Last updated on June 1st, 2023 at 04:07 am
नीलकंठ वर्णी की मृत्यु अर्थात् भगवान स्वामीनारायण की मृत्यु 1 जून 1831 को हुई थी। मृत्यु एक शाश्वत सत्य है, जिसने भी जन्म लिया है उसकी मृत्यु अवश्य होगी। यह विधि का विधान है, और इसे कोई नहीं बदल सकता है। नीलकंठ वर्णी अर्थात् भगवान स्वामीनारायण ने मनुष्य रुप में जन्म लिया था। इसी वजह से नीलकंठ वर्णी की मृत्यु अर्थात् भगवान स्वामीनारायण की मृत्यु निश्चित थी।
उत्तरप्रदेश के गोंडा जिले में छपिया नामक गांव में घनश्याम पांडे के रूप में जन्म लेने वाले नीलकंठ वर्णी ने मात्र 11 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया और भारत भ्रमण के लिए निकल गए।
नीलकंठ वर्णी की मृत्यु या स्वामीनारायण की मृत्यु की वजह
नीलकंठ वर्णी की मृत्यु या स्वामीनारायण की मृत्यु का समय हो गया था अर्थात अब उनके शरीर छोड़ने का समय आ गया।जिस उद्देश्य के साथ नीलकंठ वर्णी ने जन्म लिया वो सब कार्य पूर्ण हो गए।
अपनी यात्रा खत्म होने के बाद फनेनी नामक गांव में आए और स्वयं को एक असाध्य रोग से ग्रसित कर लिया जो उनकी का कारण बन सके। अपने अनुयायियों को उन्होंने आश्वासन दिया और साथ ही विश्वास बंधाया कि दिव्य पुरुष कभी धरती छोड़कर नहीं जाते है।
बस उन्हें पहचानने की जरूरत होती हैं। जब भी मानव जाति को दिव्य साधु संतों की आवश्यकता होगी हैं ये समय समय पर जन्म लेते हैं। इतना कहकर नीलकंठ वर्णी अर्थात भगवान स्वामीनारायण ने मृत्यु को गले लगाया।
नीलकंठ वर्णी की मृत्यु या स्वामीनारायण की मृत्यु कब हुई
नीलकंठ वर्णी ने 7 वर्ष 1 माह और 11 दिन में अपनी यात्रा पुरी की। इनकी यात्रा में अन्तिम गांव लॉज था। नीलकंठ वर्णी अथवा स्वामीनारायण ने अधिकतर समय रामानंद स्वामी के साथ बिताया। समय के साथ स्वामीनारायण के गुरू रामानंद जी ने देह त्याग दी।
1 जून 1830 ईस्वी में भगवान स्वामीनारायण की मृत्यु या भगवान नीलकंठ वर्णी की मृत्यु हो गई। नीलकंठ वर्णी की मृत्यु या भगवान स्वामीनारायण की मृत्यु गढ़ादा नामक गांव में हुई थी।
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