नीलकंठ वर्णी का इतिहास व कहानी, Nilkanth varni History In Hindi.

Nilkanth varni अथवा स्वामीनारायण (nilkanth varni history in hindi) का जन्म उत्तरप्रदेश में हुआ था। नीलकंठ वर्णी को स्वामीनारायण का अवतार भी माना जाता हैं. इनके जन्म के पश्चात्  ज्योतिषियों ने देखा कि इनके हाथ और पैर पर “ब्रज उर्धव रेखा” और “कमल के फ़ूल” का निशान बना हुआ हैं। इसी समय भविष्यवाणी हुई कि ये बच्चा सामान्य नहीं है , आने वाले समय में करोड़ों लोगों के जीवन परिवर्तन में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहेगा

इनके कई भक्त होंगे और उनके जीवन की दिशा और दशा तय करने में नीलकंठ वर्णी अथवा स्वामीनारायण का बड़ा योगदान रहेगा। हालाँकि भारत में महाराणा प्रताप ,छत्रपति शिवाजी महाराज और पृथ्वीराज चौहान जैसे योद्धा पैदा हुए ,मगर नीलकंठ वर्णी का इतिहास सबसे अलग हैं।

मात्र 11 वर्ष कि आयु में घर त्याग कर ये भारत भ्रमण के लिए निकल पड़े। यहीं से नीलकंठ वर्णी की कहानी या फिर नीलकंठ वर्णी की कथा या फिर नीलकंठ वर्णी का जीवन चरित्र का शुभारम्भ हुआ।

nilkanth varni history in Hindi.Nilkanth varni अथवा स्वामीनारायण (nilkanth varni history in hindi) का जन्म उत्तरप्रदेश में हुआ था। इनके जन्म के पश्चात्  ज्योतिषियों ने देखा कि इनके हाथ और पैर पर "ब्रज उर्धव रेखा" और "कमल के फ़ूल" का निशान बना हुआ हैं। इसी समय भविष्यवाणी हुई कि ये बच्चा सामान्य नहीं है , आने वाले समय में करोड़ों लोगों के जीवन परिवर्तन में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहेगा।
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नीलकंठ वर्णी कौन थे, स्वामीनारायण का इतिहास

परिचय बिंदुपरिचय
नीलकंठ वर्णी का असली नामघनश्याम पांडे जी.
अन्य नामभगवान स्वामीनारायण या सहजानंद स्वामी, वर्णीराज.
जन्म तिथि3 अप्रैल 1781.
जन्म स्थानअयोध्या के पास गोंडा ज़िले के छपिया ग्राम में, उत्तरप्रदेश.
मृत्यू तिथि1 जून 1830.
मृत्यू स्थानगढ़ादा ( Gadhada).
पिता का नामश्री हरि प्रसाद राय.
माता का नामभक्ति देवी.
मृत्यू के समय आयु49 वर्ष.
(भगवान स्वामीनारायण का जीवन परिचय)

नीलकंठ वर्णी (nilkanth varni full story) अथवा स्वामीनारायण का जन्म उत्तरप्रदेश के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। नीलकंठ वर्णी अथवा स्वामीनारायण का असली नाम घनश्याम पांडे था। इनका नामकरण इनके माता-पिता द्वारा किया गया। 5 वर्ष कि आयु से ही इनकी शिक्षा दीक्षा शुरू हो गई। 11 वर्ष कि आयु में जनेऊ धारण कर ली।

शास्त्र अध्ययन में बचपन से ही गहरी रुचि थी। मात्र 11 साल कि उम्र में कई मुख्य शास्त्रों का अध्ययन कर लिया।छोटी सी उम्र में माता पिता का साया उठ गया।

कहते हैं कि भाई से किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया और ये विरक्त हो गए। स्वामीनारायण अर्थात् घनश्याम पांडे ने घर त्याग कर भारत दर्शन के लिए निकल पड़े। यहीं से नीलकंठ वर्णी की कहानी या फिर नीलकंठ वर्णी की कथा या फिर नीलकंठ वर्णी का जीवन चरित्र का शुभारम्भ हुआ।

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नीलकंठ वर्णी की कहानी ( घर त्याग और कौशिक तांत्रिक, (Nilkanth varni story in hindi)

आषाढ़ मास की दशमी तिथि वर्ष 1792 ई. के दिन सूर्योदय घनश्याम पांडे को “नीलकंठ वर्णी” अथवा “स्वामीनारायण” बनाने के लिए हुआ। वर्षाकाल होने की वजह से सरयू नदी उफान पर थी। इस नदी के किनारे से होकर 11 वर्षीय बालक घनश्याम पांडे गुजर रहा था। वहां पर एक उन्मादी तांत्रिक जिसका नाम कौशिक था कि नज़र बालक पर पड़ी।

उसने बालक को सरयू नदी की बहती हुई तेज धारा में फेंक दिया। कौशिक तांत्रिक को लगा कि ये बालक अब ज़िंदा नहीं रह सकता हैं। इस बात से खुश होकर कौशिक तांत्रिक ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा। ख़ुशी के मारे वह एक विशाल पेड़ से टकरा गया। वृक्ष उसके ऊपर गिर गया जिससे उस तांत्रिक ने मौके पर ही प्राण त्याग दिए।

घनश्याम पांडे सरयू नदी की धारा में बहते जा रहे थे। उनके इरादों के सामने तेज़ धारा भी कुछ नहीं थी। 12 कोस की दूरी तय करने के बाद वह बालक सरयू नदी के पार पहुंचा। नदी पार करने के बाद इन्हें अद्भुद अनुभूति और ख़ुशी थी। अलौकिक बंधनों से मुक्त होकर जीवन की यात्रा पूरी करने में उन्हें आनंद आने लगा। इन्होंने अपना नाम बदल लिया, घनश्याम पांडे अब नीलकंठ वर्णी बन गए।

अपनी ही मस्ती में मदमस्त हाथी कि तरह झूमते हुए वो सरयू नदी के किनारे चल रहे थे। आषाढ़ मास की वजह से लगातार बारिश हो रही थी। घनगौर वन में रंग बिरंगे फूलों से गुज़र रहे थे और पक्षियों की मनमोहक चहचहाकट उनका स्वागत कर रही थी।

लगभग 10 से 12 किलोमीटर के बाद एक बहुत ही प्राचीन वट वृक्ष की छाया देख कर आराम करने के लिए बैठ गए और ध्यान मग्न होकर साधना करने लगे। जब उन्होंने आंखें खोली तो उनके सामने भगवान हनुमान जी खड़े थे।

यहां पर इन्होंने 5 दिनों तक रात्रि विश्राम किया।समीप एक गांव था जिसका नाम अमरपुर था। यहां के लोगों को जब इस बात की जानकारी हुई तो बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हो गए। गांव के लोगों को नीलकंठ वर्णी एक युवा साधु लगे और लोगों ने उनके सम्मान में मिठाईयां , फल और कई व्यंजन सजा दिए।

अमरपुर गांव के लोगों ने नीलकंठ वर्णी से कहा कि कुछ फल और व्यंजन आप बचा कर रख लीजिएगा, आने वाले समय में आपके काम आएगा। लेकिन नीलकंठ वर्णी ने इसका जवाब देते हुए कहा कि अगर मैं सुबह-शाम के भोजन के बारे में सोचता और भविष्य की चिंता करता तो घर का कतई त्याग नहीं कर पाता, इसलिए मेरी चिंता मत कीजिए।

अमरपुर गांव के लोग वहां से चले गए और नीलकंठ वर्णी भी अपनी आगे की यात्रा पूरी करने के लिए वहां से चल पड़े। बारिश की बूंदे, बहती हुई नदी, बहते हुए झरने, पक्षियों की मधुर आवाज ऐसे सुंदर वातावरण और विकट राह पर चलते हुए नीलकंठ वर्णी हिमालय की तरफ पड़े।

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मित्रों द्वारा खोज

घनश्याम पांडे अर्थात नीलकंठ वर्णी के दो मित्र थे एक का नाम बेणीराम जबकि दूसरे का नाम रघुनंदन था। Nilkanth varni के चले जाने से उनके मित्रों समेत समस्त गांव (छपिया ग्राम) शोकाकुल था चिंता में डूबा हुआ था और निरंतर उनकी खोज में लगे हुए थे। नीलकंठ वर्णी की कहानी यहीं से शुरू होती है।

जब बहुत खोजबीन के बाद भी Nilkanth varni अर्थात स्वामीनारायण का पता नहीं चला तब उनके बचपन के मित्र बेणीराम के दिमाग में आया कि घनश्याम कई बार गांव के कुएं में गोता लगाते थे, उन्हें वही ढूंढता हूं। बेणीराम उस कुएं के पास पहुंचे और उसके अंदर कूद गए। काफी समय बीत जाने के बाद भी जब वह कुएं से नहीं निकले तब बेनी राम के पिता मोतीराम भी कुएं में कूद गए।

दोनों को डूबते हुए देखकर नीलकंठ वर्णी वहां पर आए और दोनों को दर्शन दिए और उनको प्राण दान भी दिया। बेनीराम की तरह ही उनका एक और साथी था जिसका नाम रघुनंदन था। रघुनंदन को लगा कि मुझे भी घनश्याम की खोज करनी चाहिए। घनश्याम की खोज में वह नारायण सरोवर के तट पर गया और एक पेड़ के नीचे जाकर ध्यान करने लगा। कहते हैं कि ध्यान में हो इतने मग्न हो गए कि अपने प्राण त्याग दिए।

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तपस्वीयो का साथ

राह में आगे बढ़ते हुए नीलकंठ वर्णी ने देखा कि एक विशाल वटवृक्ष के नीचे 4-5 साधू बैठे हैं। उन्होंने नीलकंठ वर्णी से पूछा कि हे बालक तुम अभी बहुत छोटे हो और अकेले इन भयानक जंगलों में कहां जा रहे हो? नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) ने उन्हें जवाब दिया है कि मैंने घर परिवार सब त्याग दिया है जिस शरीर को तुम देख रहे हो यह सिर्फ आत्मा स्वरूप है।

जब Neelkanth varni उन्हें दिव्य पुरुष लगे तो वह सभी साधु नीलकंठ वर्णी के साथ चल पड़े और उनकी सेवा करने का निर्णय लिया। थोड़ा दूर चलने के बाद सभी साधु और नीलकंठ वर्णी रात्रि विश्राम के लिए एक वृक्ष के नीचे रुके। घने जंगल और जंगली जानवरों की डरावनी आवाज के चलते सभी साधुओं ने निर्णय लिया कि वह वृक्ष के ऊपर जोली लटका कर सोएंगे।

जबकि नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) है उस वृक्ष के समीप जमीन पर ही लेट गए। आधी से ज्यादा रात गुजर चुकी थी जब सियार की आवाज सुनी तो सभी साथी नींद खुल गई और उन्होंने नीचे देखा कि एक सियार नीलकंठ वर्णी के समीप बैठा है , पहले तो वह सभी डर गए बाद में जब सुबह हो गई तो वह नीचे उतरे और नीलकंठ वर्णी के पैरों में नमन किया।

सुबह होते ही नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) बद्रीनाथ की तरफ बढ़ने लगे। शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन हरिद्वार पहुंचे और यहां पर पहुंच कर उन्होंने गंगा में स्नान किया। यहां पर मौजूद सैकड़ों साधु संतों को भी नीलकंठ वर्णी का सानिध्य प्राप्त हुआ और साधु-संतों का इन्होंने कल्याण भी किया इतना ही नहीं यहां पर ब्राह्मण पति पत्नी के जोड़े के रूप में भगवान शिव और माता पार्वती भी नीलकंठ वर्णी के साथ रहे। और नीलकंठ वर्णी की सेवा में कोई कमी नहीं रखी।

यहीं पर भगवान राम और लक्ष्मण का मंदिर मौजूद था। नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) लक्ष्मण जी के मंदिर में गए और उन्हें प्रणाम किया। यह देख कर लक्ष्मण जी वहां पर साक्षात प्रकट हुए और नीलकंठ वर्णी के पैरों में गिर गए, यह देखकर नीलकंठ वर्णी ने भगवान श्री राम का रूप लेकर लक्ष्मण जी को दर्शन दिए।

कहते हैं कि माता गंगा ने भी स्त्री का रूप धारण करके उपहार स्वरूप कई फल और मिठाइयां नीलकंठ वर्णी (swaminarayan) को समर्पित किए थे। लक्ष्मण जी को लगा कि नीलकंठ वर्णी अर्थात भगवान स्वामीनारायण प्यासे होंगे इसलिए वह दौड़ कर गए और मां गंगा से पवित्र जल लेकर आए। लक्ष्मण जी का सेवा भाव देखकर भगवान स्वामीनारायण बहुत प्रसन्न हुए और लगभग वहां पर 10 दिनों तक विश्राम किया।
यहां से निकलने के बाद घनश्याम पांडे, भगवान स्वामीनारायण ,नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni), सहजानंद जी स्वामी  कुछ भी कह लो अलकनंदा नदी के समीप पहुंचे।

यह वही स्थान था जहां पर भगवान श्री कृष्ण की याद में उद्धव जी ने वियोग किया था। नारद जी द्वारा बताए गए श्रीपुर नामक शहर में रुके। वाराणसी में काशी विश्वनाथ के दर्शन करके आगे बढ़ गए।इसके बाद उन्होंने केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के भी दर्शन किए।

नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) की मानसरोवर यात्रा

मानसरोवर और बद्रीनाथ धाम के दर्शन करने के लिए नीलकंठ वर्णी (swaminarayan) पहाड़ की ऊंचाई और बर्फ़ की चिंता किए बिना बर्फीले पहाड़ पर मदमस्त होकर चढ़ने लगे। नीलकंठ वर्णी बद्रीनाथ पहुंच गए और वहां पर दर्शन किए साथ ही दीपावली तक यहीं पर रूके। यहां पर पंजाब प्रांत के राजा रणजीत सिंह अभी दर्शन करने आए थे. भगवान भोलेनाथ के दर्शन के पश्चात उन्होंने एक बाल योगी को देखा और उनकी दिव्यता देखकर बहुत ही प्रभावित हुए।

रणजीत सिंह नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) के पैरों में गिर गए और हमेशा साथ रहने के लिए आज्ञा मांगी लेकिन नीलकंठ वर्णी ने कहा कि नहीं आप मेरे साथ नहीं रह सकते हैं। आपको अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए पुनः अपने राज्य में जाना होगा। तुम मेरा स्मरण करते रहना मैं कभी भी आकर तुमसे मिल लूंगा।

हरिद्वार में हर की पैड़ी पर राजा रणजीत सिंह और नीलकंठ वर्णी (swaminarayan) का मिलन हुआ। नीलकंठ वर्णी को अपने सम्मुख देखकर राजा रणजीत सिंह बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपना सब कुछ त्याग कर उनकी सेवा करने का आग्रह किया। लेकिन नीलकंठ वर्णी ने उन्हें समझाया कि तुम जनसेवा के लिए पैदा हुए हो तुम्हें अपने कर्तव्य को निभाना चाहिए। मैं हर वक्त तुम्हारे साथ हूं।

10 महीने की यात्रा के बाद पुनः अयोध्या की ओर आगमन

घनश्याम पांडे (Nilkanth varni) अर्थात “भगवान स्वामीनारायण” (swaminarayan) को गृह त्याग किए मात्र 10 महीने का समय हुआ था कि पुनः अयोध्या की ओर लौटने का मन बनाया। बांसी नामक शहर जो कि नदी के तट पर स्थित था वहां पर भगवान स्वामीनारायण अर्थात “नीलकंठ वर्णी” आकर रुक गए।नदी में नहाने जाते समय नीलकंठ वर्णी ने देखा कि मानसी शहर के दो युवक हाथ में बंदूक लिए वहां से गुजर रहे थे।

शायद वह शिकार की तलाश में थे तभी वहां पानी पीने के लिए पक्षियों का एक जोड़ा आता है और उन शिकारी की बंदूक लगने से वह तड़पने लगते हैं। तड़पते तड़पते दोनों पक्ष ही दम तोड़ देते हैं इस घटना ने “नीलकंठवर्णी” को अंदर तक ने छोड़ दिया।

वह बेचैन हो गए पूरे दिन नदी के तट पर ही बैठे रहे और अंत में बोल पड़े ऐसा शरीर किस काम का ऐसे शरीर को जलकर भस्म बन जाना चाहिए। जैसे ही उनके मुख से आग लगने की बात निकली, पूरे बांसी शहर में आग की लपटें निकलने लगी देखते ही देखते पूरा शहर धधकने लग गया। यह सब देख कर नीलकंठ वर्णी नदी के शीतल जल में डुबकी लगाने के लिए उतरे जैसे ही उन्होंने जल में डुबकी लगाई शहर की आग बुझ गई। कहते हैं कि इस घटना में वह दोनों शिकारी जलकर नष्ट हो गए जिन्होंने उन पक्षियों को मारा था।

ईला और सुशीला नामक 2 कन्याएं

यहां से निकल कर नीलकंठ वर्णी लगातार आगे बढ़ते रहे। Nilkanth varni वंशीपुर में पहुंचे।
गांव के बाहर एक पेड़ के नीचे वह ध्यान मग्न होकर बैठ गए। तभी वंशीपुर के राजा शिकार के लिए वहां से गुजर रहे थे, जैसे ही उनकी नजर बाल योगी नीलकंठ वर्णी पर पड़ी वह नीचे उतरे और उनके चरणों में जाकर बैठ गए। वह समझ गए कि शायद उनका कल्याण करने के लिए साक्षात भगवान का अवतार लिए यह बालक हमारे नगर में पहुंचा है।

राजा ने नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) से आग्रह किया कि वह उनके साथ उनके महल में चलें राजा की श्रद्धा देखकर नीलकंठ वर्णी प्रभावित हुए और राजा के साथ महलों की ओर चल पड़े। राजा के महल में उनकी खूब सेवा की गई उन्हें तरह-तरह के फल और व्यंजन परोसे गए। रानी उन्हें देख कर बहुत प्रभावित हुई वहां पर उनकी दो लड़कियां थी एक का नाम इला और दूसरी का नाम सुशीला था।

रानी ने नीलकंठ वर्णी (swaminarayan) से आग्रह किया कि वह उन दोनों लड़कियों की शादी उनके साथ करना चाहती है। इस पर नीलकंठ वर्णी ने कहा कि मैं सब कुछ त्याग कर लोगों के कल्याण के लिए निकला हूं। तुम लोगों का कल्याण भी मेरे माध्यम से ही होगा और तुम्हारे जैसी हजारों बालाओं और भक्तों का कल्याण करने के लिए मुझे निरंतर प्रगति के पथ पर चलना होगा।

इतना कहकर नीलकंठ वर्णी (swaminarayan) वहां से निकल पड़े और नेपाल के घने जंगलों (कालापर्वत) में चले गए। 1 वर्ष और 47 दिनों की यात्रा पूरी करने के बाद Nilkanth varni एक विशाल पेड़ के नीचे ध्यान मग्न होकर बैठ गए। नीलकंठ वर्णी के दर्शनातुर हनुमान जी वहां पर आकर विराजमान हो गए।

ऐसा कहते हैं कि जैसे-जैसे शाम का समय होता जा रहा था जंगली जानवरों के साथ साथ तरह-तरह के भूत-प्रेत और आत्माएं नीलकंठ वर्णी की तरफ बढ़ रही थी। तभी हनुमान जी ने विकट रूप धारण कर उन सभी का खात्मा कर दिया। नेपाल के समीप आगे चलते हुए वह हिमालय के सघन वनों में प्रवेश कर रहे थे। “धवलगिरी और श्यामगिरी” नामक दो पर्वतों के बीच में बहुत ही गहरी खाई थी। जिसको उन्होंने लांग कर पार कर लिया।

साधु मोहनदास को राह दिखाई

जंगल में दिव्य रूप धारण किए हुए तेज गति से आगे बढ़ रहे बालक नीलकंठ वर्णी को देखकर वहां पर विराजमान मोहन दास नामक एक साधु बहुत प्रभावित हुए। वह नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) को प्रणाम करके बोले कि हे दिव्य बालक तुम इतनी सी अवस्था में इस घने और डरावने जंगल में क्यों घूम रहे हो। मैं रास्ता भटक गया हूं। तभी बालक नीलकंठ वर्णी ने जवाब दिया कि मैं तुम्हारे जैसे लोगों को राह दिखाने के लिए ही निकला हूं।

बुटोलनगर में आगमन

धीरे-धीरे नीलकंठ वर्णी तिब्बत की तरफ पढ़ रहे थे तभी एक बस्ती आई जिसका नाम बुटोलनगर था। Nilkanth varni इस नगर के बाहर रुके जहां पर दूसरे दिन सुबह के समय राजा और उनकी बहन का आगमन हुआ। उन्होंने दिव्य बालक को देखते ही चरण स्पर्श किए और महल में चलने का आग्रह किया।

उस राजा का नाम महादत्त और रानी का नाम मायारानी था। दोनों को शुद्ध ज्ञान की प्राप्ति हुई और प्रातः काल के समय नीलकंठ वर्णी (swaminarayan) अपनी आगे की जीवन यात्रा के लिए निकल पड़े।

गोपाल योगी से मिलन और उपदेश

अपनी आगे की यात्रा के दौरान हिमालय के जंगलों से गुजरते हुए आगे बढ़ ही रहे थे कि नीलकंठ वर्णी के सामने एक वृद्ध बाबा साधना में लीन होकर बैठे थे।

जैसे ही नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) उनके समीप से गुजरे उन बाबा की आंखें खुल गई और उन्होंने उठकर नीलकंठ वर्णी को गले लगा दिया। और कहा कि आपने मुझे दर्शन देने में बहुत देरी कर दी है अब मैं आपको नहीं जाने दूंगा। तभी नीलकंठ वर्णी ने कहा कि आप बहुत ज्ञानवान हैं। योग गुरु है, सीखने की कोई उम्र नहीं होती आप मुझे योग सिखाइए।

योग गुरु गोपाल योगी की बहुत ही शालीनता के साथ नीलकंठ वर्णी ने सेवा की और पूरे समर्पित भाव से योग शिक्षा ग्रहण की। अंत में नीलकंठ वर्णी ने स्वामीनारायण का रूप धारण करके गोपाल योगी को दर्शन दिए और आगे की यात्रा के लिए निकल पड़े।

1796 ई. में काठमांडू कि यात्रा

जब नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) काठमांडू पहुंचे तब नेपाल में “गोरखा राजा पृथ्वी नारायण सहा” का राज था।पृथ्वीनारायण सहा के पश्चात उनके पौत्र “रण बहादुर” ने राज किया। दिव्य बालक नीलकंठ वर्णी अर्थात स्वामीनारायण काठमांडू पहुंचकर वहां पर विराजमान भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन किए और जलाभिषेक किया।

इस समय नेपाल में साधु संतों का आना लगभग बंद हो गया था, क्योंकि वहां के राजा रण बहादुर एक असाध्य रोग से ग्रसित है। वहां पर आने वाले सभी साधु और संतों से वह अपेक्षा करते थे कि उनके रोग का निराकरण किया जाए मगर साधुओं से जब उस असाध्य रोग का इलाज नहीं होता तो वह उन्हें बंदी बना लेता और कारागृह में बंद कर देता।

जब नीलकंठ वर्णी (swaminarayan) वहां पर पहुंचे तो कुछ साधु-संतों ने उन्हें यह बात बताई तो उन्होंने बताया कि यदि हम साधु संत हैं तो किसी भी तरह का भय नहीं होना चाहिए। आइए आप मेरे साथ चलिए इतना सुनकर सभी साधु और संतों के मन में आत्मविश्वास जागृत हो गया और वह नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) के साथ चल पड़े।

जब यह सूचना राजा रण बहादुर के पास पहुंची तो उन्होंने नीलकंठ वर्णी को अपने महल में बुलाया और असाध्य रोग के बारे में बताया। नीलकंठ वर्णी बहुत ही दयालु प्रवृत्ति के थे इसलिए उन्होंने उस असाध्य रोग को जड़ मूल से समाप्त कर दिया।

इस कार्य से राजा रण बहादुर बहुत ही प्रभावित हुए और खुशी के मारे नीलकंठ वर्णी से उनकी इच्छा के अनुसार कुछ भी मांगने का आग्रह कियाा। तभी नीलकंठ वर्णी ने कहा कि मुझे माया का मोह नहीं है, आपने जिन साधु और संतों को कारागृह में बंद किया है उन्हें मुक्त कर दीजिए। इतना कहते ही राजा रण बहादुर ने सभी बंदी बनाए गए साधु संतों को आजाद कर दिया।

सिरपुर के राजा सिद्धवल्लभ और ब्राह्मण का उद्धार

नेपाल से निकलकर नीलकंठ वर्णी चीन में होते हुए तिब्बत की तरफ बढ़ते हुए सिरपुर आ पहुंचे। स्वामीनारायण जहां पर भी जाते ऐसी जगह पर रुकना पसंद करते जहां पर कोई उद्यान हो या फिर प्राकृतिक सौंदर्य हो।

सिरपुर में स्थित उद्यान में स्वामीनारायण ( Nilkanth varni सहजानंद स्वामी) रुके। इस उद्यान के आसपास का क्षेत्र साधु-संतों, बाबाओं और तांत्रिकों से गिरा हुआ था।

सिरपुर के राजा सिद्धबल्लभ को जब यह बात पता चली कि राज्य के समीप स्थित उद्यान में कोई संत आए हैं, तो वह तुरंत उनसे मिलने के लिए पहुंचे। नीलकंठ वर्णी से मिलने के बाद राजा सिद्धू वल्लभ बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने नीलकंठ वर्णी से आग्रह किया कि आप हमारी महल में पधारे लेकिन नीलकंठ वर्णी ने इसके लिए मना कर दिया।

तब जाकर राजा सिद्धू वल्लभ ने एक संत गोपाल दास को उनकी सेवा चाकरी में लगाया।
दैनिक रूप से राजा भी नीलकंठ वर्णी के पास उपदेश सुनने के लिए आया करता था नीलकंठ वर्णी के प्रति राजा का असीम प्रेम और सम्मान देखकर वहां पर पहले से विराजमान तांत्रिक ईर्ष्यालु हो गए।

उन्हें लगा कि हम यहां पर काफी समय से रह रहे हैं मगर राजा ने हमें इतना सम्मान नहीं दिया जितना इस बालक नीलकंठ वर्णी को दे रहे हैं। इसी के चलते उन्होंने नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) की सेवा में तैनात गोपालदास के ऊपर काला जादू कर दिया जिससे वह मूर्छित होकर गिर गए। नीलकंठ वर्णी (swaminarayan) को सब ज्ञात था इसलिए उन्होंने गोपाल दास को पुनः सचेत अवस्था में ला दिया।

यह देखकर कई तांत्रिक नीलकंठ वर्णी के चरणों में जाकर शरण ली।उसी राज्य में तेलंगी नामक एक ब्राह्मण रहता था। तेलंगी ब्राह्मण अत्यधिक रूपवान होने के साथ-साथ कई प्रतिभाओं का धनी भी था।अपनी योग्यता और प्रतिभा के चलते तेलंगी ब्राह्मण को राजा ने कई हाथी और बड़े-बड़े उपहार भेंट किए थे।

इसी के चलते तेलंगी ब्राह्मण रूपवान से कुरूप हो गया।जब तेलगी ब्राह्मण को नीलकंठ वर्णी के बारे में पता चला तो वह दौड़े चले आए।नीलकंठ वर्णी के चरणों में बैठकर उन से विनती की कि हे भगवान आप ही मेरा उद्धार कर सकते हैं।

मुझसे जो गलती हुई है उसके लिए मैं कृतज्ञ होकर क्षमा याचना करता हूं। इतना सुनकर नीलकंठ वर्णी ने ब्राह्मण को पहले की तरह रूपवान बना दिया।

आसाम में कामाख्या देवी के दरबार में नीलकंठ वर्णी

मां कामाख्या देवी के दर्शन करने के लिए नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) आसाम पहुंचे। अपनी मधुर वाणी के दम पर नीलकंठ वर्णी को मानने वाले और उनके उपदेश सुनने वाले लोगों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ने लगी। यह देखकर वहां पर पहले से मौजूद साधु संत आश्चर्यचकित हो गए।

वहां पर “पिबैक” नाम का एक तांत्रिक रहता था। विवेक तांत्रिक बहुत बलशाली था साथ ही कई काले जादू उसने सीख रख थे। जिससे वहां पर उसका बोलबाला था और वहां के लोग उससे डरते थे।

वह आए दिन साधु-संतों को मार देता या फिर उन्हें अपने साथ शामिल कर लेता। संत समाज उनसे बहुत डरा हुआ था। 1 दिन की बात है नीलकंठ वर्णी बैठे हुए थे, वहां पर उनके उपदेश सुनने वाले लोग भी मौजूद थे और कई साधु संत जो वर्षों से वहां पर रह रहे थे वह भी मौजूद थे। तभी वहां पर घूमते हुए पिबैक तांत्रिक आ पहुंचा। पिबैक तांत्रिक के आते ही सभी साधु संत डर गए और उसकी अधीनता स्वीकार करने के लिए आतुर हो रहे थे।

इस पर नीलकंठ वर्णी (swaminarayan) ने कहा कि डरने की कोई जरूरत नहीं है। इस दुनिया में कालू जादू करने वाले चाहे कितना भी बड़ा क्यों ना हो ईश्वर के सामने वह कुछ भी नहीं है। भगवान ही सर्वे-सर्वा है’ यह तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, तुम्हें अपने मूल्यों पर अडिग रहना चाहिए। इतना सुनकर साधु-संत बोल पड़े कि है बालक नीलकंठ वर्णी आप इन्हें नहीं जानते हैं।

यह बहुत ताकतवर हैं पिबैक तांत्रिक भी उनकी बातें सुन रहा था। वह आग बबूला हो गया और अपनी शक्तियों का प्रयोग नीलकंठ वर्णी के विरुद्ध करने लगा, लेकिन उसके किसी भी जादू ने नीलकंठ वर्णी पर कोई असर नहीं डाला। इससे वह आग बबूला हो गया और अपनी विशेष साधना से भगवान हनुमान जी का आह्वान किया।

हनुमान जी आए और उन्होंने सबसे पहले नीलकंठ वर्णी को प्रणाम किया और विवेक तांत्रिक को ही मारने के लिए आगे बढ़े। भगवान हनुमान जी के वार से विवेक तांत्रिक की हालत बहुत खराब हो चुकी थी, वह समझ चुका था कि नीलकंठ वर्णी कोई सामान्य संत नहीं है। यह साक्षात स्वामीनारायण है अर्थात भगवान है वह नीलकंठ वर्णी के चरणों में आ गिरा और उनसे क्षमा याचना की।

नीलकंठ वर्णी (swaminarayan) बहुत ही उदार स्वभाव के थे इसलिए उन्होंने पिबैक तांत्रिक को माफ कर दिया और उनके सभी दर्दों का हरण कर लिया।

यहां से आगे बढ़ते हुए नीलकंठ वर्णी नवलखा पर्वत(asam chin Tibet) पहुंचे जहां पर हजारों वर्षों से कई संत भगवान की आराधना कर रहे थे।वह सामान्य संत नहीं थे इसलिए सामान्य लोग उन्हें देख भी नहीं पाते थे। नीलकंठ वर्णी के आगमन से पूर्व वहां पर आकाशवाणी हुई कि भगवान स्वामीनारायण साक्षात यहां पर पधार रहे हैं वह एक सामान्य बालक के रूप में है।

इतना सुनकर वहां पर मौजूद सभी साधु बहुत प्रसन्न हुए और उनके आगमन से पूर्व ही उनके स्वागत की तैयारियां करने लगे। जैसे ही बालक नीलकंठ वर्णी वहां पर पहुंचे उन पर फूलों की बारिश शुरू हो गई सभी नौ लाख संतो ने उनके दर्शन किए और पुण्य प्राप्त किया।

अपनी आगे की यात्रा के दौरान नीलकंठ वर्णी कपिल आश्रम पहुंचे। जहां पर वर्षों पहले कपिल मुनि तप किया करते थे। यह एक बहुत ही मनमोहक आश्रम था, जहां पर नीलकंठ वर्णी रुके और कहते हैं कि कपिल मुनि मूर्ति रूप में आकर नीलकंठ वर्णी की सेवा की थी।

जगन्नाथ पुरी की यात्रा

दिन रात एक करते हुए नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) ना कभी रुके ना कभी थके अपनी यात्रा को अविरत रूप से करते रहे। इसी दरमियान वो जगन्नाथपुरी पहुंचे।जगन्नाथपुरी में भगवान श्री कृष्ण का मंदिर है।पुरी के राजा को जब नीलकंठ वर्णी के बारे में मालूम हुआ तो वह भी दौड़ कर आए और उनको प्रणाम किया उनके उपदेश सुनने के लिए वह भी नित्य आने लगे।

वहां पर भी नागा साधुओं का तांडव था वह अपने मन मुताबिक कार्य वहां पर करते थे। धीरे-धीरे नीलकंठ वर्णी के बढ़ते प्रभाव से उन्हें घृणा होने लगी। जिससे वह नीलकंठ वर्णी को वहां से हटाना चाहते थे इसी वजह से उन्होंने नीलकंठ वर्णी से युद्ध करना चाहा लेकिन पूरी के राजा के सहयोग से वह पराजित हो गए।

स्वामीनारायण (Nilkanth varni) की मानसपुर यात्रा

सत्र धर्मा नामक राजा मानस पुर में राज करते थे यहां पर भी नीलकंठ वर्णी पहुंचे इन्हें उपदेश दिया और यहां पर व्याप्त व्याभिचार को दूर कर वह आगे बढ़ गए। जयराम दास को भी नीलकंठ वर्णी ने यहां पर अंतिम उपदेश दिए और उन्हें पुनः अपने घर लौट जाने को कहा।

नीलकंठ वर्णी वेंकटाद्री होते हुए कांचीपुरम की निकल पड़े।कांचीपुरम से भूतपुरी की ओर चल पड़े यहां पर भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती ने इन को दर्शन दिए थे। तोताद्री स्थित स्वामी रामानुजाचार्य की व्यास पीठ पहुंचे। यहां से चलते हुए कन्याकुमारी से निकलकर वह त्रिवेंद्रम पहुंचे।महाराज सुग्रीव की नगरी किष्किंधा होते हुए शबरी वन से गुजरते हुए निरंतर भारत दर्शन की अपनी यात्रा को आगे बढ़ाते हुए नीलकंठ वर्णी अनवरत अविरत चले जा रहे थे।

धीरे-धीरे नीलकंठ वर्णी सूर्यपुर (जिसका वर्तमान नाम सूरत है) पहुंचे। यहां से वह पिंपली गांव पहुंचे, कपिलेश्वर मंदिर में दर्शन करते हुए वह अंबाली और अनसूया माता के दरबार में पहुंचे।बडौदा मांडवी होते हुए वरताल से चलकर वो बोचासन पहुंच गए। जहां जहां से होकर नीलकंठ वर्णी गुजरते गए हर जगह के लोग उनकी भक्ति करने लगे उनके उपदेश को जीवन में अपनाया और सदैव सभी ने आग्रह किया कि हे नीलकंठ वर्णी आप पुनः हमारे यहां पर पधारे।

जनकल्याण हेतु जिस पथ पर नीलकंठ वर्णी (swaminarayan) चल रहे थे, सभी को मोक्ष और साक्षात भगवान का अथाह प्रेम प्राप्त हो रहा था।

लखु चारण

भारत दर्शन और कल्याण की यात्रा के दौरान नीलकंठ वर्णी अर्थात भगवान स्वामीनारायण लोढ़वा नामक गांव में पहुंचे।

लखूबाई इतनी बड़ी भगवान की भक्त थी कि, वह दूर-दूर तक की घटनाओं को अपने कमरे में बैठकर देख सकती थी। साथ ही उसे इधर उधर आने जाने के लिए किसी द्वार की जरूरत नहीं पड़ती थी।लखूबाई के गुरु का नाम आत्मानंद स्वामी था। विट्ठलआनंद और बालआनंद नामक दो ब्रह्मचारी भी उनके साथ में रहते थे।

लखूबाई के घर नीलकंठ वर्णी आ पहुंचे अपनी दिव्य दृष्टि की वजह से लखूबाई ने उन्हें पहचान लिया, साथ ही कई महीनों तक उन्हें वहां पर रोके रखा और उनकी सेवा की। प्रभासपाटन और भालका तीर्थ होते हुए नीलकंठ वर्णी जूनागढ़ पहुंचे। यहां पर नीलकंठ वर्णी ने नरसिंह मेहता को दिव्य रूप में दर्शन दिए थे।

यात्रा का अंतिम पड़ाव और मृत्यू

नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) ने 7 वर्ष एक महीना और 11 दिनों तक यात्रा की। उनकी यात्रा में अंतिम गांव लॉज था। अंततः नीलकंठ वर्णी अर्थात स्वामीनारायण ने ज्यादातर समय रामानंद स्वामी के साथ बिताया। जैसे-जैसे समय बीतता गया रामानंद स्वामी ने देह त्याग दी। अब नीलकंठ वर्णी अर्थात स्वामीनारायण के जाने का समय हो चुका था।

जिस उद्देश्य से वह धरती पर आए थे और मनुष्य रूप में जन्म लेकर भारत दर्शन के दौरान कल्याणकारी कार्य किए वह सब संपूर्ण हो चुके थे। फनेनी गांव में जाकर वो रुके, और उन्होंने स्वयं को एक असाध्य बीमारी से ग्रसित कर लिया जो कि उनके प्राण ले सके। अपने अनुयायियों और भक्तों को विश्वास बंधाते हुए नीलकंठ वर्णी (swaminarayan) ने उन्हें आश्वासन दिया कि दिव्य पुरुष धरती छोड़कर कभी नहीं जाते हैं।

बस उन्हें पहचानने की जरूरत होती है और जब-जब भी मानव जाति को कल्याणकारी साधु संतों की आवश्यकता होती हैं वह समय-समय पर जन्म लेते रहते हैं। इतना कहकर गढ़ादा नामक स्थान, पर उन्होंने 1 जून 1830 ईस्वी को वह ध्यान मग्न हो गए और अपने प्राण त्याग दिए।

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स्वामीनारायण सम्प्रदाय का इतिहास (swaminarayan sampraday history in hindi)

स्वामीनारायण सम्प्रदाय का इतिहास (swaminarayan sampraday history in hindi) बहुत पुराना हैं। इस सम्प्रदाय को पहले उद्धव संप्रदाय के नाम से जाना जाता था। स्वामीनारायण या नीलकंठ वर्णी को स्वामीनारायण संप्रदाय का जनक या संस्थापक माना जाता हैं। स्वामीनारायण संप्रदाय के प्रवर्तक नीलकंठ वर्णी या सहजानंद जी का जन्म उत्तरप्रदेश के गोंडा जिले के छपिया नामक गाँव में हुआ था।

वर्तमान में इस गाँव को स्वामीनारायण छपिया के नाम से जाना जाता हैं। स्वामीनारायण सम्प्रदाय वेद के ऊपर स्थापित किया गया हैं। नीलकंठ वर्णी द्वारा स्थापित स्वामीनारायण सम्प्रदाय से अब तक लाखों की तादाद में लोग जुड़ चुके हैं। सहजानंद जी या नीलकंठ वर्णी द्वारा 6 मंदिरों का निर्माण करवाया था। मुख्य मंदिर आज भी नीलकंठ वर्णी के जन्म स्थल गोंडा,छपिया में स्थित हैं।

स्वामीनारायण (swaminarayan) सम्प्रदाय के मुख्य मंदिर

1. स्वामीनारायण मंदिर छपिया, गोंडा।

2. स्वामीनारायण मंदिर भुज, गुजरात।

3. स्वामीनारायण मंदिर अहमदाबाद गुजरात।

4. स्वामीनारायण मंदिर,धोलका।

5. स्वामीनारायण मंदिर,धोलेरा।

6. स्वामीनारायण मंदिर,जूनागढ़।

7. स्वामीनारायण मंदिर,जेतलपुर।

8. स्वामीनारायण मंदिर,मुली।

9. स्वामीनारायण मंदिर,गढ़डा।

10. स्वामीनारायण मंदिर, वड़ताल।

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11 thoughts on “नीलकंठ वर्णी का इतिहास व कहानी, Nilkanth varni History In Hindi.”

  1. जब जन्म 1781मे तथा मृत्यू 1830 मे हुई तो 1848 से जीवन यात्रा केसे प्रारंभ हुई ?

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