समाधिश्वर महादेव / त्रिभुवन नारायण मंदिर चित्तौड़गढ़ का निर्माण और इतिहास।

Last updated on June 15th, 2021 at 02:17 pm

समाधिश्वर महादेव का मंदिर, चित्तौड़गढ़/समृद्धेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध त्रिभुवन नारायण मंदिर ( तीन मूर्ति शिवजी की) चित्तौड़गढ़ किले पर स्थित बहुत ही प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर है।

चित्तौड़गढ़ किले पर स्थित ऐतिहासिक स्मारकों में शामिल “विजय स्तंभ” के समीप और गौमुख कुण्ड के उत्तरी छौर पर यह मंदिर (समाधिश्वर महादेव का मंदिर, चित्तौड़गढ़) स्थित है। मूर्ति कला और अद्भुत कलाकारी की झलक इस मंदिर में देखने को मिलती है।

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त्रिभुवन नारायण मंदिर/समाधिश्वर महादेव का मंदिर, चित्तौड़गढ़ का इतिहास

  • अन्य नाम – समाधिश्वर महादेव का मंदिर (samadhishwara temple,chittorgarh ), राजा भोज का मंदिर और मोकलजी का मंदिर।
  • किसका मंदिर है – भगवान शिव।
  • विशेषता – तीन मुंह वाली शिव मूर्ति।
  • कहां स्थित हैं – चित्तौड़गढ़ किले पर।
  • ज़िला – चित्तौड़गढ़।
  • राज्य – राजस्थान (भारत).

त्रिभुवन नारायण मंदिर/समाधिश्वर महादेव का मंदिर, चित्तौड़गढ़ को, भोज का मंदिर या नारायण का शिवालय नाम से भी जाना जाता है। अगर इस मंदिर के निर्माण की बात की जाए तो 11 वीं शताब्दी में हुआ था। त्रिभुवन नारायण मंदिर का निर्माण महाराजा भोज ने करवाया था, इसलिए इसे भोज का मंदिर नाम से जाना जाता है। जबकि सन 1428 ईसवी ( विक्रम संवत 1485 ) में महाराणा मोकल ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।

त्रिभुवन नारायण मंदिर (समाधिश्वर महादेव का मंदिर, चित्तौड़गढ़) को कई लोग मोकलजी का मंदिर नाम से भी जानते हैं। अगर बात इस मंदिर (samadhishwara temple) के गर्भ गृह की की जाए तो इसमें भगवान भोलेनाथ की एक बहुत ही सुंदर मूर्ति है, जिसके तीन मुंह है। अत्यंत दुर्लभ और भव्य दिखने वाली यह शिव प्रतिमा और मंदिर देश के दुर्लभ शिव मंदिरों में शामिल है।

तीन मुंह वाली यह भगवान शिव की मूर्ति जन्मदाता, पालक और संहारक के रूप में मौजूद है। समाधिश्वर महादेव मंदिर(त्रिभुवन नारायण मंदिर) के गर्भग्रह में जाने के लिए तीन मुख्य द्वार है, जो पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा में स्थित है। गर्भग्रह मंदिर के सामान्य स्थल से थोड़ा नीचे स्थित है। गर्भ ग्रह में भगवान समाधिश्वर महादेव की मूर्ति तक जाने के लिए 6 सीढ़ियां बनी हुई है।

भगवान शिव की मूर्ति के तीन मुंह दिखाए गए हैं, जो अलग-अलग संदेश देते हैं। तीनों शहरों में तीसरी आंख हैं और दाया चेहरा भयानक रूप को दर्शाता है। जबकि बाएं और केंद्र में शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति देखने को मिलती है।

त्रिभुवन नारायण मंदिर (samadhishwara temple) के बाहर की तरफ कई दृश्य देखने को मिलते हैं जिनमें शिकार, लड़ाई, दरबार और शाही जुलूस, तपस्वीयों और देवताओं के प्रवचन, नृत्य करती हुई और कामुक मुद्राओं में देवांगनाओं को दिखाया गया है।

साथ ही उस जमाने में सामान्य लोगों से संबंधित चित्रात्मक दृश्य जिनमें, काम करते हुए कारीगर, ऊंट गाड़ियां और बैल गाड़ियों को चित्रात्मक रूप दिया गया है।

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समृद्धेश्वर महादेव मंदिर/त्रिभुवन नारायण मंदिर में स्थित शिलालेख

समाधिश्वर महादेव/त्रिभुवन नारायण मंदिर/भोज का मंदिर/मोकलजी का मंदिर इन सभी नामों से विख्यात इस मंदिर में 2 शिलालेख हैं।
पहला शिलालेख 1150 ईस्वी का हैं, जिसमें गुजरात के सोलंकी सम्राट कुमारपाल द्वारा अज़मेर के राजा आणाजी चौहान को युद्ध में शिकस्त देने और चित्तौड़गढ़ आगमन का उल्लेख किया गया हैं। राजा कुमारपाल यहां आए और भगवान श्री समाधिश्वर महादेव, चित्तौड़गढ़ के दर्शन किए और मंदिर के बाहर, दक्षिण दिशा में स्थित मुख्य द्वार पर एक शिलालेख खुदवाया था।

दूसरा शिलालेख  महाराणा मोकल से संबंधित है, सन 1428 में इसे उत्कीर्ण किया गया था। जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा महाराणा मोकल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था, उसी के संबंध में यह शिलालेख है।

समाधिश्वर महादेव मंदिर का इतिहास बताने वाले प्रमाण

1. चिरवा शिलालेख (1273 ईस्वी) भोज द्वारा निर्मित त्रिभुवन नारायण मंदिर/समाधिश्वर महादेव  में भगवान शिव की पूजा होती हैं।

2. 1301 CE, शिलालेख से ज्ञात होता है कि इसको भोज स्वामिनी जगती नाम से भी जाना जाता हैं।

3. संस्कृत के गण रत्न महोधारी के अनुसार 11वीं शताब्दी में परमार राजा भोज और 12वीं शताब्दी में “त्रि-लोका-नारायण” के रुप में उल्लेखित है।

4. प्रसिद्ध इतिहासकार GH ओझा ने इस मंदिर को समाधिश्वर मंदिर माना हैं जिसका निर्माण परमार राजा भोज द्वारा करवाया गया था।

5. राम वल्लभ सोमानी, नामक एक विद्वान थे जिन्होंने मेवाड़ के इतिहास को लिखा था, वो GH ओझा के तर्क के खिलाफ़ थे। 984 ईस्वी में मिले शिलालेख के वो बताते हैं कि समाधिश्वर महादेव मंदिर 10वीं शताब्दी का हैं। उनका मानना है कि त्रिभुवन नारायण मंदिर एक अलग मंदिर था जो चित्तौड़ पर खिलजी के आक्रमण के दौरान नष्ट हो गया।

6. 1274 CE में उत्कीर्ण एक शिलालेख (समरसिंह द्वारा)  जो गौमुख कुण्ड के पास स्थित हैं, में इस मंदिर को समाधिश्वर महादेव मंदिर नाम से संबोधित किया गया हैं।

7. 1150 CE में एक संस्कृत शिलालेख के अनुसार चालुक्य राजा कुमारपाल यहां आए। इस मंदिर को “समधिशा महेश्वरा” कहकर पुकारा। कुमारपाल इस मंदिर में भगवान शिव और पार्वती की पूजा की, साथ ही इस मंदिर के लिए दान भी किया।

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कब होती है, आरती और पूजा पाठ

नियमित रूप से श्रद्धालु समाधिश्वर महादेव मंदिर में दर्शन के लिए आते रहते हैं। समाधिश्वर महादेव मंदिर में सुबह शाम नियमित रूप से आरती होती हैं। साथ ही विशेष दिन और त्योहारों पर विशिष्ट पूजा पाठ का आयोजन भी किया जाता है।

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