा होकर मनाते हैं. इस लेख में हम आगे जानेंगे कि रथ यात्रा के पीछे की कहानी क्या है? (Rath Yatra ke Piche ki Kahani) या रथ यात्रा निकाले जाने की वजह क्या हैं? क्योंकि इस रथयात्रा के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन रथ यात्रा का इतिहास या इसको मनाई जाने की वजह बहुत ही कम लोग जानते हैं.

रथ यात्रा कब निकाली जाती है? When is the Rath Yatra taken out?

रथ यात्रा के पीछे की कहानी क्या है? (Rath Yatra ke Piche ki Kahani) यह जानने से पहले हम यह जानेंगे कि रथ यात्रा कब निकाली जाती है. दोस्तों प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को रथ यात्रा निकाली या मनाई जाती हैं.

पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान जगन्नाथ (श्री कृष्ण) आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया से लेकर दशमी तक जगन्नाथपुरी में लोगों के मध्य ही रहते हैं. और यही वजह है कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 10 दिनों तक निकाली जाती है. रथ यात्रा निकाले जाने की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है. जैसे ही बसंत पंचमी आती हैं यहीं से रथ यात्रा की तैयारियां शुरू हो जाती है. इसके पीछे 2 मुख्य पौराणिक कहानियाँ (Rath Yatra ke Piche ki Kahani) हैं जो आप इस लेख में आगे पढ़ेंगे।

भगवान जगन्नाथ जी का रथ निर्माण

भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा से पूर्व पवित्र वृक्षों की लकड़ियां एकत्रित की जाती है और उनसे बिना किसी धातु का प्रयोग किए रथ बनाया जाता है. रथ में ज्यादातर नीम की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है.

भगवान जगन्नाथ की यात्रा के लिए 3 रथों का निर्माण किया जाता है. इस रथयात्रा में सबसे आगे भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का रथ रहता है, यह 14 पहियों वाला रथ तालध्वज के नाम से जाना जाता है. दूसरा रथ भगवान श्री कृष्ण का रहता है जिसे नंदीघोष (गरुणध्वज) नाम से जाना जाता है इसमें 16 पहिए होते हैं. तीसरा और अंतिम रथ अर्थात् पद्मरथ जो कि 12 पहियों वाला होता है वह भगवान श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा का होता है.

रथ यात्रा पर्व मनाए जाने की विधि?

हर त्यौहार को मनाए जाने की एक विधि होती है या अपना तरीका होता है. ठीक उसी तरह भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा मनाए जाने का भी सालों से चला आ रहा एक तरीका है. प्रतिवर्ष इसी तरीके से यह पर्व मनाया जाता है. भगवान श्री जगन्नाथ जी, बलराम जी और उनकी बहन सुभद्रा के रथ तैयार हो जाने के बाद सबसे पहले एक अनुष्ठान किया जाता है जिसे “छर पहनरा” के नाम से जाना जाता हैं.

इन तीनों रथों को बहुत ही सुंदर तरीके से सजाया जाता है, फिर जिस रास्ते से यह गुजरते हैं उस रास्ते को सोने की झाड़ू से साफ किया जाता है. इन रथों को वहां पर मौजूद वक्त खींचते हैं और पुण्य प्राप्त करते हैं.

यह यात्रा पूरी से प्रारंभ होती हैं और पूरे नगर में भ्रमण करती हुई गुंडीचा मन्दिर तक जाती हैं. इस दौरान वक्त बहुत ही हर्षोल्लास के साथ पुष्प वर्षा करते हैं. यह यात्रा लगभग 10 दिनों की होती हैं 10 दिन पूरे हो जाने के पश्चात भगवान श्री जगन्नाथ जी के सभी भक्त स्नान करके उनके दर्शन करते हैं क्योंकि इसी दिन उनके मंदिर के पट (दरवाजे) खोले जाते हैं.

रथ यात्रा के पीछे की कहानी क्या है? (Rath Yatra ke Piche ki Kahani).

इस लेख में अब तक हमने जाना की रथ यात्रा पर्व कब मनाया जाता है और इसके लिए रथ कैसे तैयार किया जाता है, लेकिन अब हम जानेंगे कि रथ यात्रा के पीछे की कहानी क्या है? (Rath Yatra ke Piche ki Kahani or story behind rath yatra).

रथयात्रा के पीछे कई पौराणिक कहानियां छिपी हुई है जो निम्नलिखित है

(1) Rath Yatra ke Piche ki Kahani (प्रथम)

 रथ यात्रा पर्व मनाए जाने के पीछे सर्वमान्य वजह यह है कि एक बार भगवान श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा अपने भाई से कहती है कि मुझे जगन्नाथपुरी से द्वारका का दर्शन करना है. अपनी बहन सुभद्रा की इस इच्छा को पूरी करने के लिए भगवान श्री कृष्ण रथ पर बिठाकर यह यात्रा करवाते हैं. तब से लेकर आज तक इस परंपरा को प्रतिवर्ष मनाया जाता है. जगन्नाथपुरी में रथ यात्रा के पीछे की यह कहानी सार्वभौमिक है.

(2) Rath Yatra ke Piche ki Kahani (द्वितीय)

 रथ यात्रा मनाए जाने के पीछे दूसरी पौराणिक कहानी यह है कि जब भगवान श्री कृष्ण का जन्म होता है उस दिन (ज्येष्ठ, पूर्णिमा) भगवान श्री कृष्ण, भाई बलराम और उनकी बहन सुभद्रा को रत्न सिहासन से उतारकर भगवान जगन्नाथ के मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है, वहां पर उन्हें 108 घड़ों (कलश) से स्नान करवाया जाता है. इस स्नान के पश्चात भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं.

लगभग 15 दिन बाद जब वह पूरी तरह से स्वस्थ हो जाते हैं तब भक्तों को दर्शन देने के लिए भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर बैठकर नगर में भ्रमण के लिए निकलते हैं, ताकि भक्त उनके दर्शन कर सके.

जिस दिन भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं उस दिन आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया थी और यही वजह है कि प्रतिवर्ष इसी तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है, तो थी Rath Yatra ke Piche ki Kahani.

जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का महत्व

भारत में चार धाम यात्रा का बहुत महत्व है जगन्नाथ पुरी भी इन चार धामों में शामिल है. जगन्नाथ पुरी मंदिर का इतिहास देखा जाए तो यह लगभग 800 वर्ष पुराना है. जगन्नाथ पुरी यात्रा का महत्व निम्नलिखित है

1. जगन्नाथ रथ यात्रा में रथ को खींचने वाले वक्त बहुत ही भाग्यवान माने जाते हैं.

2. पौराणिक मान्यता अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जो भी भक्त रथ को खींचता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.

3. इस दिन भगवान जगन्नाथ स्वयं नगर भ्रमण के लिए आते हैं और लोगों के दुख सुख में भागीदार बनते हैं.

4. इस दिन सामूहिक रूप से भगवान जगन्नाथ की पूजा करने का अवसर लोगों को प्राप्त होता है.

रथ यात्रा के पीछे की कहानी से सम्बंधित रोचक तथ्य

[1] रथ यात्रा में रथ का निर्माण करते समय नीम की लकड़ियों का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता हैं.

[2] तीन रथों का निर्माण किया जाता हैं. एक रथ में 14 पहिये, दूसरे में 16 पहिये और तीसरे में 12 पहिये होते हैं.

[3] साल में पहली बार ऐसा होता हैं कि रथ यात्रा के दौरान तीनों मूर्तियों को गर्भगृह से बाहर निकालकर, यात्रा निकाली जाती हैं.

[4] जगन्नाथ पूरी के आलावा विश्व के सभी कोनों में इस्कॉन मंदिर द्वारा भी रथ-यात्रा निकाली जाती हैं.

[5] रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ जी, उनका भाई बलभद्र और बहिन सुभद्रा नगर भ्रमण पर निकलते हैं.

यह भी पढ़ें-

धनतेरस क्यों मानते हैं?

द्रौपदी मुर्मू की जीवनी।

विक्रम संवत की शुरुआत और इतिहास

दोस्तों को उम्मीद करते हैं कि रथ यात्रा के पीछे की कहानी (Rath Yatra ke Piche ki Kahani), रथ यात्रा मनाए जाने की वजह और रथ यात्रा का इतिहास (Rath Yatra ke Piche ki Kahani/history) आपको पसन्द आया होगा. इस लेख को अपने दोस्तों के साथ शेयर करना नहीं भूले, धन्यवाद.