महर्षि दयानंद सरस्वती का इतिहास. (Maharshi Dayanand Saraswati history in Hindi).

आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का इतिहास (Maharshi Dayanand Saraswati history in Hindi) एक महान देशभक्त और सच्चे मार्गदर्शक के रुप में रहा है, जिन्होंने अपने विचारों से हमारे समाज को नई सोच और दिशा प्रदान की हैं. “वेदों की ओर लौटो” यह नारा भी इन्होंने ही दिया था. इसके अतिरिक्त महर्षि दयानंद सरस्वती के योगदान की बात की जाए तो इन्हें भारत के महान समाज सुधारक और महान चिंतक के रूप में याद किया जाता है.

महर्षि दयानंद सरस्वती (Maharshi Dayanand Saraswati) ने वेदों और उपनिषदों का गहन अध्ययन किया और अपने इस ज्ञान के बलबूते ना सिर्फ भारत बल्कि संपूर्ण विश्व के लोगों को लाभान्वित किया. महर्षि दयानंद सरस्वती का इतिहास उठा कर देखा जाए तो इन्होंने मूर्ति पूजा को व्यर्थ बताया तथा निराकार ओंकार में भगवान का अस्तित्व बताया इनके अनुसार वैदिक धर्म सर्वश्रेष्ठ था. सर्वप्रथम स्वराज्य का नारा महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने दिया था जिसे बाद में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी ने आगे बढ़ाया था।

इन्होंने सर्व हिंदू समाज को यह संदेश दिया की स्वयं को सनातन धर्म का समर्थक और सनातन धर्म को मानने वाले बताएं. साथ ही अपने धर्म का नाम भी सनातन धर्म है स्वामी दयानंद सरस्वती जी हिंदू शब्द को विदेशियों की देन मानते थे.

इस लेख में हम पढ़ेंगे कि स्वामी दयानंद सरस्वती का इतिहास, स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय, स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु कब, कहां और कैसे हुई थी? स्वामी दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार क्या थे? साथ ही स्वामी दयानंद सरस्वती के सामाजिक विचारों को जानेंगे.

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महर्षि दयानंद सरस्वती का इतिहास और जीवन परिचय (Maharshi Dayanand Saraswati history in Hindi).

Maharshi Dayanand Saraswati history in Hindi.
Maharshi Dayanand Saraswati history in Hindi
बचपन का नाम- मूल शंकर तिवारी.
दयानंद सरस्वती का जन्म दिवस- 12 फ़रवरी 1824.
दयानंद सरस्वती जयंती- कृष्ण पक्ष की दशमी (फाल्गुन मास).
दयानंद सरस्वती का जन्म स्थान- टंकारा, मोरबी (गुजरात).
दयानंद सरस्वती की मृत्यु- 30 अक्टूबर 1883.
मृत्यु स्थान- अजमेर (राजस्थान).
दयानंद सरस्वती की माता का नाम- अमृत बाई.
दयानंद सरस्वती के पिता का नाम- अंबा शंकर तिवारी.
दयानंद सरस्वती के गुरु- विरजा नंद जी महाराज.
शिक्षा का क्षेत्र- वैदिक.
मुख्य कार्य -समाज सुधारक.

अब हम दयानंद सरस्वती के जीवन परिचय (Maharshi Dayanand Saraswati biography) की शुरुआत करते हैं. इनका जन्म एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था जो भक्ति और पूजा पाठ में विश्वास रखते थे. इनके पिता अंग्रेजी शासन के दौरान टैक्स संग्रहण का कार्य करते थे, यही वजह थी कि यह समृद्ध थे. जब दयानंद सरस्वती 5 वर्ष के हो गए तब उन्हें विद्यालय में पढ़ने के लिए भेजा गया. प्रारंभ से ही इनकी रूचि वेद और शास्त्रों में रही, इसी को ध्यान में रखते हुए और ब्राह्मण धर्म के अनुसार कार्य करने के लिए इन्होंने वेद, संस्कृत, शास्त्रों और कई धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन किया. 8 वर्ष की आयु में यज्ञोपवित संस्कार के बाद इनकी शिक्षा शुरू हुई.

उस समय हमारे देश में जो कुरीतियां, अंधविश्वास और लोगों की पुरानी सोच थी उनके यह गौर विरोधी रहे. यहीं से इन्होंने संकल्प लिया था की अपना जीवन लोगों की सेवा में समर्पित करेंगे. स्वामी दयानंद सरस्वती (Maharshi Dayanand Saraswati) के अनुसार कर्म और कर्म के फल ही जीवन का मूल सिद्धांत है. इन्होंने अपने विचारों से संपूर्ण समाज में एक क्रांति ला दी. कहते हैं कि सभी के जीवन में एक मोड़ जरूर आता है, जहां से उसका पूरा जीवन बदल जाता है. स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन में भी एक ऐसी घटना घटित हुई जिसकी वजह से उनका पूरा जीवन बदल गया(उस घटना का जिक्र हम आगे करेंगे).

इस घटना की वजह से सन 1846 ईस्वी में मात्र 21 वर्ष की आयु में उन्होंने गृह त्याग कर दिया और सन्यासी बन गए. जीवन का सत्य जानने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती अपनी राह पर चल पड़े, इन्हें सांसारिक जीवन मोह माया से भरा हुआ और व्यर्थ लगने लगा. जब इनके विवाह की बात चली तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया और बताया कि विवाह इनके लिए नहीं है. कई समय तक स्वामी दयानंद सरस्वती और इनके पिता के विचार आपस में लड़ते रहे लेकिन अंततः जीत दयानंद सरस्वती की हुई.

अंग्रेजो के खिलाफ इनका रवैया बहुत सख्त था, इन्होंने ना सिर्फ अपने जीवन को सामाजिक कल्याण हेतु समर्पित किया बल्कि 1857 की क्रांति में भी इनका योगदान महत्वपूर्ण रहा जिसका जिक्र हम आगे करेंगे.

स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन को बदलने वाली घटना (Life changing event of Maharshi Dayanand Saraswati)

हर किसी के जीवन में कुछ न कुछ ऐसा घटित होता है जिसकी वजह से पूरा जीवन बदल जाता हैं. Maharshi Dayanand Saraswati के जीवन में भी एक ऐसी घटना हुई जिसके चलते उनका पूरा जीवन ही परिवर्तित हो गया. अब हम बात करते हैं दयानंद सरस्वती के जीवन को बदलने वाली घटना के बारे में.

महाशिवरात्रि का दिन था, अपने माता पिता के साथ स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने भी व्रत रखा और रात भर जागते रहे. देखते ही देखते वहां पर मौजूद ज्यादातर लोग सो गए लेकिन दयानंद सरस्वती और उनके परिवार वाले जागते रहे. उस समय एक छोटी सी घटना घटित हुई जिसने उनको सोचने पर मजबूर कर दिया. उनका मूर्ति पूजा से विश्वास उठ गया.दरअसल हुआ यह कि शिवजी के भोग लगे हुए प्रसाद (मिठाई और फल) को चूहे खा रहे थे साथ ही शिवलिंग पर उछल कूद कर रहे थे. यह देखकर दयानंद सरस्वती जी ने सोचा कि भगवान अपने भोग की रक्षा नहीं कर सकते तो हमारी क्या रक्षा करेंगे?

इसी विचार के साथ वो वहां से उठकर घर चले गए. इस बात को लेकर उनका अपने पिता अंबा शंकर तिवारी जी से झगड़ा भी हुआ, उन्होंने अपने पिता को तर्क दिया कि यदि भगवान अपने चढ़ाए हुए प्रसाद की रक्षा नहीं कर सकते तो मानवता की रक्षा की उम्मीद करना व्यर्थ है. इस घटना की वजह से उनका मूर्ति पूजा से मोह भंग हो गया. इस घटना को ज्यादा समय नहीं हुआ था कि हैजे जैसी घातक बीमारी के चलते उनके काका (Uncle) और छोटी बहन की मृत्यु हो गई. इस घटना ने उन्हें अन्दर तक हिला कर रख दिया.

जीवन-मृत्यु को लेकर महर्षि दयानंद सरस्वती जी के मन में हजारों प्रश्न उठे लेकिन कहीं से भी उनको संतुष्टिपूर्ण जवाब नहीं मिला. कई दिनों तक मृत्यु और जन्म का सत्य जानने कि कोशिश करते रहें लेकिन सफलता नहीं मिली. अब स्वामी दयानंद सरस्वती जी की लड़ाई खुद से हो रही थी.

जब लगातार उनकी उलझनें बढ़ती रही तो उन्होंने सत्य की खोज करने हेतु सन्यासी जीवन का चयन किया. सन 1846 ईस्वी में सत्य की खोज में वो घर छोड़कर चले गए. सत्य की खोज पर निकलते समय स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने निश्चय किया कि वो हिंदू समाज (सनातन धर्म) में बदलाव लाकर रहेंगे. स्वामीजी आदर्शवादी, सहज भाव, राष्ट्र भक्त और आशावादी सोच के धनी थे.

स्वामी/महर्षि दयानंद सरस्वती का अपने गुरु से मिलन और शिक्षा (Meeting and teaching of Swami/Maharishi Dayanand Saraswati with his Guru)

सब कुछ छोड़ छाड़ के सत्य की खोज में निकले स्वामी दयानंद सरस्वती जी की मुलाकात “गुरु विरजानंद जी महाराज” से हुई. इनके सानिध्य में ही उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी. गुरु विरजानंद जी महाराज को दंडी स्वामी के नाम से भी जाना जाता हैं क्योंकि ये बहुत ही कठोर स्वभाव के थे इसलिए ज्यादातर विद्यार्थी पूर्ण शिक्षा ग्रहण किए ही वापस लौट जाते थे.

महर्षि दयानंद सरस्वती जी को भी कई बार दंड मिला लेकिन उन्होंने पूर्ण निश्चय कर रखा था कि वह शिक्षा पूर्ण करने के बाद ही आश्रम से लौटेंगे उससे पहले नहीं. 1 दिन की बात है गुरु विरजानंद जी महाराज बहुत गुस्से में थे, उन्होंने दयानंद सरस्वती की पिटाई कर दी और उन्हें भला बुरा कहते हुए आश्रम छोड़कर जाने को कहा मगर वो टस से मस नहीं हुए.

स्वामीजी किसी भी परिस्थिति में पूर्ण शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। उस आश्रम में नयनसुख नाम का उनका एक मित्र भी था, साथ ही गुरुजी नयनसूख को पसंद करते थे. स्वामी दयानंद सरस्वती जी गुरुजी के पास गए और उनसे क्षमा मांगी साथ ही पूछा आपके हाथों पर कहीं चोट तो नहीं लगी? यह दृश्य देख नयनसुख की आंखें भर आई. नयनसुख ने गुरुजी से कहा कि दयानंद सरस्वती बहुत दयालु और आपका सच्चा सेवक हैं, फिर आपने उसको दंड क्यों दिया?

इस कथन से गुरुजी को दया आ गई. दुसरे दिन दयानंद सरस्वती जी (Maharshi Dayanand Saraswati) नयनसुख के पास गए और उनसे कहा कि आपको मेरी सिफारिस नहीं करनी चाहिए थी, क्योंकी गुरु जी के दंड और क्रोध में अपना ही हित होता है. यह सुनकर नयनसुख निःशब्द था.

आगे चलकर दयानंद सरस्वती “महर्षि दयानंद सरस्वती” (Maharshi Dayanand Saraswati) जी कहलाए. महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने यहीं से पाणिनि व्याकरण, पतंजलि योगसुत्र और वेद सीखें. गुरु दक्षिणा में गुरु जी ने कहा कि वेद ही प्रमाण हैं, इस कसौटी पर अडिग रहना. साथ ही उन्होंने बताया कि मनुष्य द्वार रचित ग्रन्थ भ्रम पैदा करने वाले हैं, उनसे दूर रहना.

ज्ञान प्राप्ति के बाद आगे की यात्रा (Onward journey after attaining enlightenment)

महर्षि दयानंद सरस्वती को ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद विभिन्न धर्म स्थानों पर यात्रा के लिए निकल पड़े, इस दौरान भारत के कई स्थानों पर भ्रमण किया. इसी यात्रा के दौरान वह हरिद्वार में कुंभ मेले में पहुंचे जहां पर “पाखंड खंडिनी पताका” का परचम फहराया.

स्वामी दयानंद सरस्वती (Maharshi Dayanand Saraswati) जब कोलकाता यात्रा के दौरान देवेंद्र नाथ ठाकुर तथा केशव चंद्र सेन से मिले तो उन्होंने वहां हिंदी सीखी और पूरे वस्त्र धारण किए.
कोलकाता यात्रा के दौरान ही स्वामी जी ने यहां के वायसराय को कहा कि विदेशियों का राज्य सुखदायक नहीं है. साथ ही भिन्न भाषा, शिक्षा और व्यवहार सब बेकार है.

आर्य समाज की स्थापना (Arya Samaj was founded by Swami Dayanand Saraswati)

स्वामी दयानंद सरस्वती (Maharshi Dayanand Saraswati) ने आर्य समाज की स्थापना की थी. आर्य समाज की स्थापना के साथ ही स्वामी जी ने समाज को नई दिशा प्रदान करने की कोशिश की और कई नए नियम बनाए. गुड़ी पड़वा के दिन मुंबई में स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने 10 अप्रैल 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी. साथ ही एक नारा दिया “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” जिसका अर्थ हैं समस्त संसार को आर्य बनाते चलों.

आर्य समाज की स्थापना के उद्देश्य या आर्य समाज के कार्य (Objectives of Establishment of Arya Samaj or Functions of Arya Samaj)

कोई भी कार्य हो बिना किसी उद्देश्य के नहीं होता है, स्वामी दयानंद सरस्वती बहुत बड़े व्यक्तित्व थे, जब उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की तो इसके पीछे उनकी समानता और भेदभाव मिटाने की सोच रही. आर्य समाज का अर्थ भद्र जनों के समाज से है, आर्य समाज की राजधानी पहले लाहौर में थी लेकिन विभाजन के बाद आर्य समाज की राजधानी दिल्ली है.

आर्य समाज की स्थापना के उद्देश्य निम्नलिखित हैं (The following are the objectives of the establishment of Arya Samaj)-

(1) आर्य समाज की स्थापना का प्रथम उद्देश्य है हिंदू अथवा सनातन धर्म में सुधार करना.

(2) वैदिक धर्म की स्थापना करना और जाति प्रथा को समाप्त करते हुए संपूर्ण समाज को एकजुट करना आर्य समाज का दूसरा मुख्य उद्देश्य/कार्य रहा है.

(3) आर्य समाज कभी भी हिंदू धर्म के खिलाफ नहीं रहा है बल्कि आर्य समाज के अनुसार पशु बलि, श्राद्ध, मूर्ति पूजा और जाति प्रथा बंद होनी चाहिए.

(4) आर्य समाज एकेश्वरवाद को बढ़ावा देता है तथा पौराणिक मान्यताओं के खिलाफ है.

(5) आर्य समाज की मान्यता के अनुसार ईश्वर एक है जिसे ब्रह्म कहा जाता है और सभी आर्य समाज के लोगों को ब्रह्म की ही पूजा करनी चाहिए.

(6) जो लोग सनातन धर्म छोड़ चुके हैं और अन्य धर्मों को अपना लिया है उन्हें पुनः सनातन धर्म से जोड़ना भी आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य/कार्य है.

उपरोक्त 6 बिंदुओं को पढ़ने के पश्चात आप “आर्य समाज के कार्य” के प्रणाली के बारे में समझ गए होंगे.

स्वामी दयानंद सरस्वती के राजनीतिक विचार (Political Thoughts of Swami/maharshi Dayanand Saraswati)

स्वामी दयानंद सरस्वती ने कई क्षेत्रों में अपना अमूल्य योगदान दिया जिनमें राजनीति भी एक है. स्वामी दयानंद सरस्वती के राजनीतिक विचार निम्नलिखित है –

(1) स्वराज्य और स्वशासन की आवाज सर्वप्रथम स्वामी दयानंद सरस्वती जी द्वारा उठाई गई थी. जब बड़े-बड़े नेता अंग्रेजी शासन के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं रखते थे तब स्वामी जी ने उनके खिलाफ आवाज उठाई. साथ ही इन्होंने कहा कि विदेशी शासक चाहे कितनी भी निष्पक्ष हो लेकिन हमारे लोगों को कभी पूर्ण रूप से प्रसन्न नहीं कर सकते हैं.

(2) स्वामी दयानंद सरस्वती की विचारधारा राष्ट्रवादी थी वह राष्ट्र और समाज को प्रथम मानते थे. स्वामी जी ने भारत के लोगों में वैदिक संस्कृति घोली और यहां के लोगों से आह्वान किया कि अपने देश पर गर्व करो, भारत को पुनः उन्नति की ओर बढ़ाओ, इन नारों से आम जनता में विदेशी शासन के प्रति आक्रोश पैदा हुआ और इसी आक्रोश की वजह से स्वतंत्रता की ललक लोगों में जागी.

(3) ईसाई मशीनरी बढ़ता हुआ प्रभाव देखकर स्वामी जी ने कहा कि हमारा धर्म ही समस्त विपत्तियों से हमारी रक्षा कर सकता है, इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कार्य किए जिससे हिंदू समाज एकजुट हुआ.

(4) स्वामी दयानंद सरस्वती स्वदेशी वस्तुओं के कट्टर समर्थक थे, उन्होंने ना सिर्फ देसी वस्तुओं बल्कि स्वदेशी भाषाओं को भी अपनाने का संदेश दिया था. आगे चलकर महात्मा गांधी ने भी इन विचारों का अनुसरण किया. इसके बाद ही भारत के लोगों ने विदेशी वस्त्रों और वस्तुओं का बहिष्कार करना शुरू कर दिया तथा भारत में बनें खादी के कपड़े पहनने पर जोर दिया.

(5) स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में उन्होंने लोकतंत्र निर्माण, शासन, न्याय प्रणाली स्वरूप आदि धारणाओं का उल्लेख किया है जो धारणाएं भारत में लागू करना चाहते थे, इस बात से यह सिद्ध होता है कि वह लोकतंत्र के बड़े समर्थक थे.

(6) गुजरात में जन्मे स्वामी दयानंद सरस्वती को गुजराती बहुत प्रिय भाषा थी लेकिन उनके लिए जब संपूर्ण राष्ट्र एक हो गया तो उन्होंने हिंदी भाषा को विशेष महत्व दिया और समस्त भारत में यह संदेश पहुंचाया कि हमें अपनी मातृभाषा से प्रेम करना चाहिए.

उपरोक्त 6 स्वामी दयानंद सरस्वती (Maharshi Dayanand Saraswati) के राजनीतिक विचार थे.

दयानंद सरस्वती द्धारा रचित ग्रन्थ (The book composed by Dayanand Saraswati)-

अपनी शिक्षा पूरी होने के पश्चात् स्वामी दयानंद सरस्वती जी (Maharshi Dayanand Saraswati) ने कई ग्रंथों की रचना की थी. स्वामी दयानंद सरस्वती द्धारा रचित ग्रन्थ निम्नलिखित हैं –

1 सत्यार्थ प्रकाश.

2 ऋग्वेदादीभाष्यभूमिका.

3 ऋग्वेद भाष्य.

4 यजुर्वेद भाष्य.

5 चतुर्वेद विषय सूची.

6 संस्कार विधि.

7 पंच महायज्ञ विधि.

8 आर्यभिविनय.

9 गोकरुणानिधि.

10 आर्योंद्देश्यरत्नमाला.

11 भ्रांतिनीवारण.

12 अष्टाध्यायीभाष्य.

13 वेदांगप्रकाश.

14 संस्कृत वाक्य प्रबोध.

15 व्यवहार भानु.

16 स्वीकार पत्र.

स्वामी दयानंद सरस्वती का शिक्षा में योगदान (Contribution of Swami Dayanand Saraswati in education)-

स्वामी दयानंद सरस्वती का शिक्षा में योगदान अभूतपूर्व माना जाता है. स्वामी दयानंद सरस्वती (Maharshi Dayanand Saraswati) मानते थे कि हिंदू धर्म में अज्ञानता की वजह से कई विकृतियां उत्पन्न हुई हैं, धार्मिक मान्यताओं को खंडित किया गया है और निश्चित तौर पर उनमें तोड़ मरोड़ हुई है इसी वजह से सनातन धर्म में मिलावट देखी गई.

शिक्षा की वजह से उत्पन्न हुई कमजोरियों और भ्रांतियों को दूर करने के लिए महर्षि/स्वामी दयानंद सरस्वती (Maharshi Dayanand Saraswati) ने शिक्षा के क्षेत्र में विशेष कार्य किया था. दयानंद सरस्वती का शिक्षा में योगदान निम्नलिखित है –

(1) इन्होंने वेदों की पढ़ाई पर विशेष जोर दिया ताकि सनातन धर्म को ज्यों का त्यों प्रत्येक सनातनी तक पहुंचाया जा सके.

(2) वेदों के प्रचार एवं प्रसार के लिए उन्होंने कई वैदिक गुरुकुल की स्थापना की.

(3) जाति प्रथा और भेदभाव मिटाने के लिए विशेष प्रयास किए साथ ही हर वर्ग को शिक्षा से जोड़ने का काम किया.

(4) स्वामीजी के अनुसार शिक्षा से मानव को धार्मिकता, संस्कृति, आत्मनियंत्रण और नैतिक मुल्यों की प्राप्ति में मदद मिलती हैं, इसके लिए उन्होंने कई प्रयास किए.

(5) स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुसार शिक्षा ऐसी हो जिससे धार्मिक भावना के साथ साथ लोगों की राष्ट्रीय भावना भी जागृत हो ताकि सनातन संस्कृति के वैभव को आगे बढ़ाया जा सके, यह भी स्वामी दयानंद सरस्वती का शिक्षा में योगदान का मुख्य केंद्र बिंदु रहा.

स्वामी दयानंद सरस्वती के विचार -(Maharshi Dayanand Saraswati)

स्वामी दयानंद सरस्वती ने विभिन्न क्षेत्रों में अपने विचार व्यक्त किए जिनमें से मुख्य निम्नलिखित है-

1 धार्मिक विचार.
(2) सामाजिक विचार.
(3) राजनीतिक विचार.
(4) अनमोल विचार.
(5) शिक्षा संबंधी विचार.

स्वामी दयानंद सरस्वती का 1857 की क्रांति में योगदान (Contribution of Swami Dayanand Saraswati in the Revolution of 1857)

महर्षि दयानंद सरस्वती (Maharshi Dayanand Saraswati) ने 1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस क्रांति में इनके साथ नानासाहेब, तात्या टोपे, बाला साहेब और बाबू कंवर आदि शामिल थे. अंग्रेजी शासन के खिलाफ उस समय जन आक्रोश साफ तौर पर देखा जा सकता था. स्वामी दयानंद सरस्वती ने पाया कि अगर सही तरीके से देश वासियों को दिशा निर्देश दिए जाए तो निश्चित तौर पर देश में अंग्रेजी शासन के खिलाफ क्रांति लाई जा सकती हैं.

इस क्रांतिकारी कार्य को करने के लिए एक विशेष योजना के तहत काम करना शुरू किया. इस कड़ी में धर्म से जुड़े संतों से सम्पर्क साधा ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ा जा सके. सन 1857 में पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ़ विद्रोह की आवाज उठी लेकिन इस विद्रोह को अंग्रेजी शासन द्वारा दबा दिया गया. इस क्रान्ति की विफलता की मुख्य वजह थी जन जाग्रति की कमी.

स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने लोगों ने जोश और जुनून भरने का काम किया. उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता के लिए कई सालों तक लड़ाई लड़नी पड़ेगी. देश आजाद होकर रहेगा, यह क्रान्ति अब रुकने वाली नहीं है. स्वामी जी का हौंसला देखकर लोगों में एक आग सी दौड़ गई.
इस तरह स्वामी दयानंद सरस्वती जी का प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से योगदान रहा.

स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती (Swami Dayanand Saraswati jayanti)

स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती प्रतिवर्ष कृष्ण पक्ष की दशमी (फाल्गुन मास) को मनाई जाती हैं. हालांकि इनका जन्म 12 फ़रवरी 1824 को हुआ लेकीन हिंदु पञ्चांग के अनुसार ही हर वर्ष स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती मनाई जाती हैं. Swami Dayanand Saraswati jayanti 2022 में 26 फ़रवरी को मनाई जाएगी.

स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु कैसे हुई थी.How did Swami Dayanand Saraswati die?

स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु 30 अक्टूबर 1883 ईस्वी को दीपावली के दिन हुई थी. स्वामी दयानंद सरस्वती के सुविचार और कार्यों को लेकर अक्सर लोगों के बीच में चर्चाएं होती रहती है लेकिन बहुत कम ही लोग जानते हैं कि आखिर स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु कैसे हुई थी.

एक बार की बात है जोधपुर के महाराजा यशवंत सिंह ने स्वामी दयानंद सरस्वती को अपने राज्य में आमंत्रित किया. इस आमंत्रण को स्वीकार करते हुए स्वामी जी जोधपुर दरबार में पहुंचे. 1 दिन की बात है जब स्वामी जी जोधपुर दरबार में मौजूद थे तभी उनके पास एक वेश्या नन्हीं जान आकर खड़ी हो गई.

यह देख कर स्वामी दयानंद सरस्वती को बुरा लगा और उन्होंने उसका विरोध किया, उसके विरोध और आलोचना की वजह से उसे लज्जित होना पड़ा और वह मन ही मन स्वामी जी से बदला लेने के लिए ठान कर वहां से चली गई.

चाहे कोई भी कितना भी अच्छा हो उसके दुश्मन जरूर होते हैं, स्वामी जी के भी कई विरोधी और दुश्मन थे जो नन्हीं जान के साथ मिल गए और उन सब ने मिलकर स्वामी दयानंद सरस्वती के रसोइए जगन्नाथ को अपनी बातों में खुल जा लिया.

1 दिन की बात है दुश्मनों की बातों में आकर जगन्नाथ ने स्वामी दयानंद सरस्वती के दूध में जहर (कांच पीसकर डाला) मिला दिया, जैसे ही स्वामी जी ने वह दूध पिया कुछ ही समय बाद उनकी सेहत बिगड़ गई और अमावस्या की रात दीपावली के दिन स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु हो गई. इस तरह एक महान समाजसेवी स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु एक वेश्या की नाराजगी की वजह से हुई थी.

1. आर्य समाज के अलावा और किन संगठनों की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने की थी?
उत्तर- सिंगापुर आर्य समाज.
2. दयानंद की मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर- एक वेश्या द्वारा विष दिए जाने से.
3. स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर- 30 अक्टूबर 1883 (दीपावली के दिन).
4. स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म कब हुआ?
उत्तर- 12 फरवरी 1824 (टंकारा, मोरबी, गुजरात).
5. स्वामी दयानंद का घातक कौन था?
उत्तर- एक यात्री जिसने उन्हें गंगा किनारे जहर दिया था.
6. बीमार अवस्था में दयानंद जी को जोधपुर से कहां ले जाया गया?
उत्तर- बीमार अवस्था में दयानंद जी बहुत जोधपुर से अजमेर ले जाया गया जहां पर उन्होंने अंतिम सांस ली.
7. स्वामी दयानंद का परिवार किसका उपासक था?
उत्तर- स्वामी दयानंद का परिवार भगवान शिव का उपासक था.
8. स्वामी दयानंद सरस्वती को विष किसने दिया था?
उत्तर- नन्हींजान नामक वेश्या.
9. स्वामी दयानंद से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर- प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म के प्रति दृढ़ होना चाहिए साथ ही राष्ट्रप्रेम सर्वोपरि है.
10. आर्य समाज की स्थापना कब और कहां की गई थी?
उत्तर- 10 अप्रैल 1875, गिरगाँव (मुंबई, महाराष्ट्र).
11. स्वामी दयानंद सरस्वती ने "हठयोग प्रदीपिका" पुस्तक को कहां बहा दिया था?
उत्तर- स्वामी जी ने हठयोग प्रदीपिका पुस्तक को गंगा में बहा दिया था.
12. स्वामी दयानंद सरस्वती के बाल्यकाल का नाम क्या था?
उत्तर- स्वामी दयानंद सरस्वती का बाल्यकाल का नाम मूलशंकर था.
13. विरजानंद जी नेत्रहीन कैसे हो गए थे?
उत्तर- चेचक रोग के कारण.
14. स्वामी दयानंद सरस्वती की माता का नाम क्या था?
उत्तर- अमृत बाई.
15. स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु कहां पर हुई थी?
उत्तर- स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु अजमेर में हुई थी.

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तो दोस्तों उम्मीद करते हैं Maharshi Dayanand Saraswati के जीवन पर आधारित यह आर्टिकल आपको अच्छा लगा होगा,धन्यवाद।

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