मौर्य साम्राज्य का इतिहास || Histroy of maurya Rajvansh

Last updated on May 6th, 2024 at 08:45 am

मौर्य राजवंश / मौर्य साम्राज्य (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) प्राचीन भारत के सबसे शक्तिशाली राजवंशों/साम्राज्यों में से एक था। इससे आप भारतीय इतिहास का स्वर्णिम युग कह सकते हैं। मौर्य राजवंश की स्थापना भारतीय इतिहास में घटी एक ऐसी घटना है जिसने प्राचीन भारत की राजनीति में एकता का सूत्र पिरोया था।

मौर्य राजवंश या मौर्य साम्राज्य (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) की स्थापना होने के बाद ही प्रशासनिक तंत्र व्यवहार में आया था। इसी युग से राज्य को चलाने के लिए सभी व्यवस्थाओं का समावेश किया गया जिससे कि कोई भी राज्य व्यवस्थित तरीके से चल सके। मौर्य साम्राज्य या राजवंश से पहले हर्यकवंशीय राजाओं ने राजनीतिक एकीकरण की शुरुआत की थी, लेकिन इसे अंजाम तक पहुंचाया मौर्य राजवंशों ने।

मौर्य साम्राज्य (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) को भारत का पहला महान साम्राज्य माना जाता है। मौर्य साम्राज्य की स्थापना 322 से 185 ईसापूर्व हुई थी। मौर्य राजवंश ने भारतवर्ष में लगभग 137 वर्षों तक राज्य किया था। यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों से शुरू हुआ था, आज के समय में यह क्षेत्र बंगाल और बिहार में आता है।

मौर्य राजवंश या मौर्य साम्राज्य की स्थापना (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) के समय इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी, जिसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसापूर्व की थी।चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर सम्राट अशोक तक मौर्य राजवंश के राजाओं ने इस साम्राज्य को संपूर्ण भारत में फैला दिया।धीरे-धीरे मौर्य साम्राज्य सबसे महान एवं शक्तिशाली साम्राज्य बन कर विश्व भर की दृष्टि पटल पर आ गया।

मौर्य साम्राज्य (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) के 137 वर्षों के इतिहास में मौर्य राजवंश के प्रथम राजा चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर मौर्य साम्राज्य के अंतिम राजा बृहद्रथ ने राज्य किया था।

यह भी पढ़ें चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) का इतिहास और ऐतिहासिक स्थल

  • मौर्य साम्राज्य की स्थापना कब हुई– 322 ईसापूर्व.
  • मौर्य साम्राज्य का संस्थापक कौन था– चंद्रगुप्त मौर्य.
  • मौर्य राजवंश के प्रथम सम्राट-चंद्रगुप्त मौर्य.
  • मौर्य राजवंश के अंतिम सम्राट-राजा बृहद्रथ.
  • मौर्य राजवंश कार्यकाल-137 वर्ष.
  • सबसे ज्यादा समय तक राज्य करने वाला राजा– सम्राट अशोक (37 वर्ष).
  • सबसे कम समय तक राज्य करने वाला राजा– राजा बृहद्रथ (2 वर्ष).
  • मौर्य साम्राज्य कहां था– मगध के आस पास.
  • मौर्य साम्राज्य की राजधानी– पाटलिपुत्र (पटना के समीप).
  • मौर्य साम्राज्य का क्षेत्रफल– 50 लाख वर्ग किलोमीटर.
  • मौर्य साम्राज्य की मुद्रा – पण.

मौर्य राजवंश या मौर्य साम्राज्य (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) के इतिहास का अध्ययन करने से पहले यह जानना जरूरी है, कि ऐसे कौन से स्त्रोत मौजूद है जिनको आधार मानकर मौर्य साम्राज्य या मौर्य राजवंश के इतिहास के बारे में सटीकता के साथ जानकारी प्राप्त की जा सकती हैं। क्योंकि अति प्राचीन इतिहास के बारे में पढ़ने से पहले लोगों को प्रमाण (मौर्य साम्राज्य की जानकारी के स्रोत) की जरूरत होती हैं।

पहले मौर्य साम्राज्य (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) की जानकारी के स्रोत के बारे में पढ़ना होगा। क्योंकि अति प्राचीन इतिहास के बारे में पढ़ने से पहले लोगों को प्रमाण की जरूरत होती हैं।

1. कौटिल्य का अर्थशास्त्र –

कौटिल्य का अर्थशास्त्र चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री चाणक्य या विष्णुगुप्त द्वारा लिखित एक ग्रंथ हैं। इस ग्रंथ में कौटिल्य ने लिखा था उसे चाणक्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है और वह चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा नंदों को अपदस्थ किए जाने के बाद चंद्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री बना था।
कौटिल्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र में चंद्रगुप्त मौर्य कालीन राजव्यवस्थाओं एवं प्रशासन के बारे में जानकारी दी गई है।
चंद्रगुप्त मौर्य के शासन के समय की व्यवस्थाओं का वर्णन करता यह ग्रंथ मौर्य साम्राज्य / मौर्य राजवंश के प्रमाण के रूप में उपयोग में लिया गया हैं।

2. मेगस्थनीज की “इंडिका”

मेगस्थनीज, अरकोसिया के गर्वनर सिविरटियोस के राज्य में सेल्युकस निकेटर (अफगानिस्तान, कांधार) का प्रतिनिधि था। मेगस्थनीज द्वारा लिखित पुस्तक इंडिका में उसने भारत यात्रा और उससे जुड़े अनुभव साझा किए थे।
हालांकि इंडिका नामक पुस्तक वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। लेकिन इसके कुछ अंश डियोडोरस सिसीलस ( इतिहासकार), स्ट्रोबो, एरियन तथा प्लिनी जैसे ग्रीक तथा लेटिन लेखकों की रचनाओं में पाए जाते हैं।
इस तरह मेगस्थनीज द्वारा लिखित पुस्तक इंडिका को मौर्य साम्राज्य की जानकारी के स्रोत या मौर्य राजवंश के इतिहास के प्रमाण के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

3. अशोक का अभिलेख-

सम्राट अशोक के “स्तंभ लेखों एवं शिलालेखों का अध्ययन करने से यह ज्ञात होता है कि मौर्य साम्राज्य कितना पुराना है।
अशोक के 14 मुख्य शिलालेख निम्नलिखित स्थानों पर स्थित हैं- कांधार (अफगानिस्तान), शहबाजगढ़ी ( पेशावर, पाकिस्तान), मानसेहरा ( हजारा पाकिस्तान ), कलसी ( देहरादून, उत्तराखंड ), गिरनार ( जूनागढ़, गुजरात ), मुंबई सोपारा, धौली ( पूरी, उड़ीसा), जोगढ़ ( गंजम, उड़ीसा ), एरागुड़ी ( कुरनूल, आंध्रप्रदेश), सन्नती (कर्नाटका).

इनके अध्ययन से मौर्य साम्राज्य या मौर्य राजवंश (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) के बारे में उनकी शासन व्यवस्था, समाज व्यवस्था और धर्म से संबंधित अनेक विषयों पर जानकारी उपलब्ध होती है। यह भी मौर्य साम्राज्य की जानकारी के स्रोत के रूप में उपयोग किया जा सकता हैं।

4. पुरातात्विक प्रमाण-

पुरातात्विक प्रमाण की बात की जाए तो पाटलिपुत्र के कुम्रहार तथा बुलंदीबाग से प्राप्त सूचनाएं सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इससे संबंधित अन्य स्थानों की बात की जाए तो मथुरा, भिटा और तक्षशिला का नाम आता है।

इस काल में चांदी के बने पंचमार्क सिक्के मेहराब में अर्धचंद्र, चहारदीवारी में वृक्ष तथा मयूर और अर्धचंद्र जैसे कुछ प्रसिद्ध प्रतीक मौर्य राजाओं के प्रमाण के रूप में काम करते हैं। पाटलिपुत्र अर्थात पटना, कंकड़बाग में 1970 में मौर्य साम्राज्य से संबंधित अवशेष मिले हैं जो मौर्य साम्राज्य की जानकारी के स्रोत हैं।

5. चीनी यात्री फाह्यान एवं युवांचवांग भी द्वारा लिखित विवरणों में मौर्यकलीन प्रमाण मिले हैं।

सिर्फ भारत ही नहीं विश्व के सभी इतिहासकारों में इस बात को लेकर मतभेद है। किसी का मानना है कि मौर्य पारसी थे, तो कोई इतिहासकार कहता है कि मौर्य शुद्र थे और इतिहासकारों के एक तबके का मानना है कि मौर्य क्षत्रिय थे। मौर्य कला और शासन व्यवस्था पारसी कला से एकदम अलग थी, तो यह बात सही नहीं हो सकती है। इसके अतिरिक्त स्पूनर ने इस कला की तुलना पारसी से की है जो कहीं भी सही साबित नहीं होती हैं।

कई ब्राह्मण साहित्य के आधार पर मौर्य राजवंश (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) को शुद्र माना जाता है, लेकिन गहन अध्ययन किया जाए तो ब्राह्मण साहित्य इस विषय पर एकमत नहीं है, तो यह कहा जा सकता है कि मौर्य शुद्र नहीं थे।

तो क्या मौर्य क्षत्रिय थे? (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) बात को सही माना जाए और बौद्ध एवं जैन साहित्य का वर्णन किया जाए तो अधिकतर इस पर एकमत हैं, यह थोड़ा तर्कसंगत भी प्रतीत होता है। तमाम साहित्य और उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर मौर्यों को क्षत्रिय मानना ज्यादा उचित रहेगा क्योंकि यह न्याय प्रिय भी थे।

मौर्य साम्राज्य या मौर्य राजवंश (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) की बात की जाए तो इसे भारतवर्ष का सबसे बड़ा साम्राज्य माना जाता है। इसका प्रारंभ नदियों की घाटियों से हुआ था लेकिन धीरे-धीरे यह संपूर्ण भारतवर्ष में फैल गया। एक्सेस घाट से लेकर कावेरी नदी तक एक छत्र यह फैला हुआ था।

मौर्य साम्राज्य/मौर्य राजवंश (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) में पैदा हुए तीसरे बड़े राजा सम्राट अशोक एक ऐसा महान और उदारवादी राजा था, जो दुश्मनों को युद्ध में परास्त करने के बाद उनसे क्षमा याचना करता था, ऐसा महान राजा विश्व के इतिहास में कहीं भी देखने को नहीं मिलता है।

मौर्यकालीन सभ्यता एवं संस्कृति की बात की जाए तो इसमें सामाजिक जीवन, आर्थिक जीवन, धार्मिक जीवन, मौर्यकालीन कला और साहित्य एवं शिक्षा का मुख्य रूप से समावेश होता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अलावा मौर्यकालीन प्रमाणों के आधार पर हम जानने की कोशिश करते हैं कि मौर्यकालीन संस्कृति और सभ्यता कैसी थी? या फिर मौर्य कालीन संस्कृति एवं सभ्यता किस हद तक विकसित थी।

1. सामाजिक जीवन –

चाणक्य अथवा कौटिल्य के अनुसार मौर्यकालीन (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) समाज चार वर्णों में विभाजित था, जिनका अपना अपना काम था। उस समय समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार मुख्य वर्णों में बटा हुआ था। जातीय भेदभाव नहीं था इनका विभाजन काम के आधार पर किया गया था। आचार्य चाणक्य ने शूद्रों को भी जन्मजात आर्य कह कर संबोधित किया था।

मौर्य काल (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) में वर्ण व्यवस्था विकसित थी, साथ ही आचार्य चाणक्य/कौटिल्य का मानना था कि सेना का गठन करते समय चारों वर्णों के लोगों को इसमें शामिल किया जा सकता है।

मेगस्थनीज ने मौर्यकालीन (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) भारतीय समाज की संरचना को उनके कार्य के आधार पर सात भागों में विभक्त कर दिया था। जिनमें किसान, दार्शनिक, पशुपालक, कारीगर, सैनिक, सलाहकार और निरीक्षक आदि।

ब्राह्मणों का मुख्य कार्य अध्ययन और अध्यापन था, मेगास्थनीज और कौटिल्य दोनों के प्रमाणों से यह ज्ञात होता है। साथ ही किसी भी तरह के अपराध के लिए ब्राह्मण को दंड नहीं दिया जाता था।

चंद्रगुप्त मौर्य जैसे शक्तिशाली राजा के राज्य में ज्यादातर विवाह वर्ण या जाति में ही संपन्न होते थे। अंतर्वरणीय और अंतरजातीय विवाह भी होते थे लेकिन नहीं के बराबर। हमारे धर्म शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाह का उल्लेख मिलता हैं। जिसमें ब्राह्मण, प्रजापत्य, आर्ष, दैव, आसुर, गांधर्व, राक्षस तथा पैशाच आदि। यह सभी प्रकार के विवाह इस समय होते थे।

मौर्यकालीन युग (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) में स्वयंवर जैसे विवाह के सबूत भी मिलते हैं। इस समय दहेज का लेन-देन नहीं किया जाता था, स्त्री एवं पुरुष दोनों पुनर्विवाह कर सकते थे।

स्त्रियों की बात की जाए तो उन्हें स्वतंत्रता प्राप्ति थी। कोई भी प्रताड़ित स्त्री न्यायालय की शरण ले सकती थी, शिक्षा का अधिकार था, सेना में भर्ती हो सकती थी या फिर दूत या गुप्तचर के रूप में काम कर सकती थी। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार भारत में दास प्रथा का प्रचलन था।

सम्राट अशोक के अभिलेखों से प्राप्त जानकारी के अनुसार Maurya samrajya or maurya Rajvansh में दास प्रथा प्रचलित थी, लेकिन उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता था। दास स्त्री के साथ भी प्रेम पूर्ण व्यवहार किया जाता था, कुछ सालों बाद उन्हें मुक्त भी कर दिया जाता था।


2. आर्थिक जीवन-

आज की तरह मौर्यकालीन भारत भी कृषि प्रधान था। मौर्यकालीन समय (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) में भारतीय कृषि के साथ-साथ सिंचाई के साधनों का भी विकास होता गया। जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि पुष्यगुप्त वैश्य (चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यपाल) ने सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में भूमि को कई भागों में वर्गीकृत किया था जिसमें जूती हुई, बिना जूती हुई आदि शामिल है।


मेगास्थनीज के अनुसार मौर्यकालीन भारत (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) में सोना, चांदी, लोहा और तांबा का उत्पादन प्रचुर मात्रा में होता था।सिर्फ वस्त्र निर्माण ही नहीं बल्कि शिल्प उद्योग भी विकसित अवस्था में थे। रत्न, लकड़ी का कार्य, हाथी के दांतो की कारीगरी, चमड़ा उद्योग बहुत ही उन्नत अवस्था में थे।

कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार मौर्यकालीन मुद्राएं निम्नलिखित थी- सुवर्ण (सोने की मुद्रा), कर्षापण , पण और धरण आदि। खुदाई में यह सभी मुद्राएं प्राप्त हुई है जिन्हें मौर्यकालीन माना जाता है।

3. धार्मिक जीवन –

मौर्यकालीन युग (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) में धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों की कमी नहीं थी धर्मों के मानने वाले लोग उस समय भी मौजूद थे। इस समय मुख्य हिंदू सनातन धर्म और बौद्ध धर्म का वजूद मिलता है। सम्राट अशोक ने स्वयं बौद्ध धर्म को अपनाया था और यही वजह रही कि भारत में इस धर्म का बहुत ही तेजी के साथ प्रसार हुआ। साथ ही भारत के आसपास के देशों में भी यह फैल गया।

बौद्ध धर्म की तृतीय बौद्ध संगति पाटलिपुत्र में हुई थी, उस समय सम्राट अशोक का राज था। भगवान महावीर स्वामी के मानने वाले लोग भी इस समय मौजूद थे।

4. कला एवं संस्कृति –

कला एवं संस्कृति की बात की जाए तो सम्राट अशोक के समय उसके द्वारा निर्मित किए गए स्तंभों को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय उनकी कला कितनी उत्कृष्ट थी।

कलात्मक दृष्टि से चार भागों में विभक्त दंड, शिखर, फलक और पशु प्रतिमा वाले यह स्तंभ लगभग 40 की संख्या में थे, जिनमें मुख्य सारनाथ का स्तंभ, रामपुरवा का स्तंभ, लोरिया नंदन स्तंभ और संकिसा का स्तंभ है। चीनी यात्री एवं इतिहासकार फाह्यान ने भी सम्राट अशोक के राजप्रसाद का उल्लेख किया है।

5. शिक्षा –

मौर्यकालीन युग (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) में ही कौटिल्य ने अर्थशास्त्र की रचना की थी। उस समय तक्षशिला शिक्षा का मुख्य केंद्र था और यही वजह रही कि सिर्फ हिंदू सनातन ही नहीं बल्कि बौद्ध और जैन ग्रंथों की भी रचना किस युग में हुई थी।

तृतीय बौद्ध संगीति, अभिधम्मपिटक के कथावस्तु की रचना और त्रिपटकों का संगठन आदि बौद्ध धर्म से संबंधित मौर्यकालीन शिक्षा के प्रमाण हैं। आचारांग सूत्र, भगवती सूत्र, समवाय सूत्र और उपासक दशांग जैसे जैन धर्म के ग्रंथ इसी युग में लिखें गए थे।

कुल मिलाकर कहा जाए तो मौर्यकालिन युग को शिक्षा के क्षेत्र में उन्नत और प्रगतिशील कहा जा सकता है, इस युग में लिखे गए ग्रंथ आज भी सर्वव्यापी है।

यह भी पढ़ें बाजीराव मस्तानी:- अजब प्रेम की गजब कहानी

मौर्य साम्राज्य या मौर्य राजवंश (Maurya samrajya or maurya Rajvansh) के मुख्य राजा / सम्राट निम्नलिखित हैं –

(1) चन्द्रगुप्त मौर्य ( 323 ई.पू. से 298 ई.पू.).

(2) बिन्दुसार ( 298 ई.पू. से 272 ई.पू.).

(3) सम्राट अशोक महान ( 269 ई.पू. से 232 ई.पू.).

(4) कुणाल ( 232 ई.पू. से 228 ई.पू.).

(5) दशरथ ( 228 ई.पू. से 224 ई.पू.).

(6) सम्प्रति ( 224 ई.पू. से 215 ई.पू.).

(7) शालिसुक ( 215 ई.पू. से 202 ई.पू.).

(8) देववर्मन ( 202 ई.पू. से 195 ई.पू.).

(9) शतधन्वन ( 195 ई.पू. से 187 ई.पू.).

(10) बृहद्रथ ( 187 ई.पू. से 185 ई.पू. मौर्य राजवंश के अंतिम राजा )

अगर आप मराठा साम्राज्य के महान राजा छत्रपति शिवाजी महाराज और पेशवा बाजीराव के बारे में पढ़ना चाहते हैं तो लिंक पर क्लिक करें।