विक्रम संवत की शुरुआत और सम्पूर्ण इतिहास.

विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसा पूर्व हुए थी. हिंदू धर्म में विक्रम संवत का महत्वपूर्ण स्थान है. विक्रम संवत से पहले भी कई संवत चलते थे जिनमें कलयुग संवत, सप्तर्षि संवत् और युधिष्ठिर संवत् मुख्य थे. सप्तर्षि संवत् की शुरुआत 3076 ईस्वी पूर्व जबकि कलयुग संवत की शुरूआत 3102 ईस्वी पूर्व हुई थी. इसी दौर में युधिष्ठिर संवत् भी प्रचलन में था. लेकिन इन सभी संवतों में एक कॉमन बात यह थी कि सभी की शुरूआत चैत्र प्रतिपदा से होती थी.

ऊपर वर्णित कलयुग संवत्, सप्तर्षी संवत् और युधिष्ठिर संवत् में कई खामियां थी जिनके चलते विक्रम संवत की शुरुआत हुई. विक्रम संवत् की शुरुआत सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा आज से लगभग 2079 वर्ष पूर्व अर्थात् 57 ईसा पूर्व में विक्रम संवत की शुरुआत हुई थी.

विक्रम संवत अत्यंत प्राचीन है, सांस्कृतिक इतिहास दृष्टि से यह सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय हैं. ऐसा कहा जाता है कि सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अपने साम्राज्य का संपूर्ण ऋण चुका कर जिसमें आम आदमी भी शामिल थे इस संवत् की शुरुआत की थी.

विक्रम संवत् का इतिहास ( Vikram Sanvat History)

विक्रम संवत की शुरुआत कब हुई- 57 ईसा पूर्व.

विक्रम संवत की शुरुआत किसने की- महाराजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने.

विक्रम संवत के अनुसार नववर्ष कब प्रारम्भ होता हैं- चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा.

विक्रम संवत की शुरुआत किस खुशी में हुई- शकों को पराजित करने की खुशी में.

2022 में कौनसा विक्रम संवत हैं- विक्रम संवत 2079.

विक्रम संवत का इतिहास अति प्राचीन होने के साथ-साथ सनातन संस्कृति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इसमें तिथियों और नक्षत्रों का सही और सटीक स्पष्टीकरण है. गणित की दृष्टि से देखा जाए तो यह सबसे स्पष्ट है. किसी नए संवत् को चलाने की एक शास्त्रीय विधि होती है जिसके अनुसार राजा को अपने साम्राज्य का संपूर्ण ऋण चुकाना पड़ता है जिसमें प्रजा का व्यक्तिगत ऋण भी शामिल है.

विक्रम संवत की शुरुआत सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने की थी, तब उन्होंने इसी शास्त्रीय विधि/नियम का पालन किया था. लेकिन उस जमाने में इस विधि का पालन विदेशों में भी होता था या नहीं इसके बारे में कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है. विक्रम संवत में महीनों के नाम और तिथि की गणना सूर्य और चंद्रमा की गति पर आधारित है. साथ ही विक्रम संबंध पूर्णतया वैज्ञानिक है. महान कवि कालिदास सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार में सुशोभित एक रत्न थे.

विक्रम संवत का इतिहास और विक्रम संवत दोनों आज के समय में बहुत महत्वपूर्ण है. जहां इसका इतिहास हमारे लिए गौरव की बात है, वहीं दूसरी तरफ विक्रम संवत आज के ज्योतिषियों के लिए रामबाण है. इसी के आधार पर ज्योतिषी सभी निर्णय लेते हैं. हिंदू धर्म में सभी कार्यों की शुरुआत और उनका मुहूर्त विक्रम संवत पर आधारित होता है.

विक्रम संवत की शुरुआत में सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की गौरव गाथा का वर्णन है. एक समय था जब भारत में विदेशी शकों का राज हुआ करता था जो बहुत ही क्रूर प्रवृत्ति के थे. ऐसे समय में महाराजा विक्रमादित्य ने शकों को भारत से खदेड़ दिया और इस जीत की खुशी में विक्रम संवत की शुरुआत की. इस ऐतिहासिक जीत पर महाराजा विक्रमादित्य ने “शकारी” की उपाधि धारण की थी.

विक्रम संवत क्या हैं?

विक्रम संवत एक कैलेंडर है जो उज्जैन के महाराजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा आज से लगभग 1279 वर्ष पूर्व (57 ईसा पूर्व) विक्रम संवत की शुरुआत की गई थी . विक्रम संवत के अनुसार ही भारत के सांस्कृतिक मूल्य जुड़े हुए हैं. चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से नव वर्ष मनाया जाता है जो विक्रम संवत के अनुसार हैं.

विक्रम संवत की शुरुआत के पीछे की कहानी

विक्रम संवत की शुरुआत के पीछे दो कहानियां प्रचलित हैं जिनका हम क्रमशः अध्ययन करेंगे.

विक्रम संवत की शुरुआत की प्रथम कहानी:-

भारतीय इतिहास में उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है. विक्रम संवत की शुरुआत की संपूर्ण कहानी महाराजा विक्रमादित्य से जुड़ी हुई है. एक न्याय प्रिय राजा होने के साथ-साथ महाराजा विक्रमादित्य प्रजा प्रेमी थे. इनके समय भारत के विशाल भूभाग पर विदेशी शकों का शासन था. शक शासकों के बारे में कहा जाता है कि यह बहुत ही निर्दयी और क्रूर थे. यह अपने दुश्मनों के साथ-साथ आमजन अथवा प्रजा पर भी बहुत अत्याचार करते थे. जब महाराजा विक्रमादित्य यह सब देखते तो उन्हें बहुत कष्ट होता था. 

विक्रमादित्य ने कैसे भी करके शकों को भारत से खदेड़ने की योजना बनाई. नेक इरादे से किए गए काम में निश्चित रूप से सफलता मिलती है. महाराजा विक्रमादित्य ने शकों को परास्त कर दिया. इस जीत के साथ उज्जैन के राजा विक्रमादित्य प्रजा के चहेते बन गए. यह जीत कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण थी, इससे आम प्रजा को भय मुक्त जीवन मिला.

इस जीत को यादगार बनाने के लिए महाराजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने आज से लगभग 2079 वर्ष पहले अर्थात् 57 ईस्वी पूर्व विक्रम संवत की शुरुआत की. फाल्गुन माह के समाप्त होते ही नव वर्ष प्रारंभ हो जाता है लेकिन कृष्ण पक्ष के पश्चात चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन नववर्ष मनाया जाता हैं.

इस दिन को हिंदू नव वर्ष के रूप में संपूर्ण भारतवर्ष में आज भी मनाया जाता है. देश के अलग-अलग कोने में इस दिन को अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे कि गुड़ी पड़वा आदि. विक्रम संवत की शुरुआत के संबंध में प्रमाण की बात की जाए तो “ज्योतिर्विदाभरण” नामक ग्रंथ, जिसकी रचना 3068 कलि अर्थात 34 ईसा पूर्व में हुई थी, से स्पष्ट होता है कि उज्जैन के महाराजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने 3044 कलि अर्थात 57 ईसा पूर्व में विक्रम संबंध की शुरुआत की थी.

यही बात बरनाला के स्तंभ पर अंकित लेख से भी स्पष्ट होती है.

उज्जैन के महाराजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का जन्म विक्रम संवत के अनुसार आज से लगभग 2293 वर्ष पूर्व हुआ था. दोस्तों आपने विक्रम बेताल की कहानी सुनी होगी, यह कहानी महाराजा विक्रमादित्य से जुड़ी हुई है, इसके अलावा सिहासन बत्तीसी भी इनसे जुड़ी हुई है. भविष्य पुराण के अनुसार कली काल के 3000 वर्ष बीत जाने के पश्चात 101 ईसा पूर्व में महाराजा विक्रमादित्य का जन्म हुआ था, जिन्होंने लगभग 100 वर्षों तक शासन किया.

विक्रम संवत की शुरुआत की दुसरी कहानी:-

अब हम विक्रम संवत् की शुरुआत के संबंध में प्रचलित दूसरी कहानी की चर्चा करते हैं जिसके अनुसार उज्जैन में “गर्दाभिल्ला” नामक राजा राज करते थे. एक बार उन्होंने एक सन्यासिनी का अपहरण कर लिया. सन्यासिनी का भाई भी सन्यासी (साधु) ही था वह शक शासकों के पास मदद के लिए गया. शक शासक उसकी मदद के लिए तैयार हो गए और उन्होंने घने जंगलों से “गर्दाभिल्ला” को ढूंढ निकाला.

“गर्दाभिल्ला” को बंदी बनाकर कैद कर लिया गया लेकिन एक दिन मौका पाकर वहां से भाग निकला. जब वह अपने आप को बचाने के लिए जंगल में गया तो वहां पर शेर ने उनके ऊपर हमला कर दिया और इस हमले में उनकी मृत्यु हो गई.

“गर्दाभिल्ला” की मृत्यु के बाद उनका पुत्र विक्रमादित्य सेन अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए तैयार हुए. विक्रमादित्य सेन ने पूरे दलबल के साथ शकों पर धावा बोल दिया और उन्हें बुरी तरह पराजित करते हुए भारत से खदेड़ दिया. इस जीत के साथ उज्जैन के नए राजा बने चंद्रगुप्त विक्रमादित्य. इस जीत से ना सिर्फ विक्रमादित्य बल्कि प्रजा भी बहुत प्रसन्न होगी क्योंकि शक प्रजापति क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते थे. इस जीत को यादगार बनाने के लिए महाराजा विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की शुरुआत की थी.

विक्रम संवत् के सम्बंध में शास्त्र और शिलालेख

विक्रम संवत के इतिहास के संबंध में शास्त्रों और शिलालेखों से भी जानकारी प्राप्त होती है, इनके अनुसार विक्रम संवत के उद्भव और प्रयोग के संबंध में स्पष्ट रूप से कुछ भी कहना आसान नहीं है. विक्रम संवत का आरंभ गुजराती लोग कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा और उत्तरी भारत में चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से मानते हैं.

विक्रम संवत को लेकर इतिहासकारों एवं विद्वानों में मतभेद देखने को मिलता है. कई लोग सन 78 से इसकी शुरुआत मानते हैं, तो कुछ लोग सन 544 से इसकी शुरुआत मानते हैं.

कृत संवत को विक्रम संवत से पहले का माना जाता हैं. “कृत” शब्द को लेकर संशय है क्योंकि नरवर्मा के मन्दसौर शिलालेख में मावल गण का संवत की व्याख्या है. कृत और मालव संवत को कई शिलालेखों में समान माना गया हैं इसकी मुख्य वजह पूर्वी राजस्थान और पश्चिमी मालवा (MP) इन्हें समान रूप से प्रयोग में लाया जाता रहा हैं.

कई ऐसे शिलालेख प्राप्त हुए हैं जिनमें मालव संवत के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिलती है, वहीं दूसरी तरफ कृत संवत के 285 एवं 295 वर्ष मिलते हैं. यह भी संभव है कि कृत संवत अधिक प्राचीन है, जब मालवा के लोगों ने उसे अपना लिया होगा तो वह मालव गण स्थिति के नाम से जाना जाने लगा होगा. यह दोनों विक्रम संवत की ओर संकेत करते हैं.

नव संवत्सर

भारतवर्ष में विक्रम संवत के अनुसार ही “नया साल” के रूप में मनाया जाता है. 

पौराणिक मान्यता के अनुसार चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी, इसी वजह से इस दिन को नव संवत्सर के त्योहार के रूप में मनाया जाता है. नव संवत्सर चक्र के अनुसार सूर्य इस मौसम में अपनी राशि चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रवेश करता है. हमारे देश में बसंत ऋतु में नया वर्ष मनाए जाने के पीछे मुख्य वजह यह भी है कि इस ऋतु में चारों तरफ हरियाली रहती हैं वृक्षों पर नए पत्ते और पुष्प निकल आते हैं. साथ ही पतझड़ का मौसम खत्म होता है.

भारत का राष्ट्रीय संवत

भारत में वर्तमान में राष्ट्रीय संवत के रूप में शक संवत को मान्यता दी गई है. भारतीय सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से “विक्रम संवत” को ही राष्ट्रीय संवत के रूप में प्रयोग में लाया जाता है. आज से लगभग 2079 वर्ष पूर्व अर्थात 57 ईसा पूर्व उज्जैन के सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने भारत को शकों के अत्याचारी कुशासन से मुक्त करवाया था और इसी विजय की खुशी और याद में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को विक्रम संबंध का आरंभ हुआ था.

हमारे देश की सांस्कृतिक पहचान विक्रम संवत से जोड़कर देखी जाती है. हालांकि दुर्भाग्यवश हमारे देश में अभी ईस्वी संवत प्रचलन में हैं. आज भी हमारे देश में विभिन्न सांस्कृतिक त्योहार और उत्सव तथा भगवान श्री राम, श्री कृष्ण, श्री बुद्ध, श्री महावीर और गुरु नानक आदि महापुरुषों की जयंतियां विक्रम संवत के अनुसार ही मनाई जाती है.

हमारी संस्कृति में विक्रम संवत

जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा हमारे सांस्कृतिक मूल्य विक्रम संवत से जुड़े हुए हैं. विक्रम संवत के अनुसार ही हमारे देश में हिंदू धर्म को मानने वाले नववर्ष मनाते हैं. ना सिर्फ भारत में बल्कि पश्चिम बंगाल, नेपाल, श्रीलंका, म्यानमार, असम, बंगाल, तमिलनाडु, राजस्थान और गुजरात आदि स्थानों पर विक्रम संवत के अनुसार नव वर्ष बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है.

हमारी संस्कृति की वास्तविक पहचान विक्रम संवत से ही है. पश्चिम बंगाल में नववर्ष वैशाख के प्रथम दिन को मनाया जाता है हालांकि यह विक्रम संवत का आरंभिक दिन नहीं है, परंतु दोनों एक ही महीने में मनाए जाते हैं. 

हिंदू कैलेंडर या विक्रम संवत कैलेंडर

हिंदू कैलेंडर या विक्रम संवत कैलेंडर के अनुसार दिन सूर्योदय और सूर्यास्त पर निर्भर करता है.

विक्रम संवत कैलेंडर या हिंदू कैलेंडर के अनुसार महीनों के नाम निम्नलिखित है –

1 चैत्र.

2 वैशाख.

3 ज्येष्ठ.

4 आषाढ़.

5 श्रावण.

6 भाद्रपद.

7 आश्विन.

8 कार्तिक.

9 अगहन.

10 पौष.

11 माघ.

12 फाल्गुन.

विक्रम संवत के संबंध में बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्न

1 विक्रम संवत से पहले क्या था?

उत्तर- विक्रम संवत से पहले भारत में सप्तर्षि संवत प्रचलित था. विक्रम संवत से पहले भी कई संवत चलते थे जिनमें कलयुग संवत, सप्तर्षि संवत् और युधिष्ठिर संवत् मुख्य थे. सप्तर्षि संवत् की शुरुआत 3076 ईस्वी पूर्व जबकि कलयुग संवत की शुरूआत 3102 ईस्वी पूर्व हुई थी. इसी दौर में युधिष्ठिर संवत् भी प्रचलन में था.

2 भारत में कितने संवत है?

उत्तर- भारत में मुख्य रूप से दो संवत प्रचलित हैं जिनमें 57 ईसा पूर्व से चला आ रहा विक्रम संवत और 78 ईसा पूर्व से चला आ रहा शक संवत शामिल हैं.

3 भारत का सबसे पुराना कैलेंडर कौन सा है?

उत्तर- भारत के सबसे पुराने कैलेंडर की बात की जाए तो कलयुग संवत, सप्तर्षि संवत् और युधिष्ठिर संवत् मुख्य हैं लेकिन 57 ईसा पूर्व से चला आ रहा विक्रम संवत भारत की संस्कृती का प्रतीक माना जाता हैं. विक्रम संवत की शुरुआत शक संवत से पहले की हैं.

4 भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर क्या है?

 उत्तर- शक संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है जो 78 ईसा पूर्व से आरंभ होता है. भारत के राष्ट्रीय कैलेंडर शक संवत को उज्जयिनी के क्षत्रप चेष्टन ने प्रचलित किया था. यह हमारा दुर्भाग्य है कि विक्रम संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर नहीं होकर शक संवत हमारा राष्ट्रीय कैलेंडर है.

5 दुनिया का सबसे पुराना कैलेंडर कौन सा है?

उत्तर- पुरातत्वविदो ने चंद्रमा की गति पर आधारित एडर्बीनशायर में दुनिया के सबसे पुराने कैलेंडर की खोज की है. कार्थेस किले एक खेत की खुदाई के दौरान 13 गड्ढों की एक श्रृंखला मिली है जो चंद्र महीने की ओर संकेत करती हैं.

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दोस्तों उम्मीद करते हैं विक्रम संवत की शुरुआत और इतिहास Vikram Sanvat History) पर आधारित यह लेख आपको अच्छा लगा होगा,धन्यवाद।