उमाबाई दाभाड़े, Umabai Dabhade in hindi- मराठा साम्राज्य की एकमात्र महिला सेनापति।

उमाबाई दाभाड़े (Umabai Dabhade in hindi ) मराठा साम्राज्य के सेनापति खंडेराव दाभाड़े की पत्नी थी। पति खंडेराव दाभाड़े की मृत्यु के पश्चात उमाबाई को मराठा साम्राज्य में महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व प्राप्त हुआ। उमाबाई दाभाड़े एक वीरांगना और अदम्य साहस वाली महिला थी।

इनके पति की मृत्यु के पश्चात इनके पुत्रों को मराठा साम्राज्य में जो दायित्व मिले उन्हें पूरे करने के लिए उमाबाई दाभाड़े (Umabai Dabhade in hindi) ने उनका साथ दिया और मराठा साम्राज्य को संचालित करने और सुशासन स्थापित करने में महपूर्ण भूमिका निभाई।

उमाबाई दाभाड़े का इतिहास और कहानी sarsenapti Umabai Dabhade History In Hindi-

  • नाम Name– उमाबाई दाभाड़े ठोके देशमुख.
  • पिता का नाम umabai dabhade Father’s name–  अभोंकर देवराव ठोके देशमुख (Abhonkar Devrao Thoke Deshmukh).
  • जन्म स्थान Birth place– अभोने, नासिक (महाराष्ट्र).
  • मृत्यु तिथि Date of death– 28 नवम्बर 1753.
  • मृत्यु स्थान Place of death– पुणे (महाराष्ट्र).
  • बच्चे Umbai’s children– त्रिम्बकराव दाभाड़े, सवाई बाबूराव, यशवंतराव, शाहबाई,दुर्गाबाई और आनंदीबाई.
  • धर्म religion– हिंदू, सनातन.
  • साम्राज्य The empire– मराठा साम्राज्य (भारत).

उमाबाई दाभाड़े (Umabai Dabhade in hindi) का पूरा बचपन उनके पिता के साथ बिता, अल्प आयु में ही इनकी माता का देहांत हो गया था। भारतीय इतिहास में उमाबाई दाभाड़े को अदम्य साहस वालीी, निष्ठावान लक्ष्य के प्रति गंभीर और एक महान भारतीय वीरांगना के रूप में याद किया जाता है।

इनका विवाह गुजरात के खंडेराव दाभाड़े के साथ हुआ था। खंडेराव दाभाड़े (Khanderao dabhade) सार और मराठा साम्राज्य के प्रसिद्ध सरदार थे। छत्रपति शाहूजी महाराज ने इन्हें मराठा साम्राज्य के सेनापति का पद प्रदान किया था।

यही वह समय था जब उमाबाई दाभाड़े (Umabai Dabhade in hindi) को वहजे और कुर्ला नामक ग्राम उपहार के तौर पर दिए गए। उमाबाई दाभाड़े के तीन पुत्रों में से त्रियंबक राव दाभाड़े सबसे बड़े थे, उनके बाद बाबूराव दूसरे और यशवंतराव दाभाड़े इनके तीसरे पुत्र थे।

27 सितंबर 1729 को जूना रजवाड़ा, तालेगांव दाभाडे, ज़िला पुणे, महाराष्ट्र में इनके पति खंडेराव दाभाड़े की मृत्यु हो गई। उमाबाई दाभाड़े को बहुत दुख हुआ। लेकिन महान नारियों की यह मुख्य विशेषता होती है कि वह ऐसे समय में टूटती नहीं है।

उमाबाई दाभाड़े (Umabai Dabhade in hindi) ने भी ऐसा ही किया और अपने पति का दाह संस्कार करने के पश्चात मराठा साम्राज्य को अपने अनुभव और सेवाएं देना जारी रखा। इनके पति की मृत्यु के पश्चात मराठा साम्राज्य के छत्रपति शाहूजी महाराज ने इन्हें जनरल के पद पर आसीन किया।

1710 ईस्वी में उमाबाई दाभाड़े (Umabai Dabhade in hindi) ने नासिक में पहाड़ी पर स्थित शप्तश्रिंगी माता ( Goddess Saptashringi) के मंदिर तक 470 सीढ़ियां निर्मित की।

दाभाड़े मातृवंश के रूप में उदय ( Umabai Dabhade in hindi)-

जैसा कि आप जानते हैं कि खंडेराव दाभाड़े छत्रपति शाहूजी महाराज के समय सेनापति (Commander-in-chief) थे। 1729 में इनकी मृत्यु के पश्चात इनका सबसे बड़ा पुत्र त्रिम्बकराव दाभाड़े को सेनापति बनाया गया। इनका मुख्य कार्य गुजरात में कर (Tax) वसूली का था।

जब छत्रपति शाहूजी महाराज के “पेशवा बाजीराव प्रथम” ने गुजरात से कर वसूली का कार्य अपने हाथ में लिया तो दाभाड़े परिवार ने इसका विरोध शुरू कर दिया। देखते ही देखते यह विद्रोह युद्ध में तब्दील हो गया। पेशवा बाजीराव प्रथम ने दभोई (Dabhoi) नामक स्थान पर त्रिम्बकराव दाभाडे को मौत के घाट उतार दिया। इसे दभोई (Dabhoi) का युद्ध कहते हैं जो कि 1731 ईस्वी में लड़ा गया था।

अपने पति सेनापति खंडेराव दाभाड़े और पुत्र त्रिम्बक राव की मृत्यु के पश्चात उमाबाई दाभाड़े (Umabai Dabhade in hindi) का मातृवंश के रूप में उदय हुआ। छत्रपति शाहूजी महाराज ने त्रिम्बकराव दाभाड़े की सभी संपत्तियां और पद प्रदान करते हुए यशवंत राव दाभाड़े को सेनापति बनायाऔर वचन लिया कि गुजरात में एकत्रित होने वाले कर का आधा मराठों का दिया जाएगा।

यशवंत राव दाभाड़े शुरू से ही माता पिता का साथ ढंग से नहीं दे रहे थे। वो अफ़ीम और शराब के आदि हो गए। दमाजीराव गायकवाड़ जो कि उस समय यशवंत राव दाभाड़े के लेफ्टिनेंट थे ने अपनी शक्ति बढ़ा ली।

उमाबाई दाभाड़े (Umabai Dabhade in hindi) द्वारा सुलह का ढोंग –

मां का ममत्व हमेशा अपने बेटों के लिए रहता हैं। उमाबाई दाभाड़े (Umabai Dabhade in hindi) के दिल में उनके पुत्र त्रिम्बक राव दाभाड़े की मृत्यू का बदला लेने के लिए आग भभक रही थी। उमाबाई दाभाड़े ने पेशवा बाजीराव प्रथम से सुलह का ढोंग करते हुए कहा कि अभी उनकी स्थिति ठीक नहीं है इसलिए छत्रपति शाहूजी महाराज के खजाने में पैसे जमा नहीं करवा सकती हैं।

शाहूजी महाराज भी एक विधवा जो कि अपने जवान पुत्र को खो चुकी हो के खिलाफ़ कार्यवाही नहीं करना चाहते थे। 1740 ईस्वी में पेशवा बाजीराव प्रथम और सन 1749 ईस्वी में छत्रपति शाहूजी महाराज की मृत्यु हो गई। राजाराम द्वितीय को नया छत्रपति बनाया गया जबकि पेशवा पद बालाजी बाजीराव को मिला।

यह वह समय था जब पेशवा और छत्रपति दोनों एक बड़े वित्तीय संकट से जूझ रहे थे। पेशवा बालाजी बाजीराव ने दाभाड़ों पर दबाव बनाया कि छत्रपति राजाराम द्वितीय के ख़ज़ाने में पैसे भेजे। उमाबाई दाभाड़े (Umabai Dabhade in hindi) ने पेशवा को असफल करने के लिए एक याचिका दायर की।

पूर्व महारानी “ताराबाई पेशवा” को भी पेशवा परिवार से दिक्कत थी। पेशवा बालाजी बाजीराव के खिलाफ गठबंधन बनाने के लिए रानी ताराबाई और उमाबाई दाभाड़े साथ आ गए।
1750 में उमाबाई दाभाड़े और रानी ताराबाई पेशवा की मुलाकात हुई। उमाबाई दाभाड़े (Umabai Dabhade in hindi) ने वादा किया कि वह ताराबाई का समर्थन करेगी।

1अक्टूबर 1750 के दिन शंभू महादेव के मंदिर में मुलाकात की जहां पर रानी ताराबाई पेशवा ने उमाबाई दाभाड़े को पेशवा बालाजी बाजीराव के खिलाफ विद्रोह के लिए उकसाया। 20 अक्टूबर 1750 उमाबाई दाभाड़े ने उनके एजेंट (दूत) “याडो महादेव निरगुड़े” के माध्यम से पेशवा तक अंतिम बार अपनी बात पहुंचाते हुए “दाभाड़े” को कर मुक्त और राजस्व मुक्त करने की अपील की।

पेशवा बालाजी बाजीराव ने उनकी अपील को खारिज कर दिया और तुरंत प्रभाव से राजस्व में से आधा भाग उन्हें देने के लिए कहा। लेकिन इसके बावजूद उमाबाई दाभाड़े (Umabai Dabhade in hindi) विद्रोह नहीं करना चाहती थी, वह चाहती थी कि पेशवा बालाजी बाजीराव के साथ उनकी व्यक्तिगत मुलाकात हो।

22 नवम्बर 1750 को आलंदी में दोनों की मुलाकात हुई। इस मुलाकात में उमाबाई दाभाड़े ने तर्क दिया कि गलत तरीके से कर देने के लिए दबाव डाला गया। लेकिन पेशवा बालाजी बाजीराव ने इस तर्क को ही अवैध करार दिया और कहा कि तुरंत प्रभाव से राजस्व में से आधा हिस्सा उन्हें चाहिए।

एक तरफ पेशवा बालाजी बाजीराव मुगलों से लोहा लेने के लिए रवाना हुए तो दूसरी तरफ ताराबाई पेशवा ने मौके का फ़ायदा उठाकर छत्रपति राजाराम द्वितीय को गिरफ्तार कर लिया।उमाबाई दाभाड़े (Umabai Dabhade in hindi) ने रानी ताराबाई की मदद की और लेफ्टीनेंट दामाजी गायकवाड के नेतृत्व में सेना भेजी।

मार्च 1751 में दामाजी गायकवाड़ को सफलता मिली लेकिन कृष्णा नदी के किनारे घाटी में वह फंस गया। दामाजी गायकवाड़ के सैनिकों ने भी उसका साथ छोड़ दिया,अब एक ही उपाय बचा कि शांति समझौता कर लिया जाए।युद्ध में हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए गुजरात के आधे क्षेत्र को मांगा साथ ही 2.5 लाख रुपए की मांग की।

30 अप्रैल 1751 की शाम अचानक गायकवाड़ के कैंप पर हमला कर दिया। अचानक हुए इस हमले में वह संभाल नहीं पाया और पेशवा की अधीनता स्वीकार कर ली।
मई 1751 में, पेशवा ने दामाजी गायकवाड़ और उनके रिश्तेदारों को गिरफ्तार किया, और उन्हें पुणे भेज दिया। कुछ समय बाद, उमाबाई, यशवंत राव और दाभाडे परिवार के अन्य सदस्यों को भी गिरफ्तार कर लिया गया।

वे अपने जागीर के साथ-साथ अपने वंशानुगत सेनापति पद से भी हाथ धो बैठे। मार्च 1752 ईस्वी में गायकवाड़ ने दाभाड़ों को छोड़ने का काम किया। दामाजी गायकवाड़ को गुजरात का मराठा प्रमुख बनाया गया। दामाजी गायकवाड़ दाभाड़े परिवार को वार्षिक खर्चा देने के लिए भी सहमत हो गए।

उमाबाई दाभाड़े की मृत्यु Umabai Dabhade death

उमाबाई दाभाड़े की मृत्यु कैसे हुई (Umabai Dabhade death) आइये जानते हैं – दामाजी गायकवाड़ की गिरफ्तारी और पेशवा के साथ गायकवाड़ के गठबंधन के बाद, दाभाड़ो ने अपनी शक्ति और अपनी संपत्ति का बहुत बड़ा हिस्सा खो दिया।

28 नवंबर 1753 को पुणे के नादगोमोडी ( Nadgemodi) में उमाबाई का निधन (Umabai Dabhade death) हो गया। उसकी समाधि (मकबरा) तालेगांव दाभाडे में “श्रीमंत सरसेनापति दाभाड़े श्री बाणेश्वर मंदिर” में स्थित है।

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