शालीवाहन सिंह तोमर (Shalivahan Singh Tomar)- हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप 14 वर्षीय सेनापति।

क्या आप जानते हैं कि शालीवाहन सिंह तोमर/शालीवान सिंह तोमर कौन थे ( who was Shalivahan Singh Tomar) और उन्होंने महाराणा प्रताप का साथ क्यों दिया? हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप और मुगलों के बीच लड़ा गया इस युद्ध में महाराणा प्रताप का साथ देने वाले सेनापतियों में एक नाम था शालीवाहन सिंह तोमर (Shalivahan Singh Tomar)।

शालिवाहन सिंह तोमर/ शालीवान सिंह तोमर (Shalivahan Singh Tomar) ग्वालियर के वीर और पराक्रमी राजा मानसिंह तोमर का पौत्र और तत्कालीन राजा रामशाह तोमर के पुत्र थे। हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध में महज 14 वर्षीय शालिवाहन सिंह तोमर ने महाराणा प्रताप और मेवाड़ी सेना का साथ दिया था।

शालीवाहन सिंह तोमर (Shalivahan Singh Tomar) ने महाराणा प्रताप का साथ क्यों दिया?

इसकी मुख्य वजह यह थी कि शालीवाहन सिंह तोमर (Shalivahan Singh Tomar) मेवाड़ के राणा उदयसिंह जी के जमाई और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी के बहनोई थे।

18 जुन 1576 के दिन महाराणा प्रताप शालिवाहन सिंह तोमर/ शालीवान सिंह तोमर को एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देते हुए सेनापति बनाया। इस युद्ध में शालीवाहन सिंह तोमर (Shalivahan Singh Tomar) के अलावा उनके परिवार के अन्य सदस्यों ने भी भाग लिया, जिनमें ग्वालियर के तत्कालीन राजा रामशाह जी तोमर अपने भाइयों कुंवर भवानी सिंह, कुंवर प्रताप सिंह और पुत्र बलभद्र सिंह जी ने भाग लिया।

इनके साथ सैकड़ों की तादाद में ग्वालियर के सैनिकों ने भी भाग लिया। इस भीषण युद्ध में महाराणा प्रताप की मेवाड़ी सेना ने मुगलों के दांत खट्टे कर दिए, हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा की जीत हुई।

महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी का युद्ध जीत लिया लेकिन वीर और तेजस्वी सेनापति शालीवाहन सिंह तोमर (Shalivahan Singh Tomar) की रक्त तलाई नामक स्थान पर मृत्यु हो गई। कहते हैं कि इस युद्ध में ग्वालियर के लगभग 600 सैनिकों की जान गई। शालिवाहन सिंह तोमर के साथ-साथ राजा रामशाह जी तोमर, कुंवर भवानी सिंह, कुंवर प्रताप सिंह और बलभद्र सिंह भी मेवाड़ी भूमि की आन बान और शान के लिए सदा के लिए अमर हो गए।

तोमर राजवंश के वीरों की याद में आज भी हल्दीघाटी में स्थित “रक्त तलाई” नामक स्थान पर छतरी बनी हुई है, जो तोमर राजवंश के वीरों की वफादारी और मेवाड़ के लिए अतुलनीय बलिदान की गाथा का गुणगान कर रही है। मेवाड़ के इतिहास में शालिवाहन सिंह तोमर/ शालीवान सिंह तोमर (Shalivahan Singh Tomar) का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा हुआ हैं।

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