Soyarabai History- सोयराबाई का इतिहास।

Soyarabai History In Hindi, सोयरा बाई भोंसले का इतिहास-

Soyarabai Historyसोयराबाई मोहिते छत्रपति शिवाजी महाराज की द्वितीय पत्नी तथा सरसेनापती हंबीरराव मोहिते की बहिन थी। इन्होंने राजाराम जैसे वीर पुत्र को जन्म दिया था जो कि आगे चलकर मराठा साम्राज्य के शासक बने थे।

पूरा नाम (soyarabai real name)- सोयरा बाई शिवाजी भोंसले।

पिता का नाम- इनके पिता का नाम संभाजी मोहिते था।

भाई- हंबीरराव मोहिते, हरीफ राव मोहिते और शंकर जी।

बहिन- अणुबाई मोहिते।

मृत्यु (soyarabai death history )- 1681 ईस्वी में।

पति का नाम- छत्रपति शिवाजी महाराज।

बेटे और बेटियां (soyarabai son)- राजाराम भोंसले।

Soyarabai का जन्म संभाजी मोहिते के घर में हुआ था। इनके भाई सरसेनापति हंबीरराव मोहिते थे।

यह पांच भाई बहन थे जिनमें 3 भाई और 2 बहिन थी। इनके पिता जी संभाजी बहुत ही वीर थे।

साथ ही इनके भाई हंबीरराव मोहिते में वीरता, कुशलता, त्याग और राजनीति के गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे।

इतना ही नहीं सोयराबाई भी अपने पिता और भाई की तरह कर्तव्यनिष्ठ थी।

1660 ईस्वी में जब छत्रपति शिवाजी महाराज अपने पिता के साथ बैंगलोर गए तब कम आयु में उनका विवाह संभाजी मोहिते की पुत्री सोयराबाई के साथ कर दिया।

इस समय सोयराबाई मोहिते की आयु महज 8 से 10 वर्ष थी।

सोयराबाई चाहती थी कि उनका बेटा राजाराम बनें अगले छत्रपति-

Soyarabai History देखें तो वह चाहती थी कि छत्रपति शिवाजी के पश्चात उनका पुत्र राजाराम छत्रपति बने।

लेकिन यह धर्म विरुद्ध था, नियमानुसार शिवाजी के बड़े बेटे संभाजी इसके वारिस थे।

लेकिन सन 1680 ईस्वी में छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के पश्चात सोयराबाई थोड़ी महत्वकांक्षी हो गई। और उन्होंने धर्म विरुद्ध जाकर अपने बेटे राजाराम को छत्रपति बनाना चाहा।

मात्र 10 वर्ष की आयु में सोयराबाई भोसले ने अपने पुत्र राजाराम को राज गद्दी पर बिठाया। और कुछ लोगों ने मिलकर राजाराम को “छत्रपति राजाराम” की उपाधि प्रदान की।

छत्रपति संभाजी महाराज ने सोयराबाई को दंड क्यों दिया-

राजाराम को गद्दी से हटाने के लिए सबसे बड़ा रोड़ा था छत्रपति शिवाजी महाराज के बड़े पुत्र संभाजी महाराज।

सोयराबाई और उनके साथी यह चाहते थे कि अगर संभाजी महाराज को रास्ते से हटा दिया जाए तो फिर राज सिंहासन पर कोई दूसरा नहीं बैठ सकेगा।

इस समय संभाजी महाराज पन्हाला में नजरबंद थे।

जब संभाजी महाराज को यह खबर मिली कि उनकी जगह राजाराम को सिंहासन पर बिठा दिया गया है, तो उन्होंने नजरबंद से भागने का प्लान बनाया।

यहां से भागने के पश्चात वह राजगढ़ के किले पर चले गए और वहां से कार्यभार संभाला।

यहीं से संभाजी महाराज ने उनके खिलाफ षड्यंत्र रचने वालों के खिलाफ मोर्चा खोलने का प्लान बनाया। वह मानते थे कि उनके खिलाफ जाना बड़ा अपराध है।

इतना ही नहीं संभाजी महाराज ने यह प्लान भी बनाया कि कैसे भी करके मराठा सरदारों और सैनिकों के साथ-साथ मंत्री पद के सदस्यों को भी मनाया जाए और उनको साथ में लिया जाए।

संभाजी महाराज ने अपने सैनिकों के साथ मिलकर सोयराबाई को क़ैद खाने में डाल दिया।

संभाजी महाराज को मारने की साजिश-

सोयराबाई अकबर के साथ मिलकर (अकबर औरंगजेब का पुत्र था) संभाजी महाराज को जहर देकर मारने की साजिश रची।

क्योंकि अकबर भी यह चाहता था कि वह औरंगजेब को मारकर खुद मुगल बादशाह बने।

सोयराबाई और अकबर के लिए यह बहुत अच्छा मौका था एक दूसरे का साथ देने के लिए।

सोयराबाई चाहती थी कि संभाजी को मौत के घाट उतार दिया जाए ताकि उनका पुत्र राजाराम छत्रपति बने।

वहीं दूसरी तरफ अकबर चाहता था कि औरंगजेब को मार दिया जाए ताकि वह मुगल बादशाह बने और इसी के तहत सायरा बाई और संभाजी महाराज दोनों साथ आए।

सन 1681 में सोयराबाई ने अपने साथियों और मंत्रियों के साथ मिलकर संभाजी महाराज को जहर देना चाहा लेकिन वह बच गए।

लेकिन अकबर कि पहले ही संभाजी महाराज के साथ घनिष्ठता थी।

तो अकबर ने साफ तौर पर मना कर दिया कि वह संभाजी महाराज के खिलाफ नहीं जा सकता है। अपने खिलाफ साजिश करने वालों को संभाजी महाराज ने हाथी के पैरों तले कुचलवाकर मरवा दिया।

संभाजी महाराज ने सोयराबाई का साथ देने वाले मंत्रियों को तुरंत गिरफ्तार करने का आदेश दिया।

इतना ही नहीं वीर सेनापति हंबीरराव मोहिते को भी गिरफ्तार करने का आदेश दिया लेकिन कुछ वरिष्ठ मंत्रियों ने कहा कि हम भी राव मोहिते संभाजी महाराज को ही राजा बनाना चाहते हैं।

यह बात सुनकर संभाजी महाराज ने वीर “सेनापति हंबीरराव मोहिते” को माफ कर दिया और अपने साथ मिला दिया।

हंबीरराव मोहिते चाहते तो अपने बहन के बेटे राजाराम को छत्रपति बना सकते थे लेकिन उन्होंने राज्य विरुद्ध कार्य नहीं किया और सच का साथ दिया।

अंत में संभाजी महाराज ने राजाराम को गोद ले लिया और भविष्य का मराठाओं का उत्तराधिकारी घोषित किया।

इससे सोयराबाई का सपना भी पूरा हो गया।

सबके मन में एक प्रश्न होता है कि सोयराबाई की मृत्यु कैसे हुई तो आपको बता दें कि सामान्य रूप से सन 1681 में ही सोयराबाई यांची माहिती ने भी देह त्याग दी।

इस तरह सोयराबाई एक वीर होने के साथ-साथ थोड़ी महत्वकांक्षी भी थी।

हालांकि कुछ वर्षों तक इन्होंने ही संघर्ष किया था और मराठा साम्राज्य को सुरक्षित रखा।

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